मूल्यांकन के प्रकार Type of Evaluation
मूल्यांकन
मूल्यांकन का तात्पर्य अधिगमकर्ता द्वारा प्राप्त किए गए प्राप्तांक या परीक्षण परिणाम के परस्पर महत्व के निधारर्ण तथा तुलना से है । सामान्यत; किसी वस्तु के मुल्य या महत्व को निर्धारित करने की प्रकिया को मूल्यांकन कहते है । मूल्यांकन से गुणात्मक मापन का बोध होता है मूल्यांकन से हमे इस बात का पता चलता है कि किसी घटना प्राप्तांक या परिक्षण का गुण क्या है वह सफल है या असफल है । मूल्यांकन की प्रकिया मे छात्रों मे पूर्व प्रभावों तथा नवीन उत्पन प्रभावों के आधार पर जांच की जाती है ।
mulyankan ke prakar मूल्यांकन के प्रकार
मूल्यांकन के दो प्रकार होते है । जो निम्नलिखित है ।
1.
संरचनात्मक मूल्यांकन Formative Evaluation
2. योगात्मक मूल्यांकन Summative Evaluation
संरचनात्मक मूल्यांकन Formative Evaluation :-
संरचनात्मक का अभिप्राय किसी ऐसे शिक्षण कार्यक्रम योजना प्रकिया व साम्रागी आदि के मूल्यांकन से है। जिसमे मूल्यांकन के आधार पर सुविधा प्रदान करना संभव हो दुसरे शब्दों मे संरचनात्मक मूल्यांकन किसी शिक्षण कार्य योजना प्रकिया की सामाग्री की प्रभावशाली गुणवतापूर्ण वांछनीय तथा उपयोगी बनाया जा सके । अत; स्पष्ट है कि संरचनात्मक मूल्यांकन मे किसी निर्माणाधी कार्यक्रम योजना प्रकिया या सामाग्री को अंतिम स्वरूप देने से पूर्व उसके प्रारम्भिक रूप का मूल्यांकन किया जाता है जिससे उसके संरचनागत दोषों को दूर किया जा सके ।
अत; स्पष्ट है कि संरचनात्मक मूल्यांकन का मूख्य उद्धेश्य शैक्षिक कार्यक्रम एवं सामाग्री की कमियों को इंगित करना तथा उन्हे दूर करने के उपाय बताना है । अत; संरचनात्मक मूल्यांकन कर्ता के कार्यो को तीन भागों मे बांटा जा सकता है ।
1.शिक्षण कार्यक्रम या सामाग्री के भिन्न अंगो के गुण या दोंषो के संबंध मे स्पष्ट प्रमाण एकत्र करना
2.इन प्रमाणों के आधार पर कार्यक्रम या सामाग्री के दोषों को सामने रखना है ।
2 3.इन कमियों को दूर करके कार्यक्रम या सामाग्री को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए सुझाव प्रस्तुत करना है
रचनात्मक मूल्यांकन के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं-
1.मौखिक परीक्षा:- मौखिक परीक्षा प्रयोग ग्लेडाइट्स ने प्रारंभ किया था। इसके बाद विश्व प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक सुकरात ने मौखिक परीक्षा प्रणाली को अधिक महत्व दिया मौखिक रूप से प्रश्न करके मूल्यांकन करने का उद्देश्य अधिगमकर्ता की तत्काल अभिव्यक्ति तथा क्रियाशीलता की जांच करना है।
2.लिखित परीक्षा:- वर्तमान समय में लिखित परीक्षा द्वारा मूल्यांकन अधिक प्रचलित है। इन परीक्षाओं में मुख्य रूप से (4) प्रकार के प्रश्नों का प्रयोग किया जाता है-
1.वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न।
2.अति लघु उत्तरीय प्रश्न।
3.लघु उत्तरीय प्रश्न।
4.निबंधात्मक प्रकार के प्रश्न।
3.प्रायोगिक परीक्षा:- छात्रों के व्यवहारिकता का मूल्यांकन करने के लिए प्रायोगिक परीक्षा का प्रयोग किया जाता है। इसे मुख्यत: छात्रों के क्रियात्मक पक्ष का मूल्यांकन करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
योगात्मक मूल्यांकन से अभिप्राय है कि किसी पूर्व निर्मित शैक्षिक योजना या सामाग्री की समग्र वांछनीय को ज्ञात करने की प्रकिया से है । दुसरे शब्दों मे योगात्मक मूल्यांकन कर्ता किसी शैक्षिक कार्यक्रम योजना या सामाग्री के गुण व दोंषो की जानकारी इसलिए एकत्रित करता है जिससे उस कार्यक्रम को स्वीकार करने या भविष्य मे जारी रखने के संबंध मे निर्णय लिया जा सके । मूल्यांकन विधि की उपयोगीता संबन्धी जानकारी करने हेतु साक्षात्कार योजना, प्रश्नावली अथवा श्रेणी मापनी आदि उपयुक्त मानक उपकरण अथवा विधि का निर्माण करता है। इसके बाद विशेषज्ञों की सहमती एकत्रित करता है।उसके बाद संबंधी मानकों एवं साक्ष्यियो की गणना द्धारा उसकी उपयोगिता को परखता है। और अंत में यह निर्णय करता है कि यथा शिक्षा नीति, योजना अथवा कार्यक्रम,पाठयवस्तु शिक्षण विधि शिक्षण साधन अथवा मूल्यांकन विधि को आगे चालू रखा जाए अथवा नहीं और यदि चालू रखा जाए तो किस रूप में । साफ जाहिर है कि योगात्मक मूल्यांकन का उद्धेश्य किसी पूर्व निश्चित एवं लागू शिक्षा नीति,योजना अथवा कार्यक्रम,पाठयवस्तु शिक्षण विधि,शिक्षण साधन अथवा मूल्यांकन विधि की उपयोगिता की परख करना और उसके आगे चालू रखने अथवा चालू न रखने का निर्णय लेना होता है।
योगात्मक मूल्यांकन को निम्न 5 भागों में बांटा जा सकता है-
1.जांच सूची:- जांच सूची विद्यार्थियों के व्यवहार के अन्य पक्षों के संबंध में मूल्यांकन का एक सरल तथा प्रभावी साधन है। इसका उपयोग शिक्षार्थी के प्रयोगात्मक ज्ञान, अभिवृद्धि, रूचि,अवधारणाओं तथा मूल्य आदि के संबंध में उपलब्धियों का पता लगाने के उद्देश्य से किया जाता है।
2.स्तर का माप:- इसका प्रयोग सूक्ष्म अवलोकन की योग्यता रखने वाला व्यक्तित्व ही ठीक ढंग से कर सकता है। इस माप के द्वारा मूल्यांकन किया जाता है कि किसी शिक्षार्थी के कुछ विशिष्ट गुणों के संदर्भ में अन्य शिक्षार्थी एवं शिक्षकों पर क्या प्रभाव डाला है।
3.अवलोकन:- अवलोकन किसी व्यक्ति या समूह के दैनिक व्यवहार को निश्चित अवधि के लिए देखना और इस अवधि में पाए गए व्यवहार की कुछ निश्चित और वस्तुनिष्ठ स्वरुपों की उपस्थिति या अनुपस्थिति को दर्ज करना ही अवलोकन है।
4.घटनावृत्त:- घटनावृत्त को विभिन्न शिक्षाविदों ने कई प्रकार से परिभाषित किया है। किसी ने इसे शिक्षार्थियों के जीवन की सार्थक घटनाओं का विवरण और क्रिया, किसी ने ऐसी घटनाओं का सामान्य वर्णन किया, जो अवलोकन कर्ता की दृष्टि में शिक्षार्थियों के लिए अर्थपूर्ण है तो किसी ने शिक्षक द्वारा संकलित विभिन्न परिस्थितियों में घटित शिक्षार्थियों की वास्तविक व्यवहार को घटनावृत्त कहा है।
5.व्यक्तिगत अध्ययन:- इसमें व्यक्तिगत अध्ययन के निदान और उपचार दोनों पर क्रियाएं सम्मिलित है। अर्थात इस में पहले शिक्षार्थी की समस्याओं के कारणों का पता लगाया जाता है। तत्पश्चात उन समस्याओं को दूर करने के लिए प्रयास किया जाता हैं।
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धन्यवाद
Bahut achhi prakar se vishleshan Kiya Gaya great work thank you