विश्वसनीयता का अर्थ एवं परिभाषा
विश्वस्नीयता का अर्थ एवं परिभाषा (The meaning and definition of reliability) : विश्वसनीयता परीक्षण का वह गुण है। जिसके कारण हम परीक्षण पर विश्वास करते हैं और विश्वास इसलिए करते हैं, क्योंकि वह उसी तथ्य का समान रूप से मापन करती है। जिसके माप हेतु वह परीक्षण निर्मित हुआ था।
इस प्रकार परीक्षण की विश्वसनीयता के कारण परीक्षण उसी गुण या तथ्य या अमान्य का माप संगति के साथ करता है जिसके माप हेतु परीक्षण का निर्माण किया गया है। अनास्टासी (Anastase) ने विश्वसनीय के सम्बन्ध में लिखा है कि- ” बार-बार एक ही या एक जैसी परीक्षण लेने पर फलांकों से संगति (consistency) का होना ही विश्वसनीयता कहलाता है।”
यदि एक परीक्षण को कई बार कुछ समय बाद छात्रों के एक ही समूह को दिया जाय तो उनके द्वारा प्राप्त फलांकों में विशेष अन्तर नहीं होना चाहिए। यदि अन्तर अधिक आता है तो कहा जा सकता है कि परीक्षण में विश्वसनीयता नहीं है । उदाहरण के लिए यदि एक छात्र प्रथम बार नागरिक शास्त्र की परीक्षा में 80 अंक प्राप्त करता है और एक माह बाद जब उसी परीक्षण को दिया जाता है तो उसके फलांक 30 आते हैं। इस प्रकार के परीक्षण को हम विश्वसनीय नहीं कह सकते हैं। यदि दोबारा ली गयी परीक्षा में उस छात्र ने 78 अंक प्राप्त किये होते हैं तो हम परीक्षण को विश्वसनीय कह सकते हैं ।
विश्वसनीयता को स्पष्ट करने के कुछ अन्य बातें (Some general points of further clarification)
ग्रोनलैण्ड (Gronland, 1981) के द्वारा विश्वसनीय की कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण बातें बतायी गयी हैं, जो निम्नलिखित हैं –
(1). विश्वसनीय किस मूलयांकन से प्राप्त परिणाम को बताता न कि स्वयं यंत्र के बारे में। एक मूल्यांकन उपकरण के प्रयोग की स्थितियों और विषयों के समूह के आधार पर विभिन्न प्रकार की अन्य विश्वसनीयतायें हो सकती हैं।
(2). सामान्य रूप परीक्षण प्राप्तांक विश्वसनीय नहीं होते । विश्वसनीयता का मापन विशिष्ट प्रकार के संगति से सम्बन्धित होता है।
(3). वैधता के विश्वसनीयता आवश्यक है परन्तु पर्याप्त दशा नहीं है ।कम विश्वसनीय से वैधता कम हो जाती है परन्तु अधिक विश्वसनीयता से अधिक और संतोषजनक वैधता की गारण्टी नहीं है ।
(4). मूल रूप से विश्वसनीयता सांख्यकीय प्रकृति का होता है जिसमें दो क्रमिक अवसरों पर प्राप्तांकों को आपस में सम्बद्ध किया जाता है । सह-सम्बन्ध गुणांक को स्व-सह-सम्बन्ध और इसका मून्य ‘विश्वसनीय गुणांक’ कहलाता है ।
विश्वसनीयता का मापन (Estimates of Reliability)
विश्वसनीयता ज्ञात करने की अनेक विधियाँ। सामान्य विधियाँ निम्नलिखित हैं –
(1). परीक्षण पुनर्परीक्षण विधि (Test-retest method)
(2). समान प्रारूप विधि (Equivalent form method)
(3). आंतरिक संगति विधि (Internal consistency method)
(1). परीक्षण पुनर्परीक्षण विधि (Test-retest method)
किसी भी परीक्षण की विश्वसनीयता ज्ञात करने की यह सबसे सरल विधि है। इसमें एक ही समूह पर एक ही परीक्षण दो भिन्न-भिन्न अवसरों पर प्रशासित करके फलांक ज्ञात कर लिये जाते हैं और इन दोनों अवसरों पर प्राप्त फलांकों के मध्य सह-सम्बन्ध गुणांक (Coffiecient of Correlation) ज्ञात कर लिया जाता है। सामान्यतः गुणनफल आघूर्ण विधि (Product movement method) से सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना की जाती है।
दोनों प्रशासनों के फलांकों के मध्य सह-सम्बन्ध विश्वसनीयता का सूचक है। यदि सह-सम्बन्ध 0.50 या इससे अधिक है तो परीक्षण को विश्वसनीय माना जाता है ।
यह विधि देखने में सरल है परन्तु इसकी कुछ सीमायें हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं –
(1). यदि परीक्षण तथा पुनर्परीक्षण के मध्य समयान्तर थोड़ा है तो उत्तरों के प्रत्यास्मरण का सह-सम्बन्ध में अवांछनीय रूप से धनात्मक प्रभाव पड़ेगा और सह-सम्बन्ध बहुत अधिक आ जायेगा ।
(2). समयान्तर थोड़ा होने से पुनर्परीक्षण के फलांकों पर अभ्यास, पूर्व परिचय आदि धनात्मक प्रभाव पड़ेगा ।
(3). फलांको पर दोषपूर्ण निर्देश, अस्पष्ट भाषा, भाषा की कठिनाई, थकावट, विभिन्न वातावरण आदि का भी प्रभाव पड़ सकता है ।
(4). यदि समयान्तर काफी अधिक है तो छात्रों के शारीरिक तथा मानसिक विकास के फलस्वरूप पुर्नपरीक्षण के फलांक निश्चित ही अधिक आयेंगे ।
(2). समान प्रारूप विधि या विकल्प तथा समान्तर विधि (Equivalent form method or, alternative or parallel method)
इस विधि के अन्तर्गत परीक्षण तैयार करने के साथ ही साथ उसका एक विकल्प या समान्तर रूप भी तैयार करना पड़ता है। इस विकल्प या समान्तर प्रारूप की रूपता मुख्य परीक्षण के समान ही होती है। समान्तर प्रारूप बना लेने के पश्चात मुख्य परीक्षण तथा समान्तर उप-परीक्षण के फलाकों में सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है। यदि सह-सम्बन्ध अच्छा होता है तो उसकी विश्वसनीयता अच्छी मानी जाती है। इस विधि के निम्नलिखित दोष हैं-
(i). मुख्य परीक्षण तथा समान्तर प्रारूप की समस्त विशेषतायें एक जैसी नहीं भी हो सकती है ।
(ii). मुख्य परीक्षण छात्रों की कुछ प्रशिक्षण प्रदान करता है। इस परीक्षण का समान्तर प्रारूप को हल करने पर धनात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
(iii). छात्रों द्वारा स्मृति से लाभ उठाने की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं।
(iv). समानान्तर प्रारूप के हल करने पर छात्रों की थकान का ऋणात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
(3). आंतरिक संगति विधि (Internal consistency method)
प्रथम दो विधियों में परीक्षण का प्रशासन दो बार किया जाता है। परन्तु इस विधि में परीक्षण को एक ही बार प्रशासित किया जाता है। आंतरिक संगति ज्ञात करने की दो विधियाँ हैं-
(a). अर्द्ध विच्छेदन विधि (Split half method)
इस विधि के अन्तर्गत मुख्य परीक्षण को ही दो समान भागों में विभक्त कर दिया जाता है और उन दो भागों से प्राप्त फलांकों के मध्य सह सम्बन्ध ज्ञात कर लिया जाता है । परीक्षण को दो भागों में विभक्त करने के लिए दो तरीके अपनाये जाते हैं । प्रथम तरीके के अनुसार प्रत्येक विषम पद (Odd items) एक भाग में और सम (Even) पद दूसरे भाग में रख लिये जाते हैं। दूसरे तरीके के अनुसार प्रथम आधे पद एक भाग में और द्वितीय आधे पद दूसरे भाग में शामिल कर लिये जाते हैं । यदि परीक्षण में कठिनाई स्तर निरन्तर बढ़ता जाय, तो सम-विषम विधि (Even-odd method) उपयुक्त रहती है। इस विधि की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि परीक्षण निर्माता को समस्त प्रदत्त एक ही समय में प्राप्त हो जाते हैं ।
वैधता का अर्थ ( meaning of validity ) : परिभाषा, प्रकार, प्रकृति या स्वरूप
दोनों भागों के फलांक ज्ञात होने पर उनमें सह-सम्बन्ध ज्ञात कर लिया जाता है। यह सह-सम्बन्ध एक ही भाग की विश्वसनीयता बतायेगा । पूरे परीक्षण की विश्वसनीयता ज्ञात करने हेतु एक अन्य सूत्र का प्रयोग करना पड़ेगा यह सूत्र ‘स्पीयर मैन ब्राउन सूत्र’ (Spearman Brown Formula) के नाम से पुकारा जाता है।
विधि की विशेषतायें
(i). इस विधि के अन्तर्गत एक ही परीक्षण निर्मित करना पड़ता है।
(ii). अर्द्ध भाग का एक ही बार प्रशासन होने पर देव त्रुटियों का दोनों भागों पर समान असर पड़ता है।
(iii). अभ्यास, थकान तथा समयान्तर आदि का कुप्रभाव नहीं पड़ता है।
(iv). गति परीक्षणों में इसका प्रयोग सम्भव नहीं है।
(v). परीक्षणों को दो भागों में विभक्त करने की कई विधियों हैं और प्रत्येक विधि से विश्वसनीयता गुणांक अलग-अलग आता है । फलस्वरूप एक विधि से आए उत्तर को जाँच इसकी विधि से करना सम्भव नहीं है।
(b). कुडर रिचर्डसन मापन (Kuder Rechard Estimates)
इस विधि के अन्तर्गत परीक्षण के विभिन्न पदों (Items ) मध्य सह-सम्बन्ध तथा प्रश्नों का सम्पूर्ण परीक्षण के साथ सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है। इस प्रकार इस विधि की मान्यता यह है कि परीक्षण के सभी पद एक दूसरे तथा सम्पूर्ण परीक्षण से सम्बन्धित होते हैं । इस विधि में निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है –