वनों का महत्व : Importance of Forests
वनों को प्राकृतिक पर्यावरण का मानव के लिए अमूल्य उपहार माना जाता है। वनों देश के लिए इतना महत्त्व Importance of Forests है कि इनको किसी भी देश की अमूल्य निधि के रूप में स्वीकार किया जाता है। राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में वनों का प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों रूप से योगदान है।
वनों का प्रत्यक्ष महत्त्व (direct importance of forests) :
देश की अर्थव्यवस्था में वनों के प्रत्यक्ष योगदान (direct importance of forests) निम्नलिखित हैं –
1. वनों में अनेक प्रकार की व्यावसायिक महत्त्व की तथा घरेलू उपयोग की लकड़ी उपलब्ध होती है।
2. अनेक उद्योग, जैसे- कागज, दियासलाई, प्लाई वुड, खेल का सामान आदि वनों से कच्चा माल प्राप्त करते हैं।
3. वनों से अनेक लोगों को जीविका उपार्जन में सहायता मिलती है। यहाँ लकड़ी काटने, चीरने, ढोने, फल-फूल एकत्रित करने में लाखों लोग हुए हैं।
4. वनों से अनेक गौण उपजें प्राप्त होती हैं जिनका उपयोग व्यापक रूप में होता है।
5. वन उपजों के निर्यात से देश की आय होती है।
6. वनों में अनेक जीव पाये जाते हैं। इनके आखेट से अनेक वस्तुयें प्राप्त होती हैं, जैसे हाथी दांत, फर एवं खाल आदि ।
7. वनों से प्राप्त होने वाले अनेक फलों तथा बीजों से तेल निकाला जाता है।
8. वनों में पशुओं को चरने की सुविधा प्राप्त होती है।
वनों का अप्रत्यक्ष महत्त्व (Indirect importance of forests) :
वनों का उपयोग केवल लकड़ी को ईंधन या कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने तक सीमित नहीं है बल्कि इनके अनेक पर्यावरणीय एवं भौगोलिक महत्त्व हैं जिनको अप्रत्यक्ष लाभ भी कहते हैं। ये अप्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं :
1. जंगल जलवायु के नियन्त्रक कहे जाते हैं। वनों से वायु की आर्द्रता में वृद्धि होती है इससे जलवायु की शुष्कता कम होती है एवं तापमान में गिरावट आती है।
2. वन ऑक्सीजन के संचित कोष स्थल हैं जो कार्बन-डाई-ऑक्साइड को अवशोषित कर ऑक्सीजन देते हैं।
3. वन विभिन्न प्रकार के उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को रोकते हैं। घने वृक्ष कई प्रकार की विषैली गैसों का अवशोषण करते हैं। वृक्ष ध्वनि प्रदूषण को भी कम करते हैं।
4. वन भूमि की उर्वरता शक्ति को बढ़ाते हैं। वृक्षों से भूमि पर गिरने वाली पत्तियों को अपघटक (Decomposer) जीवों द्वारा जीवाश्म में परिणित किया जाता है। यही जीवाश्म मिट्टी के उर्वरापन को बढ़ाते हैं।
5. वन अनेक पशु-पक्षियों और जीव-जन्तुओं को आश्रय प्रदान करके वन पारिस्थितिक तन्त्र में सन्तुलन बनाये रखने में सहायता करते हैं।
6. वनों में उगे वृक्ष वर्षा जल के प्रवाह को धीमा करके बाढ़ के प्रकोप को कम करने में सहायता करते हैं।
7. वृक्षों पर लगी पत्तियाँ वर्षा की बूँदों के वेग को कम करके तथा प्रवाह को धीमा करके मृदा अपरदन में सहायता करती हैं। वृक्षों की जड़ें भी मिट्टी को जकड़े रहती है और उसके कणों को अपरदित होने से रोकती है।
8. वन भूमिगत जल की मात्रा में वृद्धि करने और उसके तल के ऊँचा उठाने में सहायता करते हैं।
9. वन देश के प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं।
10. वन जल चक्र तथा वायु चक्र में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
आर्थिक दृष्टि से एक वृक्ष का मूल्यांकन कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक कृषि वैज्ञानिक डॉ. तारक मोहनदास ने किया है। उनके अनुसार 50 वर्ष आयु के 50 टन भार वाले एक वृक्ष को यदि 50 वर्ष तक जिन्दा रखा जाए तो उसका प्रतिदान अग्रलिखित होगा :
यदि इसी पेड़ को काटकर इसकी लकड़ी बेची जाये तो उसका कुल मूल्य 5,000 रु. होगा जो उपर्युक्त का केवल 0.3 प्रतिशत है।
अतः यह स्पष्ट है कि वन हमारे लिए आर्थिक, पर्यावरणीय और भौगोलिक सभी दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
वन विनाश से आशय :
यदि किसी क्षेत्र में जितने वन नष्ट किये जायें और उसी अनुपात में उनको पुनः स्थापित न किया जाये तो उसे वन विनाश कहते हैं। वनों की कटाई के साथ-साथ वृक्षारोपण न होने पर वन क्षेत्र निरन्तर कम होता जाता है। इसके कारण ही वन ‘विनाश की समस्या पैदा होती है। पशु कल्याण हेतु अन्तर्राष्ट्रीय कोष ने आंकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया है कि प्रतिवर्ष मानव अपनी विविध क्रियाओं के द्वारा 18 मिलियन हेक्टेयर भूमि को वन रहित क्षेत्र में बदल देता है। वन विनाश के कारण अनेक समस्याएँ पैदा हो रही हैं।
वन विनाश की विश्व स्थिति :
सभ्यता के विकास से लेकर सत्रहवी सदी तक वन के विशाल क्षेत्र पर उगने के कारण इसको कभी न समाप्त होने वाली सम्पदा माना जाता था। उस समय मानव संख्या कम होने से वृक्षों, वन उत्पादों व लकड़ी की आवश्यकता भी सीमित थी। लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या वृद्धि होती गई वनों का शोषण तेज गति से होने लगा। आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति का भार भी वनों पर आ पड़ा। वनों का विनाश विशेषकर कृषि भूमि के विस्तार, परिवहन प्रणाली के विकास, औद्योगिक कच्चे माल की प्राप्ति तथा बस्तियों के बसाने में किया जा रहा है।
प्रायः विश्व के सभी देशों में वन क्षेत्र में कमी आ रही है। टर्की के 23 प्रतिशत भू भाग पर वन बचे हैं। यह वनों में लगने वाली आग वनों को नष्ट कर देती है। यदि इटली में वनों का विनाश इसी गति से हुआ तो अगले 15 वर्षों में वहाँ वन समाप्त हो जायेंगे। उष्ण कटिबन्धीय वनों का क्षेत्र सन् 2008 तक घट जायेगा। वहाँ के लगभग 2/3 भाग के वन समाप्त हो जाएँगे। ब्राजील के अमेजन बेसिन में 1/4 क्षेत्रफल के वन नष्ट हो चुके हैं। थाईलैण्ड में प्रतिवर्ष 4 लाख हेक्टेयर भूमि वन विहीन होती जा रही है। भारत में 1.3 मिलियन हेक्टेयर भूमि के वन प्रतिवर्ष नष्ट हो रहे हैं। सन् 1980-82 में भारत में 14:10 प्रतिशत क्षेत्रफल पर वन रह गये थे। यह स्थिति पर्यावरण की दृष्टि से बड़ी दुःखद है।