अम्लीय वर्षा क्या है और कैसे होती है?, अम्लीय वर्षा के प्रभाव : Acid Rain
अम्लीय वर्षा (Acid Rain) वर्षा, शुद्ध जल का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से जल के अन्य स्रोतों की तरह यह भी प्रदूषित होता जा रहा है। वर्षा का जल अत्यधिक वायु प्रदूषण के कारण प्रदूषित होता जा रहा है। बढ़ते औद्योगिकरण के कारण अम्लीय वर्षा होने लगी है। अम्लीय वर्षा के कारण न्यूयार्क की 200 झीले सूख गई है। इनका परितन्त्र पूरा बिगड़ गया तथा स्वीडन में लगभग 5,000 झीलें जलीय जीवों (मछलियों) रहित हो गई।
अम्लीय वर्षा acid rain के बारे में सर्वप्रथम राबर्ट एंगस स्मिथ (Robert Angus Smith) ने 1872 में बताया था। मूलतः अम्लीय वर्षा का अर्थ “वर्षा जल में अम्ल की अधिकता” से है। अम्लीय वर्षा मुख्यतः H,SO, तथा HNO, की अम्लीयता का ही परिणाम है। अम्लीय वर्षा में इन दोनों का अनुपात परिवर्तित हो सकता है। अम्लीय वर्षा में प्रमुख योगदान H,SO, (60-70%) तथा HNO, (30-40%) होता है, इनके अतिरिक्त HCI भी अम्लीय वर्षा acid rain में योगदान देता है। वर्षा जल में इनकी उपस्थिति उत्सर्जित नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड (SO2. NO2. NO) इत्यादि की आपेक्षिक मात्रा पर निर्भर करती है।
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अम्लीय वर्षा acid rain के कारण :
(i) हमारे वातावरण में उपस्थित अम्लीय कारक मानव की ही देन है। औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से काफी अधिक मात्रा में सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड उत्सर्जित किए जाते हैं।
(ii) ये सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड, वायु की नमी से क्रिया करके सल्फ्यूरिक और नाइट्रिक अम्ल बनाते हैं, जो कि अम्लीय वर्षा के रूप में गिरते हैं।
(iii) जीवाश्मीय ईंधन (कोयला) को विद्युत उत्पादन के लिए जलाते हैं, जिनसे सर्वाधिक मात्रा में सल्फर डाई ऑक्साइड SO, (60-70%) वायुमण्डल पहुँचती है। में
(iv) सल्फाइड युक्त अयस्कों विशेषतः लेड़, जिंक, कॉपर के गलन के दौरान भी वायुमण्डल में सल्फर डाई ऑक्साइड पहुँचती है।
(v) नाइट्रोजन ऑक्साइड का प्रमुख स्रोत स्वचालित वाहनों से निकलने वाला धुंआ होता है।
(vi) वायुमण्डल में ऑक्साइड काफी लम्बे समय तक रहते हैं तथा अन्य कारकों की उपस्थिति में अधिक हानिकारक पदार्थ H,SO, व HNO, बनाते हैं जो वर्षा के जल में घुल कर वर्षा के जल को अम्लीय बना देते हैं। अम्लीय वर्षा से वर्तमान में ब्रिटेन सर्वाधिक प्रभावित हो रहा है। वहाँ पर सर्वाधिक अम्लीय वर्षा दर्ज की गई है।
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अम्लीय वर्षा के प्रभाव (Effects of Acid Rain):
अम्लीय वर्षा जीवों, पादपों, -अन्य पदार्थों के सम्पर्क में आने पर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष प्रभाव डालती है। अम्लीय वर्षा के प्रत्यक्ष प्रभाव का निर्धारण वायु में उपस्थित प्रदूषकों की सान्द्रता द्वारा किया जा सकता है।
अम्लीय कारकों के प्रभाव को दो भागों में बांटा जा सकता है :
(i) सूखे अम्लीय कारक प्रभाव (Dry Deposition Effects)
(ii) गीले अम्लीय कारक प्रभाव (Wet Deposition Effects)
(i) सूखे अम्लीय कारक प्रभाव (Dry Deposition Effects) : यह पर्यावरण पर कई प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है, यह इमारतों, चूना पत्थर, संगमरमर, स्टील, निकल और दूसरे धातु पर प्रतिकूल असर डालता है तथा इसके कारण लाखों-करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। इसके कारण वनस्पति नष्ट हो जाती है, यह पत्तियों के उत्तकों (Tissues) को पर्णहरितहीन कर देते हैं ।
इसे सूखा अम्लीय कारक इसलिए कहते हैं, क्योंकि यह वायु में उपस्थित H,SO, व HNO3 कणों के रूप में ही प्रभावित करते हैं। यह जल में घुलित अवस्था में नहीं होते हैं।
(ii) गीले अम्लीय कारक प्रभाव (Wet Deposition Effects) : जब H,SO व HNO, वर्षा जल में घुल कर वर्षा के रूप में गिरते हैं, तो इसे गीला अम्लीय कारक प्रभाव कहते हैं।
यह तालाबों, झीलों, नदियों की अम्लीयता को बढ़ा देता है। यह जलीय पारिस्थितिक तंत्र के साथ-साथ थलीय पारितन्त्र को भी प्रभावित करता है। इससे भूमिगत जल भी प्रदूषित हो जाता है।
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जलीय जीवन पर अम्लीय वर्षा का प्रभाव :
अम्लीय वर्षा acid rain के कारण कई जटिल समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं तथा इनके प्रभाव काफी लम्बे समय तक रहते हैं। खाद्य श्रृंखला में जातियों की कमी होने लगती है, जल की अम्लीयता बढ़ने के कारण जलीय वनस्पति तथा जीवों की संख्या में निरन्तर कमी होने लगती है। स्वीडन की कई झीलों में मछलियाँ मर गई, ये ही झीलें उनकी कब्रगाह बन गई हैं। कई झीलों का pH मान 3 से भी नीचे चला गया है।
थलीय पारितन्त्र पर अम्लीय वर्षा का प्रभाव :
1958 में यूरोप में हुई अम्लीय वर्षा में pH का मान 5 था तथा 1962 में नीदरलैण्ड में pH का मान 4.5 था । इस अम्लीय वर्षा ने पादपों की पत्तियों तथा जड़ों को काफी नुकसान पहुँचाया तथा उन्हें नष्ट कर दिया। इससे वनों की वृद्धि अवरुद्ध हो गई।
अम्लीय वर्षा उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप में पहले से ही विकराल समस्या थी। यहाँ अम्लीय वर्षा के कारण फसलों, वनों का काफी नुकसान हुआ। कृषि उत्पादों में कमी आ गयी। मृदा की अम्लीयता बढ़ गई। अम्लीय वर्षा के कारण वनस्पतियों की प्रकाश संश्लेषण की क्रियाविधि भी प्रभावित होती है जिससे कई रोगों की संवेदनशीलता में बढ़ोतरी हुई। अम्लीय वर्षा के कारण मृदा में पाए जाने वाले कई लाभकारी जीवाणु भी मर गए, जिससे मृदा की उपजाऊ क्षमता में कमी आ गई। अम्लीय वर्षा के कारण कई कीट पतंगों, पक्षियों को अपने जीवन से हाथ धोना पडा ।
इमारतों पर अम्लीय वर्षा का प्रभाव :
अम्लीय वर्षा के कारण इमारतों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है । इनमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री चूना पत्थर, संगमरमर, स्टील, लकड़ी इत्यादि में अम्ल के कारण खण्डन शुरू होने लगता है तथा वे कमजोर होने लगती हैं। उनका आकार विकृत हो जाता है तथा वे नष्ट हो जाती हैं। चूना पत्थर पर अम्लीय वर्षा के प्रभाव को निम्न अभिक्रिया द्वारा दर्शाया जा सकता है : CaCo3 + H,SO, CaSO4 + H,O + CO,
संगमरमर पर अम्लीय वर्षा के प्रभाव को “पत्थर लकवा” (Stone leprosy) कहते हैं। कई स्मारक, मूर्तियाँ (Statue) अम्लीय वर्षा के कारण नष्ट हो रहे हैं।
मानव पर अम्लीय वर्षा का प्रभाव :
यह जीव जन्तुओं के लिए भी काफी हानिकारक है। अम्लता मानव के न्यूरोलोजिकल रोग द्वारा मनुष्य के तंत्रिका तंत्र तथा श्वसन तंत्र को नष्ट कर देती है क्योंकि अम्ल काफी घातक होता है। अम्लीय वर्षा के कारण मनुष्य में त्वचीय (चर्म) रोग उत्पन्न हो जाते हैं। फसलों, इमारतों या अन्य सामानों के नष्ट होने से मनुष्य को लाखों का नुकसान होता है। अतः अम्लीय वर्षा आज के विश्व की प्रमुख समस्या है।
विश्व के अन्य देशों के समान भारत में अभी इसका प्रभाव बहुत अधिक नहीं है। (शायद सर्वे की कमी रही हो ) लेकिन बढ़ते उद्योगों के समूह से निश्चित ही यह खतरा बहुत दूर नहीं है। हमें अपने देश की उन उद्योग इकाइयों को नियंत्रित करना ही चाहिए, जो अम्लीय वर्षा का कारण बन सकती है, बल्कि अन्य देशों से पड़ सकने वाले कुप्रभावों से बचने के लिए भी कुछ उपाय सोचने होंगे।