प्रवाल भित्तियां (Coral Reefs) || प्रवाल भित्तियों के प्रकार
प्रवाल भित्तियां (Coral Reefs)
प्रवाल भित्तियां (मूंगा) उष्ण कटिबंधीय महासागरों में पाया जाने वाला जीव है, जो मुख्यतः 30° उत्तरी अक्षांशों से 30° दक्षिणी अक्षाशों के मध्य पाया जाता है। इनके जीवित रहने के लिए 20° से 22° से. तापमान की आवश्यकता होती है। इनके लिए अवसाद रहित जल रहना चाहिए लेकिन पूर्ण स्वच्छ जल भी हानिकारक होता है।
इनका विकास अंतः सागरीय चबूतरों पर होता है। यह अधिकतम 150 से 250 फीट या 66.77 मीटर की गहराई तक ही पाये जाते हैं। क्योंकि इसके बाद इनके लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाएं नहीं होती हैं।
ये कर्क व मकर रेखा के मध्यवर्ती समुद्री क्षेत्रों के पास पाये जाते हैं। जहां सागरीय जल की लवणता 27% – 30% होती है। जब मूंगा के खोल एक-दूसरे के पास आते हैं, तो ये एक चट्टान का रूप धारण कर लेते हैं। जिसे मूंगा की चट्टान अथवा भित्ति कहते हैं।
सामान्तया ये हल्के ज्वार के समय अधिक दिखाई देते हैं, परंतु गहरे ज्वार आने पर ये जल से ढक जाते हैं। वर्तमान में जनसंख्या का वितरण उन्हीं स्थानों पर है, जहां इनकी समुद्र तट से अधिक ऊंचाई है।
प्रवाल भित्तियों के प्रकार (Types of Coral Reefs)
वर्ष 1842 में चार्ल्स डार्विन ने उष्ण कटिबंधीय भित्तियों को 4 वर्गों में विभक्त किये थे।
1. तटीय प्रवाल भित्ति
इस प्रकार की प्रवाल भित्तियां महाद्वीपीय मग्नतट के पास होती है और इस प्रकार का मूंगा जीव तट के पास वाले छिछले स्थानों पर जमा होता है एवं एक चट्टानीय संरचना तैयार हो जाती है।
इस स्थान पर समुद्र गहरा नहीं होता एवं कभी-कभी यह सबसे ऊंचा भी दिखाई देता है। इससे पूर्व वाले भागों में लैगून म्फील का निर्माण होता है, जिसे बोट चैनल कहते हैं। ये द. पलोरिडा, समाऊ फ्लोरिडा, मलेशिया द्वीप, अंडमान एवं मन्नार की खाड़ी में रामेश्वरम नामक स्थान के समीप मिलते हैं।
प्रवाल भित्तियां प्रायः कम चौड़ी तथा सँकरी होती है। जहाँ कहीं भी स्थलीय नदियाँ सागर में गिरती है, वहाँ पर प्रवाल भित्तियों का क्रम भंग हो जाता है। इन प्रवाल भित्तियों की ऊपरी सतह पर समुद्री लहरों के द्वारा प्रवाल के टुकड़ों की । राशि जमा की जाती है। इसे रीफ फ्लैट (Reef Flat) की संज्ञा प्रदान की जाती है। दक्षिणी फ्लोरिडा के तट के समीप सकाऊ द्वीप एवं मलेशिया द्वीप के सहारे इस प्रकार की प्रवाल भित्ति मिलती है।
2. बैरीयर रीफ या अवरोधक प्रवाल भित्ति
महाद्वीपीय मग्न तट से कुछ दूरी पर अगर कोई पहाड़ी श्रृंखला फैली है तो उसके निकटवर्ती क्षेत्र में मूंगा क्रमिक रूप से जमा हो जाता है और एक विस्तृत क्षेत्र को जन्म देता है। सामान्यतया प्रशांत महासागरीय क्षेत्रों में इस प्रकार की अवरोधक भित्ति बहुत मिलती है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व में लगभग 150 किमी. तक चौड़ाई में तथा 2000 किमी. तक लंबी एक बहुत बड़ी मूंगा की संरचना है, जो ग्रेट बैरियर रीफ के नाम से जानी जाती है।
3. प्रवाल द्वीप वलय/एटॉल
यह एक अर्द्ध वृत्त रूप में अथवा घोड़े की नाल के खुर की आकृति की होती है, जिसके मध्य में अधिकांशतः लैगून भरा रहता है एवं निर्माण दृष्टि से यह भी महाद्वीपीय मग्न तट से दूर स्थित है।
लाल सागर, ऑस्ट्रेलिया सागर, चीन सागर एवं इंडोनेशिया के पास वाले समुद्री क्षेत्रों में इस प्रकार की प्रवाल भित्ति पायी जाती हैं, जिसके मध्य में लैगून रहता है, लेकिन समयानुसार यह भी ठोस हो जाता है। एलिस द्वीप का फुनाफुटी एटाल (Funa Futi Atoll) वलयाकार प्रवाल भित्ति का उदाहरण है।
एटॉल प्रायः 3 प्रकार के होते है।
1. वे एटॉल जिनके बीच में द्वीप नहीं पाया जाता है, केवल प्रवाल की वलयकार श्रेणियाँ ही पाई जाती है।
2. वे एटॉल जिसके मध्य में द्वीप पाया जाता है।
3. वे एटॉल जिसके मध्य में पहले से द्वीप नहीं रहता, परन्तु बाद में सागरीय तरंगों द्वारा उनके ऊपर द्वीप जैसा बन जाता है, इन्हें प्रवाल द्वीप या एटॉल द्वीप कहा जाता है।
4. मूंगा द्वीप
इस प्रकार के द्वीप तटवर्ती क्षेत्र से बहुत दूरी पर होते हैं। क्योंकि ये गोल आकृति के एक द्वीप के रूप में निर्मित होते हैं, जिनका आधार समुद्री पर्वतीय क्षेत्र है। ज्वारीय स्थिति में यह मूंगा द्वीप स्पष्ट दिखाई देते हैं, परंतु कई मूंगा द्वीप अधिक ज्वार के समय जल से ढक जाते हैं।
इनके मध्य में कभी-कभी बहुत छोटी मात्रा में लैगून दिखाई देता है, परंतु अधिकांशतया यह ठोस रूप में दिखाई देती है। निर्माण के समय यह एक रिक्त स्थान थे, परंतु समय के साथ ये वर्तमान में होने वनस्पति के क्षेत्र है, क्योंकि पक्षियों ने यहां बीज लाकर डाले या आसपास के जहाजी आवागमन ने कई प्रकार के बीज डालकर इन क्षेत्रों को घने वनस्पति का क्षेत्र बना दिया है।
वर्तमान में यह जनसंख्या के महत्वपूर्ण क्षेत्र जैसे- अरब सागर में लगभग सभी द्वीप मूंगाकृत चट्टान माने जाते हैं। लक्षद्वीप इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching)
प्रवाल भित्ति जीवों में रंग का ह्रास होने से उनके सफेद होने की परिघटना प्रवाल विरंजन कहलाती है।
विरंजन का मुख्य कारण समुद्री जल के तापमान में वृद्धि होने से प्रवालों के मुख्य भोजन हरे रंग के शैवलों को सफेद होना है। इस प्रक्रिया में प्रवालों का प्रमुख सहजीवी शैवाल जूक्सांथेल इनसे अलग हो जाता है। प्रवाल भित्तियों के संघटक मिश्रित पोषी जीवो का ये शैवाल पोषण करते है। ये शैवाल हरे रंग के होने के कारण भी एक तरह का पौधा ही होता है, जो प्रकाश संश्लेषण में सहायक होते है। शैवाल का विरंजन होने (रंग बदलकर सफेद होने) से प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है फलस्वरूप प्रवालों के प्रमुख सहजीवी एवं आहार शैवाल समाप्त हो जाते है, तथा भोजन आपूर्ति न होने से प्रवाल भी मर जाते है। यह प्रक्रिया प्रवाल विरंजन कहलती है।
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