Share Market

शेयर बाजार क्या है ?

शेयर बाजार क्या है ? / शेयर मार्केट क्या है ?- शेयर बाज़ार स्टॉक की खरीदी-बिक्री करने वाले सभी व्यक्तियों का एक सेट है। शेयर बाजार में 1000 अंकों की ऐतिहासिक उछाल’ ‘निवेशकों की संपत्ति में 2 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि’, तो कभी ‘शेयर बाजार में 1000 अंकों की भारी गिरावट’, ‘भारी मात्रा में निवेशकों की पूँजी का सफाया ‘ – इस प्रकार के समाचारों को पढ़ने से लाखों लोगों के दिमाग में अनेक प्रकार के प्रश्न उठते हैं कि शेयर मार्केट में अचानक ऐसा उतार-चढ़ाव क्यों होता है ? किसी खास दिन ऐसा क्या हो जाता है, जिससे इस शेयर बाजार (stock market) में अचानक अरबों रुपए की उथल-पुथल हो जाती है ?

प्रबुद्ध ग्राहकों को समझ लेना चाहिए कि शेयर बाजार (stock market) में ऐसा सब-कुछ होता है, इसलिए तो यह शेयर बाजार है और इसके इंडेक्स को सेंसेटिव इंडेक्स ‘सेंसेक्स’ कहा जाता है। इसकी संवेदनशीलता के कारण ही समाज, देश- विदेश में होने वाली घटनाओं के समाचार से इसमें उतार-चढ़ाव होता है। सेंसेक्स को तो घटने या बढ़ने के लिए बस सिर्फ बहाने चाहिए और जब कोई ऐसा कारण नहीं होता तो बाजार स्थिर बना रहता है। परंतु ऐसे स्थिर बाजार में भला किसकी रुचि होगी !

शेयर बाजार (stock market) चंचल तो है, लेकिन इसकी चंचलता के कारण इसे मात्र सट्टा बाजार नहीं समझा जाना चाहिए। यहाँ सट्टा जरूर है, परन्तु इस बाजार में इसके प्रत्येक खिलाड़ी के लिए अलग-अलग स्टेडियम है। डे-ट्रेडरों के लिए (जो दिन भर निरंतर खरीद-ब्रिकी करते रहते हैं, वे डे-ट्रेडर कहलाते हैं) यह केसिनो- जुआ है, जबकि जो मात्र निवेश करके बाजार में बना रहता है, उनके लिए यह विशुद्ध निवेश बाजार है। इस बाजार में निवेशक के रूप में रहना ज्यादा सुरक्षित है। उसका निवेश सुरक्षित रहने के साथ-साथ अधिक संपत्ति का सृजन भी कर सकता है।

एक-दो सच्चे किस्सों के आधार पर बात समझाने की कोशिश की जा सकती है। यदि किसी व्यक्ति ने वर्ष 1980 में विप्रो नामक कंपनी में 10 हजार रुपए का निवेश किया होता और उस निवेश को उसने वर्ष 2006 तक सुरक्षित रखा होता तो उसका मूल्य 200 करोड़ रुपए हो गया होता।

धीरूभाई अंबानी जब अपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज का पहला जनता का इश्यू लाए थे, उस समय यदि किसी आदमी ने उनकी कंपनी में 10 हजार रुपए का निवेश किया होता तो वह अब तक 2 करोड़ रुपए हो गया होता। सारांश में, शेयर बाजार (stock market) में अच्छी कंपनियों का चयन करके जो निवेशक लंबे समय तक उसमें अपना निवेश रखता है, उसे भरपूर फायदा होता है। लंबे समय के लिए शेयरों को खरीदने के लिए इनकी खरीदारी कभी भी की जा सकती है। कारण यह है कि बाजार का मूलभूत स्वभाव ही ऐसा है कि जो धीरज रखता है, उसे भरपूर लाभ मिलता है।

आई.पी.ओ. क्या है ?

कोई भी कंपनी जब प्रथम बार पूँजी इकट्ठा करने के लिए सार्वजनिक रूप से निर्गम जारी करती है तो इसे ‘इनीशियल पब्लिक ऑफर’ (आई.पी.ओ.) कहते हैं। सार्वजनिक निर्गम में जिन ग्राहकों को शेयरों का आवंटन होता है, शेयरों की सूचीबद्धता के बाद शेयर बाजार के जरिए उन्हें खरीदा बेचा जा सकता है। सूचीबद्धता के बाद होने वाले सौदों को ‘सेकंडरी मार्केट’ कहा जाता है। कंपनी जब अपने विद्यमान शेयरधारकों को ही शेयर प्रस्तावित करती है तो ऐसे निर्गम को राइट निर्गम कहा जाता है, जिसमें शेयर धारकों को अपने शेयरों के अनुपात के आधार पर कंपनी के नए शेयरों में आवेदन करने का अधिकार मिलता है।

परंतु इन नए शेयरों के लिए आवेदन करना उसका दायित्व नहीं बनता। कंपनी जब निरंतर लाभ अर्जित करनेवाली होती है तो वर्ष-दर-वर्ष लाभ में से कुछ हिस्सा शेयरधारकों को बतौर लाभांश वितरित करती रहती है। बचे हुए लाभ का हिस्सा जब संचित होता है और उस संचित राशि का पूँजीकरण करने से उस राशि से अपने मौजूदा शेयरधारकों को निर्धारित किया गया अनुपात में शेयर निःशुल्क आवंटित किए जाते हैं। तो इसको ‘बोनस शेयर’ कहा जाता है।

आई.पी.ओ. में आवेदन करते समय ध्यान रखें

किसी भी कंपनी के आई.पी.ओ. में आवेदन करते समय निवेशकों को यह देख लेना चाहिए कि कंपनी के प्रमोटर कौन हैं? इस प्रमोटर का पिछला रिकॉर्ड कैसा है ? यदि इस प्रमोटर की कोई अन्य कंपनी हो तो उस कंपनी का वित्तीय काम परिणाम कैसा है ? कंपनी किस उद्योग क्षेत्र की है? उस उद्योग की वर्तमान में स्थिति एवं भविष्य में स्थिति की क्या संभावनाएँ हैं? कंपनी की भावी योजनाएँ क्या हैं? उसका संभावित कार्य परिणाम कैसा होगा? ऐसे ही अनेक प्रश्नों का उत्तर कंपनी के ऑफर डॉक्यूमेंट में देखने को मिल जाता है। इसमें कंपनी के जोखिम भरे पहलुओं की भी जानकारी दी जाती है। अब इन कंपनियों को अपने आई.पी.ओ. के लिए ग्रेडिंग करवानी पड़ती है।

यह ग्रेडिंग क्रिसिल सहित विभिन्न ग्रेडिंग एजेंसियाँ देती हैं। यह ग्रेडिंग कंपनी के फंडामेंटल के आधार पर एक से पाँच के क्रम में दी जाती है। इसमें पहले क्रम की कंपनी फंडामेंटल की दृष्टि से कमजोर समझी जाती है। ऐसी कंपनियों के इश्यू में आवेदन न करना ही अच्छा होता है, जबकि ग्रेड-2 साधारण, ग्रेड-3 अच्छी कंपनी होने का परिचायक है। ग्रेड- 4 एवं ग्रेड-5 की कंपनियों का फंडामेंटल मजबूत और उल्लेखनीय स्तर का परिचायक है।

शेयर बाजार में ‘पैन’ (PAN) का मतलब

एक बात साफ रूप से समझ लेना चाहिए कि शेयर बाजार में निवेश करने का सौदा करने या आई.पी.ओ. में आवेदन करने के लिए भी अब इन्कम टैक्स परमानेंट एकाउंट नंबर (PAN) आवश्यक है। इसी प्रकार शेयर बाजार में कारोबार करने के लिए डीमेट एकाउंट होना भी जरूरी है। पैन कार्ड के बिना डीमेट खाता नहीं खुलवाया जा सकता। इस प्रकार अब शेयरों का सौदा पैन नंबर के बिना संभव नहीं है। इन्कम टैक्स के पैन नंबर का नाम सुनकर घबराने की आवश्यकता नहीं है। कंप्यूटर के इस युग में इन्कम टैक्स संबंधी पारदर्शिता बढ़ गई है, इसलिए शेयरों का सौदा करनेवाले निवेशकों को इन्कम टैक्स की बहुत चिंता नहीं करनी चाहिए। शेयरों पर मिलनेवाले लाभांश को सरकार ने कर-मुक्त रखा है, अर्थात् कंपनी अपने लाभ में से शेयर धारकों को प्रतिवर्ष लाभांश के रूप में जो राशि देती है, उस पर कोई टैक्स नहीं लगता।

इसके अतिरिक्त शेयर बाजार में निवेश करनेवाले निवेशकों को सरकार ने अन्य कई कर लाभ भी दिए हैं। शेयरधारक किसी शेयर को जब इसके खरीदने के बारह महीने के अंदर बेचकर लाभ कमाता है तो इस लाभ पर शॉर्ट टर्म कैपिटल लाभ कमाया जा सकता है। इसे ‘लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन’ कहा जाता है और इस लाभ पर कोई कर नहीं लगता। इसका अर्थ यह हुआ कि जो निवेशक खरीदे गए शेयरों को बारह महीने के बाद बेचकर उस पर लाभ कमाते हैं तो ऐसे लाभ पर कोई कर नहीं लगता ।

शेयर बाजार की जानकारी

निवेशकों के बड़े ग्रुप में यह प्रश्न भी उठता है कि बी.एस.ई. और एन.एस.ई. के मध्य क्या असमानता है? इतना ही नहीं, विभिन्न राज्यों में विद्यमान शेयर मार्केट किनके लिए हैं तथा ये इनसे किस प्रकार भिन्न हैं? बी.एस.ई. (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) और एन.एस.ई. (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) ये दोनों सभी कंप्यूटराइज्ड-ऑनलाइन स्टॉक एक्सचेंज हैं

बी.एस.ई. देश का ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे महान स्टॉक एक्सचेंज है, जिस पर सबसे अधिक सूचीबद्ध कंपनियाँ हैं, जबकि एन.एस.ई. को स्थापित हुए लगभग 17 वर्ष हुए हैं। ये दोनों स्टॉक एक्सचेंज आज वैश्विक स्तर के बन गए हैं तथा इसके सदस्य देश के किसी भी कोने से इन एक्सचेंजों से सौदे कर सकते हैं। इसके विपरीत, विभिन्न राज्यों के शेयर बाजार अब वॉल्यूम-विहीन हो गए हैं और अब उन पर होनेवाले सौदों की संख्या नगण्य है। इतना ही नहीं, ये शेयर मार्केट बंद होने के बराबर हैं, परंतु ये बी.एस.ई. और एन.एस.ई. के मेंबर बनकर उस पर सौदा करते हैं।

सेंसेक्स और अन्य इंडेक्स क्या है ?

जब भी शेयर बाजार की बात होती है तो ‘ सेंसेक्स ‘ शब्द सबसे पहले सुनने या पढ़ने को मिलता है। सेंसेक्स ने 20 हजार के स्तर को पार कर लिया’ या ‘सेंसेक्स टूटा‘ जैसे शीर्षक अखबारों में पढ़ने या टी.वी. पर सुनने को मिलते हैं। सेंसेक्स बी.एस.ई. या बेंचमार्क सूचकांक है, जिसमें 12 महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों की 30 ब्लूचिप कंपनियों का समावेश है, जिसके कारण इसे बाजार में उतार-चढ़ाव का बैरोमीटर समझा जाता है। सेंसेक्स की घट-बढ़ मार्केट की मंदी या तेजी दर्शाती है।

निवेशक जब सेंसेक्स में शामिल कंपनी में निवेश करता है तो इस बात का भरोसा रहता है कि उसने जिस कंपनी में निवेश किया है, वे फंडामेंटली और विकास की दृष्टि से अत्यंत समर्थ कंपनी हैं। यदि आपको लगे कि सेंसेक्स बढ़ने वाला है तो आप इसके खरीद का वायदा कर सकते हैं और यदि आपकी धारणा है कि सेंसेक्स घटेगा तो आप इसके बेचने का सौदा कर सकते हैं। इस प्रकार के सौदे ‘ सेंसेक्स फ्यूचर्स के सौदे ‘ कहलाते हैं। बी.एस.ई. के निवेशक न्यून पूँजी के निवेश में सेंसेक्स में सौदा कर सकें, इसीलिए ‘मिनी फ्यूचर्स कांट्रेक्ट’ भी शुरू किया गया है।

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ब्रोकर की पंसदगी

शेयर बाजार में सौदे सिर्फ पंजीकृत शेयर दलालों के माध्यम से किए जा सकते हैं। निवेशकों को ब्रोकर का चुनाव ध्यानपूर्वक करना चाहिए और इसका चुनाव करते समय उनके ट्रेक रिकॉर्ड, सेवा की गुणवत्ता, ग्राहकों के लिए परामर्श सेवा, शोध इत्यादि के उपरांत उनका आपके साथ व्यवहार कैसा है, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। यदि कोई शेयर ब्रोकर सस्ती सुविधाएं उपलब्ध करता है, दलाली कम लेता है, लालची और आकर्षक ख़बरें देता है तो केवल इन गुणों के आधार पर ब्रोकर को चयनित करना उचित नहीं होगा।

इस प्रकार आपको डीमेट एकाउंट खुलवाने के समय डिपॉजिटरी पार्टीसिपेंट (डी.पी.) की अति आवश्यकता होती है। ब्रोकरी से लेकर बैंक तक कोई भी आपका डी.पी. हो सकता है। यदि आपको अपने ब्रोकर पर भरोसा है तो आप उसके पास ही अपना डीमेट अकाउंट नजदीक के किसी बैंक में खुलवा सकते हैं। वर्तमान में अनेक बैंक डीमेट की सुविधा के साथ ट्रेडिंग एकाउंट की भी सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं। ट्रेडिंग एकाउंट खुलवाते समय डीमेट एकाउंट, पैन कार्ड नंबर, अपना फोटो, पते का प्रमाण, बैंक आदि की जानकारी देनी पड़ती है। अब इस तरह के व्यवहार में पारदर्शिता निरंतर बढ़ रही है।

टिप्स का गणित

शेयर मार्केट में हर बार आपको ‘टिप्स’ शब्द सुनने को मिलता होगा । लोग एक-दूसरे को कहते हैं कि कौन सा शेयर तीन माह में उसका डबल हो जाएगा, आदि-आदि। बाजार की भाषा में ऐसी सलाह को ‘टिप्स’ कहा जाता है। ऑपरेटर और सटोरिए भारी मात्रा में टिप्स-कल्चर को फैलाते हैं, जिसमें सच्ची-झूठी अथवा अफवाहों पर आधारित जानकारी बाजार में फैलती रहती है। निवेशकों को बाजार में फैली हुई टिप्स से हमेशा सावधान रहना चाहिए। तेजी के समय बाजार में टिप्स कल्चर और ज्यादा विकसित हो जाता है। टिप्स का कोई ठोस आधार नहीं होता, जिसके कारण इसके आधार पर किए गए सौदों में जोखिम की मात्रा काफी होती है। प्रायः देखा गया है कि नए निवेशक बाजार की इन टिप्स के लालच में आकर अपने खून पसीने की कमाई लगा देते हैं और बाद उसका नुकसान उठाने पर पछताते हैं।

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