किशोरावस्था का अर्थ व महत्व (Meaning and Importance of Adolescence) :-
अंग्रेजी भाषा में किशोरावस्था के लिए एडोलिसेंस (Adolescence) शब्द का प्रयोग किया जाता है। एडोलिसेंस Adolescence शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Adolescere से हुयी है, जिसका अर्थ है: ‘परिपक्वता की ओर बढ़ना’ (To grow to maturity)। इस अवस्था में व्यक्ति इस योग्य हो जाता है कि सन्तान उत्पन्न कर सके।
जर्सिल्ड (Jerisild) के अनुसार :- “किशोरावस्था वह अवस्था है जिसके द्वारा एक विकासमान व्यक्ति बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था तक पहुंचता है ।”
कारमाइकेल (Carmichael)के अनुसार :- किशोरावस्था जीवन का बहुत समय है, जहां से एक अपरिपक्व व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक विकास एक चरम सीमा की ओर अग्रसर होता है। दैहिक दृष्टि से एक व्यक्तित्व किशोर बनता है और उसमें संतान उत्पन्न करने की योग्यता प्रारंभ हो जाती है। वास्तविक आयु की दृष्टि से बालिकाओं में वय: संधि अवस्था 12 वर्ष की आयु से 15 वर्ष की आयु के मध्य प्रारंभ होती है। इस आयु अवधि में 2 वर्ष की आयु किसी और घट-बढ़ सकती है। बालकों के लिए वय: संधि का प्रारंभ इसी अनुपात में प्रारंभ होता है। बहुधा यह बालिकाओं की अपेक्षा बालकों में 1 या 2 वर्ष पश्चात प्रारंभ होती है।
आइजेक (Eysenck) के अनुसार :- “किशोरावस्था वय: संधि के बाद की वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति में आत्म उत्तरदायित्व का स्थापन होता है।”
सी०वी०गुड (C.V.Good) के अनुसार :- “यह मानव विकास का वह काल है, जिसमें 13 से 14 वर्ष से लेकर 21 वर्ष तक होने वाले परिवर्तन प्रकट होते हैं। परिपक्वता आने लगती है। यह परिपक्वता का थोड़ा-सा समय है परंतु यौन परिपक्वता हेतु यह काफी समय चलता है। किशोर-किशोरियां शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक, नैतिक रूप से प्रौढ़ों से भिन्न होते हैं।
माॅर्गन, किंग एवं रोबिंसन (Morgan,king and Robinson) के अनुसार :- “किशोरावस्था वह काल है जो बालक की यौन परिपक्वता (यौवन) की आरंभिक अवस्था से लेकर पूर्ण वृद्धि तक चलता है।”
ब्लेयर,जोन्स और सिम्पसन (Blair,Jones and Simpson) के अनुसार :- “किशोरावस्था प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में वह काल है जो बाल्यावस्था के अंत में आरंभ होता है और प्रौढ़ावस्था के आरंभ में समाप्त होता है।”
कुप्पूस्वामी (Kuppuswami) के अनुसार :- “किशोरावस्था यौवनावस्था तथा वयस्कता के मध्य संचरण काल होता है। इस काल में, बदलती हुई शारीरिक अवस्था के अनुरूप एक नया सामाजिक संवेगात्मक समायोजन संभव होता है।”
कुल्हन (Kulhan) के अनुसार :- “किशोरावस्था बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के मध्य का परिवर्तन काल है। मानव विकास में इस अवस्था का विशेष महत्व है। यहां 13 से 19 वर्ष की आयु तक का काल है। इसलिए इसे टीनएज (Teenage) कहा जाता है।”
किशोरावस्था की आरंभ और अंत की आयु के संबंध में मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न विचार व्यक्त किये हैं। सामान्यतः यह अवस्था 12 वर्ष की आयु से 18 वर्ष की आयु तक मानी जाती है। वस्तुतः इस अवस्था के आरंभ होने की आयु लिंग, प्रजाति, जलवायु, संस्कृति और व्यक्ति के स्वास्थ्य आदि पर निर्भर करती है। भारत में यह आयु पश्चिम के ठंडे देशों की अपेक्षा कुछ पहले आरंभ हो जाती है। मानव जीवन के विकास में इस अवस्था का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। किशोरावस्था मानव जीवन के विकास की अवस्थाओं में सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है। यह जीवन का सबसे कठिन काल है। इस अवस्था में किशोर की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास में क्रांतिकारी परिवर्तन होते हैं। बिग्गी और हंट के अनुसार, किशोरावस्था की विशेषताओं को सर्वोत्तम रूप से प्रकट करने वाला एक शब्द है- परिवर्तन। परिवर्तन शारीरिक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक होता है।”
किशोरावस्था में किशोर और किशोरियों में एक नवीन शक्ति और एक अभूतपूर्व स्फूर्ति उत्पन्न हो जाती है। नवीन इच्छायें और नवीन अभिलाषयें उन में तीव्र रूप से उठने लगती है। नई उमंगे और भावनाएं उन्हें आंदोलित करती हैं। तन-मन विकसित होने से उनकी रुचियां बदलने लगती हैं। और कल्पनाएं उनके मस्तिष्क को भर-सा देती हैं। उनमें प्रौढ़तासूचक चिन्ह प्रकट होने लगते हैं । शारीरिक परिवर्तनों के कारण उनका संवेगात्मक संतुलन समाप्त हो जाता है, बेचैनी और अस्थायित्व आ जाता है, तनाव और मानसिक संघर्ष पैदा हो जाते हैं। इसलिए स्टेनले हॉल ने कहा है कि, “किशोरावस्था बड़े बल, तनाव, तूफान और विरोध की अवस्था है।”
इस काल में हॉल में आदर्शवाद, लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता, बड़ों द्वारा प्रतिपादित नियमों के प्रति विरोध, अपनी भावनाओं को व्यक्त करना, क्षोभ व दुख सहन करना आदि के लिए आंदोलन का काल बताया है। हाॅल ने कहा कि किशोरों का संवेगात्मक जीवन विरोधाभासी प्रवृत्तियों के बीच विचरण करता है। उनमें ऊर्जा, उमंग और अलौकिक शक्ति जैसे गुण इनके विपरीत गुणों जैसे, उदासीनता, सुस्ती तथा घृणा आदि का अनुसरण करने के द्वारा विकसित होते हैं। हाॅल के अनुसार किशोरों की अंतः प्रेरणाएं जैसे, बचकानी स्वार्थपरता बनाम आदर्श युक्त परोपकार, संवेदनशीलता बनाम कठोरता, करुणा बनाम निर्दयता, परिवर्तनवाद बनाम रूढ़िवादिता आदि में होने वाले जटिल मानसिक संघर्ष उनमें तनाव तथा संवेगात्मक उफान पैदा करते हैं।
क्रो एवं क्रो के अनुसार, “किशोर ही वर्तमान की शक्ति और भावी आशा को प्रस्तुत करता है।”
किलपैट्रिक (killpatrick) ने कहा है कि इस बात पर कोई मतभेद नहीं हो सकता है कि “किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है।”