educational

Needs of inclusive education | समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएं

समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएं Needs of inclusive education कुछ शिक्षाविद विशिष्ट शिक्षा की पक्षधर नहीं है। उनके अनुसार यह शिक्षा के अवसरों की समान नहीं है तथा बालकों के विचारों में भिन्नता पैदा होती है। सामान्य कक्षाएं अपंग बालकों में हीन भावना उत्पन्न करती है। कुछ ही समय पहले, मनोवैज्ञानिकों ने विचार दिया है कि समावेशी शिक्षा हमारे सामान्य विद्यालयों में दी जाये जिससे सभी बालकों को शिक्षा के समान अवसर मिलें। शिक्षाविद् भी इस प्रकार की शिक्षा के पक्षधर हैं तथा इसे निम्न कारणों से उचित बताते हैं –

1.सामान्य मानसिक विकास संभव है (Normal Mental Growth is Possible) –विशिष्ट शिक्षा में मानसिक जटिलता मुख्य है। अपंग बालक अपने आपको दूसरे बालकों की अपेक्षा तुच्छ तथा हीन समझते हैं जिसके कारण उनके साथ पृथककता से व्यवहार किया जा रहा है। समावेशी शिक्षा व्यवस्था में, अपंगो को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्रदान किया जाता है। प्रत्येक बालक सोचता है कि वह किसी भी प्रकार से किसी अन्य बच्चे से तुच्छ रहा है। इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों की सामान्य मानसिक प्रगति को अग्रसर करती है।
2. सामाजिक एकीकरण को सुनिश्चित करती है (Social Integration is Ensured) – अपंग बालकों में कुछ सामाजिक गुण बहुत संगत होते हैं। जब वे सामान्य बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं। अपंग बालक अधिक संख्या में सामान्य बालकों का संग पाते हैं तथा एकीकरणता के कारण वे सामाजिक गुणों को अन्य बालकों के साथ ग्रहण करते हैं। उनमें सामाजिक, नैतिक गुण, प्रेम, सहानुभूति, आपसी सहयोग आदि गुणों का विकास होता है। विशिष्ट शिक्षा-व्यवस्था में छात्र केवल विशिष्ट ध्यान ही नहीं परंतु विस्तार में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्धा की भावना विकसित होती है।
3. समावेशी शिक्षा कम खर्चीली है(Integrated Education is Less Expensive) – निःसंदेह विशिष्ट शिक्षा अधिक महंगी तथा खर्चीली है। इसके अलावा विशिष्ट अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिक समय लेते हैं। दूसरे दृष्टिकोण से समावेशी शिक्षा कम खर्चीली तथा लाभदायक है। विशिष्ट शिक्षा संस्था को बनाने तथा शिक्षण कार्य प्रारंभ करने के लिए अन्य कई स्रोतों से भी सहायता लेनी पड़ती है; जैसे-प्रशिक्षित अध्यापक, विशेषज्ञ, चिकित्सक आदि। अपंग बालक की सामान्य कक्षा में शिक्षा पर कम खर्चा आता है।
4. समावेशी शिक्षा के माध्यम से एकीकरण संभव है (Entegration is Possible Through Integrated Education) – विशिष्ट शिक्षण व्यवस्था की अपेक्षा समावेशित शिक्षण व्यवस्था में सामाजिक विचार- विमर्श अधिक किये जाते हैं, अर्थात उच्चारण अधिक है। अपंग तथा सामान्य बालक में सामान्य शिक्षा के अंतर्गत एक प्राकृतिक वातावरण बनाया जाता है। इस वातावरण में अपने सहपाठियों से सीखना, स्वीकार करना तथा स्वयं को दूसरों द्वारा स्वीकार कराया जाना समावेशी शिक्षा द्वारा संभव है। सामान्य वातावरण में छात्र उपयुक्तता की भावना तथा भावनात्मक समायोजन का विकास होता है।
5. शैक्षिक एकीकरण संभव है (Academic Integration is Possible) – शैक्षिक योग्यता सामान्यता समावेशी शिक्षा की वातावरण द्वारा संभव है। शिक्षाविदों का ऐसा विश्वास है कि विशिष्ट शिक्षा संस्था एक बालक के प्रवेश के पश्चात समान शैक्षिक योग्यता रखने वाले अपंग बालक उनके गुणों को ग्रहण करता है। शिक्षाविदों को यह भी मालूम होता है कि विशिष्ट विद्यालयों में छात्र तथा अपंग छात्र शिक्षा के पूर्ण ग्राही नहीं होते। सामान्य विद्यालयों में बाधित छात्रों को प्रवेश दिलाने के कारण वह ठीक प्रकार से शिक्षण ग्रहण करने में असमर्थ होते हैं। एक प्रकार से कहा जा सकता है कि लचीले वातावरण तथा आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ समावेशी शिक्षा शैक्षिक एकीकरण लाती है।
6. समानता के सिद्धांत का अनुपालन करना है (Principle of equality is maintained) – भारत में, सामान्य शिक्षा व्यापक रूप से विस्तार की संवैधानिक व्यवस्था की गई है और साथ-साथ शारीरिक रूप से बाधित बालकों के लिए शिक्षा को व्यापक रूप देना भी संविधान के अंतर्गत दिया गया है। समावेशी शिक्षा के वातावरण के माध्यम से समानता के उद्देश्य की भी प्राप्ति की जानी चाहिए, जिससे कोई भी छात्र अपने आपको दूसरों की अपेक्षा हीन न समझे।

समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा

hi.m.wikipedia.org

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *