चंद्रशिला मंदिर | chandrashila temple

  चंद्रशिला मंदिर 

तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से लगभग 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है 5000 वर्ष पुराना यह मंदिर स्वयं पांडवों द्वारा किया गया था महाभारत युद्ध में पांडवों द्वारा अपने चचेरे भाई बंधुओं गुरु का वध करके आत्मग्लानि से बचने के लिए ऋषि की सलाह से शिव की स्तुति करने लगे ताकि उन्हें श्राप मुक्ति मिल सके, लेकिन शिव उनके इस कृत्य से नाराज थे माफ नहीं करना चाहते थे। पांडवों ने शिव के दर्शन पाने हेतु उनका पीछा किया तो वे  गुप्तकाशी में गुप्त हो गए , लेकिन पांडवों ने उनका पीछा कर उन्हें पहचान लिया तत्पश्चात शिव केदारनाथ में विशालकाय बैल का रूप धारण किया लेकिन पांडवों ने उन्हें पहचान कर उन्हें स्पर्श करने का प्रयास किया तत्पश्चात शिव ने अपने शरीर के पांच भाग किए जो कि पंच केदार के रूप में जाने जाते हैं, जिसमें तृतीय केदार तुंगनाथ के रूप में जाना जाता है और यहां पर शिव की आराधना की जाती है यहां पर भगवान शिव के हृदय तथा बाहू का भाग है चोपता से 3.5 किलोमीटर पैदल मार्ग पर तुंगनाथ मंदिर स्थित है तुंगनाथ जी से 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थिति चोटी चंद्रशिला नाम से विख्यात है जो कि समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चंद्रशिला मंदिर जाने के लिए यात्री अधिक चढ़ाई पर चढ़ने के कारण थकान महसूस करते हैं । लेकिन कुछ दुरी तय करने के रास्ते में मन मोहक अलौकिक सौंदर्य से परिपूर्ण फुलों को देखकर यात्री स्वयं की थकान को भुल जाता है ऐसा लगता है कि मानों संपूर्ण संसार में एक मात्र यह स्थान है जहां इंसान प्रकृति की गोद में बैठा लगता है चारों ओर विभिन्न प्रकार के सुगंधित फुल नजर आते हैं और सामने चौखंबा पर्वत बाहें फेलाकर अपनी और बुलात नजर आता है। चौखंबा पर्वत का सुन्दर नजारा देखकर यात्री परम आनंद की अनुभूति करते हैं। चन्द्रशिला मन्दिर के आस पास अनेक आकृति के पाषाण है जिनमें बैठकर लोग सुंदर-सुंदर छायाचित्र लेकर यहां की सुन्दरता को क़ैद कर लेते हैं।

केदारनाथ ! kedarnath

 

चंद्रशिला मंदिर

चंद्रशिला का पौराणिक महत्व –

केदारखंड के अनुसार यह वह जगह है जहां चंद्रमा ने अपने क्षय रोग से मुक्त होने के लिए भगवान शिव का तप किया था। राजा दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं थी। उनमें रोहिणी नाम की कन्या को चंद्रमा द्वारा अत्यधिक प्रेम किए जाने पर राजा दक्ष द्वारा श्राप  दिया गया था। जिस कारण चंद्रमा को क्षय रोग हो गया था। उसी श्रॉफ की मुक्ति हेतु चंद्रमा द्वारा इस स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की गई थी तब से इस स्थान को  चंद्रशिला कहा जाता है

सौंदर्य दृष्टि –

उत्तराखंड देवों की भूमि के नाम से जाना जाता है जिसमें चन्द्रशिला भी एक ऐसा स्थान है जहां शिव भगवान की आराधना करने के लिए देवों ने तपस्या की है। इस स्थान से शैलानियों को देवभूमि के आस-पास का दृश्य दृष्टिगोचर होता है। यहां एक और सुन्दर सुगंधित पुष्प की मखमखी चादर शैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई बिलंब नहीं करती हैं। तो दुसरी ओर से हिम से आच्छादित पर्वत शिखर चांदी की परात की भांति चमकती नजर आती है।  गढ़वाल हिमालय पर्वत माला में स्थित इस जगह से आस-पास के अन्य अद्भुत और विहंगम दृश्य बुग्याल पर्वत शिखर नंदा देवी पर्वत माल, त्रिशूल पर्वत के तीन शिखर त्रिशूल की भांति देखने को मिलते हैं। केदारनाथ धाम का पिछला भाग बंदरपूंछ और चौखंबा की चोटियों के अद्भुत दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं ।

 

चंद्रशिला का सुंदर नजारा

आगमन –

चंद्रशिलाट्रैक दर्शकों के लिए सबसे लोकप्रिय पैदल मार्ग में से एक है यह मार्ग चोपता से लेकर चंद्रशिला मंदिर तक 5 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई तय करने पर समाप्त होती है । शीतकाल में यह चंद्रशिला मंदिर सैलानियों के आवागमन के लिए बंद रहता है। यात्री केदारनाथ धाम का दर्शन करने के बाद बद्रीनाथ कि और प्रस्थान करते हैं जहां रास्ते में तुंगनाथ मंदिर से होकर जाता पड़ता है।तो यात्री तुंगनाथ मंदिर होते हुए चन्द्रशिला धाम में भगवान शिव की आराधना करने के लिए जाते हैं। यह स्थान ऊखीमठ और गोपेश्वर के मध्य में स्थित है

विषेश निवेदन :- सभी भक्तजनों से विशेष निवेदन है कि देव भूमि उत्तराखंड में आकर यहां की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले। और अपने जीवन को सुखमय बनाएं। तथा यहां का वातावरण को स्वच्छ एवं साफ रखने में अपना सहयोग दें। खाद्य पदार्थ जैसे – पानी की बोतल, प्लास्टिक की थैलियों, आदि कचरा को यहां न फेंके।

                                                         धन्यवाद

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