सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन CCE
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन CCE
सतत मूल्यांकन एवं व्यापक मूल्यांकन का आशय
शिक्षा के क्षेत्र में बदलती हुई परिस्थितियों ने विद्यार्थियों के समग्र मूल्यांकन हेतु अब वार्षिक परीक्षा व संपूर्ण पाठ्यक्रम की समाप्ति के पश्चात होने वाली परीक्षा की जगह विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास पर बल दिया जा रहा है। सतत व व्यापक मूल्यांकन इसी सोच का परिणाम है।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन दो शब्दों सतत तथा व्यापक से मिलकर बना है।
मूल्यांकन अध्यापन एवं अधिगम प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का अंतिम सोपान मूल्यांकन ही है। माध्यमिक स्तर पर सतत एवं व्यापक मूल्यांकन को लागू करने का स्पष्ट निर्देश पूर्व में सीबीएसई द्वारा दिया जा चुका है। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की प्रणाली में छात्रों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखा जाता है। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में दो भाव निहित हैं।
1. सतत मूल्यांकन
2. व्यापक मूल्यांकन
1. सतत मूल्यांकन
सतत मूल्यांकन करने का अर्थ छात्रों के ‘वृद्धि व विकास’ का मूल्यांकन एक बार के बजाय निरंतर करना, क्योंकि अधिगम एक सतत प्रक्रिया है तथा इसका मूल्यांकन भी उसी प्रकार होना चाहिए। सतत मूल्यांकन करने के लिए वर्तमान में तीन प्रकार के मूल्यांकन का प्रयोग किया जाता है-
(i) निदानात्मक मूल्यांकन
(ii) रचनात्मक मूल्यांकन
(iii) संकलनात्मक मूल्यांकन
(i) निदानात्मक मूल्यांकन
जिन बालकों में अधिगम की प्रगति आशानुरूप नहीं होती है ऐसे बालकों में अधिगम संबंधी समस्याओं का विश्लेषण करने के लिए इस मूल्यांकन का प्रयोग किया जाता है तथा इसके बाद उन्हें उपचारात्मक शिक्षण प्रदान किया जाता है।
(ii) रचनात्मक मूल्यांकन
ऐसे मूल्यांकन के माध्यम से अधिगम की प्रगति का आकलन एवं निर्धारण किया जाता है। इसके लिए गृह कार्य, क्लास टेस्ट, दत्त कार्य (Assignments), क्वीज टेस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। इनसे प्राप्त परिणामस्वरूप छात्रों को फीडबैक दिया जाता है। शिक्षक अपने शिक्षण विधि तथा छात्र अपने संज्ञानात्मक व्यवहार में सुधार करते हैं। इसी कारण इसे रचनात्मक मूल्यांकन कहते हैं।
(iii) संकलनात्मक मूल्यांकन
ऐसे मूल्यांकन का प्रयोग संपूर्ण सत्र की समाप्ति के बाद किया जाता है। इस प्रकार के मूल्यांकन का ‘उद्देश्य अधिगम प्रगति तथा शैक्षिक उपलब्धि का आकलन करना होता है।
2. व्यापक मूल्यांकन
सतत मूल्यांकन व्यवहार के सिर्फ संज्ञानात्मक मूल्यांकन करता है, जबकि व्यापक मूल्यांकन व्यवहार के तीनों पक्ष संज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक का मूल्यांकन करता है। विद्यालय की संपूर्ण शैक्षिक गतिविधियों के संदर्भ में इसका प्रयोग किया जाता है। इससे शैक्षिक एवं गैर-शैक्षिक दोनों पक्षों का आकलन होता है। इसके लिए प्रेक्षण विधि समाजमिति, मनोवृत्ति आदी मापनी का प्रयोग किया जाता है।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का महत्व
सतत व व्यापक मूल्यांकन की विधियाँ
सतत व व्यापक मूल्यांकन के लिए निम्न प्रमुख विधियों को प्रयोग में लाया जाता है :
साक्षात्कार
• साक्षात्कार आंग्ल भाषा के Interview का हिंदी रूपांतर है जिसका अर्थ है आंतरिक विचार। सामान्यतः इस विधि का प्रयोग कर बालकों के विचार तथा दैनिक जीवन के प्रयोग व अधिगम किए गए ज्ञान को जाना जा सकता है।
प्रश्नावली
• बालकों को प्रश्नों की एक सुनियोजित सूची दी जाती है जिनका उन्हें उत्तर देना होता है तत्पश्चात मूल्यांकन किया जाता है।
• इसका प्रयोग शाब्दिक व चित्रात्मक दोनों रूपों में होता है।
निरीक्षण
• इस विधि का प्रयोग व्यक्तिगत व सामूहिक अध्ययन दोनों के लिए किया जाता है।
• बालकों के मूल्यांकन के लिए यह विधि काफी उपयोगी है।
• प्राकृतिक परिस्थिति में बालक का मूल्यांकन किया जाता है तथा वास्तविक व्यवहार सामने आता है।
• यह विधि वस्तुनिष्ठ, निश्चित क्रमबद्ध, प्रमाणिक तथा विश्वसनीय है।
• व्यवहारवादी इस विधि के प्रयोग पर बल देते हैं।
दत्त कार्य
• बालकों को शिक्षक कुछ ऐसे दत्त कार्य प्रदान करते हैं जिसके द्वारा बालकों के सृजनात्मकता, मौलिकता, संगठनात्मकता आदि गुण जो उनके अंदर छिपे हैं उसे जान सके। यह व्यापक मूल्यांकन के लिए काफी उपयोगी है।
आवधिक परीक्षा
• सतत मूल्यांकन के लिए यह विधि उपयोगी है, क्योंकि यूनिट में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसकी परीक्षा ली जाती है। ऐसा यूनिट खत्म होने के बाद लेने से तुरंत पता चल जाता है कि अधिगम सही तरीके से हो पाया है कि नहीं या फिर निष्पादन के तरीके में कोई कमी है।
वार्षिक परीक्षा
• यह व्यापक मूल्यांकन के लिए उपयोगी विधि है।
उपरोक्त के अलावा जांच सूची, विवरण, वर्णात्मक रिकॉर्ड आदि भी सतत व्यापक मूल्यांकन के सहयोग प्रदान करते हैं।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के चरण या अवधि
1.प्रथम चरण ( 5 माह ) 50%
रचनात्मक मूल्यांकन 2
योगात्मक मूल्योकन 1