वैधता का अर्थ ( meaning of validity ) : परिभाषा, प्रकार, प्रकृति या स्वरूप
वैधता का अर्थ ( meaning of validity )
meaning of validity – छात्रों की उपलब्धि एवं योग्यता के मापन, शैक्षिक व्यावसायिक निर्देशन, व्यक्तियों का चयन अथवा छात्रों की भावी सफलता के विषय में अनुमान लगाने के लिए उपयुक्त परीक्षण की आवश्यकता होती है। परीक्षण के चयन के समय यह देखना आवश्यक होता है कि वह वैध है अथवा नहीं। परीक्षण की वैधता का अर्थ इस बात से है कि वह कितनी अच्छी तरह से उस गुण या योग्यता का मापन करता है, जिसके लिए उसकी रचना की गयी है।
वैधता की परिभाषायें ( Definitions of validity)
1. गैरेट (Garrett) के अनुसार- “किसी परीक्षण या मापन यंत्र की वैधता इस बात पर निर्भर करती है कि जिस गुण का मापन करने के लिए बनाया है, वह उसी का मापन करे ।”
(2). क्रोनबैक (Cronback) के शब्दों में, “किसी परीक्षण की वैधता उसकी वह सीमा है जिस सीमा तक वह, वही मापता है, जिसके लिए उसका निर्माण किया गया है। ”
(3). फ्रीमैन (Freeman) के अनुसार – ” वैधता का सूचकांक उस मात्रा को व्यक्त करता है जिस मात्रा तक एक परीक्षण उस तथ्य को मापता है जिसके मापन के लिए वह बनाया गया है जबकि उसकी तुलना किसी स्वीकृत कसौटी से की जाती है।”
इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि परीक्षण केवल उन्हीं परिस्थितियों में वैध होता है जिसमें उसका मानकीकरण किया गया हो और वह केवल उसी जनसंख्या के लिए उपयुक्त होता है। जिसके प्रतिदर्श (Sample) पर उसका मानकीकरण किया गया है। दूसरा महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि कोई भी परीक्षण तभी वैध होगा जब वह विश्वसनीय (Reliable) होगा। यदि परीक्षण की विश्वसनीयता शून्य है तो वह किसी अन्य परीक्षण से सहसम्बन्धित नहीं होता ।
वैधता की प्रकृति या स्वरूप ( Nature of validity or precautions )
मूल्यांकन की सत्यता के लिए पद के रूप में वैधता का प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करना चाहिए। मूल्यांकन में वैधता का प्रयोग करते समय मस्तिष्क में निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए।
(1). एक दिये गये व्यक्तियों के समूह के लिए किसी परीक्षण या मूल्यांकन उपकरण के परिणामों को वैधता बताता है। न कि स्वयं उपकरण को । यह विशेष रूप से परिणामों से निर्मित निर्वचन (Interpretation) वैधता होता है।
(2). वैधता इकाई माप होता है। यह सभी या बिना आधार का होता है। किसी विशेष योग्यता को मापने के लिए निर्मित यंत्र की न तो पूर्ण वैध या सभी प्रकार से वैध नहीं कहा जा सकता। यह अल्पाधिक वैध होता है ।
(3). वैधता एक सापेक्षिक पद है। एक उपकरण विशेष कार्य या स्थिति में वैध होता है, न कि सामान्यरूप से वैध होता है। उदाहरण के लिए कुछ प्रमापीकृत बुद्धि परीक्षण (यथा बीनेट) शहरी विद्यालयों से आने वाले बच्चों के बीच अन्तर के वैध नहीं हो सकता है।
इसलिए वैधता का वर्णन करते हुए परिणामों से निकाले गये प्रयोग का विचार करते हैं।
वैधता के प्रकार (Types of Validity)
परीक्षण साहित्य में वर्णित पांच प्रकार की वैधता निम्नलिखित हैं-
(1). विषय-वस्तु वैधता (Content validity)
(2). कसौटी पर आधारित वैधता (Criterian-related validity)
(i). समवर्ती वैधता (Concurrent validity)
(ii). पूर्व कथन वैधता (Predictive validity)
(3). निर्मित वैधता (Construct validity)
(4). रूप वैधता (Face validity)
(5). कारक वैधता (Factorial validity)
(1). विषय-वस्तु वैधता (Content Validity)
इस प्रकार की वैधता का उपयोग प्रायः निष्पत्ति परीक्षणों में किया जाता है। यदि परीक्षण पाठ्यक्रम के विभिन्न क्षेत्रों का उनके महत्त्व के अनुसार प्रतिनिधित्व करता है तथा पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को पूरा करता है. इसका अर्थ है कि परीक्षण में विषय-वस्तु वैधता है। एनेंस्टैसी (Anastasi) ने कहा है-” विषय-वस्तु वैधता में आवश्यक रूप से परीक्षण की विषय-वस्तु का व्यवस्थित परीक्षण निहित होता है ।
जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि क्या यह मापे जाने वाले व्यवहार क्षेत्र का निधित्वपूर्ण प्रतिदर्श सम्मिलित करता है ।”
विषय-वस्तु वैधता है इसके लिए-
(1). सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का जिसमें से पदों का चयन करता है, व्यवस्थित विश्लेषण करना आवश्यक है।
(2). पाठ्यक्रम को उसके महत्व के आधार पर विभिन्न भागों में बांटा जाता है।
(3). पाठ्यक्रम के प्रत्येक भाग से उपयुक्त अनुपात में पदों का चयन किया जाता है।
(4). पाठ्यक्रम के अनुसार पदों की एक विशिष्टीकरण तालिका तैयार की जाती है कि किस भाग में कितने प्रश्नों को रखा जाय । इस तालिका के अनुसार ही प्रत्येक भाग से सम्बन्धित प्रश्नों की रचना की जाती है। परीक्षण के पद का चुनाव जितना इस चुनाव तालिका के अनुसार किया जायेगा, परीक्षण की विषय वस्तु वैधता भी उतनी ही उच्च होगी।
इस प्रकार की वैधता ज्ञात करने के लिए परीक्षण निर्माता उपयुक्त रूप से स्वयं के निर्णय के अतिरिक्त सांख्यकीय विश्लेषण भी करता है जैसे
(1). पदों का विभेदकता मान कितना है अर्थात् कौन-से पद उच्च और निम्न योग्यता में विभेद करने के सक्षम हैं ।
(2). पदों का शुद्ध करने वाले छात्रों का प्रतिशत ज्ञात करना ।
(3). विभिन्न पदों में आपस में सम्पूर्ण परीक्षण से सह-सम्बन्ध ज्ञात करना । विषय-वस्तु वैधता उपलब्धि परीक्षण के अतिरिक्त कुछ व्यावसायिक परीक्षणों के लिए भी उपयोगी है। जिनका प्रयोग कर्मचारियों के चयन या वर्गीकरण आदि के लिए किया जाता है ।
(2). कसौटी पर आधारित वैधता (Criteria-related Validity)
इसको दो प्रकारों में बांटा गया है-
(1). समवर्ती वैधता ।
(2). पूर्व कथन वैधता ।
(1). समवती वैधता (Concurrent Validity)
समवर्ती वैधता ज्ञात करने के लिए सर्वप्रथम परीक्षण को प्रशासित करके उसका फलांक ज्ञात कर लेते है। तत्पश्चात् किसी अन्य परीक्षण से उसकी योग्यता की जाँच करके फलांक ज्ञात करते हैं और फिर इन दोनों फलोंकों के मध्य सह-सम्बन्ध ज्ञात करते हैं । यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि परीक्षण तथा उसकी कसौटी को मापक को लगभग एक ही समय दिया जाता है। दोनों परीक्षणों की एक ही समय में एक के बाद एक के रूप में प्रशासित किया जाता है। तथा दोनों ही समान योग्यता का मापन करते हैं। अतः इसे समवर्ती वैधता कहते हैं। नये परीक्षण की समवर्ती वैधता पूर्ण स्थापित ख्याति प्राप्त परीक्षण से सह-सम्बन्ध मिलाकर की जा सकती है। इसलिए अनेक बुद्धि परीक्षणों को स्टेनफोर्ड बिने या देश्लर परीक्षण से सह-सम्बन्धित किया जाता है।
(2). पूर्व कथन वैधता (Predictive Validity)
जब परीक्षण फलांकों के आधार पर किसी व्यक्ति की भावी योग्यता के बारे में भविष्यवाणी की जाती है तो उसे पूर्व कथन वैधता कहते हैं । उदाहरण के लिए एक यांत्रिक अभियोग्यता परीक्षण के आधार पर यह भविष्यवाणी की गयी कि अमुक व्यक्ति अमुख व्यवस्था में सफल होगा। अब यदि उस व्यक्ति को उस व्यवसाय में सफलता मिले तो कहा जायेगा कि परीक्षण में पूर्व कथन वैधता है। इस प्रकार की वैधता ज्ञात करने के लिए प्रयुक्त परीक्षण के अंकों तथा बाद में उस व्यवसाय में प्राप्त अंकों के मध्य सहसम्बन्ध ज्ञात करते हैं। प्रायः अभियोग्यता एवं रुचि परीक्षण की पूर्व कथन वैधता ज्ञात की जाती है।
(3). निर्मित वैधता (Construct Validity)
इसे अन्वय वैधता भी कहते हैं। इसके प्रतिपादक क्रोनबैक तथा मीहल (Cronback and Meehl) ने 1955 में किया था। एनेस्टैसी ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है- “परीक्षण की निर्मित वैधता उस सीमा को व्यक्त करती है जिस सीमा तक वह परीक्षण किसी सैद्धान्तिक अवयव या शीलगुण का मापन करता है।”
इसमें परीक्षण को विशेष रचना या सिद्धान्त के रूप में जाँचा है । जाता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण द्वारा मापे जाने वाले विविध शीलगुण जैसे बुद्धि, रुचि, गृल्य, चिन्ता, अभियोग्यता आदि काल्पनिक अवयव या सिद्धान्त हैं। इन मानसिक गुणों के अनेक अर्थ हैं तथा इनको धारण करने वाले व्यक्ति का व्यवहार कैसा होगा । इस सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचार भिन्न-भिन्न हैं। अतः अन्वय वैधता ज्ञात करने के लिए यह जानना आवश्यक होता है कि परीक्षण में किस योग्यता या शीलगुण की व्याख्या किन अवधारणाओं (Concepts) के आधार पर की गयी है। इस प्रकार के सैद्धान्तिकों सम्बोधों को अन्यव कहते हैं और इस प्रकार की व्याख्या के वैधकरण को अन्वय वैधता कहते हैं ।
क्रोनबैक तथा मीहल के अनुसार निर्मित वैधता ज्ञात करने के निम्नलिखित चरण हैं-
(1). परीक्षण द्वारा मापे जाने वाले गुण को स्पष्ट करना ।
(2). मापे जाने वाले गुण से सम्बन्धित सैद्धान्तिक विवेचन प्रस्तुत करना ।
(3). इस सैद्धान्तिक विवेचन के आधार पर परीक्षण प्राप्तांकों से सम्बन्धित व्यवहार के विषय में पूर्व कथन या परिकल्पना बनाना ।
(4). व्यवहार के सम्बन्ध में की गयी। उपकल्पना के सत्यापन के लिए प्रदत्तों (Data) का संकलन करना।
यदि उपकल्पना सत्य सिद्ध होती है तो परीक्षण को वैध माना जाता है, अन्यथा यह मानते हैं कि परीक्षण में अन्वय वैधता नहीं है। निर्मित वैधता ज्ञात करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-
(1). आयु विभेदीकरण (Age differentiation)
(2). अन्य परीक्षणों से सह-सम्बन्ध (Correlation with other)
(3). आंतरिक संगति (Internal consistency)
(4). अवयव विश्लेषण (Factor analysis)
(4). रूप वैधता (Face Validity)
रूप वैधता में यह जानने का प्रयास किया जाता है कि क्या परीक्षण के पद उस विशेषता, गुण या उद्देश्य का मापन करते हुए प्रतीत होते हैं जिनका मापन करने के लिए उन्हें बनाया गया है। अर्थात् परीक्षण के पदों को देखकर ही इस प्रकार की वैधता ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण के लिए कक्षा आठ के छात्रों के लिए गणित सम्बन्धी उपलब्धि परीक्षण की रचना करनी हो तो इस प्रकार के प्रश्न होने चाहिए कि उसे पढ़कर ही कहा जा सके कि यह छात्रों की गणित सम्बन्धी योग्यता के मापन के लिए बनाया गया है। रूप वैधता का निर्धारण प्रायः विशेषज्ञों के निर्णय के आधार पर किया जाता है।
(5). कारक वैधता (Factorial Validity )
जिन परीक्षणों में विभिन्न कारकों या शीलगुणों का मापन एक साथ होता है परीक्षण वैधता की कारक विश्लेषण द्वारा ज्ञात किया जाता है। इसीलिए इसे कारक वैधता कहा जात है। एनेस्टेसी (Anastasi) ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है-“किसी परीक्षण की कारक वैधता को अर्थ है उस परीक्षण तथा अनेक परीक्षणों के समूह या व्यवहार के समान अवयवों में सम्बन्धं ।”
अवयव विश्लेषण के द्वारा परीक्षण के मुख्य गुणों, तत्वों अथवा कारकों को ज्ञात कर लिया जाता है। तत्पश्चात् प्रत्येक कारक तथा सम्पूर्ण परीक्षण के मध्य सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है। यह सह-सम्बन्ध ही परीक्षण की अवयव या कारक वैधता है। इसे अवयव उद्धार (Factor loading) भी कहा जाता है। कारक भार बताते हैं। कि परीक्षण विभिन्न मनोवैज्ञानिक गुणों (Traits) या कारकों (Factors) का किस सीमा तक मापन करता है। यह परीक्षण की कारक वैधता या सूचक होते हैं। गिलफोर्ड (Gillford) के अनुसार कारक वैधता स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि कौन-सा परीक्षण क्या मापन करता है। अतः यह अन्य प्रकार की वैधताओं की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है ।
उपर्युक्त महत्व के साथ-साथ एनेस्टेसी ने अवयव वैधता की ‘परिसीमाओं का भी उल्लेख किया है-
(1). बहुत कम क्षेत्रों में इस विधि का उपयोग किया गया है। अतः तथ्यों के अभाव में अवयव वैधता ज्ञात करना कठिन है। तथ्यों की अनुपस्थिति में इस प्रकार की वैधता विश्वसनीय नहीं होती है
(2). यह वस्तुनिष्ठ रूप से प्रमाणित नहीं किया जा सकता कि किन निश्चित कारकों में उच्च वैर्धता होने पर वे विशिष्ट तथ्य का पूर्व कथन करेंगी।
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