थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त
थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त
(Trial and Error Theory of Thorndike)
1. प्रस्तावना (Introduction) : एडवर्ड एल. थार्नडाइक (1874-1949) के अधिगम के सिद्धान्तों को कई नाम दिए गए हैं-
1. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त (Stimulus Response Theory)
2. संयोजनवाद (Connectionism)
3. संबद्धता का सिद्धान्त (Bond Theory of Learning)
4. थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त (Trial and Error Theory of Learning)
इनके साथ ही थार्नडाइक ने सीखने ने नियमों के बारे में चर्चा की है। इन्होंने सीखने के नियमों को दो भागों में बाँटा है-
1. मुख्य नियम
2. गौण नियम
मुख्य नियमों में तीन नियम हैं-
1. तैयारी का नियम (Law of Readiness)
2. अभ्यास का नियम (Law of Exercise)
3. प्रभाव का नियम (Law of Effect)
इसी प्रकार इन्होंने गौण नियम भी बताये हैं-
1. बहुविधि अनुक्रिया का नियम (Law of Multiple Response)
2. मानसिक स्थिति, अभिवृत्ति का नियम (Law of Mental Set or Attitude or Disposition)
3. आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity or Prepotency)
4. आत्मीकरण या समानता का नियम (Law of Equality)
5. साहचर्य परिवर्तन का नियम (Law of Associative Shifting)
थार्नडाइक ने 1898 में अपनी पुस्तक Animal Intelligence में अधिगम सिद्धान्त प्रस्तुत किया, इसके पश्चात् इन्होंने 1913 में अपनी पुस्तक Educational Psychology में अधिगम सिद्धान्त को और अधिक स्पष्ट किया।
थार्नडाइक ने पशुओं तथा मानवों पर परीक्षण किए हैं। इनके प्रयोगों में कुत्ता, बिल्ली, बंदर, मछली शामिल रहे। इन प्रयोगों के निष्कर्षों को उन्होंने प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त माना। बाद में इस सिद्धान्त को Learning by Selection and Connecting माना।
थार्नडाइक का प्रयोग (Experiment of Thorndike)
इन्होंने अपने प्रयोग में एक भूखी बिल्ली को एक पिंजरे में बन्द किया। इस पिंजरे में एक ऐसा लीवर लगा था जिसे दबाने से पिंजरे का दरवाजा खुल जाता था। बिल्ली भूखी थी। पिंजरे के बाहर उसका प्रिय भोजन मछली था। भोजन को देखकर बिल्ली भोजन प्राप्त करने का प्रयास करने लगी। बहुत प्रयास करने पर उसका पैर लीवर पर पड़ गया और दरवाजा खुल गया। आगे के प्रयोगों में प्रयासों की संख्या में कमी आने लगी तथा बिल्ली लीवर को दबाकर दरवाजा खोलना सीख गई। थार्नडाइक ने इस प्रयोग की व्याख्या इस प्रकार की है, यह प्रयोग अधिगम सम्बन्ध स्थापित करता है तथा सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य मस्तिष्क करता है।”
थार्नडाइक का मानना है कि अधिगम की क्रिया में शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं में सम्बन्ध होता है। यह सम्बन्ध विभिन्न उद्दीपकों और विशिष्ट प्रतिक्रियाओं के कारण स्नायु मंडल में होता है। यह सम्बन्ध स्थापन अधिगम क्रिया में आवश्यक शर्त है। यह सम्बन्ध अनेक प्रकार का हो सकता है।
थार्नडाइक के प्रयोग में बार-बार गलतियाँ हुई और उनको सुधारने के प्रयास किए गए। इसलिए इसे त्रुटि और प्रयास Trial and Error भी कहा जाता है। थार्नडाइक ने अपने प्रयोगों के आधार पर अधिगम के कुछ मुख्य तथा कुछ गौण नियम प्रस्तुत किए। ये नियम निम्नांकित प्रकार हैं-
1. तत्परता का नियम
तत्परता से तात्पर्य है किसी कार्य को करने के लिए तैयार रहना अर्थात् जब प्राणी किसी कार्य को करने के लिए तैयार रहता है तो उसे सीखने में आनन्द की प्राप्ति होती है और वह उसे जल्दी सीख लेता है तथा तत्परता से कार्य करने में ध्यान एकाग्र होता है। जिस कार्य को करने के लिए वह तैयार नहीं होता है और उसे उस कार्य को करने के लिए बाध्य किया जाता है तो कार्य करने में उसे झुंझलाहट आती है। जिससे वह उस कार्य को सीख नहीं पाता।
2. अभ्यास का नियम
थार्नडाइक के अभ्यास के नियम का अभिप्राय उपयोग के नियम (Law of use) से लिया जाता है किन्तु थार्नडाइक ने इसे Law of Disuse से भी लिया है जिसका अर्थ यह है कि जब हम किसी अधिगम की गई क्रिया का उपयोग नहीं करते तो उसे भूल जाते हैं। थार्नडाइक ने पहले क्रिया को बिना समझे अभ्यास करने पर बल दिया था, परन्तु बाद में उनके विचारों में परिवर्तन आ गया और उन्होंने प्रयास, अर्थ, समझने तथा सीखने के संकेतों (Clues) की ओर भी ध्यान दिया और इन्हें भी अभ्यास के नियम में शामिल किया।
3. प्रभाव का नियम
थार्नडाइक के नियम के अनुसार किसी कार्य को करने पर यदि संतुष्टि प्राप्त होती है तो उद्दीपन अनुक्रिया का सम्बन्ध सुदृढ़ होता है और यदि संतोष नहीं मिलता तो उद्दीपन अनुक्रिया सम्बन्ध निर्बल होता है। किन्तु बाद में थार्नडाइक ने स्वयं ही अपने नियम में परिवर्तन करके कहा कि उद्दीपन अनुक्रिया की संबद्धता पर असंतोष का प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि आवृत्ति अर्थात् बारंबारता तथा अभिनवता (Recency) का प्रभाव पड़ता है।
4.अधिगम के गौण नियम
थार्नडाइक ने अधिगम के पाँच गौण नियम भी प्रस्तुत किए जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नांकित रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है-
(अ). बहु प्रतिक्रिया नियम
भूखी बिल्ली ने मछली प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयास किए, अन्त में लीवर दबाकर पिंजरे का द्वार सीख लिया। प्रयत्न तथा भूल का सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है।
(ब). मानसिक विन्यास का नियम
अधिगम मानसिक विन्यास पर भी आधारित होता है। मानसिक विन्यास सीखने वाले व्यक्ति की अभिवृत्ति पर भी आधारित होता है। यदि व्यक्ति सीखने के लिए तैयार ही नहीं है तो वह या तो देर से सीखेगा या फिर सीखेगा ही नहीं।
(स). अपूर्ण क्रिया का नियम
थार्नडाइक का मानना है किसी कार्य को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटकर सीखने की गति तीव्र होती है। अंश से पूर्ण की ओर सिखाने का सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है।
(द). साम्यानुमान का नियम
इस नियम के अनुसार व्यक्ति किसी नई समस्या पर वही प्रतिक्रिया करता है जो कि उसने पहले ही उसी समस्या को समान परिस्थिति में की होती है। शिक्षण सूत्र ‘ज्ञात से अज्ञात की ओर’ इसका उदाहरण है।
(य). साहचर्य परिवर्तन का नियम
पशुओं के प्रशिक्षण में इस नियम को हम प्रायः देखते रहते हैं। कुत्ते को कोई खाद्य पदार्थ दिखाकर पीछे के पैरों पर खड़ा होना सीखा देते हैं। बाद में वह चुटकी बजने से ही पीछे के पैरों पर खड़ा होना शुरू हो जाता है, ऐसा ही कार्य थार्नडाइक ने मळली दिखाकर बिल्ली को पीछे के पैरों पर खड़ा होना सिखाया था। बाद में वह बिल्ली खड़ी हो कहने पर ही पीछे के पैरों पर खड़ी हो जाया करती है। इसे ही साहचर्य परिवर्तन कहते हैं।
3. उद्दीपन अनुक्रिया संबद्ध सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ इस सिद्धान्त के निम्नांकित शैक्षिक निहितार्थ हैं-
1. सीखने वाले की सक्रियता पर बल, यदि सीखने वाला निष्क्रिय है तो सीखने की क्रिया कम होगी अथवा नहीं हो पायेगी। सक्रियता बनाए रखने के लिए Learning by doing करके सीखने तथा Group Discussion पर बल देना चाहिए।
2. शिक्षण कार्य करने के पहले विद्यार्थी को उत्प्रेरित करना चाहिए ताकि सीखने की क्रिया में वह सक्रिय रह सके।
3. विषयवस्तु को छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर शिक्षण करना प्रभावी रहता है अभिक्रमित अधिगम का महत्त्वपूर्ण हिस्सा छोटे पदों का सिद्धान्त है।
4. शिक्षक को चाहिए कि वह सीखने वालों को एक सुखद अनुभव प्रदान करें।
5. अध्यापन से पहले पाठ की महत्त्वपूर्ण बातें तथा बाद में पुनरावृत्ति अवश्य करनी चाहिए। शिक्षण के बाद गृहकार्य दिया जाना पुनरावृत्ति को बल प्रदान करता है। थोड़े-थोड़े समय बाद परीक्षा के माध्यम से बच्चों को पुनरावृत्ति करने के लिए अवसर प्रदान करते हैं।
6. सीखने के लिए अभ्यास करना महत्त्वपूर्ण है। सही उच्चारण के लिए, सुलेख के लिए तथा वर्तनियों (spelling) की शुद्धता पर विशेष ध्यान अभ्यास के माध्यम से दिया जाना उपयोगी रहता है। ध्यान रखना चाहिए कि भाषा व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
7. बच्चों को प्रोत्साहन देना शिक्षण का एक आवश्यक अंग बताना चाहिए।
8. बच्चों की योग्यताओं, क्षमताओं तथा व्यवहार में भिन्नता पाई जाती है। जिनके कारण बच्चे स्वगति से सीखते हैं। प्रत्येक बच्चे में एक से अधिक विशेषताएँ पाई जाती हैं। शिक्षक को उन विशेषताओं का पता लगाकर बच्चों के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, नैतिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक विकास में उपयोग करना चाहिए।
9. कई बार अध्यापक दंड के माध्यम से शिक्षण कार्य करते देखे गए हैं। दंड देना अध्यापक के मानसिक असंतुलन, अक्षमता, कुंठाओं से ग्रस्त होने का प्रतीक है जबकि विद्यार्थियों को प्रेमपूर्वक प्रोत्साहन देकर पढ़ाना उसके उच्च चरित्र,शिक्षण अभियोग्यता, उच्च मानसिक अभियोग्यताओं तथा मानसिक रूप से स्वस्थ होने का प्रतीक है।
10. प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त हमें यह शिक्षा देता है कि प्रयास की संख्याओं में कमी करने के लिए अध्यापक उचित संकेत (clue) प्रदान करें। संकेत इतने स्पष्ट न हो कि उनका पालन करते ही विद्यार्थी को तुरन्त समस्या का समाधान मिल जाए। बल्कि ऐसे होने चाहिए कि अधिगमकर्ता को फिर भी कुछ प्रयास करना जरूरी हो जाए ताकि उसमें आत्मविश्वास बढ़े। साथ ही समस्या समाधान के लिए संबद्ध तरीके विकसित करने की योग्यता का विकास है।
11. कक्षा में पिछड़े विद्यार्थियों को प्रेरित करने के लिए बालकों से सरल प्रश्न पूछने चाहिए ताकि उन्हें सफलता की अनुभूति हो सके।