Environmental Studies

Importance of water || जल का महत्व,जल की उपलब्धता

जल का महत्व Importance of water जल प्रकृति से विरासत में मिला वह संसाधन है जो ब्रह्मांड में सृष्टि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि एक आवश्यक घटक की भूमिका निभाता है। जल एक जीवनदायी तत्व तथा कभी न समाप्त होने वाला संसाधन है।

गोयके ने जल के महत्व Importance of water के बारे में लिखा है कि “प्रत्येक वस्तु जल से उत्पन्न हुई है और प्रत्येक वस्तु जल के द्वारा ही जीवित है।” (Everything is originated from water and everything is sustained by water) पृथ्वी का लगभग 70% भाग जल के रूप में है। इसका 97.3% भाग महासागरों में स्थित है। पृथ्वी पर लगभग 3% जल मीठा है जिसमें से 2 प्रतिशत भाग बर्फ के रूप में है। मीठे जल का 1.3 भाग भूतल पर है और 0.65 भाग भूमिगत जल के रूप में है।

जितने भी जीवधारी है, उनकी संरचना में पानी का एक बड़ा भाग है। मनुष्य के स्वयं की बनावट में 65% पानी है। यही नहीं बल्कि उसकी सभी क्रियाओं में और उसके स्वयं के रखरखाव में भी पानी का महत्वपूर्ण Importance of water योगदान होता है।यहां हड्डियों के बीच के जोड़ों को चिकना बनाए रखता है, ताकि वह आपस में रगड़ कर एक-दूसरे को हानि न पहुंचाएं। उत्तक और पेशियों को घेर कर उन्हें आपस में चिपकाने से रोकता है।

शरीर के अत्यंत महत्वपूर्ण अवयव, जैसे- हृदय, मस्तिष्क आदि को पानी से बने द्रव का एक कवच संरक्षण प्रदान करता है। यही नहीं बल्कि शरीर के अंदर यह महत्वपूर्ण संचार माध्यम भी है तथा शरीर के विभिन्न हिस्सों के बीच संपर्क बनाए रखता है। यही पोषक तत्व, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड का वाहक है और शरीर के मलिन पदार्थों को पसीना, मल और मूत्र के जरिये शरीर से बाहर ले जाता है। इसी कारण पानी की कमी मनुष्य को सहन नहीं हो पाती और अधिक जल की कमी से उसकी मृत्यु तक हो जाती है।

पेड़ों और वनस्पति में हरियाली इसी जल के कारण है। फल-फूल, सब्जी और कोई भी प्रकृति में उत्पन्न होने वाली वस्तु जल के बिना हो सके यह संभव नहीं। इसके बाद उसकी वृद्धि और उपयोगिता भी केवल जल के कारण है। मनुष्य को पानी की नितांत आवश्यकता है। वृक्ष में 40% तक पानी होता है। कुछ जलीय पौधों में तो जल की मात्रा 90% तक हो सकती है। जैलीफिश (समुद्री जानवर) में 95%, अंडे में 75% और ककड़ी में 95% जल की मात्रा होती है।

हम प्यास लगने पर पानी पीते हैं, भोजन पकाने में जल का उपयोग करते हैं, खेती करते हैं, नहाते हैं, कपड़े धोते हैं, कारखानों और उद्योगों को चलाते हैं और तो और अब बिजली का उत्पादन भी पानी से करने लगे हैं। सभी जगह हर समय ही जल का उपयोग आवश्यक होता है। पशु-पक्षी भी तो बिना पानी कैसे जीवित रह सकते हैं? सच तो यह है कि जल सारे संसार और उसकी विभिन्न गतिविधियों का आधार है।

जल की संरचना (constitution of water) :

जल एक योगिक है जिसका एक अणु हाइड्रोजन के दो परमाणु तथा ऑक्सीजन के एक परमाणु के मिलने से बना है। योगिक होने के कारण इसकी संगठनात्मक रचना में कोई अंतर होने का प्रश्न ही नहीं है लेकिन, चूंकी यह एक अच्छा विलायक है अतः स्थान, वातावरण तथा अनेक क्रिया-प्रकिया में कई चीजें इसमें मिल जाती हैं और यह अशुद्ध हो जाता है। अतः विशुद्ध जल का सामान्यतया मिलना बहुत कठिन है। प्रयोगशालाओं के उपयोग हेतु अवश्य आसवन क्रिया से शुद्ध जल प्राप्त किया जाता है।

जल के गुणधर्म (properties of water) :

जल शुद्ध रंगहीन, स्वादहीन, गंदहीन, हानिकारक रसायनों और जीवाणुओं से मुक्त तथा पारदर्शी होता है। यह हल्का होता है। यद्यपि इसका घनत्व आदर्श स्थिति 4 डिग्री सेल्सियस पर 1.0 (1 ग्राम प्रति घन सेमी) ही होता है पर तापमान कम होने के साथ-साथ घनत्व कम होता जाता है। स्पष्ट है तभी बर्फ के रूप में जल पानी की सतह पर तैरने लगता है। इसका जमाव बिंदु 0 डिग्री सेल्सियस तथा क्वथनांक 100 डिग्री सेल्सियस होता है।

जल के रूप (forms of water) :

जल ठोस, द्रव, तथा गैसीय तीनों अवस्थाओं में स्वतंत्र रूप से स्थिर रह सकता है। ठोस के रूप में बर्फ, द्रव के रूप में सामान्य जल तथा गैसीय रूप में भाप बन जाता है। इन तीनों रूपों में केवल अवस्था में परिवर्तन होता है, गुणधर्म में कोई अंतर नहीं होता है।

जल की उपलब्धता (Availability of water) :

भूमंडल में जल के अपार भंडार है। इसकी विशालता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यह वायुमंडल और स्थलमंडल के मध्य एक आवरण की तरह पृथ्वी को सब और से घेरे हुए है। यह पूरी पृथ्वी का 7/10 भाग है और आयतन में लगभग 1460 मिलियन घन किलोमीटर (एक अरब 46 करोड़ घन किमी) है। इस पानी के पूरे आवरण को जल मंडल कहते हैं। पृथ्वी की सतह का लगभग तीन-चौथाई तथा पूरे पानी की लगभग 94 प्रतिशत मात्रा महासागरों तथा समुद्रों में सिमटी है, जबकि शेष अलग-अलग रूप से अलग-अलग स्थानों पर है।

जल

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