अभिप्रेरणा का अर्थ व परिभाषा : (Meaning and Definition of Motivation)
अभिप्रेरणा का अर्थ व परिभाषा (Meaning and Definition of Motivation)
अभिप्रेरणा का अर्थ : अंग्रेजी के ‘Motivation’ का अनुवाद अभिप्रेरणा है। ‘Motum’ से ‘Motivation’ शब्द बना है। जिसका अर्थ है – हिलाना या गति करना। इस प्रकार शाब्दिक आधार पर अभिप्रेरणा का अर्थ हुआ वह जो हिलाती है या गति करवाती है।अभिप्रेरणा अपने प्रेरकों के माध्यम से हमारे शरीर में गति पैदा करती है या उन्हें व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है।
अभिप्रेरणा का अर्थ : परिभाषा
विभिन्न विद्वानों ने अभिप्रेरणा की अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं। इनमें से प्रमुख परिभाषाओं को हम निम्नलिखित प्रकार से देख सकते हैं-
गिलफोर्ड के अनुसार, “अभिप्रेरणा कोई विशेष आंतरिक कारक अथवा दशा है।”
वुडवर्थ के अनुसार, “अभिप्रेरणा व्यक्ति की वह दशा है जो किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।”
ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन के अनुसार, “अभिप्रेरणा एक प्रक्रिया है जिसमें सीखने वाले की आंतरिक शक्तियाँ या आवश्यकताएँ उसके वातावरण में विविध लक्ष्यों की ओर निर्देशित होती हैं।”
शैफर एवं अन्य के अनुसार, “अभिप्रेरणा क्रिया की एक ऐसी प्रवृत्ति है जो प्रणोदन द्वारा उत्पन्न होती है तथा समायोजन द्वारा समाप्त होती है।”
गुड के अनुसार, “अभिप्रेरणा क्रिया को प्रारंभ करने, जारी रखने तथा नियंत्रित रखने की प्रक्रिया है।”
अभिप्रेरणा की इन सब परिभाषाओं के आधार पर हम इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ बता सकते हैं-
1. अभिप्रेरणा उद्देश्य प्राप्ति का साधन है जो कि उद्देश्य प्राप्त करने के लिए मार्ग प्रशस्त करती है।
2. अभिप्रेरणा व्यक्ति को निश्चित व्यवहार करने के लिए निर्देशित करती है।
3. अभिप्रेरणा उद्देश्य प्राप्ति तक प्राणी को क्रियाशील बनाए रखती है।
4. अभिप्रेरणा के दो मुख्य स्रोत हैं- आंतरिक एवं बाहरी ।
5. अभिप्रेरणा व्यक्ति की शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दशाओं के द्वारा प्रभावित होती है।
6. अभिप्रेरित व्यवहार की मुख्य तीन विशेषताएँ होती हैं-
(1) व्यवहार की जागरूकता
(ii) अभिप्रेरित व्यक्ति का दिशा-निर्देशित होना।
(iii) इच्छा का अनुभव करना।
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अभिप्रेरणा के घटक (Steps of Motivation)
अभिप्रेरणा के प्रत्यय की व्याख्या कई घटकों को मिलाकर होती है, जैसे- आवश्यकता, अन्तर्नोद चालक, प्रोत्साहन प्रलोभन आदि अभिप्रेरक आदि। इनको मोटे रूप में हम इस प्रकार समझ सकते हैं अन्तर्नोद इन्हें चालक भी कहते हैं। प्राणी की आवश्यकताएँ चालक को जन्म देती हैं। जिससे व्यक्ति आवश्यकता को पूर्ण करने या असंतुलन को दूर करने के लिए व्यवहार अथवा क्रिया करने के लिए क्रियाशील होता है। आवश्यकता मूलतः शारीरिक होती है जबकि चालक व्यवहार से संबंधित होते हैं। जैसे भोजन की आवश्यकता का चालक भूख व्यक्ति को व्यवहार के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार भोजन की आवश्यकता भूख चालक या अन्तर्नोद को जन्म देती है।
बोरिंग का मानना है, “चालक आंतरिक शारीरिक क्रिया या दिशा है जो उद्दीपन के द्वारा विशेष प्रकार का व्यवहार उत्पन्न करती है।”
आवश्यकताएँ : प्रत्येक प्राणी की कुछ मूलभूत जैविक आवश्यकताएँ, जैसे- भोजन, हवा, जल तथा मनोसामाजिक आवश्यकताएँ, जैसे-सुरक्षा, स्नेह, सम्मान आदि होती हैं। जिनकी पूर्ति के अभाव में ये आवश्यकताएँ व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करती हैं। व्यक्तित्व के संतुलन या संतुष्टि के लिए उसकी आवश्यकताएँ पूरी होनी जरूरी हैं।
प्रोत्साहन : जिस वस्तु से आवश्यकता तथा अन्तर्नोद की समाप्ति होती है उसे प्रोत्साहन कहते हैं। प्रोत्साहन का संबंध निश्चित वस्तुओं से हैं। जिनको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति प्रयास करता है। जैसे भूख अन्तर्नोद के लिए भोजन एक प्रोत्साहन है।
अभिप्रेरक : मैकडूगल के अनुसार, “अभिप्रेरक व्यक्ति के अंदर वे दैहिक तथा मनोवैज्ञानिक दशाएँ हैं जो उसे एक निश्चित ढंग से कार्य करने के लिए प्रवृत्त करती हैं।”
सामान्य अथर्थों में हम यह कह सकते हैं कि अभिप्रेरक कार्य करने की वे प्रवृत्ति है जो किसी आवश्यकता अथवा अन्तर्नोद से प्रारंभ होती हैं तथा समायोजन पर जाकर समाप्त हो जाती हैं।
जॉन पी. डिसेको ने अभिप्रेरणा देने वाले चार घटकों का जिक्र किया है-
1. उत्तेजना
2. आकांक्षा
3. प्रोत्साहन
4. दण्ड
इन चारों घटकों में आपस में संबंध होता है। ये शिक्षण में अभिप्रेरणा देने की क्रियाएँ माने जाते हैं। अगर शिक्षक अभिप्रेरणा के इन चारों घटकों में अपनी भूमिका सार्थकता से तय कर लेता है तो सीखना सहज, सरल, रोचक व प्रभावी हो सकता है।
उत्तेजना : उत्तेजना शक्ति प्रदान करती है, परंतु निर्देशन नहीं प्रदान करती। जैसे यह किसी मशीन को चालू कर देने जैसा है लेकिन यहाँ उसका मार्ग या दिशा तय नहीं है कि उसे कैसे काम करना है। उत्तेजना व्यक्ति की सक्रियता के लिए आवश्यक घटक माना जाता है। उत्तेजना के तीन स्तर बताए गए हैं-
1. उच्च स्तर
2. मध्य स्तर तथा
3. निम्न स्तर
व्यक्ति को उत्तेजना दो स्रोतों से मिलती हैं-
1. आंतरिक उत्तेजना स्रोत : व्यक्ति स्वभाव से ही सक्रिय होता है। सामान्य रूप से शारीरिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए व्यक्ति सक्रिय होता है। आंतरिक उत्तेजना स्रोत निम्न स्तर की शारीरिक आवश्यकताओं से लेकर उच्च स्तर की मानसिक आवश्यकताओं तक होता है।
2. बाहरी उत्तेजना स्रोत: साधारणतः वातावरण से व्यक्ति को उत्तेजना मिलती है। वातावरण के तत्व उद्दीपन का कार्य करते हैं। वातावरण का नयापन भी बालकों को प्रेरित करता है। नीरसता को दूर करने के लिए परिवर्तन तथा वातावरण के नयेपन की आवश्यकता होती है। उत्सुकता तथा उत्तेजना दोनों ही भावना के स्तर को उठाने में सहायक होते हैं। उत्तेजना में भावुकता की मात्रा अधिक होती है। उत्तेजना का विद्यार्थी की निष्पत्तियों से धनात्मक सह संबंध होता है।
अभिप्रेरणा के सिद्धांत (Methods of Motivation)
कई विद्वानों ने अभिप्रेरणा का अर्थ व परिभाषा पर अध्ययन व कार्य किया है। उनके अध्ययन के आधार पर अभिप्रेरणा के कुछ सिद्धांत बताए गए हैं। इनमें से प्रमुख सिद्धांतों को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत (Psychoanalysis Methods)
मूल रूप से मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत सिगमंड फ्रायड की देन है बाद में जुंग तथा एडलर ने भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। फ्रायड ने एक सिद्धांत दिया था जिसे ‘लिबिडो’ या ‘कामुकता’ का सिद्धांत कहा जाता है। इस सिद्धांत की व्याख्या ‘सुखवाद’ या ‘आनन्दवाद’ के नाम से भी की जाती है। इस सिद्धांत के अनुसार यौन (सेक्स) व्यवहार ही प्रारंभिक अभिप्रेरक शक्ति है। आरंभ में फ्रायड इसी को मानता था लेकिन बाद में फ्रायड ने इसका विस्तार कर ‘जीवन की प्रवृत्ति’ उल्लेख किया है और इसे ही मानवीय व्यवहार की अभिप्रेरक शक्ति कहा। ‘जीवन की प्रवृत्ति’ के साथ मृत्यु की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से जुड़ी रहती है। कुल मिलाकर जीवन प्रवृत्ति व्यक्ति को संतुष्ट करती है यानी व्यक्ति अपनी संतुष्टि के लिए कार्य करता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि व्यक्ति वही कार्य करता है जो उसे अच्छे लगते हैं या उसे संतुष्टि देते हैं।
शारीरिक सिद्धांत (Physical Method)
लॉर्ड रुदफोर्ड, विलियम जेम्स, जैगविल, लैशले, मार्गन एवं क्रैशमर एवं शैल्डन, हैब एवं स्टैलर इस सिद्धांत के समर्थक हैं। लॉर्ड रुदरफोर्ड के मुताबिक “सभी व्याख्याएँ शारीरिक दृष्टि से होनी चाहिए। समूचा विज्ञान या तो भौतिक विज्ञान है या तथ्यों का एकत्रीकरण है।” विलियम जेम्स और जैन्गविल ने भी इन्हीं विचारों को प्रकट किया है। उनका विश्वास है कि मन के सभी रहस्य स्नायुविक-प्रणाली की कोशिकाओं में निहित हैं। लैशले, मार्गन ने शारीरिक सिद्धांत का समर्थन किया।
क्रैशमर एवं शैल्डन जिन्होंने व्यक्तित्व एवं शरीर के परस्पर संबंध का अध्ययन किया है-वे भी अप्रत्यक्ष रूप से अभिप्रेरणा के शारीरिक सिद्धांत के पक्ष में हैं, क्योंकि उन्होंने इस बात को निश्चित करने का प्रयास किया कि विभिन्न प्रकार की शरीर- रचना के अनुसार आवश्यकताएँ, इच्छाएँ, रुचियाँ तथा प्रवृत्तियों में भी विभिन्नताएँ होती हैं। इस प्रकार यह सिद्धांत व्यक्ति की स्नायुविक प्रणाली तथा उसकी शरीर रचना के अनुसार आवश्यकता, इच्छा, रुचियों आदि पर आधारित है।
मैस्लो का मानवीय प्रेरणा का सोपान क्रमिक सिद्धांत एक समकालीन मानवीय सिद्धांत है। मैस्लो का मानना है कि मानवीय प्रयोजन एक सोपान क्रम में रखा जा सकता है। वे आवश्यकताएँ जो किसी विशेष समय अधिक बल वाली होती हैं; हमारे व्यवहार तथा पूर्ति की जरूरत पर प्रबल होती है। इस सिद्धांत का सबसे मानवीय पक्ष यह है कि यह अभिप्रेरणा, आशा तथा ज्ञानात्मक पक्षों के बेहतरीन तत्वों को सम्मिलित करता है। मैस्लो ने माना कि लोग मूल रूप से अच्छे हैं। लोगों में अपनी संभावित योग्यता के विकास के प्रति जन्म से रुचि होती है तथा वे सुंदरता, सच्चाई व अच्छाई देखते हैं। दूसरे शब्दों में वे जन्म से आत्मसिद्धि तथा आत्मपूर्ति के लिए अभिप्रेरित होते हैं। इनके अलावा चालक सिद्धांत, मुरे का सिद्धांत आदि भी उल्लेखनीय हैं।
ज्ञानवादी सिद्धांत (Teaching Method)
लेविन, वर्दीमर, हीडर, फैस्टिंगर, न्यूकाम्ब और हैलसन ज्ञानवादी सिद्धांत को मानने वाले थे। अभिप्रेरणा के ज्ञानवादी सिद्धांत घटनाओं के ज्ञान तथा पूर्वज्ञान पर केन्द्रित हैं। इसके अनुसार हम समझ, विचार तथा निर्णय द्वारा उन सापेक्षित-मूल्यों को चुन लेते हैं जो हमारे व्यवहार को अनुशासित करते हैं। हम उन विश्वासों, विचारों तथा आशाओं का निर्माण करते हैं जो हमारे लक्ष्य-अनुगामी व्यवहार को नियमित करते हैं।
ज्ञानवादी आदर्श इस कल्पना पर निर्मित किए गए हैं कि किसी वस्तु के संबंध में लोगों की अपनी-अपनी पसंद होती हैं। किसी भी व्यक्ति द्वारा प्राप्त परिणाम उसके चुनावों तथा उन घटनाओं पर आधारित होता है। यदि व्यवहार में उसके परिणाम अनिश्चित हों, तो इसमें कुछ खतरा भी रहता है और यह अपने आप में अभिप्रेरक है। ज्ञानवादी सिद्धांत व्यक्ति द्वारा विकल्पों में किए चुनाव को उसमें काम कर रही कार्य-शक्ति पर आधारित मानते हैं। यानी ये पूर्वज्ञान, व्यक्तिगत विभिन्नता व आवश्यकताओं पर आधारित हैं।
व्यवहारवादी सिद्धांत (Behaviourism Method)
थार्नडाइक, हल, मिलर एवं डालर्ड, मौरेर, स्पेन्स, स्किनर और पी.टी. यंग व्यवहारवादी सिद्धांतों के मुख्य समर्थक हैं। अभिप्रेरणा की धारणाएँ मुख्य रूप से पुनर्बलन के सिद्धांत पर आधारित है। व्यवहार को लक्ष्य अभिमुख माना जाता है और अभिप्रेरणा ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्वों तथा उसे निर्देशित करने वाले तत्वों का अध्ययन करने के लिए विभिन्न सैद्धांतिक धारणाओं का प्रयोग किया जाता है।
नवीनतम सिद्धांत उदाहरणस्वरूप 1953 में प्रतिपादित स्किनर का सिद्धांत-अभिप्रेरणा की विशुद्ध व्यवहारिक धारणा को ही मान्यता देता है। वे इस बात पर बल देते हैं कि क्रियात्मक उद्देश्य अथवा लक्ष्य अभिमुख व्यवहार की स्वीकृति से परे किसी भी कल्पना को आंतरिक शक्ति स्रोतों पर आधारित नहीं माना जा सकता। व्यवहार कई परिणामात्मक स्थितियों की ओर उन्मुख होता है और यदि इम स्थितियों का शारीरिक व्यवहार में लगातार पालन होता रहे तो उन्हें क्रियात्मक रूप से पुरस्कारात्मक स्थितियाँ कहा जा सकता है। सार रूप में हम अभिप्रेरणा के व्यवहारवादी सिद्धांतों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार से देख सकते हैं-
1. समस्त व्यवहार की अभिप्रेरणा आवश्यकताओं तथा उद्दीपकों पर आधारित होती है।
2. केवल वही अनुक्रियाएँ स्थायी होती हैं जिनसे आवश्यकता या अनुप्रेरणा कम होती है। इसी अर्थ में हम सीखने का पुरस्कार ले सकते हैं।
3. आवश्यकताएँ शारीरिक या मानसिक अथवा दोनों या मिली-जुली हो सकती हैं।