Environmental Studies

जैव विविधता पर संकट (Threats to Biodiversity)

जैव विविधता पर संकट Threats to Biodiversity मानव जीवन में वनस्पति व जन्तु जगत् का सदा से ही काफी महत्त्व रहा है।

मानव प्राचीन काल से ही अपने जीवनयापन के लिए व आवश्यक सुविधाओं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, परिवहन व अन्य आवश्यकताओं के लिए पूर्णतः जीव जगत् पर निर्भर रहा है।

परन्तु विकास के साथ ही मानव ने पारिस्थितिकी नियमों व संबंधों की अनदेखी करके प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग किया है। विकास के इस क्रम में अनेक पादप व जन्तुओं की प्रजातियों पर संकट आ गया व अनेकों विलुप्त हो गई।

इस प्रकार “जैव विविधता” पर संकट Threats to Biodiversity आ गया है। जैव विविधता की क्षति के निम्न कारण हैं :

(1) प्राकृतिक समस्याएँ

(2) मानव जनित समस्याएँ

(अ) प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना :

(i) मानव की विकास की गतिविधियाँ

(ii) वृक्षों की कटाई

(ब) वन्य जीवों का अंधाधुंध शिकार

(स) विदेशी नवीन जातियों का समावेश करना

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(1) प्राकृतिक समस्याएँ :

आंधी, तूफान, बाढ़, हिमपात, आग, भूकम्प, ज्वालामुखी, सूखा आदि ऐसे प्राकृतिक कारण हैं जो जैव विविधता को नष्ट करने में प्रमुख है। ये जैव विविधता को काफी बड़े स्तर पर प्रतिकूल रूप से नष्ट करते हैं।

बाढ़, आंधी, तूफान से वनस्पतियाँ व जन्तुओं की कई प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं। प्रचण्ड वायु प्रवाह से घने जंगलों में रगड़ से आग लग जाती है। तूफान व बाढ़ से कई छोटे जीव जन्तु खत्म हो जाते हैं।

भूकम्प, ज्वालामुखी, बाढ़, सूखा आदि से एक बड़े भू-भाग का सम्पूर्ण जीव जगत् नष्ट हो जाता है। कई प्रजातियाँ खत्म हो जाती हैं।

इन विनाशकारी प्रभावों के बाद अगर मानव का किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं हो तो इन स्थानों पर पर्यावरण संतुलन पुनः स्थापित होना प्रारंभ हो जाता है ।

(2) मानव जनित समस्याएँ :

जैव विविधता के हास में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका मानव जनित कारणों की है। मानव के विकास की गतिविधियों व आवश्यकताओं की पूर्ति के तहत् जैव विविधता का निरंतर ह्रास (Threats to Biodiversity) हो रहा है।

(अ) आवास का ह्रास होना (Natural Habitant Loss) :

जन्तुओं व पादपों के प्राकृतिक आवास, मानव के हस्तक्षेप व उसके विकास की गतिविधियों (खनन, हाइवे निर्माण, पुल निर्माण, आवास निर्माण आदि) से निरंतर नष्ट होते जा रहे हैं।

इन कारणों से इनके प्राकृतिक आवासों व पारिस्थितिकी तंत्र में भौतिक, जैविक व अन्य कई प्रकार के बदलाव आते हैं, जिससे इन आवासों में रहने वाली जीवों की प्रजातियों को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए कई नवीन अनुकूलन (Adaptation) अपनाने पड़ते हैं। जिससे इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है व इनका जीवन चक्र प्रभावित होता है।

इसी प्रकार जो जातियाँ ऐसा कोई अनुकूलन अपना नहीं पाती है वे नष्ट हो जाती हैं। उदाहरण के लिए मानव ने नदियों पर बड़े-बड़े बांध बनाए हैं, जिससे एक विशाल क्षेत्र जलमग्न हो जाता है तथा उस क्षेत्र की जैव विविधता पर संकट (Threats to Biodiversity) आ जाता है।

टिहरी बाँध, साइलेंट वैली प्रोजेक्ट, नर्मदा बाँध, अलमाटी बाँधों से एक विशाल क्षेत्र जलमग्न हो गया है व वहाँ पर निवास करने वाली कई प्रजातियाँ नष्ट हो गई हैं अतः इन प्रोजेक्ट्स का पर्यावरणविदों द्वारा भारी विरोध किया जा रहा है।

इस प्रकार मानव ने अनेक विकास परियोजनाओं को बिना उनके दूरगामी पारिस्थितिकी दुष्परिणाम जाने केवल अपने लाभ के लिए लागू किया है, जिससे जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

उदाहरण के लिए हमारे राष्ट्र में पश्चिमी घाट जो जैव विविधता का घनी क्षेत्र माना जाता है, में प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से कई प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर हैं। यहाँ करीब 370 तितलियों की प्रजातियों में से करीब 70 प्रजातियाँ लुप्त होने की कगार पर है।

इस प्रकार बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वनों को काट कर कृषि भूमि बनाई जा रही है। मकानों, सड़कों, रेल मार्गों का निर्माण व शुद्ध व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जीवों के प्राकृतिक आवासों को नष्ट किया जा रहा है।

शहरीकरण व खनन, औद्योगिक विकास आदि से कई प्रजातियाँ नष्ट हो रही हैं। इसके परिणामस्वरूप “आवास के हास” से इनमें रहने वाले जन्तु व पादप प्रजातियाँ भी खत्म हो रही है। अधिकांशतः प्रजातियाँ तो वर्तमान में विलुप्त भी हो चुकी हैं।

इस प्रकार जीवों के प्राकृतिक आवास में हास होने के उपरोक्त दोनों कारण:

(i) मानव के विकास की गतिविधियाँ एवं

(ii) वृक्षों की कटाई प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके परिणामस्वरूप जैव विविधता को (Threats to Biodiversity) भारी खतरा है।

(ब) वन्य जीवों का अंधाधुध शिकार (Hunting) :

प्राचीन काल से ही मानव अपने भोजन, कपड़े, मनोरंजन व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जन्तुओं का शिकार करता रहा है।

मानव इन वन्य जन्तुओं के शिकार द्वारा इनसे चमड़ा, सींग, फर, मांस, दवाईयाँ व अन्य सौन्दर्य प्रसाधन की सामग्री आदि प्राप्त करता है।

उदाहरण के लिए अफ्रीका में पिछले 25 वर्षों में काले गैंडे की लगभग 95 प्रतिशत जनसंख्या को उनके सींग (Hom) प्राप्त करने के लिए शिकार द्वारा खत्म कर दिया गया।

आज विश्व बाजार में गैंडे के सींग की कीमत लगभग 15,000 डालर है। इसी प्रकार अफ्रीका में हाथियों को उनके बहुमूल्य हाथी दाँत प्राप्त करने के लिए मारा जाता रहा है।

इस प्रकार इस अंधाधुंध शिकार के कारण गैंडे व हाथी की प्रजाति संकटग्रस्त है ।

हमारे भारतवर्ष में भी मनोरंजन व उत्पाद प्राप्त करने के उद्देश्य से गैंडा (सींग के लिए), बाघ (चमड़ा व हड्डियाँ), हाथी (हाथी दाँत), भालू (फर) आदि का शिकार किया जाता रहा है।

सबसे ज्यादा चर्चित व्यावसायिक शिकार ‘व्हेल’ (Whale) का किया जाता रहा है। व्हेल की हड्डी जिसे ‘बलीन’ (Baleen) कहा जाता है, का उपयोग कंघी व अन्य उत्पाद बनाने में किया जाता है।

WWE की रिपोर्ट के अनुसार भारत के मरुस्थल में काँटेदार पूंछ वाली छिपकली (Spiny tailed lizard) जिसे यहाँ ‘सांडा’ (Sanda) के नाम से जाना जाता है, आज संकटग्रस्त है।

इसका उपयोग शिकार करके ‘तेल निष्कर्षण’ (Oil extraction) में किया जाता है, यह तेल ‘सांडे का तेल’ कहलाता है।

इस प्रकार शिकार से वर्तमान में कई बहुमूल्य प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं, कुछ संकटग्रस्त हैं।

अतः जैव विविधता के संकट के कारणों में यह कारक भी महत्त्वपूर्ण है।

(स) विदेशी नवीन जातियों का समावेश (Introduction of exotic species) :

जब किसी प्राकृतिक आवास में किसी बाहरी या विदेशी जाति का समावेश किया जाता है, तो वहाँ के पारिस्थितिकी तंत्र में प्रभाव पड़ता है।

उस आवास की मूल जातियों को भोजन व स्थान के लिए उस बाहरी जाति से स्पर्धा करनी पड़ती है।

इसके अतिरिक्त कुछ बाहरी पादप इस प्रकार के होते हैं कि उनकी जड़ों या अन्य भागों से कुछ ऐसे पदार्थों का स्त्रवण होता है जो दूसरी जाति के पौधों के लिए विषैले होते हैं जिससे उस नए पौधे के आस-पास उगने वाले पादप नष्ट होने लगते हैं।

इसी प्रकार भोजन व स्थान की कमी के कारण अनेक प्रजातियाँ अपने उस प्राकृतिक आवास से विलुप्त होने लगती हैं।

उदाहरण के लिए, पैसिफिक व भारतीय क्षेत्र में बकरियों व खरगोशों की संख्या के कारण विभिन्न घास व पादप जातियाँ नष्ट हो गईं।

इसी प्रकार ‘लेन्टाना कैमारा’ (Lantana Camara) जाति को माऊंट आबू सौन्दर्यीकरण के लिए लगाया गया था, लेकिन वर्तमान में इसके अत्यधिक विस्तार के कारण, वहाँ की मूल वनस्पति प्रजातियाँ समाप्त हो गईं।

इस प्रकार उपरोक्त सभी कारणों से जैव विविधता पर संकट आता है।

जैव विविधता

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