manovigyaan ki prakrti || मनोविज्ञान की प्रकृति
मनोविज्ञान की प्रकृति (Nature of Psychology)
मनोविज्ञान की प्रकृति manovigyaan ki prakrti जानने के लिए यह जरूरी है कि मनोविज्ञान क्या है? इसके कार्य करने की प्रणाली तथा ढंग कैसा है? इन प्रश्नों को समझा जाए। मनोविज्ञान के इतिहास का अवलोकन करने से यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि मनोविज्ञान अपने आप में क्या रहस्य छिपाए हुए है? मनोविज्ञान कला है या विज्ञान इस प्रश्न पर काफी समय से बहस चली आ रही है। इस बहस का सबसे अच्छा हल यह होगा कि पहले हम विचार करें कि मनोविज्ञान को विज्ञान क्यों कहते हैं? फिर देखें कि मनोविज्ञान की क्या विशेषताएँ हैं जिसके कारण कुछ विद्वान् इसे कला के वर्ग में रखना चाहते हैं और अन्त में तय करें कि मनोविज्ञान कला है या विज्ञान।
manovigyaan ki prakrti
मनोविज्ञान विज्ञान है : विद्वानों का एक बड़ा तबका मनोविज्ञान को विज्ञान मानने के पक्ष में है। विज्ञान का जो शाब्दिक अर्थ होता है वह है वि ज्ञान, अर्थात् विशेष ज्ञान। जब हम किसी विषय को विज्ञान कहते हैं तो हमारा तात्पर्य होता है कि उस विषय के अध्ययन की विधियाँ वैज्ञानिक हो, इन वैज्ञानिक विधियों द्वारा निष्पक्ष रूप से विषय तथा इसको क्रमबद्ध रूप से नियोजित किया जाए तथा इसे क्रमबद्ध नियोजन के आधार पर सामान्य नियमों के द्वारा अपने आलोच्य विषय की समस्याओं को स्पष्टीकरण पूर्ण रूप से किया जाए। जिस विषय में उपर्युक्त बातों को ध्यान रखा जाता है, उसे ही वैज्ञानिक अध्ययन कहा जा सकता है।
प्रो. एस.एन. ढोंडियाल तथा प्रो. फाटक ने अपनी पुस्तक ‘शैक्षिक अनुसंधान का विधिशास्त्र ‘ में विज्ञान पर कई दृष्टिकोणों से विचार किया तथा उन्होंने लिखा कि ‘पुराने समय से चले आ रहे अर्थ के अनुसार विज्ञान ज्ञान का एक व्यवस्थित संस्थान है।’ आधुनिक विद्वानों ने इसे विज्ञान की निष्क्रिय परिभाषा बताया है तथा कहा है कि यह परिभाषा विज्ञान को जीवनविहीन बना देती है तथा उसे विषय सामग्री तक ही सीमित कर देती है परन्तु यदि देखा जाय तो विज्ञान ज्ञान का संग्रह नहीं है वरन् पूछताछ (Inquiry) है तथा क्रियाशीलता इसका प्रमुख रूप है। विज्ञान की पूछताछ एक विशिष्ट प्रकार की है। परिणाम तक पहुँचने में कोई भूल न हो और परिणाम एक तथ्य हो, इसके लिए वैज्ञानिक प्रयत्न और उपाय करता है, वह अपनी खोज को नियंत्रित करता है अर्थात् विज्ञान एक नियंत्रित पूछताछ है।
प्रो.ढोंडियाल ने विज्ञान के चार लक्ष्य बताए हैं-
(1) अवबोध (2) व्याख्या, (3) नियन्त्रण, और (4) प्रागुक्ति (Prediction) उनके अनुसार विज्ञान का प्रमुख लक्ष्य है ‘अवबोध’ । शेष अन्य तीन लक्ष्य तो अवबोध की प्राप्ति में सहायक है। प्रो. एस.एस. माथुर के मुताबिक किसी भी वैज्ञानिक विषय में जो अन्य विशेषताएँ होती हैं वह है कि ” (1) उस विषय के ज्ञान की प्रगति होती रहे (2) जो ज्ञान अर्जित किया गया हो, उसकी पुनरावृत्ति एवं जांच संभव हो । (3) उसमें अर्जित ज्ञान प्रयुक्त किया जा सकता हो तथा (4) विषय की सत्यता की अन्नत खोज होती रहती हो।
अब सवाल यह उठता है कि क्यों सनोविज्ञान में सब विशेषताएँ पाई जाती हैं जो कि किसी विषय को विज्ञान कहने के लिए ऊपर बताई गई हैं, जैसे-उस विषय की प्रगति होती रहे।
अगर हम ध्यान से देखें तो मनोविज्ञान में निरन्तर नई खोजें हो रही हैं। उदाहरण के लिए पूर्व में बुद्धि को सीमित शक्ति के सिद्धान्त तथा अद्वैत सिद्धांत (Monarchic Theory) के आधार पर जानने का प्रयास किया गया है। किन्तु धीरे-धीरे दो खण्ड सिद्धान्त, बहुशक्ति सिद्धान्त, क्रमिक महत्त्व का सिद्धान्त आदि प्रकट हुए।
जो ज्ञान ग्रहण किया गया है उसकी पुनरावृत्ति एवं जांच संभव हो, मनोविज्ञान से जो ज्ञान ग्रहण किया जाता है उसको विभिन्न परिस्थितियों में उपयोग कर जाँचा जा सकता है। उदाहरण के लिए व्यक्तित्व, रुचि, सृजनात्मकता आदि को मापने के लिए उन्हीं मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का बार-बार प्रयोग किया जा सकता है तथा इन परीक्षणों में कोई कमियाँ पाई जाती हैं तो उन्हें संशोधित किया जा सकता है।
ग्रहित ज्ञान का प्रयोग : आधुनिक युग में मनोविज्ञान के ज्ञान के प्रयोग का क्षेत्र विस्तृत है। इसका प्रयोग केवल मनोविज्ञान में ही नहीं होता बल्कि शिक्षा, सेना, उद्योग, प्रशासन तथा चिकित्सा के साथ-साथ विभिन्न व्यवसायों में सफलतापूर्वक हो रहा है।
विषय की सत्यता की निरन्तर खोज : मनोविज्ञान एक क्रियाशील विज्ञान है। कई शोधकर्ता मनोविज्ञान के लिए नई खोजों तथा पुराने निष्कर्षों की सत्यता से अन्वेषण में लगे हुए हैं और उनकी खोजों का कोई अन्त नहीं है।
उपर्युक्त कुछ उदाहरणों के आधार पर manovigyaan ki prakrti बारे में कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान विज्ञान की श्रेणी में आता है। जेम्स ड्रेवर ने लिखा है कि “मनोविज्ञान वह शुद्ध विज्ञान है जो मानव तथा पशु के उस व्यवहार का अध्ययन करता है जो व्यवहार उसके अन्तर्गत के मनोभावों और विचारों की अभिव्यक्ति करता है जिसे हम मानसिक जगत् कहते हैं।” ड्रेवर के अनुसार मनोविज्ञान का उद्देश्य मानव तथा पशु के व्यवहार के कारणों की खोज करना व मानव स्वभाव का भली प्रकार से अध्ययन करना है। मनोविज्ञान की यह सब उपलब्धियाँ शुद्ध विज्ञान की ही देन है। मार्गन महोदय के अनुसार ” मनोविज्ञान एक विज्ञान है, क्योंकि यह अनुभव सिद्ध (Empirical) है।” मनोविज्ञान को अनुभव सिद्ध इसलिए कहा गया है कि इसके निष्कर्ष, परीक्षण, सर्वेक्षण, प्रमाणित सत्य पर आधारित होते हैं न कि आधार रहित तर्क, दलील व मत पर मनोविज्ञान अनुभव सिद्ध विज्ञान होने के साथ ही क्रमबद्ध विज्ञान भी है, क्योंकि इसमें हम क्रमबद्ध रूप से तथ्यों की सत्यता की खोज करते हैं तथा इसके पुराने नियमों व सिद्धान्तों की सत्यता की भी समय-समय पर शोधों द्वारा जांच होती रहती है।
किसी भी वैज्ञानिक विषय की जो अन्य विशेषताएँ हैं उनमें मापन तथा वर्गीकरण का प्रमुख स्थान है, जैसे भौतिक विज्ञान को एक वास्तविक विज्ञान माना जाता है, क्योंकि इसमें ‘मापन’ की सबसे अधिक संभावना है तथा जीव विज्ञान को विज्ञान इसलिए माना जाता है, क्योंकि इसमें वैज्ञानिक वर्गीकरण की बहुत अधिक संभावना है। किन्तु मनोविज्ञान में मापन तथा वर्गीकरण दोनों का ही प्रयोग किया जाता है। अतः यह एक विज्ञान ही है। इस सम्बन्ध में लेविस का निम्न कथन काफी महत्त्वपूर्ण हैं-
“मनोवैज्ञानिक अपनी पाठ्य सामग्री का अध्ययन उसी प्रकार करते हैं जिस प्रकार की दूसरे वैज्ञानिक अपनी पाठ्य सामग्री का। वह सही निरीक्षण और प्रयोग करते हैं। यह तथ्य की बहुधा इसकी विषय सामग्री मानव होती है। कोई अन्तर नहीं पैदा करती, क्योंकि वैज्ञानिकता के नियम, वस्तुनिष्ठता तथा सही मापन इसके साथ भी लगते हैं।”
उपर्युक्त कथन से manovigyaan ki prakrti स्पष्ट है कि मनोविज्ञान एक विज्ञान है पर अब सवाल यह उठता है कि मनोविज्ञान जैविकीय विज्ञान है या व्यावहारिक विज्ञान है।
19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में जर्मनी में मनोविज्ञान का जैविकीय विज्ञान के रूप में अध्ययन प्रारम्भ हुआ था। वर्तमान में भी मनोवैज्ञानिक, अभिप्रेरणा स्मृति, अधिगम तथा मानसिक स्वास्थ्य आदि के जैविकीय कारण खोजने में लगे हैं अतएव इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि मनोविज्ञान जैविकीय विज्ञान भी है।
किन्तु अधिकतर मनोवैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान को व्यवहार के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया है, क्योंकि मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यक्तिगत व्यवहार के साथ- साथ समाज तथा व्यक्ति के व्यवहार से बची अंत: क्रिया का विशेष रूप से अध्ययन करता है। आधुनिक युग में मनोविज्ञान बड़ी सफलतापूर्वक शक्ति तथा समाज के व्यवहार का अध्ययन कर बहुत-सी सामाजिक समस्याओं के हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अतएव मनोविज्ञान व्यावहारिक विज्ञान है। इसमें कोई संदेह नहीं। परिणामस्वरूप संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान जैविकीय तथा व्यवहारिक दोनों प्रकार का विज्ञान है।