शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा : विकास, विशेषताएं, प्रकृति
शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा : आज हम वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं। विज्ञान के इस युग में तकनीकी ने अभूतपूर्व प्रगति की है। इसलिए आधुनिक युग को तकनीकी एवं सूचना का युग कहा जाता है। एक ओर तकनीकी और सूचना के प्रयोग ने हमारे जीवन की कई राहों को आसान बनाया है तो दूसरी ओर इससे जीवन में कई जटिलताएँ तथा चुनौतियाँ भी आई हैं।
शिक्षा मनोविज्ञान एक व्यवहारिक विज्ञान है जो मानव की इस बदलते परिवेश में चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है। शिक्षा मनोविज्ञान अध्ययन के एक विषय के रूप में अध्यापकों को ऐसी जानकारी व ज्ञान प्रदान करता है जिसकी सहायता से वे अपने शिक्षण कार्य में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होते हैं। शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक स्वतंत्र शाखा है, जिसमें शैक्षिक परिवेश में व्यक्ति की क्रियाओं व व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास का एक सशक्त साधन है, उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास इसी में निहित है। शिक्षा विद्यार्थियों की अन्तनिर्हित शक्तियों को उभारकर उन्हें विकसित करती है जिससे बालक स्वयं अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है और एक सामाजिक प्राणी बनकर समाज को लाभ पहुँचाता है। शिक्षा बालक के व्यवहार का परिमार्जन करती है, यह परिमार्जन, बालक और समाज दोनों के लिए उपयोगी होता है।
शिक्षा का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक व्यक्ति शिशु के रूप में कुछ पाशविक प्रवृत्तियाँ लेकर इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। शिक्षा तथा ज्ञान द्वारा उन पाश्विक प्रवृत्तियों का शोधन, मार्गान्तीकरण होता है और वह मनुष्य बनता है। लॉक (Lock) ने ठीक ही लिखा है, “पौधों का विकास कृषि द्वारा एवं मनुष्यों का विकास शिक्षा द्वारा होता है।”
“जिस प्रकार शारीरिक विकास के लिए भोजन का महत्त्व है उसी प्रकार सामाजिक विकास के लिए शिक्षा का।” भारतीय मनीषियों ने भी ठीक इसी प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त किया है। महाराजा भर्तृहरि ने उचित ही लिखा है, ‘विद्याहीन नरः पशुः तुल्यः।’ अर्थात् ‘विद्या के अभाव में मनुष्य पशु के समान है।’
शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ शिक्षा से सम्बन्धित मनोविज्ञान है। शिक्षा द्वारा मानव व्यवहार का परिष्कार होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ व्यक्ति तथा समाज के व्यवहार का परिष्कार करना है।
शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएँ (Definitions of Education Psychology)
शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा की विभिन्न शिक्षाशास्त्री एवं मनोविज्ञानियों के द्वारा दी गई कुछ इस प्रकार हैं-
स्किनर (Skinner) महोदय के अनुसार,“शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत उन्नीस वर्षो का उपयोग किया जाता है जो विशेष रूप से शैक्षिक परिस्थितियों में मानव के व्यवहार तथा उनके अनुभव से संबंधित होता है
ट्रो (Trow) महोदय के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक परिस्थितियों के मनोवैज्ञानिक पक्ष का अध्ययन है”।
स्टीफन (Stephan) महोदय के अनुसार,“शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक विकास का क्रमबद्ध अध्ययन है।।”
स्टाउट (Stout) के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा शिक्षा सिद्धांत को दिया जाने वाला प्रमुख सिद्धांत यह है की मूर्त ज्ञान का विकास , पुराने ज्ञान के आधार पर ही किया जाना चाहिए।”
क्रो एंड क्रो (crow and crow) महोदय के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान, जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक मानव से संबंधित अधिगम के अनुभवों का वर्णन एवं उनका व्याख्यान करता है।”
गेट्स एवं मैक्सवैल (gates and Maxwell) के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान का संबंध शिक्षण के मानवीय पक्ष से है।”
सॉरे तथा टेलफोर्ड के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध अधिगम से है। शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान का वह क्षेत्र है जो शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं के वैज्ञानिक खोज से विशेष रूप से सम्बन्धित है।”
बी.एफ. स्किनर के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान में शिक्षा से सम्बन्धित समस्त व्यवहार एवं व्यक्तित्व आ जाता है।”
एलिस क्रो के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान, वैज्ञानिक विधि से प्राप्त किए जाने वाले मानवीय प्रतिक्रियाओं के उन सिद्धान्तों के प्रयोग को प्रस्तुत करता है, जो शिक्षा और अधिगम को प्रभावित करते हैं।”
नॉल व अन्य के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान, मुख्य रूप से शिक्षा की सामाजिक प्रक्रिया से परिवर्तित या निर्देशित होने वाले मानव व्यवहार के अध्ययन से सम्बन्धित है।”
एच.आर. भाटिया के अनुसार, “शैक्षिक वातावरण में विद्यार्थियों या व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन ही शिक्षा मनोविज्ञान है।”
सी.ई. स्किनर के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान, शैक्षिक परिस्थितियों में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है।”
जूड महोदय के अनुसार, “शिक्षा मनोविज्ञान, एक ऐसा विज्ञान है, जो व्यक्तियों में हुए परिवर्तनों का उल्लेख और व्याख्या करता है, जो विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होते हैं।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से विस्तृत होने वाले प्रमुख विचार बिन्दु निम्नलिखित हैं-
1. यह मनोविज्ञान के सिद्धान्तों तथा अनुसंधानों का शिक्षा में प्रयोग है।
2. शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक विकास का अध्ययन है।
3. शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के अनुभवों का वर्णन तथा व्याख्या है।
4. यह शिक्षण और अधिगम को प्रभावित करने वाले सिद्धान्तों के प्रयोग को प्रस्तुत करता है।
5. शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है।
6. शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध अधिगम से है।
7. शिक्षा मनोविज्ञान मानव व्यवहारों का व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों ही रूपों में अध्ययन करता है।
8. शिक्षा मनोविज्ञान विद्यार्थियों, अध्यापकों तथा अभिभावकों के लिए जानना आवश्यक है।
9. शिक्षा मनोविज्ञान की सार्थकता अध्ययन के बाद व्यवहार के संशोधन में आँकी जाती है।
10. शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के सिद्धान्तों को अपनाकर विधायक विज्ञान का स्वरूप ग्रहण कर लेता है।
11. शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है।
शिक्षा मनोविज्ञान का विकास (Development of Educational Psychology)
मनोविज्ञान ने दर्शनशास्त्र की एक शाखा के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया। इसका प्रारम्भ अरस्तु के समय में हुआ। उस समय से लेकर सैकड़ों वर्षों तक उसका विवेचन इसी शास्त्र की शाखा के रूप में किया गया। पर जैसा कि Reyburn ने लिखा है-
“आधुनिक काल में एक परिवर्तन हुआ है। मनोवैज्ञानिकों ने धीरे-धीरे अपने विज्ञान को दर्शनशास्त्र से पृथक् कर लिया है।”
मनोविज्ञान के अर्थ में क्रमशः परिवर्तन
1. आत्मा का विज्ञान (Science of Soul): ग्रेरैट के अनुसार, ‘Psychology’ शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के दो शब्दों से हुई है। Psyche (साइकी), जिसका अर्थ है Soul (आत्मा) और Logos (लोगस) जिसका अर्थ है Study (अध्ययन) । इस प्रकार प्राचीन काल में Psychology या मनोविज्ञान का अर्थ था Study of the soul अर्थात् आत्मा का अध्ययन या आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना। इसलिए मनोविज्ञान को प्राचीन काल में आत्मा का विज्ञान माना जाता था। अनेक यूनानी दार्शनिकों ने इस मत का समर्थन किया जिनमें Plato, Aristotle और Descartes के नाम उल्लेखनीय हैं, परन्तु ये और अन्य दार्शनिक इस बात का उत्तर नहीं दे पाए कि आत्मा क्या है एवं इसका रूप, रंग व आकार कैसा है? अत: 16वीं शताब्दी में प्रचलित मनोविज्ञान का यह अर्थ अस्वीकार कर दिया गया है।
2. मस्तिष्क का विज्ञान (Science of Mind): मध्य युग के दार्शनिकों के मतानुसार मनोविज्ञान मन या मस्तिष्क का विज्ञान था। इस मत के प्रमुख समर्थक इटली के दार्शनिक Pomponazzi थे, किन्तु मध्य युग में कोई भी दार्शनिक मस्तिष्क की प्रकृति एवं स्वरूप को निश्चित नहीं कर सका, जिसके परिणामस्वरूप यह मत भी अस्वीकार कर दिया गया।
3. चेतना का विकास (Science of Consciousness): 19वीं शताब्दी के विद्वानों ने मनोविज्ञान को ‘चेतना का विज्ञान’ बताया। इन विद्वानों में William James, Vives, William Wundt, James Sully आदि प्रमुख हैं। इन विद्वानों में इस परिभाषा पर बहुत मतभेद रहा और इसे अपूर्ण ठहरा दिया गया, क्योंकि चेतना के भी तीन भाग हैं-1. चेतना, 2. अर्द्ध चेतना, और 3. अचेतन। इस मत में चेतना के केवल एक भाग पर विचार किया गया इसी कारण यह प्रयत्न भी असफल रहा।
4. व्यवहार का विज्ञान (Science of Behaviour): 20वीं शताब्दी में मनोविज्ञान को ‘व्यवहार का विज्ञान’ माना गया। इस शताब्दी के प्रारम्भ में विद्वानों ने मनोविज्ञान के कई अर्थ बताए। जिनमें सबसे अधिक मान्यता इस अर्थ को दी गई ‘मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है।’ अन्य शब्दों में मनोविज्ञान मानव के व्यवहार का अध्ययन करता है। वर्तमान युग में मनोविज्ञान शब्द का प्रयोग साधारणतः इसी अर्थ में किया जाता है।
प्राचीनकाल से आधुनिक काल तक मनोविज्ञान के इतिहास का चित्र प्रस्तुत करते हुए वुडवर्थ ने लिखा है, “सबसे पहले मनोविज्ञान ने अपनी आत्मा का त्याग किया। फिर उसने अपने मन का त्याग किया। उसके बाद उसने चेतना का त्याग किया। अब वह व्यवहार की विधि को स्वीकार करता है।”