teaching methods || शिक्षण विधियाँ
tकिसी भी पाठ्यक्रम के शिक्षण में उसकी teaching methods शिक्षण विधियाँ महत्त्वपूर्ण होती हैं। शिक्षण विधियाँ ( teaching methods )अपनाते समय एक शिक्षक को शिक्षार्थियों की वैयक्तिक विभिन्नताओं को ध्यान में रखना चाहिए। जहाँ तक हो सके शिक्षक को गतिविधि आधारित विधियाँ अपनानी चाहिए क्योंकि गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं-
• शिक्षार्थियों में आलोचनात्मक चिंतन और समस्या-समाधान के लिए क्षमता का विकास करती हैं।
• शिक्षार्थियों के व्यक्तित्व का पोषण करती हैं।
• पाठ्य वस्तुओं और संदर्भों की बहुलता को बढ़ावा देती हैं।
• शिक्षार्थियों को कर के सीखने का मौका देती है।
• शिक्षार्थियों को खोज करने के लिए पर्याप्त स्थान देती हैं।
• शिक्षार्थियों को प्रत्यक्ष हस्तपरक अनुभव उपलब्ध कराती हैं।
• शिक्षार्थियों को सृजनात्मकता का विकास करती हैं।
• शिक्षार्थियों को स्वयं सीखने योग्य बनाती हैं।
जीन पियाजे और एल.एन. वाइगोत्सकी ने बच्चों के सीखने के तरीकों पर सबसे पहले अध्ययन किया। पर्यावरण शिक्षण की विधियाँ teaching methods निम्नलिखित हैं :
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किण्डरगार्टन विधि/ बालोद्यान शिक्षण पद्धति
• इस विधि के जन्मदाता हैं- एफ. ए. फोबेल
• इसमें खेल, आनंद और स्वतंत्रता का वातावरण होता है।
• इसमें किसी पुस्तक का प्रावधान नहीं है।
• शिक्षार्थी को डाँटा, फटकारा नहीं जाता है।
• शिक्षार्थी स्वतः क्रिया द्वारा सीखता है।
• शिक्षार्थी गीतों, उपहारों और क्रियाओं द्वारा सीखता हैं।
मांटेसरी विधि
• यह विधि डॉ. मारिया मांटेसरी द्वारा शुरू की गई
• यह 3-7 वर्ष के आयु वर्ग के शिक्षार्थियों के विशेष प्रकार की शिक्षा देने पर बल देता है।
• इस विधि में बालक स्वतंत्र रहता है और स्वयं करके सीखता है।
• इस विधि में बालक की ज्ञानेंद्रियों और मांसपेशियों को प्रशिक्षित किया जाता है।
प्रोजेक्ट विधि/परियोजना विधि
• इस विधि के जन्मदाता है- डब्ल्यू.एच. किलपैट्रिक
• इस विधि में बालक को कोई कार्य संपन्न करने के लिए कहा जाता है ।
• इस विधि के द्वारा शिक्षार्थी में योजना बनाना, उसको क्रियान्वित करना, उसका मूल्यांकन करना आदि कौशलों का विकास होता है।
• परियोजना व्यक्तिगत या समूह में किया जाता है।
कहानी विधि
• पर्यावरण शिक्षण के अधिगम में यह विधि बड़ी उपयोगी होती है।
• इस विधि के द्वारा कोई भी ज्ञान बड़ी आसानी से शिक्षार्थियों को दिया जा सकता है।
• इस विधि के द्वारा कोई भी नीरस और उबाऊ विषय-वस्तु को रोचक ढंग से पढ़ाया जा सकता है।
• यह विधि अधिगम के लिए संदर्भगत वातावरण प्रदान करती है। इस विधि के द्वारा अनेक विषय क्षेत्रों को आसानी से पढ़ाया जा सकता है।
• कहानियों में व्यक्तियों के अनुभव शामिल होते हैं।
• इस विधि के द्वारा बच्चों के परिवेश का समृद्ध चित्रण किया जा सकता है।
• इस विधि के द्वारा बच्चों में सृजनात्मकता एवं सौंदर्यबोध का विकास किया जा सकता है।
• यह बच्चों में रुचि और जिज्ञासा का विकास करती है।
• इस विधि के द्वारा बच्चों में ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है।
क्रियात्मक विधि
• यह विधि ‘करके सीखना’ के सिद्धांत पर आधारित है।
• अगर पर्यावरण की कक्षा गतिविधि आधारित होगी तो शिक्षार्थी का ज्ञान स्थाई और सार्थक होगा।
• इस विधि में शिक्षार्थी सदैव क्रियाशील रहता है और स्वयं कार्य करके ज्ञान अर्जित करता है, जिससे उसमें परस्पर क्रिया, अवलोकन और सहयोग जैसे कौशलों का विकास होता है।
• इस विधि में शिक्षार्थी को उसके रुचि के अनुसार कार्य करने का अवसर मिलता है।
• इस विधि में शिक्षक एक मार्गदर्शक के रूप में रहता है।
सहयोगात्मक अध्ययन विधि/समुदाय विधि
• समुदाय / समूह अधिगम के लिए एक महत्त्वपूर्ण अंग है क्योंकि ये वास्तविक स्थितियों में सीखने के अवसर उपलब्ध कराते हैं।
• सामूहिक गतिविधि/परियोजना शिक्षार्थियों में सहपाठी/सहयोगात्मक अधिगम को बढ़ावा देता है तथा सामाजिक अधिगम को बेहतर बनाता है।
• इस विधि के द्वारा शिक्षार्थियों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है। शिक्षार्थियों में निर्णय करने की शक्ति का विकास होता है।
• शिक्षार्थियों में प्रजातांत्रिक/लोकतांत्रिक भावना का विकास होता है।
• समूह चर्चा, समूह परियोजना आदि इस विधि की गतिविधियां हैं।
• शिक्षार्थी समूह में रह कर जानकारी इकट्ठा करते हैं और विश्लेषण के पश्चात् निष्कर्ष निकालते हैं।
अन्वेषण / खोज विधि
• इस विधि के जन्मदाता थे प्रो. आर्मस्ट्रांग ।
• यह विधि ‘स्वयं करके सीखना’ पर आधारित है।
• इस विधि में शिक्षार्थी स्वयं सूचना तथा सिद्धांतों की खोज के लिए अनेक प्रयोग करता है।
• इस विधि teaching methods से शिक्षार्थी में वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास होता है।
• इस विधि में शिक्षक मार्गदर्शक के रूप में होता है।
• इस विधि से शिक्षार्थी आत्मविश्वासी, चिंतनशील और आत्मनिर्भर बनता है।
• इस विधि के द्वारा क्या डूबा, क्या तैरा, हवा चीजों को कैसे गर्म या ठंडा करती है. शीशा धुंधला कैसे हो जाता है, परछाई कैसे बनती है आदि विषय-वस्तु का अधिगम कराया जा सकता है।
भ्रमण विधि
• इस विधि में शिक्षार्थी भ्रमण करके ज्ञान अर्जित करता है।
• यह विधि कक्षा-कक्षीय अधिगम को वास्तविक जीवन की परिस्थितियों के साथ जोड़ती है।
• यह विधि शिक्षार्थियों को सक्रिय प्रत्यक्ष अधिगम अनुभव उपलब्ध कराती है और शिक्षार्थियों का अनुभव उनके ज्ञान रचना का आधार होता है।
• इस विधि के द्वारा शिक्षार्थी प्रकृति के प्रति आकर्षित होते हैं।
• इस विधि में शिक्षार्थियों को विषय-वस्तु का ध्यान से अवलोकन करना चाहिए, टिप्पणियाँ दर्ज करनी चाहिए और उसे अपने सहयोगियों और शिक्षक के साथ बाँटना चाहिए।
प्रश्नोत्तर विधि
• इस विधि में प्रश्न पूछकर पाठ का ज्ञान कराया जाता है।
• इस विधि में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों प्रश्न पूछते हैं।
• प्रश्नों का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों को अपने विचार प्रकट करने का अवसर देना होना चाहिए उनकी जानकारी की जाँच करना नहीं।
• अभ्यास या गतिविधियाँ या प्रश्न पाठ / प्रकरणों में अंतः निर्मित होनी चाहिए ताकि शिक्षार्थियों का ज्ञान स्थाई बन सके।
अधिन्यास दत्त / कार्य विधि
• इस विधि में पूरे पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जाता है।
• इस विधि में शिक्षार्थियों को एक निश्चित समय में एक कार्य पूरा करने के लिए दिया जाता है।
• इस विधि में एक अधिन्यास पूर्ण होने पर ही दूसरा अधिन्यास दिया जाता है।
• इस विधि का मुख्य लक्ष्य अधिगम – विस्तार के अवसर उपलब्ध कराना है।
• इस विधि teaching methods में शिक्षक प्रत्येक शिक्षार्थियों पर व्यक्तिगत ध्यान दे सकता है।
आगमन विधि
• इस विधि में पहले कई सारे उदाहरण बताए जाते हैं और तत्पश्चात्, एक निष्कर्ष बताया जाता है।
• इस विधि के द्वारा ज्ञान को स्थाई रूप से ग्रहण किया जा सकता है।
• यह विधि विशिष्ट से सामान्य और मूर्त से अमूर्त शिक्षण सूत्रों का अनुसरण करती है।
निगमन विधि
• इस विधि में पहले कोई नियम बताया जाता है और उसके पश्चात उदाहरणों द्वारा पुष्टि की जाती है।
• यह विधि सामान्य से विशिष्ट शिक्षण सूत्र के ऊपर आधारित है।
• यह विधि बाल केंद्रित नहीं है।
• इस विधि से शिक्षार्थियों में रटने की प्रवृत्ति बढ़ती है।