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हिन्‍दी भाषा का उद्भव और विकास

हिन्‍दी भाषा का उद्भव और विकास

हिन्‍दी भाषा का उद्भव और विकास
hindi bhasha ka udbhav aur vikas

हिन्‍दी भाषा का उद्भव और विकास

भारत मे आर्यों कि भाषा वैदिक संस्‍कृत थी। वैदिक संस्‍कृत में वैदों की रचना हुई और इसे देवनागरी भी कहां जाता है। इस भाषा का उच्‍चारण जब सामान्‍य जन के लिये संभव न हुआ तो उच्‍चारण अशुद्धि के कारण प्राकृत भाषा का जन्‍म हुआ ।

वैदिक संस्‍कृत का व्‍याकरण सम्‍मत रूप कहलाया। संस्‍कृत का अर्थ है सुधार हुआ। संस्‍कृत में प्रसिद व्‍याकरण पाणिनी द्धारा रचित अष्‍ठाध्‍यायी है । वैदिक काल की प्राकृत बदल कर दूसरी प्राकृत के रूप में पाली भाषा कहलायी जिसमे बाद में चलकर बौद्ध र्धम का प्रचार हुआ ।

कालान्‍तर में इस दूसरी प्राकृत में भी परिवर्तन हुआ और इससें अपभ्रंश का अर्थ है बिगडा हुआ । इस अपभ्रंश से आगे चलकर पूर्वी हिन्‍दी और पश्चिमी हिन्‍दी का विकास हुआ और इन्‍ही रूपों से हिन्‍दी का जन्‍म हुआ इस बात से पता चलता है कि वैदों के समय से आजतक भारत में समय के अनुसार भाषा की कितनी दृष्टि से अनेक परिवर्तन हुए आधुनिक उतरी भारत की सभी भाषाएं वैदिक संस्‍कृत से निकली है वेदों की रचना के संबंध में कोई निश्चित तिथि निर्धारित नहीं की जा सकती है तथापि विद्धान इस बात पर एक मत हैं कि आज से पांच हजार वर्ष्‍ पूर्व वेदों की रचना अवश्‍य हो चुकी थी । इन पांच हजार वर्षों में भी अनेक परिवर्तन हुए । इस सारी अवधि को हम तीन कालों में विभक्‍त कर सकते हैं

1.प्राचीन भारतीय आर्य भाषा

 प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल में सर्वप्रथम हम वेद, ब्राह्राण ग्रथ ओर उपनिषदों की भाषा पाते है वेदों मे सबसे प्राचीन वेद ऋग्‍वेद है और उसकी भाषा प्राचीनतम है जो प्राचीन ईरानी भाषा अवेस्‍ता के निकट है । उपनिषद आदि के बाद वेदांग साहित्‍य और तत्‍पश्‍चात् सूत्र साहित्‍य की रचना हुई । अब तक वेदिक भाषा में इतना परिवर्तन हुआ था कि पाणिनी को व्‍याकरण कीइस भाषा को नियमबद्ध और परिमार्जित होने के कारण संस्‍कृत भाषा कहलाई । गौतम बुद्ध के समय से भारतीय आर्य भाषा का मध्‍यकाल आरम्‍भ होता है ।

प्राचीन भारतीय आर्य भाषा का रूप भी भिन्न-भिन्न कालों में परिवर्तित होता रहा है। सामान्यतः इसे दो भागों, वैदिक संस्कृत (800 ई. पू. तक) और लौकिक संस्कृत (800 ई. पू. से 500 ) में विभाजित किया जाता है।

वैदिक संस्कृत की एक विशेषता उसकी स्वर प्रधानता है। उसकी रूप रचना जटिल एवं वैविध्यपूर्ण है। यह श्लिष्ट योगात्मक भाषा है। लौकिक संस्कृत काल में वैदिक संस्कृत का वैविध्य कम हो गया। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया आदि के रूप स्थिर हो गए। उपसर्ग ‘नाम’ एवं ‘क्रिया’ के साथ लगने लगे। इनके अतिरिक्त तद्धित प्रत्ययों का भी विकास हो गया। कुछ विद्वान इसे प्रत्येक पाँच सौ वर्षों के तीन काल खंडों में विभाजित करते हैं- वैदिक भाषा काल (2000 ई. पू. 1500 ई. पू.), ब्राह्मण काल (1500 ई. पू. से 1000 ई. पू.) और साहित्यिक संस्कृत काल (1000 ई. पू. से 500 ई. पू.)

2.मध्‍यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल

यह काल ई. पू. 500 से 1000 ई. तक माना जाता है । इस काल में सर्वप्रथम पाली भाषा अशोक की धर्म लिपियों में उत्‍तरी भारत की भाषा में तीन विभिन्‍न रूप , पूर्वी, पश्चिमी अवश्‍य थी लोंगो की बोली में बराबर परिवर्तन होता र‍हा । अशोक धर्मलिपियों की भाषा बाद में प्राकृत भाषा के नाम से जानी गयी इस काल में संस्‍कृत के साथ-साथ साहित्‍य में इन प्राकृतों का व्‍यवहार होने लगा । पश्चिमी भाषा का मुख्‍य रूप शौरसैनी प्राकृत था, पूर्वी का माघधी प्राकृत, इन दोनो के बीच में अर्धमाघधी और चौथी दक्षिण रूप महाराष्‍ट्री प्राकृत थी प्राकृत भाषाओं का समय 500 ई. तक है इसके बाद प्राकृत की बिगडी बोली अपभंश सामने आई अपभ्रंश का समय काल 500 से 1000 ई तक है

मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा को भी तीन कालखण्डों में बाँटा जाता है-

(क). प्रथम प्राकृत (पालि)-500 ई. पू. ईसाइयों से सन् 1

(ख). दूसरा प्राकृत (प्राकृत) – ईसा सन् 1 से 500 ई.

(ग). तृतीय प्राकृत (अपभ्रंश)-500 ई. से 1000 ई.

प्रथम प्राकृत (पालि) काल की प्रमुख रचना त्रिपिटक (तिपिटक) है। बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा और अशोक के शिलालेखों की भाषा भी यही है। इस काल में ‘श’, ‘स’, ‘प’ के स्थान पर ‘स’ का ही प्रयोग होने लगा था।

द्वितीय प्राकृत (प्राकृत) काल में पाँच भाषाएँ विकसित हुईं-शौरसेनी, मागधी, अर्धमागधी, महाराष्ट्री और पैशाची। इन पाँचों की अपनी भिन्न-भिन्न व्याकरणिक विशेषताएँ भी विकसित हुई। शौरसेनी में ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ तथा ‘य’ के स्थान पर ‘ज’ ध्वनि मिलती है। मागधी की विशेषताएँ हैं- श, ष, स, र>ल, जय, क्ष > स्क। अर्धमागधी में सिर्फ एक ‘स’ है। महाराष्ट्री में रावण वहो (रावणवध) और गउड़वहो (गौड़वध) नामक महाकाव्य मिलते हैं। इसमें दो स्वरों के मध्य में व्यंजन का लोप हो जाता है। पैशाची में ‘बढ्ढकहा’ (बृहत्कथा) लिखी गई थी। इसमें ण > न, श, ष कहीं ‘स’ और कहीं ‘श’ मिलता है तथा संयुक्त व्यंजनों को सस्वर कर दिया जाता है

तृतीय प्राकृत अर्थात अपभ्रंश को प्राकृत भाषाओं तथा आधुनिक भाषाओं के बीच की कड़ी माना जा सकता है। उस समय सात अपभ्रंश भाषाएं मानी जाती हैं-शौरसेनी, मागधी, अर्धमागधी, महाराष्ट्री, कैकेय, ब्राचड़ और टक्क। अपभ्रंश अपेक्षाकृत सरल भाषा थी। इसमें नपुंसक लिंग समाप्त हो गया था। बचन भी दो रह गए थे। कारकों के रूप भी कम हो गए थे। शब्दावली के स्तर पर कुछ विदेशी शब्दों का प्रयोग होने लगा था। इन अपभ्रंश भाषाओं और आधुनिक आर्यभाषाओं के बीच एक अन्य भाषा भी मिलती है, जिसे ‘अवहट्ठ’ कहा जाता है। इसे ‘परवर्ती अपभ्रंश’ भी कहा जाता है। संदेश रासक, प्राकृत मंगलम्, उक्ति-व्यक्ति प्रकरण, वर्ण-रत्नाकर, चर्यापद, ज्ञानेश्वरी और कीर्तिलता ‘अवहट्ट’ की ही रचनाएँ है। चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ के अनुसार ग्याहरवीं शताब्दी तक अपभ्रंश की प्रधानता रही फिर वह ‘पुरानी हिंदी’ हो गई।

हिंदी का विकास अपभ्रंश से स्वीकार किया जाता है। यों, किसी भी भाषा के विषय में यह निश्चित कर पाना कि उसका उद्भव कब हुआ, एक कठिन कार्य है। इसीलिए हिंदी के उद्भव की चर्चा करते समय यदि सरहपा (सातवीं शताब्दी) को हिंदी का पहला कवि माना जाता है तो अनेक विद्वान इसका उद्भव बारहवीं सदी से स्वीकार करते हैं। हिंदी के उद्भव के सम्बन्ध में हम जो भी चर्चा करते हैं वह साहित्य पर भी आधारित है। इस दृष्टि से सोचें तो यह सत्य है कि सरहपा के बाद लम्बे समय तक हिंदी के सूत्र साहित्य में उपलब्ध नहीं होते, परन्तु यह भी ध्यातव्य है कि कोई भाषा अपने जन्म के साथ ही साहित्य की भाषा नहीं बन जाती। साहित्य की भाषा बनने के लिए उसे पहले प्रयोक्ताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरना पड़ता है। जब वह भावाभिव्यक्ति में पूर्ण सक्षम हो जाती है, तभी साहित्य, विशेषतः लम्बे समय तक पढ़े जाने वाले साहित्य की भाषा बन पाती है। इस दृष्टि से हिंदी और इसी प्रकार अन्य आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का उद्भव 1000 ई. के आसपास स्वीकार किया जाता है।

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3.आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल

इस काल में अर्थात् 1000 ई. से वर्तमान समय तक भारत की वर्तमान आर्य भाषाएं विकसित हुई है । शौरसेनी अपभ्रंश सें हिन्‍दी, गुजराती, पंजाबी, और पहाडी भाषओं का संबंध है । पूर्वी हिन्‍दी का संबंध अर्धमघधी अपभ्रंश के साथ है । बिहारी, बंगला, आसामी, और उडीया का संबंध मागधी अपभ्रंश से मराठी का महाराष्‍ट्री अपभ्रंश के साथ ।

इस प्रकार हमारी हिन्‍दी का जन्‍म शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ आरम्‍भ ग्‍यारवीं शताब्‍दी से होता है । इस भाषा का प्रारम्भिक रूप हम खुमार रासों, बीसलदेव रासो और पृथ्‍वीराज रासों नामक वीर रस पूर्ण काव्‍य ग्रन्‍थों में देखते है । हिन्‍दी भाषा के स्‍वरूप में अनेक परिवर्तन हुए तथा उसके कई भेद उपभेद बने । हिन्‍दी के प्रमुख भेद – पूर्वी और पश्चिमी हिन्‍दी । पश्चिमी हिन्‍दी मध्‍य प्रदेश ( दिल्‍ली,अम्‍बाला, का जिला और उतर प्रदेश का पश्चिमी भाग ) भाषा है । मेरठ तथा दिल्‍ली के निकट बोली जाने वाली पश्चिमी हिन्‍दी के ही एक रूप खडी बोली से वर्तमान साहित्‍य उर्दू तथा हिन्‍दी की उत्‍पति हुई । इसकी एक दूसरी बोली ब्रजभाषा मथुरा के आसपास बोली जाती है । इन दो बोलियों के अति‍रिक्‍त पश्चिमी हिन्‍दी बंगारू, कनौजी, और बुन्‍देली बोलियां भी सम्मिलित है । हमारी राष्‍ट्रभाषा का वर्तमान साहित्यिक खडी बोली का ही वर्तमान रूप है । पूर्वी हिन्‍दी में अवधी प्रमुख है ।

हिन्‍दी भाषा का की उत्‍पति प्राचीन भारतीय आर्य भाषाओं से हुई है फिर भी इसका समूह प्राचीन आर्य भाषाओं के अतिरिक्‍त और भी भाषाओं के प्रभाव से बना है ।

हिन्‍दी शब्‍द समूह के भाग

1. भारतीय आर्य भाषाओं का समूह ।

2. भारतीय आर्य भाषाओं से आयें हुए शब्‍द ।

3. विदेशी भाषाओं के शब्‍द

भारतीय आर्य भाषाओं के तत्‍सम और तद्भव शब्‍द हिन्‍दी  में प्रचुरता से पाये जाते है । तत्‍सम् का अभिप्राय संस्‍कृत के विशुद्ध शब्‍दों से है। जैसे – भाषा, धर्म, शब्‍द जो संस्‍कृत से आए हुए हैं और ज्‍यों के त्‍यों हिन्‍दी में प्रयुक्‍त होते है तद्भव के शब्‍द है जो मध्‍यकालीन आर्य भाषाओं अर्थात संस्‍कृत और प्राकृत से आए हुए हैं

भारतीय आर्य भाषाओं से आए हुए शब्‍द या तों दक्षिण का द्रविड बोलियों (तमिल,तेलगु,कन्‍नड,और मलयालम ) से हिन्‍दी में घुस गए हैं अथवा मुण्‍डा और कोल जाति का प्राचीन भाषाओं से निकले है।

विदेशी भाषाओं के शब्‍दों से तात्‍पर्य है ।

1.फारसी,अरबी,तुर्की, और पश्‍तो भाषाओं से आए हुए शब्‍द जैसे–कैंची, चाकू,लाख, किताब, बादशा‍ह, फौज, मालिक आदि ।

2.अंग्रेजी और यूरोपीय भाषाओं से आए हुए शब्‍द जैसे – स्‍कूल, बोतल, अंग्रेजी,रेडियों आदि।अ्ंग्रेजी भाषा से आए हुए शब्‍दों की संख्‍या हिन्‍दी में कुछ कम नहीं ।

इस प्रकार हिन्‍दी ने भारतीय आर्य भाषा से उत्‍पन्‍न होकर देशी और विदेशी शब्‍दों से सम्‍पन्‍न होकर आधुनिक विकसित रूप धारण किया है।

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