tourism

केदारनाथ kedarnath

      केदारनाथ

        हिमालय प्रकृति का महामंदिर है तथा यहां निश्‍चय ही संसार के सर्वोच्‍च सौदर्यपूर्ण और महत्‍वपूर्ण रूथल है। यहां मनुष्‍य ने हजारों वर्ष पहले प्राकृतिक सौंदर्य से चमत्‍कृत होकर तीर्थों की स्‍थापना की। ऐसे स्‍थलों में केदारनाथ तीर्थ पूरे उत्‍तराखण्‍ड का महत्‍वपूर्ण स्‍थल है। चार धाम में पहले स्‍थान पर आने वाले बद्री-केदार धाम की छठा ही निराली है। अनुपम प्राकृतिक दृश्‍यों,टेढे-मेढे और खतरनाक रास्‍तों ,घाटी और पर्वतों के संगम पर स्थित केदारनाथ भगवान शिव का धाम है। यहां जाने पर ऐसा प्रतित होता है मानों पैरों के निचे से हिमराशि खिसक रही और हिम के पास ही अत्‍यंत मादक सुंगध वाले ढेर के ढेर हल्‍के गुलाबी रंग वाले औरिकुला तथा पीले प्रिमरोज के पुष्‍प छिटके मिलते हैं। घने बांझ के वन जहां खत्‍म होते है वहीं गुलाब और सिरंगा पुष्‍प कुंज मिलने लगते हैं। इनके समाप्‍त होने पर हरी बुग्‍याल मिलती हैं। इसके बाद केदारनाथ का हिमनद और उस से निकलने वाली मंदाकिनी नदी अपने में असंख्‍य पाषाण खंडों को फोडकर  निकले झरनों और फव्‍वारों के जल को समेटे उददाम गति से प्रवाहित होती दिखाई देती है। 
kedarnath temple
kedarnath
 
 केदारनाथ मंदिर :- केदारनाथ तीर्थ द्धादश ज्‍योतीर्लिगों में से एक हैं । यह मेदिर समुद्र तल से 3584 मीटर की उॅचाई पर , मंदाकिनी नदी के र्शीर्ष पर स्थ्रित है । इस मंदिर के कारण ही गढवाल का प्राचीन नाम केदारखण्‍ड पडा था । मानों यह स्‍वर्ग में रहने वाले देवताओं का मृत्‍युलोक में झांकने का झरोखा अथवा मंडप स्‍थल हो । यह भव्‍य और अति प्राचिन शिव का धाम रूद्र हिमालय की श्रेणी में स्थित है । हजारों साल पुराने इस मंदिर को एक विशाल चटटान कों काटकर बनाया गया है । गर्भगृह में चौकोर चबूतरे पर ग्रेनाइट की त्रिभुजाकार विशाल शिला को सदाशिव के रूप में पुजा जाता है । गर्भगृह की दिवारों और सीढीयों पर पाली भाषा में संदेश खुदे हुए है । साथ में पौंराणिक कथाएं व दरवाजे के बाहर नंदी बैल की भीमकाय प्रतिमा पहरेदार के रूप में खडी है । ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का पुनरूद्धान 8वी शताब्‍दी ईसा पूर्व में आदि शंकराचार्य ने करवाया था ।
·       यह मंदिर खर्चाखड , भरतखंड , और केदारनाथ शिखरों के मध्‍य स्थित है । जिसके वाम भाग में पुरंदर पर्वत है । यह मंदिर कत्‍यूरी निमार्ण शैली का है । इसके निमार्ण में भूरे रंग के विशाल पत्‍थरों का प्रयोग किया गया है ।
·       यह मंदिर छत्र प्रसाद युक्‍त है । इसके गर्भगृह मे त्रिकोण आकृति की एक बहुत बडी ग्रेनाइट की शिला है , जिसकी पूजा भक्‍तगण करते है । ग्रेनाइट के इस लिंग के चारों ओर अर्घा है , जो अति विशाल है और एक ही पत्‍थर का बना है । इसी स्‍वयंभू केदारलिंग की उपासना पांडवों ने भी की थी ।
·       सभामंडल में चार विशाल पाषाण स्‍तम्‍भ हैं तथा दिवारों के गौरवों में नवनाथों की मर्तियां हैं । दिवारों पर सुन्‍दर चित्रकारी भी की गई हैं । मंदिर के बाहर रक्षक देवता भैरवनाथ का मंदिर है ।
·       यहां अनेक कुंड हैं , जिनमें शिव कुंड मुख्‍य है । एक लाल पानी रूधिर कुंड भी है ।
·       इस मंदिर के निकट आदि शंकराचार्य की समाधि है ।
·       राहुल सांक्रत्‍यायन इस मंदिर का निर्माण काल 10 – 20वीं शताब्‍दी बताते हैं । 
kedarnath bhagwan
kedarnath temple
 
·       यह माना जाता है कि कुरूक्षेत्र के युद्ध के बाद अपने परिचितों एवं सगे संम्‍बन्धियों को युद्ध में मारने के कारण पाण्‍डव स्‍वयं को दोषी महसूस कर रहे थे । उन्‍हें अपने पापों के प्रायश्चित के लिए भगवान शिव के आर्शीवाद की आवश्‍यकता थी , जबकि शिव पाण्‍डवों से मिलना नही चाहते थे अत: वे पाण्‍डवों से निरन्‍तर दूर भागते रहे । उन्‍होंने केदारनाथ में स्‍वयं कों एक बैल के रूप में परिवर्तित कर लिया । पाण्‍डवों द्धारा निरन्‍तर पीछा किये जाने के बाद वे सतह पर केवल कूवड वाला पिछला भाग छोड कर शेष भाग सहित पृथ्‍वी में समा गये । भगवान के शरीर के शेष भाग चार विभिन्‍न स्‍थलों पर पुन: प्राप्‍त हुए। इनमें तुंगनाथ में भुजाए , रूद्रनाथ में मॅुह , मदमहेश्‍वर में नाभि एवं कल्‍पेश्‍वर में केश की पूजा उनके प्राप्‍त स्‍थलों पर की जाती है। इन्‍हीं स्‍थलों को पंच केदार कहा जाता है ।
                                               
 दोस्तों उत्तराखण्ड देव भूमि (देवों की तपस्थली) में जो भी आया है उसने सदेव परम् आनन्द कि प्राप्त की है इस स्थान में आने के बाद आपको समझे ऐसा प्रतीत होगा कि मानों आप ईश्वर की प्राप्ति हो गई। एक बार यहाँ आकर यहाँ की हशीन वादियों का आनंद जरूर ले।
विशेष निवेदन – कृपया देव भूमि उतराखंड को दुषित न करें  स्वच्छता का विशेष ध्यान दें अपने साथ लाए सामाग्री जैसे- खाने की सामाग्री,पॉलिथीन, तम्बाकू के कागज़, बिस्कुट के कागज़ आदि सामाग्री को अपने साथ लेकर जाइए यहाँ न फेके । 
                                                 धन्यवाद

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *