Jwalamukhi
Jwalamukhi

jwalamukhi : ज्वालामुखी क्या है, ज्वालामुखी के प्रकार, ज्वालामुखी का विश्व वितरण

jwalamukhi ज्वालामुखी

ज्वालामुखी (jwalamukhi) भूपटल पर मौजूद वह प्राकृतिक छेद अथवा दरार है जिससे होकर पृथ्वी का पिघला पदार्थ, लावा, राख, वाष्प तथा गैसें बाहर निकलती हैं।

पृथ्वी के भीतर मौजूद पिघली चट्टान, पायरोक्लास्टिक कचरा, तप्त गैस आदि प्रचंड तापमान के कारण बाहर निकलना चाहते हैं। इसी क्रम में पृथ्वी की सतह जहां-जहां कमजोर होती है वहां से ये पदार्थ विस्फोट के साथ बाहर आ जाते हैं। ज्वालामुखी को अंग्रेजी में वॉल्केनो कहते हैं, जो रोमन सभ्यता के अग्नि देवता ‘वोल्कन’ के नाम पर रखा गया है। ऐसी मान्यता है कि वोल्कन ने इटली के लिपारी द्वीप पर अग्नि भट्टी बनाई जो कालांतर में ज्वालामुखी पर्वत में परिवर्तित हो गई ।

jwalamukhi क्रिया 2 रूपों में संपन्न होती है।

1.धरातल के नीचे भूगर्भ में मैग्मा आदि के नीचे ही जमकर शीतल हो जाने की क्रिया, जिससे बैथोलिथ , फैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल तथा डाइक का निर्माण होता है।

2. धरातल के ऊपर घटित होने वाली क्रिया, जिसका अवलोकन ज्वालामुखी, धरातलीय प्रवाह (Fis- sure flows), गर्म जल के स्रोतों (Hot Springs), गेसर (Geyser) तथा धुंआरे (Fumarole) के रूप में किया जाता है। ज्वालामुखी के दौरान निकले बड़े-बड़े टुकड़ों को बम कहते हैं। लावा धरातल पर पहुंचने के बाद ठोस आकार में परिवर्तित हो जाता है। अखरोट या मटर के दाने के आकार वाले टुकड़ों को लैपिली कहते हैं।

jwalamukhi से निकले पदार्थ जब ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ जमा हो जाते हैं तो ज्वालामुखी शंकु का निर्माण होता है। इसका अधिक जमाव के कारण शंकु का आकार बड़ा हो जाता है जो एक पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार के शंकु को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।

इस पर्वत के ऊपर वाले भाग के बीच में एक छिद्र होता है जिसे ज्वालामुखी छिद्र कहते हैं। यह छिद्र धरातल के नीचे एक पतली नली के सहारे जुड़ा रहता है जिसको ज्वालामुखी नली कहते हैं। ज्वालामुखी छिद्र के विस्तृत रूप को ज्वालामुखी मुख कहते हैं। कसाव के कारण ज्वालामुखी का अत्यधिक विस्तृत रूप काल्डेरा कहलाता है। क्रेटर एवं काल्डेरा में जल भर जाने से यह झील में परिवर्तित हो जाता है।

इंडोनेशिया का टोवा, संयुक्त राज्य अमेरिका की ओरोगन, राजस्थान की पुष्कर, महाराष्ट्र की लोनार आदि काल्डेरा झील के उदाहरण हैं। ऐरा काल्डेरा जापान में तथा वेलिस काल्डेरा अमेरिका में स्थित हैं। जापान का काल्डेरा विश्व का सबसे बड़ा काल्डेरा है जिसकी परिधि 112 किमी. तथा अधिकतम चौड़ाई 27 किमी. है।

ज्वालामुखी के प्रकार  jwalamukhi ke prakar 

सामान्य रूप में ज्वालामुखी 3 प्रकार के होते हैं और इनके वर्गीकरण का यह आधार उनके उद्‌गार की अवधि पर आधारित है।

1. जागृत ज्वालामुखी (Active Volcano)

इस प्रकार के ज्वालामुखी से लावा, गैसों एवं विखंडित पदार्थों का सदैव उद्‌गार होता रहता है। वर्तमान समय में विश्व में इनकी संख्या लगभग 500 है। इटली के एटना तथा स्ट्राम्बोली सक्रिय ज्वालामुखी का सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

स्ट्राम्बोली भूमध्य सागर में सिसली द्वीप के उत्तर में लिपारी द्वीप पर स्थित है। इसी के नाम पर इस तरह के उद्‌गार वाले ज्वालामुखियों को स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी कहते हैं।

इससे सदैव प्रज्जवलित गैसें निकलती रहती हैं जिससे आस-पास का भाग प्रकाशित होता रहता है, इसी कारण इस ज्वालामुखी को ‘भूमध्यसागर का प्रकाश स्तंभ’ भी कहते हैं।

2. प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano)

जिन ज्वालामुखियों में उद्‌गार के बाद एक ऐसा शांत काल आ जाता है कि इनके पुनः उद्‌गार की संभावना खत्म हो जाती, किंतु अचानक ही उनसे पुनः उद्‌गार हो जाता है, उन्हें प्रसुप्त ज्वालामुखी कहते हैं। इटली का विसूवियस ऐसे ज्वालामुखी का प्रमुख उदाहरण है, जिसका प्रथम उद्‌गार 79ई. में हुआ था।

इसका प्रथम सर्वेक्षण प्लिनी ने किया था। इस कारण इस jwalamukhi को प्लिनियन प्रकार का ज्वालामुखी कहते हैं। इस ज्वालामुखी में 1631, 1803, 1872, 1906, 1927, 1928 तथा 1929 में भी उद्‌गार हुए।

3. शांत ज्वालामुखी (Extinct Volcano)

ये वे ज्वालामुखी हैं जिनके भविष्य में उद्‌गार की कोई संभावना नहीं रहती है तथा जिनके मुख में जल भर जाने से झीलों का निर्माण हो गया है। ईरान का कोह सुल्तान, म्यांमार का पोपा, अफ्रीका का किलिमंजारो, दक्षिण अमेरिका का चिम्बराजो शांत ज्वालामुखी के उदाहरण हैं।

jwalamukhi से निकलने वाले पदार्थ

ज्वालामुखी के उद्‌गार के रूप में निकलने वाले खनिज पदार्थों तथा चट्टान के टुकड़ों को सम्मिलित रूप से ज्वलखंडाश्म (पायरोक्लास्ट) कहते हैं। ज्वालामुखी उद्‌गार के समय प्रायः 3 प्रकार के पदार्थ धरातल पर भूगर्भ से बाहर आते हैं।

1. गैस तथा जल वाष्प

ज्वालामुखी उद्‌गार के समय सबसे पहले गैसें एवं जलवाष्प ही क्रस्ट को एकाएक तोड़कर धरातल पर प्रकट होती है और इसमें जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक (60%-90% तक) होती है। जलवाष्प के अतिरिक्त कार्बन डाईआक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फर डाइऑक्साइड आदि गैसें भी धरातल पर आ जाती है।

2. विखंडित पदार्थ

jwalamukhi से निकलने वाले विखंडित पदार्थों में बारीक ज्वालामुखी व धूल के टुकड़ों से लेकर बड़ी-बड़ी चट्टानों तक को शामिल किया जाता है। उद्‌गार के समय जलवाष्प एवं गैसों के जोर से ये विखंडितपदार्थ तेजी से ऊपर उछाल दिये जाते हैं तथा बाद में धीरे-धीरे धरातल पर वापस आ जाते हैं। आकार एवं बनावट के अनुसार इन्हें निम्न नामों से जाना जाता है।

(i). बॉम्बः कुछ इंच से लेकर कई फीट तक के व्यास वाले बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े।

(ii). लैपिलीः मटर के दाने या अखरोट के आकार वाले टुकड़े।

(iii). स्कोरियाः चने या मटर के आकार वाले टुकड़े।

(iv). टफः धूल कणों तथा राख से बने चट्टानी टुकड़े।

(v). ब्रेसियाः कोण वाले अपेक्षाकृत बड़े आकार के टुकड़े।

(vi). राख / धूलः अत्यंत बारीक तथा महीन ठोस कण।

(vii). प्यूमिस (झामक): लावा के ठंडा होने पर बने छोटे-छोटे ठोस चट्टानी भाग।

3. लावा

ज्वालामुखी उद्‌गर के समय भूगर्भ में स्थित तरल एवं तप्त मैग्मा जब धरातल पर प्रकट होता है, तब उसे लावा (Lava) कहा जाता है। लावा पदार्थ जब धरातल पर बहता है तो उसे लहर कहते हैं।

हल्के पीले रंग वाला तथा अत्यंत गाढ़े द्रव के रूप में अत्यधिक तापमान पर पिघलने वाला लावा अम्लप्रधान (एसिडिक) लावा के नाम से जाना जाता है। जबकि गहरे काले रंग वाले, अधिक भार वाले तथा पतले द्रव के रूप में स्थित लावा को क्षारीय (बेसिक) लावा कहते हैं। यह पतला होने के कारण धरातल पर शीघ्रता से फैलकर ठंडा हो जाता है।

ज्वालामुखी लावा के भाग से बनने वाले हल्के एवं छिद्रदार शिलाखंडों को प्यूनिस कहा जाता है। ज्वालामुखीय धूल, राख आदि के जमा होने से जो चट्टान बनती है उसे टफ कहा जाता है।

जब ज्वालामुखी से राख, लावा आदि का निकलना बंद हो जाता है एवं उसके बाद भी लंबे समय तक उससे विभिन्न प्रकार की गैसें तथा वाष्प निकलती रहती हैं तो यह अवस्था सोल्फतारा कहलाती है।

ज्वालामुखी jwalamukhi का विश्व वितरण

ज्वालामुखियों का विश्व वितरण मूल रूप से प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर के और हिंद महासागर के पास स्थित है। ये ज्वालामुखी असमान रूप से वितरित हैं। अब तक ज्ञात कुल 486 सक्रिय ज्वालामुखी असमान रूप से वितरित हैं। अब तक ज्ञात कुल 486 सक्रिय ज्वालामुखियों में से 403 प्रशांत महासागर और उसके पास तथा शेष 83 अटलांटिक और हिन्द महासागर में स्थित हैं।

प्रशांत परिमेखला, जिसे ‘अग्नि वलय’ भी कहा जाता है, में सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी मिलते हैं। यह क्षेत्र सं.रा. अमेरिका और एशिया के तटों पर स्थित है।

ज्वालामुखी वितरण की दृष्टि से मध्य विश्व पट्टी का स्थान दूसरा है। इसके ज्वालामुखी अटलांटिक महासागर में महासागर के कुछ भागों भूमध्य सागर तथा आल्प्स और हिमालय के नवीन पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित हैं। इसके बाद तीसरे स्थान पर अफ्रीका है जिसके पश्चिमी तट पर एक सक्रिय ज्वालामुखी स्थित है। इसी प्रकार अफ्रीका में किलिमंजारों (तंजानिया) मृत ज्वालामुखी के रूप में स्थित है। विश्व में

सर्वाधिक यंत्रों से सुसज्जित ज्वालामुखी हवाई द्वीप का मोनालोआ है, जो अग्निशिखा (Plum) पर स्थित है।

विश्व में कुछ ऐसे विस्तृत क्षेत्र हैं जिनमें एक भी सक्रिय ज्वालामुखी नहीं मिलती है। ऑस्ट्रेलिया इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जहां एक भी सक्रिय ज्वालामुखी नहीं है।

विश्व में ज्वालामुखियों के परंपरागत वितरण तथा वर्तमान प्लेट विवर्तनिकी पर आधारित वितरण प्रणाली को देखने पर इनकी 3 पेटियां पायी जाती है।

1. परिप्रशांत महासागरीय पेटी (Circum Pacific Belt)

विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे विस्तृत इस पेटी में विश्व के सर्वाधिक 2/3 ज्वालामुखी पाये जाते हैं। ये ज्वालामुखी प्लेटों के अभिसरण क्षेत्र में स्थित हैं।

इसका विस्तार अंटार्कटिका महाद्वीप के माउंट इरेबस से लेकर प्रशांत महासागर के दोनों किनारों पर चारों ओर विस्तृत है। इसे प्रशांत महासागर का ज्वालावृत्त (Fire Girdle of tte pacific Ocean अथवा Fiery Ring of the Pacific) के उपनाम से भी जाना जाता है।

इसे प्रशांत महासागर की अग्नि श्रृंखला भी कहा जाता है। विश्व के अधिकांश ऊंचे ज्वालामुखी पर्वत इसी पेटी में स्थित है। इस पेटी में अधिकांश ज्वालामुखी श्रेणी के रूप में पाए जाते हैं जैसे, अल्यूशियन, जापान द्वीप समूह तथा हवाई द्वीप के ज्वालामुखी समूह श्रेणी के रूप में पाए जाते हैं।

समूह में पाए जाने वाले विश्व के महत्वपूर्ण ज्वालामुखियों में इक्केडोर के ज्वालामुखी सर्वप्रमुख हैं। यहां पर 22 प्रमुख ज्वालामुखी पर्वत समूह में पाए जाते हैं।

कोटोपैक्सी ज्वालामुखी पर्वत जिसकी ऊंचाई 19,613 फीट है, विश्व का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी है।

विश्व का सर्वोत्तम ज्वालामुखी चिली एकांकागुआ, मेक्सिको का पापो कैटपेटल, जापान का फ्यूजीयामा, संयुक्त राज्य अमेरिका का शास्ता, रेनियर व हुड, फिलीपिंस का मेयॉन, माउंट ताल व मध्य अमेरिका का चिम्बरेजो इस पेटी के प्रमुख ज्वालामुखी पर्वत है।

2. मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-continental Belt)

मध्य अटलांटिक कटक के ऊपर स्थित आइसलैंड के हकेला पर्वत से प्रारंभ होने वाली इस पेटी में भूमध्यसागर, अफ्रीका, हिमालय तथा दक्षिणी पूर्वी एशियाई द्वीपों को सम्मिलित किया जाता है। इसमें अधिकांशतः दरारी उद्भदन वाले ज्वालामुखी ही पाये जाते हैं। इसमें 1783 में का लाकी दरारी ज्वालामुखी महत्वपूर्ण है।

भूमध्य सागर के प्रमुख ज्वालामुखी स्ट्रॉम्बोली, विसूवियस, तथा एटना इस मेखला के महत्वपूर्ण अंग हैं। इसके अतिरिक्त ईरान का देवबन्द, कोह सुल्तान, काकेशस का एलवुर्ज, आर्मीनिया का अरारात आदि मध्य महाद्वीपीय पेटी के महत्वपूर्ण ज्वालामुखी है।

अफ्रीका में भी कई महत्वपूर्ण ज्वालामुखी पर्वत पाए जाते हैं, जिनमें किलीमंजारो, मेरू, एल्गन, विरून्ना तथा रंगनी महत्वपूर्ण है। पश्चिमी अफ्रीका का एक मात्र जागृत ज्वालामुखी कैमरुन पर्वत है।

3. मध्य अटलांटिक पेटी (Mid-Atlantic Belt)

यह पेटी अटलांटिक कटक के सहारे विस्तृत है, क्योंकि यहां दो प्लेटों का अपसरण (Divergence) होने से दरार एवं भ्रंशन का निर्माण हो गया है जिनका प्रभाव भूगर्भ में एस्थिनोस्फीयर तक है। एस्थिनोस्फीयर से ही मैग्मा का बाहर की ओर प्रवाह होता है।

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