Environmental Studies

वायु प्रदूषण (Air Pollution) : वायु प्रदूषण की परिभाषा, वायु प्रदूषण के कारक

वायु प्रदूषण (Air Pollution) : वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें, जीवधारियों की अनेक क्रियाओं के द्वारा एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। इन गैसों का असंख्य जीवधारियों और वायुमण्डल के बीच चक्रीकरण (Cycling) होता रहता है। जब यह चक्रीकरण सही चलता रहता है तो वायुमण्डल में गैसों का अनुपात नियत बना रहता है, परन्तु यदि यह चक्र टूट जाता है तो गैसों का अनुपात बिगड़ जाता है तथा प्रदूषण उत्पन्न करता है।

वायु प्रदूषण की परिभाषाएँ (Definitions of Air Pollution):

1. वायु में अनियंत्रित मात्रा में एक या अधिक बाहरी तत्त्व जैसे धूल, गैस, कोहरा, धुंध, गंध, धुंआ, सूक्ष्म कणों जिनका मानव, पादप, जीवों या सम्पत्ति इत्यादि पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो, की उपस्थिति “वायु प्रदूषण” Air Pollution कहलाता है।

2. वायु में तत्त्वों की सान्द्रता जिसका जीवों तथा सम्पत्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, को वायु प्रदूषण कहते हैं। (अमेरीकन मेडीकल एसोसिएशन)

3. मानव की क्रियाविधि के कारण वायु में आए तत्वों की वह पर्याप्त सान्द्रता जो कि स्वास्थ्य, पादप तथा सम्पत्ति पर विपरीत प्रभाव डाले अथवा सम्पत्ति के उपयोग में बाधा डाले, उसे “वायु प्रदूषण” कहते हैं। (विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO)

भारत में वायु प्रदूषण का भीषण कहर :

3 दिसम्बर, 1984 को भारत के मध्य में स्थित मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में वायु प्रदूषण की एक भीषण त्रासदी हुई। यह घटना में यूनियन कार्बाइड (भारत) नामक कम्पनी में “कार्बेनिल पेस्टीसाइड” के उत्पादन के समय “मिथाइल आइसो साइनाइट” (MIC) गैस के अचानक स्राव के कारण हुई। MIC एक रंगहीन तथा तीव्र गंध वाली गैस है जो काफी अधिक क्रियाशील होती है। इसकी भारी मात्रा के सम्पर्क में आने के कारण आंखों में जलन, अन्धता तथा कई प्रकार के श्वसन रोग उत्पन्न हुए। इस घटना में 3,200 लोगों ने अपने प्राणों से हाथ धोया तथा 20,000 से अधिक लोग इससे प्रभावित हुए।

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(1). वायु प्रदूषण के कारक (Sources of Air Pollution)

वायु प्रदूषण Air Pollution के प्रमुख स्रोतों को दो भागों में बांटा जा सकता है :

(अ) प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources)

(ब) मानवीय स्रोत (Anthropogenic / Man-made sources)

(अ). प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources) :

ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाली जहरीली गैसें SO, H,S, CO आदि, वन अग्नि (Forest Fire) से उत्पन्न धुंआ,अन्धड़ से उड़ी धूल, अन्तरिक्ष धूल (Cosmic Dust), फूलों के परागकर्णी, कवक के स्पोर (Spores), कार्बनिक तथा अकार्बनिक अपघटन, पादपीय अपघटन, दलदली क्षेत्रों से निकली गैसों से उत्पन्न दुर्गंध इत्यादि वायु प्रदूषण के प्रमुख प्राकृतिक कारक हैं।

निम्नतम वायुमण्डल में संघनन, ऑक्सीकरण, अपचयन, इत्यादि क्रियाओं के फलस्वरूप गैसों तथा वाष्पों को ठोस तथा तरल पदार्थों में बदलती रहती हैं। इन क्रियाओं के असन्तुलन से भी प्राकृतिक वायु प्रदूषण हो सकता है।

उच्च वायुमण्डल में U.V. सूर्य विकिरणों की उच्च ऊर्जा की उपस्थिति में प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया (Photo Chemical Reaction) द्वारा जटिल आण्विक पदार्थों का निर्माण हो जाता है, जो कि अधिक नुकसानदायक हो सकते हैं।

शैवाल को छोड़कर अन्य सूक्ष्म जीव हवा के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच सकते हैं इसके फलस्वरूप यह मानव, पादपों, जीवों इत्यादि को संक्रमित करते हैं तथा वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत बनते हैं।

प्राकृतिक स्रोत के वायु प्रदूषण Air Pollution कुछ हादसों को छोड़कर नगण्य ही होते हैं तथा इसके द्वारा पड़े विपरीत प्रभावों को प्रकृति स्वयं ही सन्तुलित कर देती है।

(ब). मानव जनित स्रोत (Anthropogenic / man-made Sources) :

मानव जनित स्रोतों के अन्तर्गत मानव की निम्न अनियंत्रित गतिविधियों के कारण वायु प्रदूषण होता है :

(i) जनसंख्या वृद्धि (Increase in Population)

(ii) वनों की कटाई (Defforestation)

(iii) जीवाश्मीय ईंधन का जलना तथा आग (Burning of Fossil Fuels & Fire)

(iv) वाहनों से उत्सर्जन (Emissions from Vehicles)

(v) तीव्र औद्योगीकरण (Rapid Industrilization)

(vi) कृषि कार्यों द्वारा (Agricultural Activities)

(vii) युद्ध द्वारा (Wars)

(i). जनसंख्या वृद्धि (Increase in Population) :

जनसंख्या वृद्धि के कारण कई विकट समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जनसंख्या वृद्धि से भोजन की समस्या उत्पन्न होती है, इस समस्या को दूर करने के लिए जंगलों को काट कर खेती की जाती है, जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ गया है। पेड़ों के कटने तथा आबादी अधिक होने से वातावरण में कार्बन- डाई ऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ने लगी है जिसके परिणामस्वरूप विश्व तापमान में वृद्धि (Global Warming) तथा हरित गृह प्रभाव (Green House Effect) हो रहा है।

(ii). वनों की कटाई (Defforestation) :

पादप प्रकृति में ऑक्सीजन तथा कार्बन- डाई-ऑक्साइड का सन्तुलन बनाए रखते हैं, क्योंकि पादप प्रकाश संश्लेषण में कार्बन-डाई- ऑक्साइड का उपयोग कर ऑक्सीजन को बाहर छोड़ते हैं तथा वायु को स्वच्छ बनाते हैं।

मानव अपनी आवश्यकताओं जैसे खेती तथा रहने के लिए भूमि की आवश्यकता, लकड़ी की आवश्यकता, इत्यादि की पूर्ति के लिए अनियन्त्रित रूप से बिना सोच-विचार के वनों की कटाई करता जा रहा है। वनों की कटाई से जहाँ वन्य जीवों के रहने का स्थान समाप्त हो रहा है वहीं वातावरण में ऑक्सीजन तथा कार्बन-डाई-ऑक्साइड के मध्य का सन्तुलन भी बिगड़ गया है।

पादप अन्य गैसों, धूलकणों इत्यादि को भी रोकते हैं साथ ही भूमि को पकड़े रहते हैं जिससे आंधी में भी धूल नहीं उड़ती है । परन्तु वनों की कटाई से इन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है तथा वायु प्रदूषण बढ़ने लगा है।

(iii). जीवाश्मीय ईंधन का जलना तथा आग (Burning of Fossil Fuels & Fire) :

लकड़ी एवं कोयला ऊर्जा के परम्परागत स्रोत हैं। ऊर्जा का 97 प्रतिशत उपयोग हमारे घरों तथा कारखानों में होता है। कारखानों में ईंधन के रूप में कोयला, तेल तथा प्राकृतिक गैसों का उपयोग होता है।

इन ईंधनों के जलने से निम्न प्रदूषक वायु में प्रदूषण उत्पन्न करते हैं:

• सूक्ष्म कण जिनका व्यास 100 से कम होता है इनमें कार्बन कण, धूल कण, μ रेग्जीन (Resing), टार, ठोस ऑक्साइड, सल्फेट तथा नाइट्रेट आदि होते हैं।

• भारी कण जिनका व्यास 200 से अधिक होता है इसमें कार्बन कण तथा भारी μ धूल कण शामिल होते हैं जो वायु में से गुरुत्व के कारण तेजी से कम हो जाते हैं।

• नाइट्रोजन यौगिक जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड इत्यादि वायुमण्डल में मिल जाते हैं।

• इन ईंधनों के प्रयोग से कुछ मात्रा में हैलोजन भी वायुमण्डल में पहुँच कर प्रदूषण करती हैं।

• जीवाश्मीय ईंधन का सर्वाधिक उपयोग तापीय विद्युत परियोजना औद्योगिक प्रक्रिया में होता है। जिससे लगभग 2/3 भाग सल्फर डाई ऑक्साइड उत्पन्न होकर वायुमण्डल में आती है।

• लकड़ी तथा कोयले को जलाने पर जहरीली गैसें जैसे कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOx) इत्यादि उत्पन्न होकर वायु प्रदूषण में योगदान करते हैं।
इन प्रदूषकों की सान्द्रता, ईंधन के प्रकार तथा जलाने की विधि पर भी निर्भर करते हैं।

(iv). वाहनों से उत्सर्जन (Emission from Vehicles) :

वाहन जैसे कार, स्कूटर, ट्रक, बस, ट्रेन, हवाई जहाज इत्यादि में ईंधन के रूप में पैट्रोल या डीजल का उपयोग किया जाता है। इन वाहनों से काफी अधिक मात्रा में जहरीली गैसें जैसे कार्बन मोनो ऑक्साइड (77%), नाइट्रोजन ऑक्साइड (8%), हाइड्रो कार्बन तथा लैड (14%) इत्यादि निकलती है जो वायु में मिलकर जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

वाहनों में डीजल व पैट्रोल का आंशिक दहन होता है जिसके फलस्वरूप अधिक मात्रा मैं घातक कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस बनती है तथा वायु में मिलकर प्रदूषण करती है। सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में नाइट्रोजन के ऑक्साइड हाइड्रोकार्बन से क्रिया करके प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे (Photo Chemical Smog) का निर्माण करते हैं, यह घूम कुहरा (Photo Chemical Smog) बहुत जहरीली प्रकृति का होता है। इन धूम कोहरे के कारण लन्दन की थेम्स घाटी में 5 दिसम्बर से 9 दिसम्बर, 1952 के दौरान वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी घटना घटी। इस धूम कोहरे को “Killer Smog” भी कहा जाता है। इसके कारण 4,000 लोग मौत का ग्रास बन गए तथा हजारों लोगों को श्वास नली में जलन का रोग हो गया।

विज्ञान तथा पर्यावरण केन्द्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण कोलकाता में मृत्यु दर दुगनी हो चुकी हैं तथा उत्सर्जित धुएँ में उपस्थित SPM (Suspended Particulate Matter) की उपस्थिति में लम्बे समय तक रहने पर कार्य करने की क्षमता में कमी आ जाती है।

(v). तीव्र औद्योगीकरण (Rapid Industrilization) :

मानव अपने आरामदायक जीवन के लिए दिन-प्रतिदिन नई औद्योगिक इकाईयों को लगाता जा रहा है। इन औद्योगिक इकाईयों की चिमनियों से कार्बनिक व अकार्बनिक गैसें, धात्विक वाष्प, कार्बन-डाई- ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, अमोनिया इत्यादि के साथ-साथ सूक्ष्म कार्बन, धात्विक कण, सीसा, लेड इत्यादि भी वायु में उत्सर्जित होती रहती हैं तथा वायु को प्रदूषित करती हैं।

इन गैसों से मानव जीवन के साथ-साथ जीवों व वनस्पतियों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

विश्व भर में हजारों-लाखों श्रमिक कारखानों तथा खदानों में इन गैसों की भारी मात्रा के सम्पर्क में आते हैं तथा घातक बीमारियों जैसे सिलिकोसीस (Silicosis), अपुष्ट भ्रूण (Foetal Disorder), लकवा (Paralysis), त्वचा संक्रमण (Skin Allergies), न्यूमोकोनियोसीस (Pneumoconiosis) इत्यादि के शिकार हो जाते हैं।

(vi). कृषि कार्यों द्वारा (By Agricultural Activities):

विभिन्न प्रकार के जैव नाशक (Biocides) जैसे पीड़क नाशक (Pesticides), कीटनाशक (Insecticides), अपतृणनाशी (Herbicides) का उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है ताकि अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सके, परन्तु जब इन जैव नाशकों का छिड़काव किया जाता है तो इनमें प्रयुक्त हानिकारक रसायन वाष्प एवं सूक्ष्म कणों के रूप में वायुमण्डल को दूषित करते हैं। ये विषाक्त तत्त्व हवा द्वारा विभिन्न स्थानों पर पहुँच जाते हैं तथा वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं इनके कारण कई जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। छिड़काव के समय यह मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

(vii). युद्ध द्वारा (By War) :

युद्ध के समय दोनों पक्षों की तरफ से बमबारी की जाती है जिससे हानिकारक पदार्थ हवा में मिलते हैं। युद्ध में जैविक बम, रासायनिक बम, परमाणु बम इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।

जैविक बम द्वारा हानिकारक रोग जनित संक्रामक जीवाणु या विषाणु वायु में मिलाए जाते हैं जिससे संक्रामक रोग होने का खतरा रहता है।

रासायनिक बम द्वारा विषाक्त तथा हानिकारक रसायनों को वायुमण्डल में छोड़ दिया जाता है तथा परमाणु बमों से निकलने वाली रेडियो एक्टिव किरणें प्राणघातक होती हैं तथा काफी लम्बे अर्से तक वायुमण्डल में विद्यमान रहती हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हीरोशिमा तथा नागासाकी पर किए गए आण्विक हमलों में कई जानें गई तथा उसका असर आज भी देखने को मिलता है। रेडियो एक्टिव कण परमाणु विस्फोट के अतिरिक्त नाभिकीय रिएक्टरों से ही विस्फारित हो जाते हैं, तथा वायु प्रदूषण Air Pollution करते हैं।

 

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