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Meaning of Evaluation : मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा

Meaning of Evaluation
Meaning of Evaluation

मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of Evaluation) 

मूल्यांकन का अर्थ ( Meaning of Evaluation) – राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) के अनुसार मूल्यांकन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें तीन महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं- (i) शिक्षण उद्देश्य (ii) अधिगम अनुभव (iii) व्यवहार परिवर्तन। इन तीनों में निकट का सम्बन्ध है । इनको निम्नलिखित रेखाचित्र से प्रदर्शित कर सकते हैं –

छात्र एवं समाज के हित को देखते हुए शिक्षा के द्वारा बालक व्यवहार में जिन परिवर्तनों को लाना चाहते हैं वे शिक्षण उद्देश्य कहलाते हैं। इन शिक्षण उद्देश्यों के अनुकूल शिक्षक विद्यालय में ऐसा वातावरण प्रस्तुत करना चाहता है जो बालक के लिए उपयुक्त अधिगम अनुभव उत्पन्न करने में सहायक होता है। ये अनुभव बालक के ज्ञानात्मक, क्रियात्मक एवं भावात्मक पक्षों से सम्बन्धित होते हैं तथा उसमें तदानुकूल व्यवहार परिवर्तन लाते हैं। व्यवहार परिवर्तन वे साक्षियां हैं जो शिक्षण उद्देश्य के प्राप्तिका संकेत देती हैं तथा जिनके माध्यम से सीखने की अनुभवों की उपयुक्तता का पता चलता है ।

मूल्यांकन के ये तीनों बिन्दु एक दूसरे से सम्बन्धित हैं । अतः जैसे ही शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण हो जाता है, मूल्यांकन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है तथा बालक के व्यवहार में वांछनीय परिवर्तन (Desired change) की प्राप्ति के साथ समाप्त हो जाती है। इस प्रकार मूल्यांकन का वास्तविक लक्ष्य शिक्षा को केन्द्रित बनाना है और तभी शिक्षा में अपेक्षित सुधार लाया जा सकता है।

मूल्यांकन शैक्षिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। मूल्यांकन का शाब्दिक अर्थ होता है मूल्य का अंकन अर्थात मूल्यांकन मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया है जिसके द्वारा उद्देश्यो की प्राप्ति की दिशा में प्रयत्नों की सार्थकता तथा सौमा की प्रभाव की व्याख्या करती है। इस प्रकार मूल्यांकन से शक्ति, लगन तथा उद्देश्य प्राप्ति हेतु किए गये प्रयत्न इत्यादि सभी का मूल्य आंकने का मौका मिलता है। इसी तरह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया हेतु किए जाने वाले प्रयत्नो पर भी लागू होती है। शिक्षण कक्ष तथा विद्यालय के बातावरण द्वारा जो कुछ भी गतिविधियाँ अपनायी जाती है वह किस सीमा तक निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है, इस बात का पता लगाना हीं मूल्यांकन कहलाता है। मूल्यांकन के द्वारा निश्चित शिक्षण अधिगम उददेश्यों के विषय में यह जानने का मौका मिलता है कि शिक्षण अधि गम प्रक्रिया, पाठ्यक्रम शिक्षण विधि तथा शिक्षण अधिगम अनुभव कितना प्रभावी है। अतः मूल्यांकन एक अत्यन्त व्यापक तथा बहुआयामी प्रक्रिया है जिसका संबंध सिर्फ छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि से न होकर उसके संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास से होता है।

मूल्यांकन की परिभाषायें (Definitions of evaluation)

विभिन्न विज्ञानों से मूल्यांकन को विभिन्न प्रकार से परिभाषित करने का प्रयास किया है। विद्वानों में परिभाषाओं की भिन्नता का कारण शिक्षा प्रक्रिया के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित होता है । ये परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

(1). टारगर्सन एवं एडम्स (Tergerson and Adams) के अनुसार – ” मूल्यांकन का अर्थ है किसी वस्तु या प्रक्रिया का मूल्य निश्चित करना । इस प्रकार शैक्षिक मूल्यांकन से तात्पर्य है-शिक्षण प्रक्रिया तथा सीखने की क्रियाओं से उत्पन्न अनुभवों की उपयोगिता के विषय में निर्णय देना ।”

(2). क्विलिन तथा हन्ना ( Quillin and Hanna) के अनुसार – “छात्रों के व्यवहार में शिक्षालय द्वारा किये गये परिवर्तनों के विषय में प्रमाणों को एकत्रित करना एवं उनकी व्याख्या करना ही मूल्यांकन है ।”

(3).जे.डब्ल्यू. राइटस्टोन (J. W. Wrigntstone) के अनुसार- “मूल्यांकन सापेक्षिक रूप से नया प्राविधिक पद है जिसका उपयोग मापन की धारणा को परम्परागत जांचों एवं परीक्षाओं की अपेक्षा अधिक व्यापक रूप में व्यक्त करने के लिए किया गया है । मूल्यांकन में व्यक्तित्व, सम्बन्धी परिवर्तन एवं शैक्षिक कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों पर बल दिया जाता है। इसमें केवल पाठ्यवस्तु की निष्पत्ति ही निहित नहीं रहती वरन् वृत्तियों, वृत्तियों, रुचियों, आदर्शों, सोचने के ढंग, कार्य करने की आदतों तथा वैयक्तिक एवं सामाजिक अनुकूलता भी निहित है।”

(4). सी. ई. बीबी (C.E. Beeby) के अनुसार – “कार्य की दृष्टि से किसी मूल्य के निर्णय की प्रक्रिया को मूल्यांकन कहते हैं जिसमें व्यवस्थित संग्रह और साक्ष्य की व्याख्या होती है।”

(5). एच० एच क्रमर्स तथा एन० एन गैप के अनुसार मूल्यांकन में व्यक्ति या समाज अथवा दोनों की दृष्टि से क्या अच्छा है अथवा क्या जरूरत है का विचार या लक्ष्य निहित रहता है”

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने मूल्यांकन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह एक ऐसी सतत् व व्यवस्थित प्रक्रिया है जिससे पता चलता है कि विशिष्ट शैक्षिक उददेश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई है तथा कक्षा के अन्तर्गत दिए गये अधिगम अनुभव कितना प्रभावशाली सिद्द हुआ है एवं यह शिक्षा के उद्देश्यों को कितना हासिल कर पाएगा।

( 6). डेप्सी की एक पत्रिका के अनुसार – ” मूल्यांकन एक ऐसा पद है जो केवल मापन की व्याख्या नहीं करता बल्कि उसके विस्तृत अर्थ को बतलाता है। मापन केवल निर्देश के परिणामों की संख्यात्मक जाँच के लिए प्रयोग में लाया जाता है जबकि मूल्यांकन छात्रों को प्रगति की जाँच के लिए व्यापक, विस्तृत तथा निरन्तर प्रक्रिया है।

              मूल्यांकन = मापन + मूल्य निर्धारण
                                   ↓              ↓
                               मात्रात्मक    गुणात्मक

अतः मूल्यांकन का अभिप्राय मापन तथा मूल्य निर्धारण से भी है। मूल्यांकन का एक व्यापक परिभाषा वेवे के द्वारा दि गई थी। इसके अनुसार “मूल्यांकन उस साक्ष्य का क्रमबद्ध संग्रह और उनका परिणाम निकालना है जो कि मूल्यों की जाँच की प्रक्रिया द्वारा कुछ करने के लिए प्रेरित करता है। इस परिभाषा की जब परीक्षण करते हैं तो पता चलता है कि इनमें चार तत्व शामिल है:-

(a) साक्ष्यों या अनुभवों को क्रमबद्ध रूप में इकट्ठा करना (अर्थात सूचना एकय करना)

(b) उनके अर्थों एवं व्यख्या यानि (मूल्यांकन प्रक्रिया का विश्लेषण)

(c) मूल्यों संबंधी निर्णय यानि मूल्यांकन प्रक्रिया की दशा एवं दिशा)

(d) क्रियान्वयन की दृष्टि से अर्थात (कार्य के परिणाम उन्मुखी तथा निर्णय उन्मुखी आपामों को ध्यान रखना)

परिणाम उन्मूखी तथा निर्णय उन्मूखी आयामों का ध्यान रखना।
अतः शैक्षिक मूल्यांकन का उद्देश्य शिक्षा में प्रभावी तथा उपयोगी नौतियों तथा कार्यों को शामिल करना है।

अतः उपर्युक्त तथ्यों से यह पता चलता है कि मूल्यांकन सिर्फ परीक्षा नहीं है। व्यवहार में मूल्यांकन का इस्तेमाल छात्रों के उपलब्धि की जाँच के लिए की जाती है परन्तु इसका उपयोग शिक्षण अधिगम में सुधार के लिए भी किया जा सकता है। मूल्यांकन छात्रों के शिक्षण अधिगम का केवल मापन नहीं है। उसका इस्तेमाल छात्रों में उपलब्धि को बढ़ाने के लिए भी किया जाना चाहिए। मूल्यांकन को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अंग मानते हुए, मूल्यांकन के आँकड़े को निदानात्मक साधन के रूप में उपयोग किया जाए ताकि छात्रों के शिक्षण अधिगम को सुधारने के लिए समुचित उपचारात्मक प्रक्रिया अपनायी जा सके ।

उपर्युक्त परिभाषाओं को देखने से निम्न बातों का पता चलता है :-

1. मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है।

2. मूल्यांकन एक व्यापक पद है जिसमे मापन तथा जाँच (Apprisal) दोनों निहित है।

3. मूल्यांकन क्षेत्र व्यापक है इसमें छात्रों के सभी पक्ष जैसे शारीरिक, मानसिक, नैतिक इत्यादि की जाँच की जाती

4. मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बालकों के व्यावहारिक परिवर्तनों की जाँच की जाती है।

5. मूल्यांकन का उददेश्य सिर्फ अध्ययन निस्पत्ति को मापना ही नहीं बल्कि उसको सुधारना भी है। 6. मूल्यांकन की प्रक्रिया द्वारा किसी तथ्य, विचार अथवा घटनाओं के विषय में यह निर्णय लिया जाता है कि यह वांछनीय या उपयोगी है अथवा नहीं।

7. मूल्यांकन के द्वारा गुणात्मक (Qualitative) या मात्रात्मक (Quantitative) दोनों प्रकार का विवरण प्राप्त होता है।

8. मूल्यांकन की विधियाँ कुछ परीक्षणों या परम्परागत परीक्षाओं तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि बहु-आयामी साधनों तथा तकनीकों के प्रयोग हेतु लचीलापन तथा व्यापकता भी प्रदान करती है।

9. मूल्यांकन के द्वारा प्रक्रियाओं में संशोधन (Revision) किये जाते हैं। अतः नवीन संदर्भ में मूल्यांकन की प्रक्रिया को दोहाना आवश्यक है।

10. मूल्यांकन का उददेश्य को प्रप्ति के संदर्भ में शिक्षक, शिक्षार्थी, शिक्षण विधियों तथा शैक्षिक व्यवस्था गुणवत्ता को व्यापक जाँच और मापन किया जाता है।

11. मूल्यांकन, शिक्षण प्रणाली के सुधार में सहायक होता है। शैक्षिक व्यवस्था के सभी अदा (Input), प्रक्रिया (Process) के सभी पक्षो तथा प्रदा (Output) के संदर्भ में मूल्यांकन कर समस्त शिक्षा प्रणाली के सुधार एवं प्रगति में सहायता प्रदान करती है।

मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Evaluation)

मूल्यांकन शिक्षण-अधिगम की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। सभी क्षेत्रों में सरल या जटिल कार्यों का निर्णय करने के लिए कक्षा-कक्ष के शिक्षण एक अति आवश्यक प्रक्रिया है। विद्यालयों में प्रधानाचार्य, शिक्षक और इससे सम्बन्धित कर्मचारी छात्रों के सम्बन्ध में अनेक निर्णय लेते हैं जो छात्रों को आपस में अपने कार्यों में निर्णय लेने में सहायता करते हैं । प्रभावशाली निर्णय लेने के लिए कार्यों का मूल्यांकन आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए सभी समूह के छात्रों को विभिन्न कोटियों या स्तर में विभाजित करने के लिए उनकी उपलब्धियों का मापन और इसकी व्याख्या करनी पड़ती है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए व्यवस्थित मूल्यांकन की योजना बनाना आवश्यक होता है। मूल्यांकन शिक्षकों को अच्छा मूल्यांकन निर्णय लेने में सहायता करता है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार अभिक्रियायें होती हैं जिसमें मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है-

(1). कक्षा-कक्ष के उद्देश्यों को पूरा करना,

(2). छात्रों के अधिगम कठिनाईयों का निदान,

(3). नये अधिगम अनुभवों के लिए तैयारी का निर्धारण,

(4). विशिष्ट क्रियाओं के लिए कक्षा-कक्ष के छात्रों का समूह बनाना,

(5). छात्रों की समस्याओं के संतुलन में सहायता,

(6). छात्रों की प्रगति की रिपोर्ट तैयार करना ।

(7). प्रत्येक छात्र के सबल और निर्बल पक्ष की जानकारी के लिए।

(8). नये कार्यक्रम की प्रमाणीकरण तथा सुविधाओं के अधिकतय उपयोग के लिए।

(9). छात्रों की अभिप्रेरणा के लिए।

(10). शिक्षण अधिगम उददेश्यों के निर्माण तथा जाँच के लिए।

इस सभी क्रियाओं में मूल्यांकन को अपनाकर छात्रों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मूल्यों के निर्धारण हेतु मूल्यांकन के सिद्धान्तों और विधियों को जानना अति आवश्यक है। इस सम्बन्ध में डॉ. एन. आर. शमि का कथन है-”

मूल्यांकन की विशेषताएँ (Characteristics of Evaluation)

मूल्यांकन से संबंधित तथ्यों से पता चलता है कि एक अच्छे मूल्यांकन की क्या-क्या विशेषताएँ होनी चाहिए। क्योंकि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के प्रभाविकता के लिए मूल्यांकन अति आवश्यक है। शिक्षा अधिगम प्रक्रिया के विभिन्न चरणो के बार-बार छात्रों की योग्यताओं तथा उपलब्धियों का मापन एवं मूल्यांकन करना पड़ता है जिसके लिए एक अच्छे मूल्यांकन की आवश्यकता होती है। एक अच्छे मूल्यांकन की निम्नलिखित विशेषतायें होती है।

(1) वैधता (Validity)

वैधता का अर्थ मूल्यांकन की वह मात्रा है जहाँ तक शुद्धता के वह उसी योग्यता, विशेषता या तथ्य का मापन करता है जिसके लिए उसकी रचना की गयी है ।

क्रौनबैक (Cronback) के अनुसार “किसी परीक्षण की वैधता उसकी वह सीमा है जिस सीमा तक वह वही मापता है जिसके लिए उसका निर्माण किया गया है। “

मूल्यांकन की वैधता के निर्धारण करने के लिए किसी कसौटी का चुनाव करना पड़ता है । इसीलिए गुलिकसन (Guliksen) ने वैधता का अर्थ बताते हुए लिखा है- “किसी कसौटी के साथ परीक्षण का सह-सम्बन्ध उसकी वैधता है।” परीक्षण की वैधता विभिन्न प्रकार की हो सकती है-विषय-वस्तु वैधता, तर्क संगत वैधता पूर्वकथन वैधता, समवर्ती वैधता आदि । कोई भी मूल्यांकन तथ्य वैध माना जाता है जब वह विश्वसनीय भी होगा। यदि उसकी विश्वसनीयता शून्य है तो उसे किसी अन्य परीक्षण से सह सम्बन्धित नहीं किया जा सकता ।

(2) विश्वसनीयता (Reliability ) 

विश्वसनीयता परीक्षण का वह गुण है जिसके कारण हम परीक्षण पर विश्वास करते हैं और विश्वास इसलिए करते हैं क्योंकि वह उसी तथ्य का समान से मापन करती है जिसके माप हेतु वह परीक्षण निर्मित हुआ था। इस प्रकार परीक्षण की विश्वसनीयता के कारण परीक्षण उसी गुण या तथ्य या अमान्य का माप संगति के साथ करता है। जिसके माप हेतु परीक्षण का निर्माण किया गया है। अनास्तासी (Anastase) ने विश्वसनीयता के सम्बन्ध में लिखा है-“कि बारबार एक ही या एक जैसा परीक्षण लेने पर फलोकों से संगति (Consistency) का होना ही विश्वसनीयता कहलाता है ।”

यदि एक परीक्षण को कई बार कुछ समय बाद छात्रों के एक ही समूह को दिया जाय तो उनके द्वारा प्राप्त फलांकों में विशेष अन्तर नहीं होना चाहिए। यदि अन्तर अधिक आता है। तो हम कह सकते हैं कि परीक्षण में विश्वसनीयता नहीं है। उदाहरण के लिए यदि एक छात्र प्रथम बार नागरिक शास्त्र की परीक्षा में 80 अंक प्राप्त करता है और एक माह बाद जब दोबारा उसी परीक्षण को दिया जाता है तो उसके फलांक 30. आते हैं। इस प्रकार के परीक्षण को हम विश्वसनीय नहीं कह सकते हैं। यदि दोबारा ली गयी परीक्षा में उस छात्र ने 78 अंक भी प्राप्त किये होते तब हम परीक्षण को विश्वसनीय कह सकते हैं। मूल्यांकन की विश्वसनीयता को ज्ञात करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-

(1) परीक्षण पुनर्परीक्ष (Test retest method)

(2) समान्तर प्रारूप विधि (Parallel form method)

(3) अर्द्ध विच्छेद विधि (Split half method)

(4) तर्कयुक्त समानता विधि (Method of rational equivalence)

(3). व्यावहारिकता (Practicability )

प्रयोग की स्थिति, लिये गये समय, लागत की दृष्टि से मूल्यांकन को वास्तविक, व्यावहारिक और ठीक होना चाहिए। कोई मूल्यांकन आदर्शात्मक हो है सकता है परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह व्यावहारिक हो । इससे छात्रों को प्रोत्साहन नहीं मिलता । उदाहरण के लिए प्रयोगात्मक परीक्षण में सभी छात्रों को विभिन्न प्रयोग देना एक प्रयोग देने की अपेक्षा अच्छा होता है। अनेक प्रयोग देने में उपकरणों के सेट लगाने में असुविधा हो सकती है परन्तु एक. प्रयोग देना व्यावहारिक नहीं होगा।

(4). पक्षपातरहित (Fairness)

सभी छात्रों के लिए मूल्यांकन पक्षपातरहित होना चाहिए। पाठ्यक्रम के उद्देश्यों के आधार पर इसे सम्भव बनाया जा सकता है। मूल्यांकन की स्पष्टता बनाये रखने के लिए छात्रों को यह ज्ञात होना आवश्यक है कि मूल्यांकन किस प्रकार किया जा रहा है। इसलिए छात्रों को मूल्यांकन के विषय में आवश्यक सूचना दे देना चाहिए । उदाहरण के लिए मूल्यांकन में प्रयोग होने सामग्री, परीक्षा का रूप एवं रचना, परीक्षा की अवधि और कोर्स के प्रत्येक अवयव आदि की उन्हें जानकारी होनी चाहिए ।

(5). उपयोगिता (Usefulness)

मूल्यांकन छात्रों के लिए उपयोगी होना भी आवश्यक है। इससे छात्रों को प्रतिपोषण (Feed back) मिलना चाहिए और उनकी वर्तमान क्षमता और कमजोरियों में भी सुधार होना चाहिए। कमजोरियों और क्षमता की जानकारी से छात्र अपने सुधार के विषय में अधिक सोच सकते हैं। मूल्यांकन को छात्रों के सुधार के सभी आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए। यह सुधार उसके पढ़ाये जाने वाले विषय-वस्तु, शिक्षण विधियों और अधिगम की शैली आदि में हो सकता है। इस प्रकार मूल्यांकन छात्रों की कमजोरियों के निदान और उपचार में सहायक हो सकता है।

3. वस्तुनिष्ठता (Objectivity) 

जो भी मूल्यांकन का परिणाम का आकलन प्रत्येक जाँचकर्ता द्वारा जब एक समान हो तो इस गुण को वस्तुनिष्ठता कहा जाता है। यानि कोई भी व्यक्ति यदि किसी मूल्यांकन में समान अंक प्राप्त करता है चाहे उसका जाँचकर्ता कोई भी हो तो मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ हैं।

4. प्रमाणीकरण (Standardisation) 

ऐसा मूल्यांकन जिसमे विधियों, यंत्र (tool) तथा फलांकन विधि निश्चित होते हैं। तो ऐसे मूल्यांकन को प्रभावीकृत मूल्यांकन होता है। यदि विभिन्न व्यक्ति द्वारा दिये गये अंको की तुलना करनी है तो यह जरूरी है कि मूल्यांकन के प्रशासन (Administer) की विधियाँ समान हो।

5. मानक (Norms)

प्रभावीकृत मूल्यांकन के मानक उपलब्ध होते है। अतः मानको का निर्धारण करना आवश्यक है। मानक एक संदर्भ बिन्दु हैं जिनके आधार पर परीक्षण से प्राप्त अंको की व्याख्या की जाती है। अगर मानक उपलब्ध होते हैं तो प्राप्तांको की व्याख्या करना सरल होता है।

6. विभेदीकरण (Discrimination) 

एक मूल्यांकन विभेदकारी तभी होता है, जब वह अधिगम परिणाम के अन्तर को पता कर सके एवं योग्य तथा अयोग्य छात्रों में भेद कर सके। अतः यह भी एक अच्छे मूल्यांकन की विशेषता है।

7. व्यापकता (Comprehensiveness) 

इसका अर्थ होता है कि मूल्यांकन में अधिक से अधिक पाठ्यक्रम के तथ्यों को शामिल करना मूल्यांकन में केवल आशिक न्यायदर्श न हो। जितने अधिक पाठ्यक्रम के अंशों को शामिल किया जाएगा, वह मूल्यांकन उतना ही व्यापक होगा। मूल्यांकन इतना अवश्य व्यापक हो कि वह वेध हो सके। अतः मूल्यांकन को व्यापक बनाने के लिए इसके सभी उददेश्यों तथा परिणामों को ध्यान में रखना आवश्यक है।

11. ग्राह्मता (Acceptability)

एक अच्छे मूल्यांकन प्रत्येक छात्रों को हर अवस्था क्या परिस्थिति में ग्राहण होना चाहिए। जैसे बिनेस्सपूम का बुद्दि परीक्षण हर परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति के लिए ग्राह्य है।

12. उद्देश्यपूर्ण (Purpose full)

मूल्यांकन का प्रयोजन पूर्ण निर्धारित होना चाहिए। ऐसा न हो कि मूल्यांकन के बाद परिणाम का कोई औचित्य न हो। अतः एक अच्छे मूल्यांकन का प्रयोजन पूर्वनिर्धारित होता है।

13. प्रशासन में समता (Ease of Administration) 

एक अच्छा मूल्यांकन हमेशा ही साथ होता है जिसका निर्देश सरलता और स्पष्ट होता है। मूल्यांकन की प्रकृति जटिल नहीं होनी चाहिए।

14. व्याख्या की सरलता (Ease of Interpretation) 

मूल्यांकन की परिणाम की व्याख्या सरल होनी चाहिए ताकि शिक्षक आसानी से उसके परिणाम को जान सके। शिक्षक को परिणाम की व्याख्या के लिए उच्च सांख्यिकी विधि सूत्र का प्रयोग न करना पड़े।

मूल्‍यांकन की प्रकिया

मूल्‍यांकन एक जटिल प्रकिया है इसके तीन भाग है ।
1.बालक समाज विषयवस्‍तु की प्रकृति तथा शैक्षिक स्‍तर पर पूर्व ध्‍यान देना चाहिए 
2.एक उद्धेश्‍य की प्राप्ति के लिए अनेक अनुभवों की योजना बनानी पडती है। योजना बनाते समय बालक के विभिन्न स्तरों, आयु, लिंग, परिवेश, पृष्‍ठभूमि आदि कारकों को ध्‍यान मे रखते हुए उपयुक्‍त शैक्षिक सामाग्री, शैक्षिक विधी तथा पूर्व साधनों के माध्‍यम से अनुभवों की व्‍यवस्‍था की जाती है ।
3.मूल्‍यांकन की तकनीकियों या उपकरणों की रचना के पूर्व मूल्‍यांकनकर्ता निम्‍नाकित प्रश्‍न स्‍वयं से पूछता है-
1.शिक्षण के उद्धेश्‍य के संदर्भ मे इस उपकरण में किन चीजों का मूल्‍यांकन करूगा ।
2.मैं जिन चीजों का मूल्‍यांकन करने जा रहा हॅ क्‍या मेरा उपकरण सही ढंग से इन चीजों के मूल्‍यांकन करने मे समर्थ है ।
3.क्‍या इस उपकरण का दो अलग –अलग लोग एक समान परिणाम पर ही पहॅुचेंगे ।
4.क्‍या उपकरण प्रयोग करने मे सरल है
लिखित परीक्षा में तो छात्र स्‍वयं लिखकर देते है परंतु निरीक्षण तथा मौखिक प‍रीक्षाओं मे शिक्षक को छात्रों की अनुक्रियाओं का रिकार्ड  तैयार करना चाहिए ।
सावधानी के साथ विश्‍लेषण करके व्‍याख्‍या करनी चाहिए कि छात्रों मे किस प्रकार के परिवर्तन आए है । एवं कौन सा शिक्षण उद्धेश्‍य किस सीमा तक प्राप्‍त हुआ है । व्‍याख्‍या के समय यदि अन्‍य मापदण्‍ड उपलब्‍ध है तो उपलब्‍ध की तुलना मानक के आधार पर अथवा प्रगति के किसी अन्‍य संबधित स्‍तर पर कर सकता है ।

मूल्‍यांकन का सिद्धांत

1.उद्धेश्‍यों को परिभाषित करने के उपरांन्‍त ही उपकरणों का चयन अथवा उनका विकास पर ध्यान देना चाहिए 

2.निर्धारित मूल्‍यांकन उद्धेश्‍यों के आधार पर ही मूल्‍यांकन उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए ।

3.एक उपकरण के माध्‍यम से किसी भी व्‍यक्ति का पूर्ण मूल्‍यांकन संभव नही होता अत; पूर्ण मूल्‍याकन के लिए विविध विधाओं एवं उपकरणो का प्रयोग करना चाहिए ।

4.मूल्‍यांकन की प्रत्‍येक विधि तथा उपकरण का प्रयोग करते समय उनकी उपयोगिता के विषय मे मूल्‍यांकन कर्ता को पूर्ण ज्ञात होना चाहिए तथा उनकी सीमाओं को ध्‍यान मे रखते हुए ही इन्‍हे उपयोग मे लाना चाहिए ।

5.मूल्‍यांकन के लिए अपितु किसी निश्चित उद्धेश्‍य की प्राप्ति के लिए किया जाना चाहिए साथ ही मूल्‍यांकन को कभी भी अंत न समझकर इसे दूसरी चीजों की प्राप्ति का साधन मानकर चलना चाहिए ।

6.मूल्‍याकन करते समय मूल्‍यांकन कर्ता को अत्‍यंत सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए यथासंभव दोषों से बचने का पूरा प्रबन्‍ध करना चाहिए

7.मूल्‍यांकन के सिद्धांतो एवं नैतिकता का ध्‍यान रखना चाहिए ।

मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान

1. उद्देश्य का निर्धारण एवं परिभाषा कारण।
2. अधिगम अनुभव की योजना बनाना।
3. विभिन्न उपकरणों के माध्यम से साक्ष्य प्रदान करना।
4. मूल्यांकन तकनीकी की रचना करना।
5. उपकरण का प्रयोग तथा वास्तविक पक्षियों का एकत्रीकरण करना।
6. लिखित आंकड़ों की व्याख्या करना। 
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                                       धन्‍यवाद

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