Bhukamp (भूकंप): भूकंप के कारण, भूकंपीय तरंगे, भूकंप का विश्व वितरण
Bhukamp kya hai
भूकंप bhukamp का शाब्दिक अर्थ भूमि या धरातल का कांपना है। भूकंप एक आकस्मिक अंतर्जात प्रक्रिया है जो कई प्रकार की भूगर्भिक क्रियाओं का परिणाम है। प्राकृतिक या कृत्रिम कारणों से होने वाले bhukamp को भूकंप कहते हैं।
Bhukamp का उद्गम स्थल पृथ्वी की सतह के नीचे ऊर्ध्वाधर व क्षैतिज परिवर्तन के फलस्वरूप होता है।
भूकंप क्यों आता है bhukamp kyon aata hai
भूकंप के प्रमुख कारण निम्न- 1. ज्वालामुखी क्रिया 2. भूसंतुलन से संबंधित समायोजन 3. प्लेटों की गतिशीतला 4. वलन तथा भ्रंशन 5. भूपटल (क्रस्ट) का संकुचित होना 6. आभ्यांतरिक गैसों की मात्रा में वृद्धि 7. जलीय भार 8. पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन 9. अणुबमों का परीक्षण एवं विस्फोट तथा 10. प्रत्यास्थ-पुनश्चलन सिद्धांत (Elastic Rebound Theory) है।
1. ज्वालामुखी क्रिया (Volcanic Activity)
भूकम्प के आने का एक प्रमुख कारण ज्वालामुखी उद्भेदन है, क्योंकि पृथ्वी के अंदर से गर्म लावा और गैसों के निकलने से उसके आस-पास की भू-पर्पटी पर दबाव पड़ता है और वहाँ कंपन उत्पन्न होता है। ज्वालामुखीय उद्गार या विस्फोट से धरातलीय चट्टानें टूट जाती हैं और सैकड़ों/हजारों किलोमीटर तक भूकम्प bhukamp का अनुभव किया जाता है।
प्रायः ज्वालामुखी प्रदेशों में ज्वालामुखीय विस्फोट न होने पर भी भूकंप आते रहते हैं। जिसका कारण भूगर्भ के पिघले पदार्थों का पूरी शक्ति से बाहर निकलने का प्रयास और ऊपरी कठोर चट्टानों द्वारा उन पिघले पदार्थों के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करना है। जापान व फिलीपींस में ज्वालामुखी क्रिया के कारण निरंतर bhukamp उत्पन्न होते रहते हैं। उदाहरण के लिए 1883 में क्राकाटाओ द्वीप पर आने वाला भयानक भूकम्प ।
2. भ्रंश एवं संपीडन की क्रिया (Faulting and Contraction)
भ्रंश एवं संपीडन चट्टानों के विस्थापन के परिणामस्वरूप होने वाली क्रियाएँ हैं। क्षैतिज शक्तियाँ जो केन्द्र से विपरीत दिशा में कार्य करती हैं तथा इनके प्रभाव से चटकन, भंशन, भ्रंश घाटी, ब्लॉक पर्वत, रैंप घाटी इत्यादि स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
जब चट्टानों का दो विपरीत दिशा में वास्तविक विस्थापन हो तब उसे सामान्य भ्रंश कहते हैं। संपीडनात्मक बल के कारण जब दो चट्टानों का केन्द्र की ओर एवं विपरीत दिशा में संचलन हो तब वलन की क्रिया के फलस्वरूप व्युत्क्रम भ्रंश एवं वलन का निर्माण होता है। प्रायः सभी बड़े भूकम्पों में कहीं-कहीं भ्रंश धरती की सतह पर दृष्टिगोचर होने लगते हैं, जैसे सन् 1960 ई. में सैन फ्रांसिस्को में हुए भूकंप में भ्रंश रेखा के ऊपर धरातल में लगभग 800 किमी. लंबी दरार (भ्रंश) पड़ गयी थी, जिसे सैन एण्ड्यिाज भ्रंश (San Andreas Rift) कहते हैं। भ्रंश रेखाओं पर उत्पन्न होने वाले bhukamp वहीं आते हैं जहाँ की भू-गर्भिक चट्टानें संतुलित नहीं हो पायी हैं ऐसे भाग दुर्बल क्षेत्र (Weak Zones) कहलाते हैं। विश्व के सभी नवीन पर्वत क्षेत्र (जैसे-हिमालय, आल्प्स, रॉकी, एण्डीज) दुर्बल क्षेत्र के उदाहरण हैं और प्रमुख भूकम्प क्षेत्र बने हुए हैं।
3. समस्थितिक समायोजन या भू-संतुलन (Isostatic Adjustment)
समस्थैतिकी वह शक्ति अथवा प्रक्रिया है जो घूर्णन करती पृथ्वी पर विभिन्न उच्चावचीय दशाओं के मध्य स्थैतिक साम्यवस्था अथवा भू-संतुलन का कारण है। यह गुरुत्वाकर्षण एवं उत्प्लावन बल का प्रतिफल है जो भू-पर्पटी पर अंतर्जात एवं बहिर्जात शक्तियों के प्रभावों को संतुलित करती है तथा क्रस्ट में स्थैतिक संतुलन कायम रहता है। भू-पदार्थो का पुनर्वितरण क्रस्ट के द्रव्यमान भार में अंतर उत्पन्न करता है जिसे समस्थैतिकी क्रियाएँ ही संतुलित करती है। संतुलन की स्थिति प्राप्त होने के दौरान भूकंप की उत्पति होती है।
4. प्रत्ययस्थ पुनश्चलन सिद्धांत (Elastic Rebound Theory)
प्रसिद्ध अमेरिकी भूगोलवेत्ता प्रो. एच. एफ. रीड (H. F. Read 1906) के अनुसार, भूगार्भिक चट्टानें लचीली (Elastic) होती हैं, अर्थात रबर के समान उनमें तन्यता का गुण होता है। जब कभी अन्तर्जात बल वहाँ सक्रिय होते हैं तो उनमें दबाव उत्पन्न होता है। दबाव पड़ने पर चट्टानें अपने लचीले स्वभाव के कारण उसे सहन करती रहती हैं। एक सीमा के बाद वे अधिक दबाव सहन करने में असमर्थ हो जाती हैं, दबाव सहन करने की अंतिम सीमा क्रांतिक सीमा (Critical Limit) कहलाती है।
इससे अधिक दबाव पड़ने पर चट्टानें खंडित हो जाती हैं तथा स्थौनिक ऊर्जा मुक्त हो कर गतिकीय ऊर्जा एवं दोलन उत्पन्न करती है। ये भूकंप अत्यंत घातक होते हैं तथा इनकी बारंबारता भी उच्च होती है। ये कम गहराई के भूकंप होते है। जिस प्रकार रबर टूट कर पुनस्चलन करता है, उसी प्रकार चट्टानें भी विखंडित होकर पुनः गठित होती है। यह सिद्धांत संरक्षी सीमा के भूकंप की भी व्याख्या करता है तथा इसका अनुप्रयोग जलाशय प्रेरित भूकंप bhukamp की व्याख्या में भी समुचित है।
5. प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic)
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के माध्यम से भूकंपों के उत्पन्न होने की संपूर्ण प्रक्रिया की व्याख्या सम्भव है। सामान्यता रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे कम गहराई पर स्थित भूकम्पमूल (Focus) वाले साधारण परिमाण वाले भूकम्प आते हैं। इन भूकंपों के भूकम्पमूल प्रायः 25 से 35 किमी. की गहराई पर स्थित होते हैं। विनाशी प्लेट किनारों के सहारे गहरे भूकम्पमूल वाले तथा अधिक परिमाण वाले विध्वंशक भूकम्प आते हैं। यहाँ पर दो प्लेटों के टकराव के कारण होने वाली पर्वत निर्माण, भ्रंशण तथा विस्फोटक ज्वालामुखी की घटनाओं के कारण भूकम्प आते हैं। इनका भूकम्पमूल 700 किमी. की गहराई तक होता है। संरक्षी सीमा पर दो प्लेट (स्थलीय या सागरीय) एक दूसरे से समानांतर एवं विपरीत दिशा में संचरण करते हैं। भूकंपों की उत्पत्ति संरक्षी प्लेटों से उत्पन्न रुपांतरण भ्रंशों के कारण होती है।
भूकम्प आने के पहले वायुमंडल में रेडॉन गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। अतः इस गैस की मात्रा में वृद्धि का होना उस क्षेत्र विशेष में भूकम्प आने का संकेत होता है।
जिस जगह से भूकम्पीय लहरें उत्पन्न होती हैं उसे भूकम्प मूल (Focus) कहते हैं तथा जहाँ सबसे पहले भूकम्पीय तरगों का अनुभव किया जाता है उसे भूकम्प केन्द्र (Epi-centre) कहते हैं।
bhukamp का केंद्र व अधिकेंद्र
भूकंप मूल (उत्पत्ति केन्द्र) (Focus): धरातल के नीचे जिस स्थान पर भूकंप की घटना का प्रारंभ होता है, उसे भूकंप का उत्पत्ति केन्द्र या भूकंप-मूल कहा जाता है। विश्व के अधिकांश भूकंप भूतल से 50-100 किमी. की गहराई पर उत्पन्न होते हैं।
भूकंप अधिकेन्द्र (Epicentre): भूकंप मूल के ठीक ऊपर लंबवत स्थान, जहां सबसे पहले भूकंपीय तरंगों का पता चलता है, अधिकेन्द्र कहलाता है। भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में अधिकेन्द्र ही ऐसा बिन्दु है, जो भूकंप मूल के सबसे समीप स्थित होता है।
गहराई के आधार पर भूकंप का वर्गीकरण
1. छिछले केन्द्र वाले भूकंप – 0-35 किमी
2. मध्यम केन्द्र वाले भूकंप – 35-75/100 किमी.
3. गहन केन्द्र वाले भूकंप – 100-350 किमी.
4. पातालीय केन्द्र वाले भूकंप – 350-700 किमी.
भूकम्पीय तरंगें (Seismic Waves)
भूकम्प के समय जो ऊर्जा भूकम्प मूल से निकलती है, उसे प्रत्यास्थ ऊर्जा (Elastic Energy) कहते हैं। भूकम्प के दौरान कई प्रकार की भूकम्पीय तरंगें (Seismic Waves) उत्पन्न होती हैं जिन्हें तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है:-
भूकंप की उत्पत्ति के समय भूकंप मूल से उठने वाली लहरों को भूकंपीय लहरे कहा जाता है। ये लहरें सबसे पहले भूकंप मूल के ठीक ऊपर धरातल पर स्थिति अधिकेन्द्र (Epicentre) पर पहुंचती है।
भूकंपीय तरंगें P. S और L प्रकार की होती है। इनमें P तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगे 1 (Longitudinal Waves) हैं जो ध्वनि तरंगों के समान ठोस, द्रव तथा गैस तीनों माध्यमों से होकर गुजर सकती हैं। इन तरंगों की सर्वाधिक गति ठोस माध्यम में होती है
P तरंगों की गति S से अधिक एवं S तरंगों की गति तरंगों से अधिक होती है। S तरंगें अनुप्रस्थ तरंगे हैं एवं ये तरंगे द्रव माध्यम से होकर नहीं गुजर सकती हैं। 1. तरंगें धरातलीय तरंगें हैं तथा ये जल से होकर भी गुजर सकती हैं। इसमें कंपन की गति सर्वाधिक होती है तथा ये तरंगे आड़े-तिरछे धक्का देती हैं। ये तरंगे सर्वाधिक विनाशकारी होती है।
भूकंप मापने का यंत्र
जिन यंत्रों द्वारा भूकम्पीय तरंगों की तीव्रता मापी जाती है उन्हें भूकम्प लेखी या सीस्मोग्राफ (Seismograph) कहते हैं।
इसके तीन स्केल (scale) हैं-
1. रॉसी – फोरेल स्केल (Rossi-Forel Scale) : इसके मापक 1 से 11 रखे गए थे।
2. मरकेली स्केल (Mercalli Scale) : यह अनुभव आधारित पैमाना है। इसके 12 मापक हैं।
3. रिक्टर स्केल (Richter Scale) : यह गणितीय मापक (Logarithmic) है, जिसकी तीव्रता 0 से 10 तक होती है और रिक्टर स्केल पर प्रत्येक अगली इकाई पिछली इकाई की तुलना में 10 गुना अधिक तीव्रता व्यक्त करता है।
समान भूकम्पीय तीव्रता वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समभूकम्पीय रेखा या भूकम्प समाघात रेखा (Isoseismal Lines) कहते हैं। एक ही समय पर आने वाले भूकम्पीय क्षेत्रों को मिलाने वाली रेखा होमोसीस्मल लाइन या समभूकम्परेखा (Homoseismal Lines) कहलाती है।
भूकंपों का विश्व वितरण
विश्व में भूकंपों का वितरण उन्हीं क्षेत्रों से संबंधित है, जो अपेक्षाकृत कमजोर तथा अव्यवस्थित हैं। भूमंडल के लगभग 40% भूकंप सागर तथा महाद्वीपों या द्वीपों के मिलन बिन्दु पर पाए जाते हैं। भूकंप के ऐसे क्षेत्र इस प्रकार हैं। 1. नवीन मोड़दार/वलित पर्वतों के क्षेत्र, 2. महाद्वीपीय तथा महासागरीय सम्मिलन के क्षेत्र, 3. विश्व के ज्वालामुखी क्षेत्र एवं 4. दरार एवं भूपटल भ्रंश की क्रिया वाले क्षेत्र। उपर्युक्त सभी क्षेत्रों को ध्यान में रखने पर विश्व में भूकंप की कुछ विस्तृत पेटियां उभर कर सामने आती हैं, जो कि निम्नवत् हैं।
1. प्रशांत महासागर- तटीय पेटी (Circum Pacific Belt)
इस पेटी में संपूर्ण विश्व के 68% भूकंपो का अनुभव किया जाता है। प्रशांत महासागर के इस विशाल क्षेत्र को ‘अग्नि वलय’ (Ring of Fire) के नाम से जाना जाता है।
इस पेटी के अंतर्गत 3 प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं। 1. सागर तथा स्थल भागों के मिलन बिन्दु, 2. नवीन मोड़दार पर्वतीय क्षेत्र, 3. ज्वालामुखी क्षेत्र। इस क्षेत्र में चिली, कैलिफोर्निया, अलास्का, जापान, फिलीपीन्स, न्यूजीलैंड तथा मध्य महासागरीय भागों में भूकंप के विस्तृत क्षेत्र आते हैं।
2. मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-continental Belt)
इस पेटी में विश्व के 21% भूकंप आते हैं। यह पेटी मेक्सिको से शुरू होकर अटलांटिक महासागर, भूमध्य सागर और आल्प्स, काकेशस जैसे नवीन वलित पर्वत श्रेणियों से होती हुई हिमालय पर्वत तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र तक फैली हुई है।
यह पेटी विषुवत रेखा के लगभग समानांतर है। इसमें आने वाले अधिकांश भूकंप संतुलनमूलक तथा भ्रंशमूलक भूकंप हैं। इस क्षेत्र के सबसे प्रमुख भूकंप क्षेत्र इटली, चीन, एशिया माइनर तथा वाल्कर प्रायद्वीप हैं। भारत का भूकंप क्षेत्र इसी पेटी के अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है। भारत में भूकंप मुख्यतः हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में या पर्वत पादीय क्षेत्र तक सीमित है।
भारत का प्रायद्वीपीय भाग स्थिर और दृढ़ स्थल खंड होने के कारण न्यूनतम प्रभावित क्षेत्र के अंतर्गत आता है। हिमालय क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा भूकंप bhukamp प्रभावी क्षेत्र है और यहां पर भारत के सर्वाधिक विध्वंसक भूकंप आते हैं। इसका प्रमुख कारण है कि हिमालय पर्वत की निर्माण प्रक्रिया अभी जारी है तथा अभी भी भारतीय प्लेट यूरेशियाई प्लेट की ओर खिसक रही है।
3. उत्तरी मैदानी क्षेत्र (North Plane Belt)
इस क्षेत्र में सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र का मैदानी क्षेत्र सम्मिलित किया जाता है।
4. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Pensular Belt)
यह क्षेत्र भूगर्भिक दृष्टि से भारत का प्राचीनतम क्षेत्र है और अभी तक इसे एक सुदढ़ तथा भूकंपों की दृष्टि से स्थिर क्षेत्र माना जाता रहा है।
5. मध्य अटलांटिक पेटी (Mid-Atlantic Belt)
इस पेटी का विस्तार मध्य अटलांटिक कटक के सहारे पाया जाता है। इसमें भूमध्यरेखा के समीपवर्ती क्षेत्रों में सर्वाधिक भूकंप आते हैं।
विश्व में भूकंप bhukamp के अन्य क्षेत्र हैं। (i) नील नदी से लेकर संपूर्ण अफ्रीका का पूर्वी भाग, (ii) अदन की खाड़ी से अरब सागर तक का क्षेत्र, (iii) हिन्द महासागरी क्षेत्र।
jwalamukhi : ज्वालामुखी क्या है, ज्वालामुखी के प्रकार, ज्वालामुखी का विश्व वितरण