परिपक्वता की विशेषताएं characteristics of maturation
परिपक्वता की विशेषताएं (characteristics of maturation)
परिपक्वता paripakvata की उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर उसकी निम्नलिखित पर विशेषताएं बताई जा सकती है-
2- परिपक्वता अधिगम की अनिवार्य शर्त है। परिपक्वता जन्मजात होती है और अधिगम परिपक्वता पर निर्भर करता है।
3- परिपक्वता और अधिगम व्यक्ति की विभिन्नताओं का आधार है। बुद्धि, शारीरिक रचना और विकास, रुचियां, अभिरुचियां आदि में विभिन्नता परिपक्वता और अधिगम के आधार पर ही होती है।
4- परिपक्वता paripakvata सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है। परिपक्वता के आधार पर किया गया व्यवहार ही मान्य होता है।
5- परिपक्वता सभी प्रकार की उचित- अनुचित अच्छे पूरे मान्य-अमान्य और वांछनीय-अवांछनीयत कार्यों का पूर्ण ज्ञान होने से संबंधित होते हैं।
6-परिपक्वता एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति स्वयं को कोई निर्दिष्ट व्यवहार करने में सक्षम पाता है।यह व्यवहार शारीरिक और मानसिक अक्षमता से अनुदेशक होता है।
7- बोरिंग के अनुसार, “परिपक्वता का अर्थ अभिवृद्धि और विकास है।परिपक्वता शारीरिक और मानसिक अधिगम की कुशलता के लिए आवश्यक है। किसी भी कार्य को सीखने के लिए शारीरिक और मानसिक परिपक्वता का प्राप्त होना अनिवार्य है।”
8- paripakvata के प्रतिमान है – अधिग्रहण,धारणा और सशक्त प्रत्यास्मरण। अधिग्रहण व्यवहार संशोधन में सहायक होता है। इसके द्वारा ही बालक मानसिक रूप से सीखने के लिए तैयार होता है। धारणा की अभाव में बालक किसी भी अर्जित गुण को अभिव्यक्ति नहीं कर सकता और सशक्त प्रत्यास्मरण के द्वारा ही परिपक्वता तथा सीखने के व्यवहार का पता चलता है।
paripakvata और अधिगम में संबंध:-
परिपक्वता और अधिगम एक दूसरे की सही घनिष्ठ रूप से संबंधित है व्यवहार में परिवर्तन परिपक्वता के कारण भी होता है और अधिगम के कारण भी दोनों ही कारण जो परिवर्तित परिवर्तन होते हैं वह प्रयोग स्थाई ढंग के होते हैं और उनमें प्रगतिशील ता का गुण विद्यमान रहता है लेकिन इन समानता ओं के कारण यह नहीं कहा जा सकता है कि परिपक्वता और अधिगम दोनों एक ही है दोनों के मध्य प्रमुख अंतर निम्न प्रकार से हैं-
1.परिपक्वता के कारण शरीर के अंग प्रत्यंग का विकास होता है जबकि अधिगम के कारण व्यक्ति उन विकसित हुए अंगूर से कोई क्रिया करता है और इस क्रिया को रोकने के लिए उसी प्रयत्न का अभ्यास करना पड़ता है
2.परिपक्वता के कारण व्यक्ति में जो योग्यता पैदा होती है उनमें अभ्यास की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती लेकिन अधिगम के लिए अभ्यास आवश्यक होता है
3. परिपक्वता की क्रिया परिपक्व अवस्था तक निरंतर चलती रहती है उससे पहले नहीं रुकती लेकिन किसी भी प्रकार का अधिगम लगातार नहीं होता बल्कि यह रुक-रुक कर होता है।
4.परिपक्वता की क्रिया एक निश्चित समय तक ही चलती है जबकि बालक प्लॉट हो जाता है तो यह क्रिया समाप्त हो जाती है और उसी परिपक्व को कहा जाने लगता है लेकिन अधिगम की प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होती वह तो जीवन पर्यंत चलती रहती है।
5.परिपक्वता की क्रिया जन्मजात है गर्भावस्था से ही परिपक्वता की क्रिया स्वाभाविक रूप से कार्य करने लगती है जबकि अधिगम की क्रिया अर्जित है अधिगम तो प्रयत्न करके ही प्राप्त होता है बिना प्रत्यय किए अधिगम नहीं हो सकता।
6. परिपक्वता की क्रिया जातीय किया है जबकि अधिगम की क्रिया व्यक्तिगत क्रिया है परिपक्वता के फल स्वरुप जो योग्यता व्यक्ति में आती है वह योग्यता और आयु के सभी व्यक्तियों में समान रुप में पाई जाती है लेकिन अधिगम के फल स्वरुप जो योग्यता एक व्यक्ति में आती है वह उसी तक सीमित रहती है।
7.परिपक्वता अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में चलती रहती है जबकि अधिगम अनुकूल परिस्थितियों में ही हो सकता है।
8.परिपक्वता एक स्वाभाविक प्रक्रिया है अभिप्रेरणा का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता जबकि अधिगम में अभिप्रेरणा का महत्वपूर्ण स्थान है।
9. परिपक्वता अधिगम पर आधारित नहीं है जबकि अधिगम बालक की शारीरिक और मानसिक परिपक्वता पर आधारित होता है।
10. paripakvata द्वारा शारीरिक रचना में परिवर्तन होता है जबकि अधिगम द्वारा वातावरण और परिस्थिति में परिवर्तन लाया जा सकता है।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि परिपक्वता और अंतर है लेकिन यह दोनों क्रियाएं एक साथ चलती है बालक जैसे-जैसे बड़ा होता है उसमें परिपक्वता भी आती जाती है और वह अधिगम भी करता रहता है इस प्रकार बालक के विकास में परिपक्वता और अधिगम दोनों साथ-साथ कार्य करते हैं वस्तुतः दोनों क्रियाएं परस्पर संबंध है एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है व्यक्ति का विकास ना तो केवल परिपक्वता से संभव है और ना केवल अधिगम से अधिगम परिपक्वता पर आश्रित है और परिपक्वता अधिगम की सम्माकता है।
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