Environmental Studies

bio diversity : जैव विविधता का अर्थ एवं परिभाषा, जैव विविधता के प्रकार

जैव विविधता अर्थात् “जैव + विविधता” bio diversity

इससे तात्पर्य है कि पृथ्वी पर पाए जाने वाले जैव समुदाय, जिसमें पादप व जन्तु समुदाय सम्मिलित हैं, में पाए जाने वाली विविधता (Variety) व विभिन्नता (Variability)।

हमारा पर्यावरण एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र है जिसमें असंख्य, विभिन्न जीव प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवासों में एक-दूसरे से क्रियात्मक समन्वय बनाते हुए रहती हैं।

पादप व जन्तुओं की विभिन्न जातियाँ पायी जाती है। इनकी संख्या व वितरण जितना अधिक होगा, जैव विविधता उतनी ही अच्छी होगी।

जैव विविधता ही पारिस्थितिकी तंत्र का आधार है तथा इस पर संकट आने से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ जाता है।

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अतः आज पूरे विश्व में जैव विविधता के संरक्षण के हर संभव उपाय किए जा रहे हैं, तभी विश्व के लाखों प्रकार के पादप व जन्तु जातियों का अस्तित्व बना रहेगा।

जैव विविधता की परिभाषा definition of biodiversity :

जैव विविधता bio diversity का तात्पर्य सभी स्थलीय, जलीय, वायवीय जीवित प्राणियों में पायी जाने वाली विविधता (variety) व विभिन्नता (variability) से है।

पर साथ ही इसमें पारिस्थितिकी तंत्र (Ecological systems) व उसके प्रक्रमों को भी सम्मिलित करते हैं जो इन प्राणियों को नियंत्रित करते हैं।

संक्षेप में “जैव विविधता (Biodiversity) पृथ्वी पर व्याप्त सभी जीव स्वरूपों – पादप व जन्तु की (Life forms : Plants + Animals)” जैविक विविधता” होती है जो इन प्राणियों की जाति, आनुवांशिकी व इनके पारिस्थितिकी में पायी जाती है।”

जैव विविधता के प्रकार (Types of Bio-diversity) :

1. आनुवांशिक विविधता (Genetic biodiversity)

2. प्रजातीय विविधता (Species biodiversity)

3. पारिस्थितिकीय विविधता (Eco system biodiversity)

1. आनुवांशिक विविधता :

विभिन्न जातियों के मध्य में जैव विविधता (Diversity within species) इससे तात्पर्य, जातियों या जनसंख्या में पाए जाने वाले जीवों की “जीनीय संरचना” ‘व “आनुवांशिक स्वरूप” में विविधता से है।
(Variation of genes within species)

इससे जाति में कई जीवों के समूह (Population) बन जाते हैं व आनुवांशिकी रूप से एक जाति से अनेक जातियों के जीवों का निर्माण होता है जो आनुवांशिकी विविधता रखते हैं।

ऐसे में समान जीनी संरचना वाले जीव समूह “जाति” बना लेते हैं। यानि जातियों में जीनी आधार पर “आनुवांशिकी विभिन्नता” पायी जाती है जिससे विभिन्न प्रजातियों का जन्म होता है।

2. प्रजातीय विविधता ( Species diversity) :

किन्हीं दो जातियों के बीच में विविधता (Diversity between species) इसका तात्पर्य, किसी विशेष क्षेत्र (Region) में पायी जाने वाली जातियों की विविधता से है।

अर्थात् एक ही विशेष क्षेत्र में रहने के बावजूद भी जातियाँ आपस में भिन्न होती हैं यानि “क्षेत्र विशेष में एक से अधिक प्रकार की जातियाँ पायी जाती हैं।

3. पारिस्थितिकीय विविधता (Eco System Bio-diversity) :

इससे तात्पर्य जीवों में आवास (Habitat) व पारिस्थितिकी प्रक्रमों में विविधता व विभिन्नता से है। आवास (Habitat) या पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) में विविधता होने से जैव विविधता होती है।

इस प्रकार पारिस्थितिकी विविधता, आवास, सम्पूर्ण जैविक समुदाय जो इस आवास में रहता है, तथा पारिस्थितिकी प्रक्रमों को सम्मिलित करता है।

इस विविधता में चूँकि “आवास” में विविधता व विभिन्नता होती है तो जीवों की संख्या, वितरण, प्रकार आदि में भी विविधता पायी जाती है।

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भारत का जैव-भौगोलिक वर्गीकरण (Bio-Geographical Classification of India) :

भारत एक विशाल उपमहाद्वीप है जिसमें मृदा, जलवायु व वनस्पति, जन्तु विविधता का व्यापक प्रसार व भिन्नताएँ मिलती हैं। अत्यधिक विविधता होने के कारण यहाँ पाए जाने वाले जैव जगत् में भी अत्यधिक विभिन्नता यानि “जैव विविधता” bio diversity अत्यधिक है।
भारत 6-30° N अक्षांश के मध्य स्थित है यहाँ अल्पाइन (Alpine) से लेकर भूमध्यरेखीय (Equatorial ) प्रकार की जलवायु व वनस्पति व इन आवासों के अनुसार प्राणी जगत् पाया जाता है।

इस प्रकार की जैव विविधता के प्रादेशिक स्वरूप का दो भागों में अध्ययन किया जाता है :

1. भारत के वानस्पतिक प्रदेश (Phytogeography of India or vegetational regions of India)

2. भारत का प्राणी भौगोलिक क्षेत्र (Zoo-geographical regions of India)

वैज्ञानिकों द्वारा भारत को विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है :

चटर्जी (1962) द्वारा भारत को “वर्तमान” भौगोलिक आधार पर (पाकिस्तान, लंका व बर्मा के अतिरिक्त) सामान्यतः 9 वानस्पतिक क्षेत्रों में बांटा गया है।

यह वर्गीकरण सर्वाधिक मान्य व उपयुक्त है।

चटर्जी के अनुसार भारत के पादप भौगोलिक क्षेत्र (Phyto-geographical regions) निम्न हैं :

1. पश्चिमी हिमालय (The Western Himalayas)

2. पूर्वी हिमालय (The Eastern Himalayas)

3. पश्चिमी मरुस्थल (The Western Desert)

4. गंगा का मैदान (The Gangetic Plains)

5. मलाबार या पश्चिमी तट (Malabar or West Coast )

6. मध्य भारत क्षेत्र (Central Indian Region)

7. दक्षिण का पठार (Deccan Plateau)

8. आसाम (Assam)

9. अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह (Bay Islands of Andaman and Nicobar)

भारत का प्राणी भौगोलिक क्षेत्र :

हमारे देश में जिस प्रकार विभिन्न वानस्पतिक क्षेत्र हैं उसी प्रकार जलवायु व प्राकृतिक आवासों के अनुकूल ही विभिन्न जीव जन्तु भी पाए जाते हैं।

इन जीव जन्तुओं का भौगोलिक वितरण निम्न प्रकार हैं :

प्रेटर के अनुसार भारत का प्राणी भौगोलिक क्षेत्र : पेटर ने 1934 में भारत को अनेक प्राणी भौगोलिक प्रदेशों में निम्नानुसार विभाजित किया :

(i) लद्दाख का शीत शुष्क प्रदेश :

इस उत्तर – पश्चिमी शुष्क पर्वतीय क्षेत्र में शीत जलवायु तथा असमान धरातलीय दशाओं के कारण मृग, याक, गुरल, हैंगल, जंगली बकरा आदि प्रमुख जीव मिलते हैं।

(ii) हिमालय प्रदेश का वनाच्छादित निचला भाग :

यह क्षेत्र वन्य जीव जन्तुओं के लिए महत्त्वपूर्ण है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल के निचले पर्वतीय वनाच्छादित क्षेत्रों दून, शिवालिक, भाबर आदि क्षेत्रों में चीता, सांभर, शेर, भरल, गुरल, बारहसिंघा, चीतल आदि जीव पाये जाते हैं।

(iii) हिमालय पर्वत का वृक्ष रेखा से ऊपर का भाग :

इस क्षेत्र में अत्यधिक शीतल जलवायु होने के कारण कस्तूरी मृग, मोनाल पक्षी, हिम तेंदुआ, भालू आदि पाये जाते हैं।

(iv) नीलगिरि प्रदेश :

नीलगिरि प्रदेश पर्वतीय भाग होने के उपरान्त भी दक्षिण में स्थित होने के कारण यहाँ उष्ण आर्द्र जलवायु पायी जाती है इसलिए यहाँ उष्ण कटिबन्धीय वन्य जीव पाये जाते हैं। यहाँ विभिन्न प्रकार के वन्य जीव एवं पक्षी पाये जाते हैं।

(v) प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश :

प्रायद्वीपीय पठार का दक्षिणी-पश्चिमी भाग अत्यधिक वनाच्छादित होने के कारण यहाँ जीवों के लिये अनुकूल वातावरण उपलब्ध है। यहाँ पाये। जाने वाले वन्य जीवों में लंगूर, हाथी, शेर, चीता, हिरण, काखड़ आदि मुख्य हैं।

(vi) मालाबार का तटीय प्रदेश :

इस तटवर्ती प्रदेश की जलवायु सम है। इस क्षेत्र के अन्तर्गत तटवर्ती भाग तथा पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ आती हैं। इस क्षेत्र में विशेष जाति का लंगूर, शेर, हिरण, बन्दर, हाथी तथा नेवला आदि पाये जाते हैं।

(vii) उत्तरी मैदानी प्रदेश :

इस प्रदेश में जहाँ कहीं वनाच्छादित भाग शेष रह गया है. वहाँ हाथी, शेर, चीता, तेंदुआ, नील गाय, भेड़िया, चीतल आदि पाये जाते हैं।

(viii) राजस्थान का मरुस्थलीय प्रदेश :

राजस्थान राज्य के शुष्क तथा अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में शुष्क दशाओं के कारण चीतल, हिरण तथा अन्य वन्य जीव पाये जाते हैं।

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