तर्क | Reasoning
तर्क Reasoning
समस्या समाधान के लिए चिंतन व तर्क की आवश्यकता होती है।
तर्क को चिंतन का उच्चतम रूप कहा जाता है।
Reasoning को चिंतन का विकसित रूप कहा जाता है।
चिंतन के द्वारा जो परिणाम प्राप्त होते हैं उसे तर्क कहते हैं।
यह एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है जिसमें सुगठित बुद्धि की आवश्यकता होती है।
तर्क के माध्यम से चिंतन को क्रमबद्ध बनाया जाता है।
Reasoning एक अभिव्यक्ति क्रिया है जिसका प्रकटीकरण समस्या-समाधान व्यवहार से होता है।
समस्या समाधान के साथ ही तर्क समाप्त हो जाते हैं।
तर्क के लिए कल्पना की आवश्यकता होती है।
यह प्रकार का वास्तविक चिंतन है। जिसमें व्यक्ति पक्ष-विपक्ष में तर्क के द्वारा निष्कर्ष तक पहुंचता है।
तर्क की परिभाषाएं :-
गैरेट :-
“मन में किसी उद्देश्य या लक्ष्य को रखकर क्रमानुसार चिंतन करना तर्क है।”
स्किनर :-
तर्क शब्द का प्रयोग कारण और प्रभाव के संबंधों की मानसिक पहचान को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
यह किसी देखे हुए कारण के आधार पर किसी घटना के घटने की भविष्यवाणी भी हो सकता है और किसी घटित घटना के कारण को भी बता सकता है।”
गेट्स व अन्य :-
तर्क उत्पादक चिंतन है, जिसमें किसी समस्या का समाधान करने के लिए पूर्व अनुभवों को नवीन रूप और तरीकों से पुनर्संगठित किया सम्मिलित किया जाता है।”
वुडवर्थ ने इसको मानसिक अनुसंधान कहां है।
अतः तर्क हमें वर्तमान परिस्थितियों का निरीक्षण करके पूर्व अनुभवों या स्मृति के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने या किसी समस्या का समाधान करने में सहायता देता है।
जैसे :-
परीक्षा के समय Reasoning के द्वारा प्रश्नों के सही और उचित उत्तरों का चयन करके परीक्षा देना।
साक्षात्कार के समय तर्क के द्वारा किये गये उत्तर अधिक स्पष्ट एवं बौद्धिक क्षमता के परिचायक होते हैं।
अतः तर्क वह प्रक्रिया है जो उपस्थिति समस्या के लिए उपयुक्त हल प्रस्तुत करती है ताकि समस्या का हल शीघ्र प्राप्त हो जाये।
तर्क के सोपान :-
जाॅन ड्यूवी ने अपनी पुस्तक – How we think के अन्तर्गत तर्क के पांच सोपान बतायें है –
1.समस्या की उपस्थिति/समस्या की पहचान :-कि
समस्या की उपस्थिति से तर्क का आरंभ होता है। क्योंकि समस्या उत्पन्न होने पर ही व्यक्ति उसके बारे में सोचने-समझने के लिए बाध्य होता है।
2. समस्या की जानकारी/आंकड़ों का संग्रहण :-
व्यक्ति समस्या का पूर्ण रूप से अध्ययन करता है। इससे उसके बारे में उसे ही पूरी जानकारी होती है और वह उससे संबंधित तथ्यों को एकत्रित करता है।
3. समस्या समाधान के उपाय/अनुमान लगाना :-
समस्या से संबंधित एकत्र किये गये तथ्यों की सहायता से समस्या-समाधान के लिए विभिन्न उपायों पर विचार करता है।
4.एक उपाय को अपनाना/एक अनुमान का प्रयोग करना :-
व्यक्ति समस्या-समाधान के विभिन्न उपायों के औचित्य पर पूर्ण रूप से विचार करता है और उनमें से एक उचित उपाय का चयन करता है।
5.उपाय का प्रयोग/निर्णय करना :-
व्यक्ति समस्या के समाधान के लिए उपाय का प्रयोग करता है तथा निर्णय पर पहुंचता है।
उदाहरण :-
मां जब बच्चे को रोता देखती है तो उसके सामने समस्या उपस्थित होती है फिर वह रोने के कारणों को खोजती है अर्थात समस्या की पूरी जानकारी प्राप्त करती है।
फिर वह समाधान खोजती है कि बच्चा भूखा है तो दूध पिलाया जाये,चोट लगी है तो दवा लगाई जाये, अकेला है तो गोद में उठाकर प्यार किया जाये।
फिर वह एक उपाय अपनाती है, लेकिन फिर भी बच्चा चुप नहीं होता तो दूसरे उपाय का प्रयोग करती है तथा बच्चा चुप हो जाता है।
जैसे :-
ट्रेन में जाना था लेकिन वह चल दी, समस्या उपस्थित हो गई, ट्रेन किस स्पीड से चल रही है जानकारी ली। उपाय खोजे की दौड़ कर पकड़ा जाये।
जंप लगा कर अंदर जाया जाये, किसी का हाथ पकड़कर चला जाये या दूसरी ट्रेन का इंतजार किया जाये।
उनमें से एक उपाय का चयन किया जाता है फिर उसका प्रयोग।
जैसे :-
चलते-चलते बड़ा या गड्ढा आ गया। समस्या उत्पन्न हो गई। गड्ढा कितना गहरा है
जानकारी ली। उपाय ढूंढें जंप करके या किसी का हाथ पकड़कर या कोई पुल बनाकर एक उपाय का चयन करके प्रयोग करना ।