Influence of Family Social-Political Realities on Childhood || बाल्यावस्था पर परिवार के सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव
बाल्यावस्था पर परिवार के सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव
(Influence of Family Social-Political Realities on Childhood ) –
परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है जिस में रहकर बालक औपचारिक शिक्षा ग्रहण करता है। परिवार में बालक अपने माता-पिता से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करता है। बच्चे परिवार के आदर्शों के दर्पण होते हैं। जब बालक का जन्म होता है, तब उसका मस्तिष्क निर्मल होता है, परंतु जैसे-जैसे वह बड़ा होता है,वैसे-वैसे ही परिवार के सदस्यों के रहन-सहन, नैतिक आचरण, मूल्यों तथा सामाजिक- राजनैतिक वातावरण का प्रभाव बालक पर पड़ने लगता है।मूल्यों के विकास में परिवार की अहम भूमिका है। परिवार में माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे अपने व्यवहार द्वारा बालकों के अंदर मूल्यों, ईश्वर में आस्था, लोक कल्याणकारी कार्यों, माननीयता के गुणों, धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का विकास करें। परिवार के सदस्य कोई ऐसा कार्य न करें, जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में किसी प्रकार का कोई खराब प्रभाव बालक पर पड़े। परिवार के सामाजिक- राजनीतिक यथार्थ का बाल्यावस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है
(Influence of Family Social-Political Realities on Childhood ) –
1. भाषायी विकास पर प्रभाव –
इस अवस्था में बच्चे परिवार के साथ ज्यादा समय बिताते हैं। कोई परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करते हैं।उनकी मौखिक भाषा एवं शब्दकोश का तेजी से विकास होता है क्योंकि वह देखी-सुनी बातों को समझकर, उनका अर्थ निकालने की कोशिश करते हैं। उनकी लेखन शैली में विकास होने लगता है। भाषा कौशल के रूप में सौम्यता एवं शुद्ध आचरण का विकास करना परिवार का मुख्य कर्तव्य है। इसके लिए परिवार की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक परिस्थितियां मुख्य भूमिका निभा सकती है।राजनीतिक माहौल से परिपूर्ण परिवार में बालक कई बार एकाकीपन का शिकार हो जाता है। वह अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाता, ठीक इसके विपरीत वह दबंग तथा उदंड भी हो सकता है। यह परिवार द्वारा बालक की देख-रेख की रूपरेखा द्वारा निर्धारित होता है।
2. संवेगात्मक विकास पर प्रभाव –
बाल्यावस्था में मूल रूप से शैशवावस्था में विकसित संवेगो की ही अभिव्यक्ति होती है, बस उनकी अभिव्यक्ति में अंतर होता है। पारिवारिक वातावरण में प्यार, सहानुभूति एवं प्रेम और दया की भावना से बालकों में संतुलित संवेगो का विकास होता है। संवेगो के दमन से बालकों में मानसिक ग्रंथियां बन जाती है, उनका संवेगात्मक संतुलन बिगड़ जाता है और उनका व्यवहार असंतुलित हो जाता है।
3. सामाजिक विकास पर प्रभाव –
बाल्यावस्था में बच्चों की सामूहिकता की मूल प्रकृति अधिक क्रियाशील होती है। वे अपने साथियों के साथ रहना पसंद करते हैं और साथ ही परिवार के साथ सामाजिक समारोहों में सम्मिलित होना चाहते हैं। इस समय वे जिस प्रकार के परिवार के बीच रहते हैं, उसी के व्यवहार प्रतिमानों और नैतिक मूल्यों को वे अपनाते हैं और उनके सामाजिकरण की प्रक्रिया तेजी से होती है। यदि परिवार में द्वेष, ईर्ष्या एवं सदस्यों के बीच नकारात्मक व्यवहार है, तो बच्चे भी उसका अनुकरण करने लगते हैं। इस आयु के बच्चे समूह में अपना वर्चस्व बनाना चाहते हैं। परिवार का सामाजिक एवं राजनीतिक परिदृश्य इसे बढ़ावा दे सकता है। सही अर्थों में बच्चों के सामाजिक विकास पर परिवार के सामाजिक एवं राजनीतिक यथार्थ का सीधा प्रभाव पड़ता है।
4.व्यक्तित्व विकास पर प्रभाव –
बाल्यावस्था में बच्चे बाहरी दुनिया के संपर्क में आते हैं, वे उसकी वास्तविकता से परिचित होते हैं, वे उस में रूचि लेने लगते हैं। बच्चे का बहिर्मुखी अथवा अंतर्मुखी होना पूर्ण रूप से परिवार पर निर्भर रहता है। बच्चों का रचनात्मक कार्यों में भाग लेना, संवेगो पर नियंत्रण करना, भाई वह प्रेम का प्रदर्शन इत्यादि परिवार की शिक्षा-दीक्षा एवं वातावरण पर एक सीमा तक निर्भर करता है। परिवार एवं समाज की प्रशंसा एवं निंदा से बाल्यावस्था अत्यधिक प्रभावित होती है। परिणामत: वह परिवार द्वारा स्वीकृत व्यवहार प्रतिमानों को ही अपना ना पसंद करते हैं। इस प्रक्रिया में वे अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों से भी परिचित होते हैं और कर्तव्य निर्वाह करने की ओर बढ़ते हैं।
5. आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने पर प्रभाव –
परिवार के सामाजिक राजनीतिक यथार्थ का बाल्यावस्था में उनके आत्मनिर्भर होने की प्रवृत्ति पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चों में आत्मविश्वास का होना, अपने कार्य स्वयं करना आदि परिवार से ही संचालित है।
6. रूचियों पर प्रभाव –
बच्चों को परिवार से जैसा वातावरण मिलता है, उसी तरह की उनकी रुचियां विकसित होने लगती है। राजनेताओं के बच्चे अक्सर छोटी उम्र में ही अपने को अपने बड़ों के प्रति स्वयं में देखने लगते है, घर के राजनीतिक माहौल का उनके बोलने के ढंग, खड़े होने के ढंग, विभिन्न विषयों में रूचि और यहां तक कि लोगों के साथ व्यवहार करने पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।
7. नैतिक विकास पर प्रभाव –
बाल्यावस्था में सामान्यतया 7 से 8 वर्ष तक आते-आते बालक में सामाजिक मानदंडों के आधार पर अच्छे-बुरे में भेद करने की शक्ति विकसित हो जाती है, वे न्याय अन्याय में भेद करने लगते हैं। अच्छे-बुरे, ईमानदारी-बेईमानी में से वे ईमानदारी एवं अच्छाई का चयन करने लगते हैं। इन बातों की उनके नैतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बालक को में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, मूल्यों का विकास परिवार की छत्रछाया में ही होता है।
8. मनोवैज्ञानिक प्रभाव –
बाल्यावस्था में व्यवहार परिवर्तन बहुत तेजी से होता है। परिवार के माहौल को देखते-देखते बच्चे में अवधारणाएं एवं पूर्वाग्रहों का बनना आरंभ हो जाता है। आर्थिक तंगी एवं जल्दी अमीर बनने की इच्छाएं या सामाजिक प्रतिष्ठा पाने के लिए बच्चे अपराध जगत में भी प्रवेश कर सकते हैं। वह गलत आदतों का शिकार हो सकते हैं।