बाल विकास का क्षेत्र Scope of Child Development
बाल विकास का क्षेत्र (Scope of Child Development)
उसे मुख्यतः निम्नलिखित बिंदुओं में वर्गीकृत कर सकते हैं-
1- बाल विकास के नियम सिद्धांत और विधियां।
2- वंशानुक्रम एवं वातावरण।
3- बाल विकास की अवस्थाएं।
4- शारीरिक विकास।
5- क्रियात्मक विकास।
6- मानसिक शक्तियों-संवेदना, प्रत्यक्षीकरण, अवधान, स्मृति, विस्मृति, कल्पना, चिंतन, तर्क, समस्या समाधान आदि का विकास।
7- संवेगात्मक विकास, संज्ञानात्मक विकास।
8- भाषा विकास-अभिव्यक्ति क्षमता का विकास।
9- सामाजिक विकास।
10- चरित्र का विकास : नैतिक मूल्य।
11- सर्जनात्मक एवं सृचनात्मक क्षमता का विकास।
12- बुद्धि-प्रकृति, बुद्धि-लब्धि, बुद्धि परीक्षण।
13- व्यक्तित्व- प्रकृति, प्रकार, व्यक्तित्व परीक्षण।
14- वैयक्तिक भिन्नता है।
15- बाल विकास में खेल।
16- आदत निर्माण।
17- मानसिक स्वास्थ्य एवं विज्ञान।
18- समायोजन की समस्या।
19- पारिवारिक संबंध।
20- विशिष्ट बालकों का मनोविज्ञान।
21- बाल निर्देशन।
22- बाल विकास में परिवार, विद्यालय, समुदाय एवं अन्य अभिकरणों की भूमिका।
बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक:-
1.ग्रंथियों का स्राव:-
बालक बालिकाओं के शारीरिक और मानसिक विकास पर ग्रंथियों के स्त्राव व का बहुत प्रभाव पड़ता है जैसे गले में थायराइड ग्रंथि के पैरा-थायराइड ग्रंथियों द्वारा रक्त में कैल्शियम का परिभ्रमण होता है इस दोष से मांसपेशियों में अत्यधिक संवेदनशीलता आती है
2. पोषण :-
बालक बालिकाओं के समुचित विकास के लिए पोस्टिक तथा संतुलित आहार की बहुत अधिक आवश्यकता है पौष्टिक और संतुलित आहार का अभिप्राय ऐसी भोजन से है जिसमें विटामिन प्रोटीन खनिज लवण कार्बोहाइड्रेट और वसा आदि ऐसे तत्व हो जो शरीर और मस्तिष्क दोनों के संतुलित विकास में सहायक हो शराब में बालक का विकास संतुलित रूप से नहीं हो सकता कमजोर दांत त्वचा संबंधी रोग आदि का कारण बाल्यावस्था में दोषपूर्ण आहार ही है
3.शुद्ध वायु और सूर्य का प्रकाश:-
कम आयु के बालक के लिए शुद्ध वायु और सुर्य के तपन की बहुत आवश्यकता है। यदि बालकों को शुद्ध वायु और प्रकाश उपलब्ध नहीं होगा तो उनका शरीर अक्षम हो जाएगा परिश्रम करने की शक्ति कम हो जाएगी और वे ठिगने रह जाएंगे।
4. रोग और चोट:-
यह भी किशोर- किशोरीयों के विकास को प्रभावित करते हैं यदि माता गर्भ धारण में धूम्रपान तथा औषधि के रूप में टांक्सिन लेती रहती हैं तो उसका प्रभाव भी गर्भ में पल रही बालक पर पड़ता है। विषैले रोग जैसे आंत्र ज्वर आदि और गंभीर चोटें जैसे सिर की चोट आदि बालकों के विकास को प्रभावित करती है
4.लिंग भेद:-
लिंगभेद बालक बालिकाओं के विकास को बहुत प्रभावित करता है जन्म के समय बालक बालिकाओं से कुछ बड़े होते हैं लेकिन बाद में बालिकाएं बालकों की अपेक्षा जल्दी बढ़ती है किशोरावस्था में बालकों की तुलना में बालिकाओं का विकास तीव्र गति से होता है वही जल्दी ही परिपक्वता को प्राप्त करती है मानसिक विकास में भी बालिका है बालकों की अपेक्षा आगे होती है
5.बुद्धि:-
बालक बालिकाओं की विकास मैं बुद्धि का अत्यधिक महत्व है तीव्र बुद्धि वाले बालक-बालिकाओं का विकास तीव्र गति से, सामान्य बुद्धि वाले बालक-बालिकाओं का विकास सामान्य गति से और मंद बुद्धि वाले बालक-बालिकाओं का विकास धीमी गति से होता है टर्मन ने बालकों की बुद्धि उनका चलना-फिरना और बोलना सीखने के संबंध में कई परीक्षण किए।
6.प्रजाति:-
प्रजाति कारक भी बालक- बालिकाओं कि विकास में प्रभाव डालता है युंग ने जो परीक्षण किए उन पर पर वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पर जातीय प्रभाव बालक के विकास के लिए महत्वपूर्ण तत्व है भूमध्यसागरीय तट पर रहने वाले बालक-बालिकाओं का शारीरिक विकास यूरोप के बालक-बालिकाओं की अपेक्षा जल्दी होता है नीग्रो बालक इस बालक को की तुलना में 80% परिपक्वता शीघ्र प्राप्त करते हैं
7.परिवार स्थिति:-
परिवार में बालक या बालिका की स्थिति उनके विकास को प्रभावित करती है पहले बालक की अपेक्षा दूसरे, तीसरे तथा चौथे बालक का विकास अपेक्षाकृत जल्दी होता है क्योंकि छोटे बालक बड़े भाई-बहनों का देखकर सीखते हैं सीखने में भी छोटे बालक अपने बड़े भाई-बहनों की अपेक्षा जल्दी सीखते हैं। परिवार में सबसे बडा या सबसे छोटा बालक को अधिक प्यार मिलता है जिसका प्रभाव भी उसके विकास पर पड़ता है
8.संस्कृति :-
बालक-बालिकाओं के विकास पर संस्कृति का भी प्रभाव पड़ता है स्वामी दयानंद ,महर्षि अरविंद, लोकमान्य तिलक, डॉ राधाकृष्णन आदि दार्शनिकों का मत है कि देश और समाज की संस्कृति बालक के विकास को बहुत प्रभावित करती है उदाहरण के लिए भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता इसकी आध्यात्मिकता है और पाश्चात्य संस्कृति की विशेषता उसकी भौतिकता है हम आध्यात्मिकता को भौतिकता से श्रेष्ठ समझते हैं और उस पर गर्व करते हैं महर्षि अरविंद ने कहा है कि पाश्चात्य प्रभाव से मुक्त होकर भारत जब फिर से अपनी संस्कृति विशेषता को अपनाने लगेगा तभी यह संसार का नेतृत्व कर सकेगा डेनिस ने कहा है कि शेष अवस्था की विशेषताएं सार्वभौम है और संस्कृति उनमें विभिन्नता उत्पन्न करती है
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