व्यक्तित्व का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning of Personality)
व्यक्तित्व का अर्थ (Meaning of Personality)
व्यक्तित्व अँग्रेजी शब्द ‘पर्सनैलिटी’ (Personality) शब्द का हिन्दी अनुवाद है। लैटिन भाषा के परसोना (Persona) शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है मुखौटा। ग्रीक अभिनेता अभिनय करते वक्त ‘चरित्र के अनुसार’ मुखौटा धारण करते थे। इसी के आधार पर व्यक्तित्व का अर्थ बाह्य रंग-रूप, आकार-प्रकार से लिया जाने लगा, किन्तु व्यक्तित्व के इस अर्थ को सन्तोषप्रद नहीं माना जा सकता, क्योंकि मनुष्य के बाह्य रंग-रूप व आकृति से व्यक्तित्व के बारे में नहीं जाना जा सकता है। ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जिनका बाह्य रंग-रूप प्रभावी नहीं होते हुए भी वे आन्तरिक गुणों में विश्वविख्यात हुए, जैसे—सुकरात, अब्राहम लिंकन, गाँधीजी, लाल बहादुर शास्त्री आदि अनेक हस्तियाँ चारित्रिक दृष्टि से अनुकरणीय हुई हैं।
भारतीय साहित्य ने व्यक्तियों की तीन श्रेणियाँ सत, रज तथा तमोगुण बताई है। महाभारत के अश्वमेध पर्व में तमोगुण व्यक्ति के लक्षणों का वर्णन किया गया है। तमोगुणी व्यक्ति में मोह, अज्ञान, निद्रा, भय, गर्व, शोक, लोभ, स्मरण शक्ति का अभाव, त्याग का अभाव, दोष दर्शन, परिणाम की न सोचना, कर्मों का निर्णय न कर पाना, अच्छे-बुरे के विवेक का अभाव, नास्तिकता, दुश्चरित्रता, हिंसा आदि में प्रवृत्तता, अज्ञान को ज्ञान मानना, अकार्य को कार्य समझना, काम में मन न लगना, कुटिलता, मूर्खतापूर्ण विचार, अश्रद्धा, अजितेन्द्रियता और नीच कार्यों में अनुराग, शरीर का आलस्य के कारण भारी होना आदि सभी दुर्गण तमोगुण व्यक्ति में होते हैं। इसके अलावा और जो भी बातें निषिद्ध बताई गई हैं वे सभी तमोगुणी प्रवृत्तियाँ हैं। तम (अविद्या), मोह (अस्मिता), महामोह, राग, क्रोध (समिस्त्र) अंधतमिस्त्र ये पाँच प्रकार की तामसिक प्रवृत्तियाँ हैं। ये सभी पाँच वर्गों में बाँटी गई हैं।
रजोगुणी व्यक्ति में तृष्णा, निन्दा, मद, रोष, व्यायाम, कलह, , ईर्ष्या, संताप, उग्रता, छेदन-भेदन और विदारण का प्रयत्न, बल, शूरता, मन का प्रसन्न न रहना, दूसरों में दोष निकालना, स्वार्थ के लिए सेवा, प्रमाद (अपव्यय), निष्ठुरता, परिग्रह ये सभी रजोगुण के कार्य हैं। विषय प्रेम, प्रमोद धूत, क्रीड़ा, वाद-विवाद, स्त्रियों से सम्बन्ध बढ़ाना, नाच गान में आसक्ता, माया, शठता, द्रोह, मान, चोरी, हिंसा, घृणा, दंभ, दर्प व राग ये राजस गुण हैं। मनमाना बर्ताव करना, भोगों की समृद्धि को आनन्द मानना, धर्म, अर्थ तथा काम त्रिवर्ण में लगे रहने वाले तथा वर्तमान, भूत और भविष्य की चिन्ता करने वाले व्यक्ति रजोगुणी होते हैं।
जिस भाव या क्रिया से लोभ, स्वार्थ तथा आसक्ति का सम्बन्ध हो तथा जिसका फल क्षणिक सुख की प्राप्ति और अन्तिम परिणाम दुःख हो उसे राजस समझना चाहिए। संतोष, क्षमा, धैर्य, अहिंसा, पवित्रता, सत्य, आनन्द, प्रसन्नता किसी में दोष न देखना, क्रोध का अभाव, प्रकाश, गुण सुख, उन्नति, निर्भयता, चतुरता, पराक्रम ये सत्व के कार्य हैं।
जिस भाव या क्रिया का सम्बन्ध स्वार्थ से न हो, आसक्ति एवं ममता न हो तथा जिसका फल भगवत् प्राप्ति हो उसे सात्विक जानना चाहिए।
सत्व, रज तथा तमोगुण युक्त व्यक्ति अलग-अलग नहीं होते। इनका मिश्रण होता है जिसमें जो गुण ज्यादा होते हैं वह उस गुण से प्रधान माना जाता है। अतः सत, रज, तम इन गुणों की न्यूनता तथा अधिकता व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करती है।
व्यक्तित्व की परिभाषा (Definition of Personality)
पश्चिमी मनोवैज्ञानिक द्वारा व्यक्तित्व की परिभाषाओं में से कुछ परिभाषाएँ निम्नांकित है—
आर.एस. वुडवर्थ के अनुसार, “व्यक्तित्व, व्यक्ति के व्यवहार की समग्र गुणात्मकता है।”
जी.डब्ल्यू आलमपोर्ट के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के मनोदैहिक तंत्र का गतिशील संगठन है जो उसके पर्यावरण को शीलगुणों के एक संकलित नमूने के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।”
ड्रेवर के अनुसार, “व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक व सामाजिक गुणों के सुसंगठित और गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है जिसे वह अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन में आदान-प्रदान करता है।”
गिलफोर्ड के अनुसार, “हम व्यक्तित्व को शीलगुणों के एक संकलित नमूने के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।”
वाटसन के अनुसार, “विश्वसनीय सूचना प्राप्त करने की दृष्टि से काफी दीर्घ समय तक वास्तविक निरीक्षण करने के पश्चात् मानव में व्यवहार का जो भी स्वरूप माना जाता है, वह व्यक्तित्व कहलाता है।”
बी. आर. कैटल ने व्यक्तित्व को इस प्रकार से परिभाषित किया है, “व्यक्तित्व वह है जिसके द्वारा हम यह भविष्यवाणी कर सकते हैं। कि कोई व्यक्ति किसी विशेष परिस्थिति में क्या करेगा ।”
शिक्षा परिभाषा कोश : केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के शब्दावली आयोगों की परिभाषा –
1. “व्यक्ति के ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक और शारीरिक विशेषकों (Traits) का एकीकृत संगठन जैसा कि वह अन्य व्यक्तियों को दिखाई देता है।”
2. “व्यक्ति के वे शारीरिक और प्रभावशाली गुण जो संश्लिष्ट रूप से अन्य व्यक्तियों को आकर्षित करते हैं।”
उक्त परिभाषाएँ जो आशय प्रकट करती हैं उन्हें निम्नांकित बिन्दुओं के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है-
1. व्यक्ति के व्यवहार की समग्रता,
2. व्यक्ति के जन्मजात तथा अर्जित स्वभावों का योग,
3. व्यक्ति की संरचना, व्यवहार के रूप, अभिरुचियों, क्षमताओं, अभिक्षमताओं (Aptitude), योग्यताओं, क्षमताओं (Capacity) का विशिष्ट संगठन।
4. पर्यावरण से सामंजस्य ।
5. शीलगुणों (Traits) के समग्र रूप ।
6. व्यक्ति के गुणों (सामाजिक, शारीरिक, मानसिक, नैतिक) का समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ आदान-प्रदान।
उपर्युक्त सभी बिन्दुओं को गैरीसन (Garrison) ने इस ढंग से अभिव्यक्त किया है –
“व्यक्तित्व सम्पूर्ण व्यक्ति है जिसमें उसकी अभिक्षमताएँ, क्षमताएँ एवं समस्त भूतकालीन अधिगम सम्मिलित हैं और इन सभी कारकों तथा संगठन तथा संश्लेषण उसके व्यवहारगत, प्रतिमानों, विचारों, आदर्शों, मूल्यों तथा अपेक्षाओं में अभिव्यक्त होता है। ”
व्यक्तित्व की प्रकृति (Nature of Personality )
व्यक्तित्व को संरचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक पक्षों को ध्यान में रखकर इसकी प्रकृति को निम्नलिखित रूपों में स्पष्ट किया जा सकता है-
(1). यह व्यक्ति की कई विशेषताओं का गणितीय योग होने की अपेक्षा एक विशिष्ट प्रकार का समग्र ( Whole ) है । इस प्रकार व्यक्तित्व के अन्तर्गत व्यक्ति शारीरिक पटन, उसकी बौद्धिक क्षमता, सामाजिक एवं सांवेगिक विशेषता, स्वभाव तथा चारित्रिक गुणों का अद्भुत सम्मिश्रण होता है ।
(2). व्यक्तित्व में विभिन्न गुणों का समन्वय (Integration) होता है । व्यक्तित्व की संरचना में पाये जाने वाले सभी तत्व पृथक-पृथक रूप से न व्यक्त होकर एक समरसता या समन्वय की प्रवृत्ति प्रकट करते हैं । इस प्रकार सभी समत्वित गुणों या विशेषताओं अनुपम समन्वय को ‘व्यक्तित्व’ की संज्ञा दी जाती है ।।
(3). व्यक्तित्व में विलक्षणता (Uniqueness) होता है । उसे प्रत्येक व्यक्ति का अनोखापन कहा जाय तो गलत नहीं होगा। प्रत्येक व्यक्ति के आचरण था कार्य करने की शैली में निरालापन होता है तथा ना इसके व्यवहार के संज्ञानात्मक, भावात्मक एवं सामाजिक अनुक्षेत्रों ने प्रदर्शित होती है। फलस्वरूप हम कह सकते हैं कि वे विलक्षण ढंग जिनके अनुसार हम व्याख्यान देते हैं, हँसते हैं, हँसाते हैं, रोते हैं या गुस्सा करते हैं, हमारे व्यक्तित्व के परिसूचक है ।
(4). व्यक्तित्व को प्राणी की आनुवंशिकता (heredity) तथा पर्यावरण (environment) दोनों प्रकार के कारकों का प्रतिफल कहा जा सकता है। इसमें दोनों ही कारको आनुवंशिकता एवं पर्यावरण के मध्य गतिशील अन्तक्रिया (Dynamic interaction) सम्पन्न होती हमारा व्यक्तित्व वंश परम्परा एवं परिवेश से सम्बन्धित कारकों के अनुसार डल जाते हैं। हम जो कुछ है उनमें इस कारको के विशेष लक्षणा स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं । कातव्य है कि जाति को आनुवंशिकता का मान माना जाता है लाभ नाम से रहित उत्तेजना को एकमा जाता है । इस प्रकार हमारे शारीरिक गठन, आंखों के रंग, ऊँचाई या बौद्धिक क्षमता आदि को प्रभावित करने में जीन का स्पष्ट योगदान होता है, किन्तु हमारे व्यक्तित्व में निखार या परिष्करण तब माना जाता है जब हम अपने परिवेश में पाये वाले तत्वों यथा सामाजिक, सांस्कृतिक, भौतिक एवं भौगोलिक आदि ने अन्तःक्रिया द्वारा अपेक्षित गुणों को अर्जित कर लेते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्तित्व का विकास एक गतिशील प्रक्रिया है।
(5). व्यक्तित्व में ऐसे गुणों या विशेषकों का समावेश होता है। जो प्रायः अर्जित हुआ करते हैं। व्यक्तित्व के निर्माण में अधिगम का हाथ होता है।
(6). प्रत्येक व्यक्तित्व की अपनी विलक्षण प्रेरक शक्ति (Motive force) होती है। इस प्रकार अभिप्रेरणा के विविध सिद्धान्त व्यक्तित्व की व्याख्या प्रस्तुत करने में सहायक होते हैं ।
व्यक्तित्व का विकास (Development of Personality)
व्यक्तित्व का विकास एक इतना उलझा हुआ सम्प्रत्यय है जिसका एक निश्चित पैटर्न प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। हम जानते हैं कि रचना आत्म प्रत्यय और शीलगुणों से मिलकर होती हैं। आत्म प्रत्यय (Self-concept) को फ्राइड अहम् (Ego), सलीवन आत्मतंत्र (Self system) कहते हैं। परकिन्स (H. V. Perkins, 1958) के शब्दों में, आत्म प्रत्यय का अर्थ उन प्रत्यक्षीकरण, विश्वास भावना, अभिवृत्ति और मूल्यों से है जिन्हें व्यक्ति अपनी विशेषताओं के रूप में देखता है और शीलगुणों के बारे में इतना ही जान लें कि शील गुण किसी परिस्थिति विशेष में सामान्यीकृत व्यवहार करने का ढंग है जो उपेक्षाकृत स्थायी होते हैं। ये व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार का प्रमुख आधार है।
व्यक्तित्व का विकास व्यक्ति के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में किस प्रकार होता है? यह जानना इस अध्याय की विषयवस्तु है। यहाँ हम व्यक्तित्व विकास के सम्बन्ध में कुछ प्रतिष्ठित मनोवैज्ञानिकों के मतों का संक्षेप में अध्ययन कर रहे हैं।