Ecosystem (पारिस्थितिकी तंत्र) : पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार, घटक व खाद्य श्रृंखला
पारिस्थितिकी (Ecology)
Ecosystem – पारिस्थितिकी शब्द अंग्रेजी (Ecology) शब्द का हिंदी रूपांतरण है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग एक जर्मन जैव वैज्ञानिक अर्नेस्ट हीकल ने 1869 में किये थे। जीव मंडल में विभिन्न प्रकार के जीव (प्राणी व वनस्पति) आपस में भौतिक पर्यावरण के साथ अनुक्रिया करते हैं। इन्हीं जीवों के भौतिक पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रिया कलाप के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं।
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पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग प्रो. आर्थर टेंसले द्वारा 1935 में किया था। उनके अनुसार, पारिस्थितिकी तंत्र Ecosystem भौतिक तंत्रों का एक विशेष प्रकार है, जिसकी रचना जीवों व अजैविक घटकों से होती है। यह अपेक्षाकृत स्थिर समस्थिति में होता है।
पर्यावरण के घटक (Components of Environment)
भौतिक पर्यावरण के अजैव घटक, किसी क्षेत्र में रहने वाले जीवों की विभित्र प्रजातियों को प्रभावित करते है। उदाहरण के लिए स्थल खंडों पर रहने वाले जीव, सागर जल में रहने वाले जीवों से भित्र हैं। विभित्र स्थल खंडों पर पाए जाने वाले पौधों व जंतुओं की प्रजातियों में भी जलवायु की दशाओं के कारण भिन्नताएँ आ जाती है।
1. जैविक घटकः इसके अंतर्गत जीवोम ।
2. अजैविक घटकः इसके अंतर्गत आवास (भौतिक पर्यावरण)
जैविक व अजैविक घटकों के पारस्परिक अध्ययन को पारिस्थितिकी विज्ञान कहते हैं। पारिस्थितिकी विज्ञान में आवास का तात्पर्य उस स्थल से है, जहां जीव रहते हैं। पारिस्थितिक तंत्र के अंतर्गत वनस्पति जगत, प्राणी जगत व भौतिक पर्यावरण का समावेश होता है।
मृदा जल व वायुमंडल में विद्यमान रासायनिक पदार्थ, पारितंत्र के अजैव घटक हैं। इन रासायनिक द्रव्यों में जल, आक्सीजन, कार्बन डाइआक्साइड व खनिज (फासफेट, नाइट्रेट आदि) जैसे- अजैव पदार्थ है। कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन व विटामिन आदि जैव पदार्थ हैं।
पारितंत्र के अन्य अजैव तत्वों में जलवायु के तत्व जैसे तापमान, वर्षा, धूप की अवधि, पवन, मृदा, स्थल खंडों का ढाल किसी प्रदेश के जलाशयों की बनावट, शामिल हो सकते हैं।
जैविक घटकों के 2 प्रमुख वर्ग
1. उत्पादक (Producer)
उत्पादक वे जीव हैं, जो भौतिक पर्यावरण से अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। इन्हें स्वपोषित जीव भी कहते हैं। हरे पौधे प्राथमिक उत्पादक हैं, क्योंकि वे सूर्य की ऊर्जा की सहायता से अजैव पदार्थो को जैव पदार्थो में बदलते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते है।
प्रकाश संश्लेषण में पौधे वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड व मृदा से खनिज व जल लेकर, सूर्य की ऊर्जा के द्वारा, जैव पदार्थों का संश्लेषण करते है। पेड़- पौधों की पत्तियों में मौजूद पर्णहरित (क्लोरोफिल) नामक हरे वर्णक के द्वारा प्रकाश संश्लेषण संभव होता है। महासागरीय जल में पादपप्लवक प्राथमिक उत्पादक हैं, क्योंकि वे सौर ऊर्जा का उपयोग करके अपना भोजन स्वयं बनाते हैं।
2. उपभोक्ता (Consumer)
अन्य जीव उपभोक्ता (परपोषित) कहलाते हैं, क्योंकि वे अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर आक्षित हैं। केवल पौधों से भोजन प्राप्त करने वाले जीव शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं। खरगोश प्राथमिक उपभोक्ता या शाकाहारी जीव है, उपभोगता दूसरे जंतुओं को अपना भोजन बनाते हैं, उन्हें मांसाहारी या गौण उपभोक्ता कहते है।
शेर मांसाहारी जीव या गौण उपभोक्ता है। मनुष्य सर्वाहारी है, क्योंकि वह पौधों व जंतुओं दोनो से ही अपना भोजन प्राप्त करता है। उपभोक्ता का एक चौथा वर्ग भी है, जो पौधों व जंतुओं के मृत या अपघटित ऊतकों को अपना भोजन बनाते है। इन्हें विघटक या अपरदभोजी कहते है।
जीवाणु व फफूँदी, दीमक व मैगट विघटक जीव है। विघटक जीव पौधों और जंतुओं के अपरद (सड़ा गला अंश) से ऊर्जा और पोषक तत्व प्राप्त करते है। अपने भोजन की प्रक्रिया में विघटक जीव, जैव पदार्थो को अजैव पदार्थों में बदल देते हैं, जिन्हें हरे पौधे ग्रहण कर लेते हैं व इस तरह चक्र पूरा हो जाता है।
Ecosystem (पारिस्थितिकी तंत्र) के घटक
1. जीवः दोस्ती अध्ययन की धार्मिक इकाई।
2. जातिः एक ही प्रकार के जीवों में परस्पर संकरण की क्षमता फलस्वरूप निषेचित संतति का जन्म।
3. जनसंख्याः एक आवासीय क्षेत्र में निवास करने वाले पौधों व प्राणियों की जातीय समूह।
4. जैविक समुदायः पौधो, प्राणियों, जीवाणुओं व कवको के जनसंख्याओं का एक त्रीकरण। इसमें एक विशेष प्रजाति की बनावट व संरचना होती है।
5. पारिस्थितिकी तंत्रः विशेष जैविक समुदाय व उसके भौतिक पर्यावरण से एकहकरण होते हुए ऊर्जा के अदान-प्रदान व पोषण तत्वों के पुनः चक्रण द्वारा परस्पर जुड़ना।
6. जीवोमः एक बड़ी क्षेत्रीय इकाई जो विशेष प्रकार की वनस्पतियों द्वारा सृजित विशेष जलवायु मंडल।
7. जैवमंडलः स्थलीय जीवोम जलीय परितंत्र तालाब का निचला भाग + साजीव क्षेत्र (भूमि समुद्र + नदियाँ + झील)
भोज्य निर्भरता के आधार पर उपभोक्ताओं का वर्गीकरण
1. प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता
सभी शाकाहारी जन्तु प्रथम श्रेणी उपभोक्ता होते हैं। शाकाहारी जन्तु वनस्पतियों का भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए खरगोश, गाय, बकरी, हिरण, चूहा, बंदर, हाथी, जिराफ आदि।
2. द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता
द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता वे सभी जन्तु जो भोजन के लिए प्रथम श्रेणी के उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं उन्हें द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं के वर्ग में रखते हैं। ये मांसाहारी होते हैं। उदाहरण के लिए मेढक, मछलियां, कीट पतंगो को खाने वाले पक्षी व जन्तु छिपकली आदि ।
3. तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता
वे सभी जन्तु भोजन के लिए द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं उन्हें शीर्ष श्रेणी के उपभोक्ता कहते हैं। जैसे- बाज, गिद्ध, शेर, भालू।
अपघटक (Decomposers)
अपघटक सूक्ष्म जीव होते हैं जो सभी मृत जीवों (वनस्पतियों व जन्तुओं) को उनके पार्थिव अवयवों में तोड़ देते हैं। अपघटन की प्रक्रिया मृत्यु के बाद शुरु हो जाती है जिसे सामान्य तौर पर सड़ने के तौर पर देखा है।
खाद्य श्रृंखला व खाद्य जाल (Food chain & Food Network)
मनुष्य समेत सभी जीवों को भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन से ही उन्हें विकास पोषण व प्रजनन के लिए ऊर्जा मिलती है। भोजन से प्राप्त ऊर्जा का कुछ अंश जैव प्रक्रियाओं में लग जाता है।
ऊर्जा का शेष भाग श्वसन प्रक्रिया द्वारा ऊष्मा ऊर्जा के रूप में पर्यावरण में विलीन हो जाता है। बिना पचा भोजन बाहर निकल जाता है, व गल सड़ जाता है। घास भूमि में खरगोश घास खाते हैं व लोमड़ी खरगोशों को खाती है। यह एक साधारण खाद्य श्रृंखला है। कुछ जीव दूसरे विभित्र प्रकार के जीवों को खाते हैं। जैसे- शेर, खरगोश, हिरन, भेड़, बकरी व लोमड़ी को खाता है।
इस प्रकार प्रकृति में खाद्य श्रृंखला जटिल बन जाती हैं प्रकृति में खाद्य श्रृंखलाओं का एक जाल सा बन जाता है। खाद्य श्रृंखलाओं के ऐसे जटिल जालों को खाद्य-जाल कहते हैं।
इसका प्रतिपादन 1927 में चार्ल्स एल्टन ने किया था जिसे खाद्य चक्र (Food Cycle) का नाम दिया था।
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एक पारितंत्र ecosystem में विभिन्न प्रकार के जंतु रहते हैं व उनमें भोजन के लिए कड़ी प्रतियोगिता होती है। इस प्रकार खाद्य-जाल बहुत जटिल होते हैं। जीवों के प्रत्येक समूह का एक पोषी स्तर होता है।
पारितंत्र ecosystem में सभी हरे पौधे व अन्य उत्पादक प्रथम पोषी स्तर में होते हैं। शाकाहारी जो पौधों का आहार करते हैं, द्वितीय पोषी स्तर में होते हैं। मांसाहारी जो शाकाहारी जीवों को खाते हैं, तृतीय पोषी स्तर में होते हैं। मांसाहारी जो अन्य मांसाहारी जीवों को खाते हैं, चौथे पोषी स्तर में होते है।
उपलब्ध ऊर्जा के संदर्भ में विभित्र पोषी स्तर समान नहीं हैं, क्योंकि निम्नस्तर से उच्चस्तर पर ऊर्जा का एक अंश ही स्थानान्तरित होता है।
पोषी स्तरों को एक पिरामिड के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है, जिसे पारिस्थितिक पिरामिड कहा जाता है। एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में स्थानांतरित ऊर्जा के प्रतिशत को पारिस्थितिक क्षमता कहा जाता है।
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