बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ मन्दिर जिसे बद्रीनाथ बद्रीनारायण मन्दिर भी कहते हैं महाभारत तथा पुराणों में इन्हे मुक्तिप्रदा,योगसिद्धा,बदरीवन,विशाला,नारायणश्रम आदि नामों से संम्बोधित किया है यह स्थान नर एवं नारायण पर्वत की गोद में बसे आदितीर्थ बद्रीनाथ धाम न सिर्फ श्रद्धा व आस्था का अटूट केन्द्र है बल्कि अद्धितीय प्राकृतिक सौदर्य सें भी पर्यटकों को अपनी आकर्षित करता हैं यह हिन्दुओं के चार धामों मे से एक है बद्रीनाथ हरिद्धार से 348 किलो व जोशीमठ से 51 किलोमीटर उतर मे स्थित है यह समुद्र तल से 3131 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है यह पंचबद्री में से एक बद्री है उत्तराखण्ड राज्य में पंच बद्री,पंच केदार,पंच प्रयाग पौराणिक रूप से हिन्दु धर्म की द्ष्टि से महत्वपूर्ण है।
बद्रीनाथ को बद्रीनाथ के नाम से क्यों जाना जाता है:–
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सहस्त्रार कवच ने जब सूर्य से तपस्या करके हजार कवच कुंडल का वरदान मांगा और कहा कि मेरा एक कवच वही तोड़ सके जिसने हजार साल तप किया हो और बद्रीनाथ एकमात्र ऐसा स्थान है जहां 1 दिन की तपस्या करने से हजार दिन की तपस्या के बराबर का फल मिलता है भगवान विष्णु देवताओं की अनुनय विनय सुनकर ऐसे स्थान की खोज में निकले जो तप करने के लिए उचित हो इस प्रकार से नारायण देखते हैं कि बद्रीनाथ ही ऐसा स्थान है जहां पर तप किया जाए तथा 1 दिन के तप का फल भी हजार दिन के तप के बराबर है नारायण वहां जाते हैं और देखते हैं कि और क्षेत्र तो शिव तथा मां पार्वती का है उनसे वह क्षेत्र मागने के लिए विष्णु अपनी माया से एक छोटे बच्चे का रूप धारण करते हैं और शिला पर जोर जोर से रोने लगते हैं ममता के कारण वश मां पार्वती उन्हें पहचान नहीं पाती और बालक को उठाकर अपने सीने से लगाकर उन्हें अपनी कुटिया में ले जाती हैं और बच्चे को कुटिया में रखकर शिव तथा पार्वती बाहर चले जाते हैं वापस आकर देखते हैं तो कुटिया में भगवान विष्णु अपने चतुर्भुज रूप में ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं जिन्हें देखकर मां पार्वती चकित हो जाती हैं तथा विष्णु उन्हें माता कहकर पुकारते हैं इस प्रकार शिव और पार्वती वह क्षेत्र विष्णु के लिए छोड़ देते हैं भगवान विष्णु वहां तपस्या करने लगते हैं तथा माता लक्ष्मी देखती है कि वह किस प्रकार तेज धूप सर्दी आंधी और तूफान में भी तप करने में लीन हैं देवी लक्ष्मी नारायण के सर के ऊपर बेरी का वृक्ष बन कर सुरक्षा प्रदान करती है व बेरी को संस्कृत में बद्री कहा जाता है नारायण जब ध्यान मुद्रा में से जागते हैं तो देखते हैं कि लक्ष्मी उनके सिर के ऊपर बद्री का वृक्ष बनके उनकी सेवा कर रही हैं इस तरह विष्णु भगवान माता लक्ष्मी को यह वरदान देते हैं कि व इस भू-बैकुंठ पर मेरे नाम से पहले तुम्हारा नाम लिया जाएगा जिस कारण से बद्री नाथ कहा जाता है एक तरफ सहस्त्रार नामक राक्षस सूर्य से वरदान प्राप्त कर तीनों लोकों में तबाही तथा हाहाकार मचा रहा तो एक तरफ राजा धर्म व उनकी पत्नी मूर्ति पुत्र प्राप्ति के लिए विष्णु की तपस्या कर रहे थे विष्णु ने उन्हें दो पुत्रों का वरदान दिया जो कि स्वयं भगवान नारायण के ही रूप हैं जिन्हें नर तथा नारायण कहा जाता है इस प्रकार वह दोनों अर्थात नर तथा नारायण दो अलग-अलग पर्वत शिखर करने लगते हैं जिन्हें नर तथा नारायण पर्वत कहा जाता है इस तरह एक दिन नर तपस्या करते तो नारायण सहस्रार् कवच से युद्ध करके उनका एक कवच तोड़ देते तो दूसरे दिन नारायण तप करते व नर युद्ध करके उस राक्षस का एक कवच तोड़ देते इस तरह उसके 999 कवच टूट जाते हैं जब एक ही कवच बचा तो वह राक्षस सूर्यदेव की शरण में गया तब विष्णु उसे नहीं मार सके क्योंकि वह सूर्य देव की शरणागत था तथा द्वापरयुग में कर्ण के रूप में बलराम के हाथों मरने को कहा तब वह राक्षस द्वापर युग में कर्ण के रूप में बलराम के हाथों से मारा गया।
बद्रीनाथ धाम |
ऐतिहासिक वर्णन :- कथा व मान्यतानुसार बद्रीनाथ की मूर्ति शालाग्राशिला से बनी हुयी है जो चतुभुर्ज ध्यानमुद्रा में है कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नरकुंड नारदकुंड से स्थापित की थी सिद्ध ऋषि इसके प्रधान अर्चक थे जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होनें इसे बुद्ध की मुर्ति मानकर पूजा आरम्भ की आदि गुरूशंकराचार्य की प्रचार यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुये आदि गुरू शंकराचार्य ने अलकनन्दा नदी से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की । तदन्तर मुर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुंड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की ।
मन्दिर में चढाया जाने वाला प्रसाद :- तुलसी की माला ,गिरी का गोला ,मिश्री ,कच्ची दाल ,चना ,
कपाट खुलने व बंद होने का समय :- प्रति वर्ष अप्रैल – मई के माह मे खुलता है ।
(1)- शरद ऋतु मे नवम्बर के तृतीय सप्ताह के लगभग बंद हो जाता है ।
पुजारी :- बद्रीनाथ धाम के पुजारी दक्षिण भारत केरल राज्य के आदि गुरूशकराचार्य के वंशजों में होते हैं जिन्हें रावल कहा जाता है ।
बद्रीनाथ मन्दिर के भाग :- बद्रीनाथ मन्दिर तीन भागों में बंटा है – सिंहद्धार, मंडल और गर्भगृह । मुख्य प्रतिमा भगवान विष्णु की चिंतन काले रंग की है, लेकिन खंडित है । मूर्ति के खंडित होने का मूल कारण शायद नारद कुंड में पडे रहना है, जिसे आदि गुरूशंकराचार्य ने निकालकर स्थापित करवाया था । मुख्य मूर्ति के पार्श्व में नर नारायण की, दाहिने कुबेर की एवं बायें नारद की प्रतिमाएं हैं ।
बद्रीनाथ धाम |
(1):-इस मंदिर का निर्माण संभवत: गढवाल वंश के प्रारंभिक राजा अजयपाल के शासन काल में हुआ । परन्तु पूर्ण भव्य मंदिर बनाने का श्रेय कत्यूरी राजवंश को है ।
(2):- बद्रीनाथ में दर्शनीय शिलाएं-गरूड शिला,नारद शिला,मार्कंडेय शिला,नृसिंह शिला व ब्रहा्रकपाल शिला हैं ।
(3):- बद्रीनाथ में स्नान के लिए पांच कुंड – तप्तकुंड,नारद कुंड,सप्तपथकुंड,त्रिकोणकुंड और मानुषीकुंड। पांचवे मानुषीकुंड में शीतोष्ण जल से स्नान करने की सुविधा है ।
(4):-बद्रीनाथ धाम की पंच धाराओं में स्नान एवं आचमन का महत्व है। ये धाराएं है –कूर्म धारा,इन्दु धारा,उर्वशी धारा,और भृगु धारा ।
(5):-बद्रीनाथ धाम में स्थित प्रमुख गुफाएं – स्कन्द गुफा,गरूडशिला गुफा एवं राम गुफा । बद्रीनाथ से आगे माणा गांव के निकट मुचकुंद गुफा,गणेश गुफा,व्यास गुफा है ।
(6):- बद्रीनाथ मंदिर से थोडी दूरी पर ब्रहा्रकपाली है जहां लोग पितरों को पिण्ड दान करते हैं।
कैसे पहुंचे:-वायु मार्ग–नजदीकी हवाई अडडा जौलीग्रांट 315 किलोमीटर देहरादून जो कि उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी है ।
रेल मार्ग:-बद्रीनाथ धाम के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश 297 किमी,कोटद्धार 327 किमी है ।
सडक मार्ग:-बद्रीनाथ धाम के लिए हरिद्धार , ऋषिकेश,दिल्ली,कोटद्धार आदि स्थानो से बस तथा टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है ।
धन्यवाद