Environmental Studies

save water : जल का बचाव, पानी बचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

जल का बचाव (save water) : जल प्रकृति द्वारा विरासत में मिला वह संसाधन है जो ब्रह्माण्ड में सृष्टि को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण ही नहीं बल्कि एक आवश्यक घटक की भूमिका भी निभाता है। जल है तो जहान है,” इसके विपरीत जल नहीं तो कुछ भी नहीं। वस्तुतः जल ही जीवन है।

जितने भी जीवधारी (प्राणी व पौधे) हैं उनकी संरचना में पानी का एक प्रमुख भाग है। यही नहीं बल्कि उनकी सम्पूर्ण क्रियाओं में और उनके स्वयं के रखरखाव में भी पानी का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। इसी कारण पानी की कमी जीवों को सहन नहीं हो पाती और जल की कमी से उनकी मृत्यु तक हो जाती है।

जल का बचाव हेतु सुझाव

जल की उपलब्धता उसके उपयोग के आधार पर आवश्यकता कतिपय प्रकार से जल का अभाव अथवा उसके दुरुपयोग को देखते हुए जल के सही उपयोग हेतु कुछ सुझाव यहाँ दिए जा रहे हैं :

1. जल अत्यन्त सीमित है उसको कल के लिए बचाना चाहिए। जल का आवश्यकतानुसार उचित एवं बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग करना चाहिए।

 uses of water : पानी का उपयोग, पानी का सही उपयोग के लिए सुझाव

2. जल का उचित प्रकार वितरण :

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि विश्व में जल की उपलब्धता समान नहीं है अर्थात् कुछ क्षेत्रों में जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तथा कुछ क्षेत्रों में जल अपर्याप्त मात्रा में ही है। इसलिए जल का उचित वितरण अतिआवश्यक है। जल का वितरण करते समय विशेष सावधानियाँ रखनी चाहिए ताकि जल बाह्य कारकों द्वारा प्रदूषि नहीं हो तथा व्यर्थ बहकर उसका ह्रास न हो। जल के वितरण के दौरान निम्न सावधानियों द्वारा जल संरक्षण सम्भव है :

(i) जहाँ तक सम्भव हो, जल वितरण बन्द पाइपों द्वारा किया जाना चाहिए, ताकि उनमें बाहरी कारकों के द्वारा प्रदूषण न हो तथा जल भूमि द्वारा अवशोषित न हो।

(ii) जल संचय save water हेतु जहाँ जलाशयों का निर्माण किया जाए वह यदि सीमित हो तो उसे पक्का बना दिया जाए एवं वृहत् हो तो चयन इस प्रकार किया जाए कि चट्टानें

सरन्ध्र न हों।

(iii) नहरें और वितरिकाओं को पक्का बनाकर भूमि द्वारा सोखे जाने वाले जल को बचाया save water जा सकता है।

(iv) खेतों में बूँद या बौछार सिंचाई द्वारा जल को बचाया ( save water ) जा सकता है तथा उसका अधिकतम उपयोग हो सकता है।

(v) जल के टैंकों को जहाँ तक सम्भव हो ढकने की व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे वाष्पीकरण से होने वाली जल की हानि नहीं होगी, तथा जल भी शुद्ध रहेगा।

3. जल का विवेकपूर्ण उपयोग :

जल के विवेकपूर्ण उपयोग द्वारा भी जल का संरक्षण सम्भव है

(i) जल के दुरुपयोग को रोकें। घर के रिसते नल, समय रहते ठीक हों तो काफी पानी बचाया जा सकता है।

(ii) जल की बात को व्यक्तिगत विषय न समझें। इसमें स्वयं का परिवार ही नहीं बल्कि पूरे समाज और देश का हित जुडा हुआ है। गाँवों-कस्बों, मोहल्लों इत्यादि में शक्तिशाली समिति गठित करनी चाहिए तथा जन-साधारण को जल की समस्याओं और उसके सम्भावित निदानों से अवगत कराना चाहिए ।

Importance of water || जल का महत्व,जल की उपलब्धता

4. वनों की कटाई पर नियंत्रण :

वन प्रकृति में जहाँ एक तरफ जल का अत्यधिक उपयोग करते हैं, वहीं भूमिगत जल को वाष्पोत्सर्जन के रूप में वायुमण्डल में छोड़कर जल की हानि का कार्य करते हैं, वहीं जलीय चक्र को बनाये रखने में उपयोगी भूमिका निभाते हैं। वनस्पति वायुमण्डल में नमी बनाए रखती है, तापमान में वृद्धि को रोकती है, वर्षा में सहायक होती है। निरन्तर वनों के विनाश से सूखा पड़ता है। अतः वनों की कटाई को रोक कर हम जलीय चक्र को सन्तुलित रख सकते हैं, अतः वनों की कटाई को रोकना, जल संरक्षण के लिए अति आवश्यक है

5. जल प्रदूषण से बचाव :

आज जल की कमी का प्रमुख कारण ही प्रदूषित जल है। जल की मात्रा पर्याप्त है परन्तु उपयोग करने लायक शुद्ध जल की कमी है। अतः शुद्ध जल उपलब्ध हो यह अति-आवश्यक है। जल आज इतना प्रदूषित हो गया है कि मानव के साथ-साथ वनस्पति व अन्य जीव-जन्तुओं के लिए भी घातक हो गया है। जल प्रदूषण को रोकने के लिए कई कानून भी बनाए गए हैं। जल प्रदूषण को रोकने के लिए भौतिक-रासायनिक शोधन (Physic-chemical purification technologies) विधियों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, जल अपघटन (Hydrolysis), विद्युत अपघटन (Electrolysis), आयन-विनिमय (Ion exchange), अवशोषण (Absorption), स्कंदन (Coagulation), क्लोरीनीकरण (Chlorination), छनन (Filtration), ओजोनीकरण (Ozonisation) इत्यादि । इसके अतिरिक्त जैविक शोधन विधि (Biological purification method) द्वारा भी जल को शुद्ध करना सम्भव है, इसके अन्तर्गत सूक्ष्म जीवों का उपयोग कर जल में उपस्थित जटिल कार्बनिक पदार्थों का अपघटन कराया जाता है, जिससे जल में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा समाप्त हो जाती है तथा जल शुद्ध हो जाता है।

इन सब विधियों के अतिरिक्त एक अन्य उपचार अति महत्त्वपूर्ण तथा कम खर्चीला है। इसके अन्तर्गत जन सामान्य जागरुक होकर जल को प्रदूषित ही न करें। क्योंकि “उपचार से रोकथाम भली” (Prevention is better than cure.)

6. भूमिगत जल का विवेकपूर्ण उपयोग :

भूमिगत जल, जल आपूर्ति का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, जिसका उचित उपयोग एवं संरक्षण आवश्यक है। विशेष रूप से शुष्क तथा अर्द्ध- है अनेक देशों में इसका प्रयोग हानिकारक होता जा रहा है क्योंकि भूमिगत जल भी प्रदूषित शुष्क प्रदेशों में जहाँ वर्षा नाम-मात्र की होती है वहीं भूमिगत जल पर ही जीवन निर्भर रहता होने लग गया है। राजस्थान में भी कई क्षेत्रों में भूमिगत जल में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ गई है। जिससे फ्लोरोसिस रोग हो जाता है।

भूमिगत जल एक सीमित जल राशि है, इसका अत्यधिक उपयोग करने से भूमिगत जल स्तर निरन्तर कम होता जा रहा है। जिससे क्षेत्र की वनस्पति भी जल के अभाव में समाप्त हो रही है अतः भूमिगत जल का उपयोग सोच-विचार कर सन्तुलित रूप से करना चाहिए।

7. अपशिष्ट जल को शुद्ध करना :

अपशिष्ट एवं अनुपयोगी जल का शोधन कर उसे पुनः उपयोग हेतु शुद्ध बनाकर जल की कमी को कुछ हद तक दूर किया जा सकता है। यह अत्यन्त खर्चीला तरीका है। अतः इसके द्वारा जल को केवल इतना ही शुद्ध करते हैं जो कि वनस्पति व अन्य जीवों के उपयोग हेतु अहानिकारक हो, जबकि यह मनुष्य के लिए उपयोगी नहीं होता है।

8. अन्य विधियाँ :

(i) घरों, खाली स्थानों, रेल की पटरियों के दोनों ओर, नदियों के किनारे वृक्षों को लगाना चाहिए।

(ii) भारत जैसे देश में परम्परागत प्रणाली, जिसमें टांके में वर्षा जल को इकट्ठा कर वर्ष भर उपयोग में लाने की व्यवस्था है। इन प्रणालियों को उपयोग में लावें।

(iii) वर्षा का जल यूँ ही बह कर समुद्र में मिल जाता है तथा अनुपयोगी हो जाता है। इसे संग्रहीत करं भूमिगत जल में डालने से भूमिगत जल स्तर ऊँचा होगा तथा वर्षा का जल उपयोग में लाया जा सकेगा। इस विधि को ही “वर्षा जल उपयोग विधि” (Rain water harvesting) कहते हैं।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि जल संरक्षण save water आज ही महत्तम आवश्यकता है। भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए जल उपलब्ध ही नहीं रहेगा। अतः जल के दुरुपयोग को रोक कर उसका विवेकपूर्ण उपयोग कर, भविष्य में जल की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सकता है।

https://hi.wikipedia.org

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