meaning and definition of social studies || सामाजिक अध्ययन का अर्थ एवं परिभाषा
सामाजिक अध्ययन का अर्थ एवं परिभाषा
सामाजिक अध्ययन की परिभाषाएं
1. पीटर एच० माटेरिला :-
इन्होंने अपनी “Social Studies, Strategies,Theory and Practice” में कहां है “सामाजिक- अध्ययन को प्रयोगात्मक क्षेत्र के द्वारा संबंधित करना अधिक उचित होगा, क्योंकि इसमें वैज्ञानिक ज्ञान को नैतिक, दार्शनिक, धार्मिक तथा सामाजिक क्रियाओं के साथ समन्वित किया जाता है, जो निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों के सामने आते हैं।”
2. पी०फोरेस्ट के विचारानुसार :-
“सामाजिक अध्ययन जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, समाज का अध्ययन है और इसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को उस संसार के समझने मैं सहायता प्रदान करना है, जिसमें उन्हें रहना है, ताकि वे उसके उत्तरदायी सदस्य बन सकें। इसका ध्येय विवेचनात्मक चिंतन तथा सामाजिक परिवर्तन की तत्परता को प्रोत्साहित करना, समाज कल्याण के लिए कार्य करने की आदत को विकसित करना, दूसरी संस्कृतियों के प्रति प्रशंसात्मक दृष्टिकोण रखना तथा यह अनुभव करना है कि सभी मानव तथा राष्ट्र एक-दूसरे पर आश्रित है।”
3. जाॅन वी० मिकाईलिस के शब्दों में :-
“सामाजिक अध्ययन मानव और उसके अपने सामाजिक तथा भौतिक वातावरण से संबंधित स्थापित है, यह मानव के संबंधों का अध्ययन करता है। सामाजिक अध्ययन का केंद्र का कार्य शिक्षा की केंद्रीय लक्ष्य के अनुरूप होता है – अर्थात् लोकतंत्रात्मक नागरिकता का विकास।”
4. जोरोलिमिक के अनुसार :-
सामाजिक अध्ययन मानवीय संबंधों का अध्ययन है।”
5.वेस्ले के अनुसार :-
“सामाजिक अध्ययन उस विषय सामग्री की और इंगित करता है जिनके तथ्य तथा उद्देश्य प्रमुख रूप से सामाजिक होते हैं।”
6. जेम्स हामिंग के अनुसार :-
“सामाजिक अध्ययन ऐतिहासिक भौगोलिक तथा सामाजिक संबंधों तथा अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन है।”
7. एम०पी०मोफ्ट के अनुसार :-
जीने की कला बड़ी सुंदर कला है, सामाजिक अध्ययन द्वारा ही यह ज्ञान प्राप्त होता है।”
8. यू०एस०ए० परिषद के अनुसार :-
“सामाजिक अध्ययन मानवीय समाज,संगठन तथा विकास से संबंधी है।”
सामाजिक अध्ययन की नवीन धारणा (New Concept of Social Studies)
सामाजिक अध्ययन ज्ञान का वह क्षेत्र है जिसके द्वारा आधुनिक सभ्यता को स्पष्ट किया जाता है इसकी पुष्टि में हम एम ०पी मोफात के शब्दों का उल्लेख कर सकते हैं,”सामाजिक अध्ययन ज्ञान का वह विस्तृत क्षेत्र है जो युवाओं को आधुनिक युग की सभ्यता के विकास को समझने में सहायता प्रदान करता है। ऐसा करने के लिए वह अपनी विषय-वस्तु को समाज तकनीकी तथा समस्त जीवन से प्राप्त करता है।”
2.शिक्षा का आधुनिक दृष्टिकोण :-
सामाजिक अध्ययन शिक्षा के आधुनिक दृष्टिकोण का एक अंश है, जिसका ध्येय तथ्यात्मक सूचनाओं को संग्रहित या एकत्रित करने की अपेक्षा मानदंडों, वृतियों आदर्शों तथा रूचियों का निर्माण करना है।
3. शिक्षण के लिए नवीन आधार प्रदान करने वाला विषय :-
सामाजिक अध्ययन अपनी विषय-वस्तु से आज के जटिल विश्व को सरल एवं स्पष्ट बनाने के लिए शिक्षण का नवीन आधार प्रदान करता है। इसकी पुष्टि करते हुए बाइनिंग व बाइनिंग ने लिखा है, सामाजिक अध्ययन की विषय वस्तु द्वारा एक ऐसा आधार प्रस्तुत किया जाता है जिसके द्वारा हम अपने छात्रों के समक्ष आज के विश्व को स्पष्ट एवं सरल बना सकते हैं।
4. क्षेत्रीय विकास के रूप में :-
सामाजिक अध्ययन social studies परंपरागत विषय नहीं है वरन ज्ञान का क्षेत्र है इसके संबंध में एम०पी०मुफात ने लिखा है- “सामाजिक अध्ययन वह क्षेत्र है जो युवाओं को उस ज्ञान तथा क्रियात्मक अनुभव के द्वारा सहायता प्रदान करता है, जो मूलभूत मूल्यों, वांछित आदतों, स्वीकृति वृत्तियों तथा उन महत्वपूर्ण कुशलताओ के निर्माण के लिए आवश्यक है जिनको प्रभावशाली नागरिकता का आधार माना जाता।”
5. सामाजिक प्रणाली के रूप में मानव का अध्ययन:-
सामाजिक अध्ययन मानव सामाजिक प्राणी के रूप में अध्ययन करता है। इसकी विषय-सामग्री मानव समाज के संगठन एवं विकास से संबंधित है। अपने कथन की पुष्टि “राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान आयोग”के शब्दों में कर सकते हैं,”सामाजिक अध्ययन वह विषय वस्तु है जो मानव समाज के संगठन एवं विकास से संबंधित हैऔर मनुष्य के सामाजिक समूह के सदस्य के रूप में अध्ययन करती है।”
6. सामाजिक तथा भौतिक वातावरण का अध्ययन:-
सामाजिक अध्ययन वह अध्ययन है जो सामाजिक तथा भौतिक वातावरण की विवेचना करता है। इस संबंध में जाॅन यू०माइकेलिस ने लिखा है,”सामाजिक अध्ययन का कार्यक्रम मनुष्य तथा अतीत, वर्तमान तथा विकसित होने वाले भविष्य की सामाजिक और भौतिक पर्यावरणों के प्रति उनके द्वारा की गयी पारस्परिक क्रिया का अध्ययन है।”
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक अध्ययन एक विस्तृत, व्यापक एवं विशिष्ट विषय है इस विषय की कुछ विशेषताएं है जिनका विवरण अग्र प्रकार से हैं –
सामाजिक अध्ययन की विशेषताएं।
1. सामाजिक अध्ययन मनुष्यों तथा उनके समुदायों का अध्ययन है।
2. यह मानवीय संबंधों पर बल देता है।
3. यह वह अध्ययन है जो छात्र छात्राओं को उस वातावरण को समझने तथा उसकी व्याख्या करने में सहायता प्रदान करता है जिसमें वह पैदा तथा विकसित हुए है।
4. यहां इस तथ्य को समझने में सहायता प्रदान करता है कि आज मानव संपूर्ण विश्व में आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से अन्योन्याश्रित है।
5. यह अध्ययन इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि मानव स्थानीय,राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ मिलकर जीवन यापन तथा कार्य करता है।
6. यह सामाजिक संस्थाओं की उत्पत्ति एवं विकास की समझदारी है।
7. यह मनुष्य तथा उसके भौतिक पर्यावरण के बीच होने वाली अंत:क्रिया का अध्ययन करता है। साथ ही इसके क्षेत्र में सामाजिक तथा अन्य प्रकार के पर्यावरणो का अध्ययन भी निहित है।
8. यह आधुनिक विश्व एवं सभ्यता को सरल एवं स्पष्ट बनाने में सहायता प्रदान करता है। साथ ही यह छात्रों को समसामयिकी समस्याओं को समझने में सहायता देता है।
9. सामाजिक अध्ययन में केवल विषयों का योग ही निहित नहीं है वरन यह एकीकृत उपागम है।
10. यह वह अध्ययन है जिसमें अतीत तथा वर्तमान में मानवता को प्रभावित करने वाले मामलों, समस्याओं तथा ढांचों का अध्ययन किया जाता है।
11. सामाजिक अध्ययन सामाजिक जीवन तथा उसकी परिस्थितियों के अध्ययन पर बल देता है।
12. सामाजिक अध्ययन समग्र ज्ञान के एक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
13. सामाजिक अध्ययन शिक्षण के लिए एक नवीन आधार एवं दृष्टिकोण प्रदान करता है।
14. सामाजिक अध्ययन विषयों के विभाजन की कठोरता को समाप्त करके ज्ञान की सापेक्षता पर बल देता है।
15. सामाजिक अध्ययन उत्तम नागरिकता के विकास में सहायता प्रदान करके लोकतंत्र को सफल एवं सुरक्षित बनाने में सहायक है।
सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र (Scope of Social Studies)
सामाजिक अध्ययन के अर्थ, प्रकृति एवं उसके सामाजिक विज्ञानों से अन्तर सम्बन्धी विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसका क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि सामाजिक विज्ञानों से विषय-वस्तु ली जाती है। साथ ही इसमें आधुनिक समस्याओं, तत्कालीन घटनाओं तथा समसामयिक घटनाओं को भी स्थान प्रदान किया जाता है। इस प्रकार सामाजिक अध्ययन मानव-जीवन के किसी विशेष पक्ष का विवेचन न करके उसकी सम्पूर्णता का वर्णन करता है।
इसमें मानव के नागरिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक आदि सभी पक्षों का विवेचन किया जाता है। साथ ही सामाजिक अध्ययन मनुष्य के सामाजिक एवं भौतिक वातावरणों का विवेचन करके उनकी अन्योन्याश्रितता को भी स्पष्ट करता है। वस्तुतः सामाजिक अध्ययन, अध्ययन का बढ़ता हुआ क्षेत्र है। इस क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है निकलसन राइट के अनुसार, “वस्तुतः इसका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है और सम्पूर्ण विश्व में मानव का वर्तमान सामाजिक जीवन ही इसका मूल है।”
आधुनिक विचारधारा के अनुसार अब सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत न केवल सामाजिक विज्ञानों की सरलीकृत एवं पुनः संगठित सामग्री को माना जाता है वरन् अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, अन्तः सांस्कृतिक सम्बन्ध, नागरिकता की शिक्षा, विवादास्पद मामले आदि विषयों को भी स्थान प्रदान किया जाता है।
इसके क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित तथ्यों का अध्ययन किया जाता है-
(1). मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन –
समाज के समस्त अंगों के साथ मनुष्य के सम्बन्धों का अध्ययन ही सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र है। मनुष्य का समाज के दूसरे लोगों से क्या सम्बन्ध है तथा उसका विभिन्न संस्थाओं से क्या सम्बन्ध है ? इन सबका अध्ययन इसके क्षेत्र की सीमाओं में ही है। इन सभी को सही ढंग से समझने और इन सम्बन्धों में घनिष्ठता तथा सामंजस्य लाने के लिए सामाजिक विज्ञानों एवं मानवशास्त्रों को इसमें सम्मिलित करते हैं, जैसे—इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र तथा समाजशास्त्र आदि।
(2). मानव निर्मित संस्थाओं का अध्ययन-
जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ मनुष्य ने विभिन्न सामाजिक संस्थाओं (राज्य, सरकार तथा अनेक अन्य समुदाय) का निर्माण किया। इन समस्त संस्थाओं की कार्य-पद्धति निर्माण की प्रक्रिया व वर्तमान परिस्थिति आदि का अध्ययन इस विषय के अन्तर्गत आता है। ये मनुष्य द्वारा निर्मित संस्थाएँ उसके सामाजिक सम्बन्धों को नियमित करने व अनुशासित रहने के प्रयत्नों का परिणाम है। जैसे-जैसे समय बढ़ा, इन संस्थाओं की संख्या बढ़ती गयी, जिससे सामाजिक अध्ययन का विषय क्षेत्र और अधिक विस्तृत हो गया।
(3). नागरिकता के गुणों का विकास –
सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में समावेशित विषय-वस्तु से छात्रों में नागरिक गुणों का विकास होता है। छात्रों में अपने कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता, सहानुभूति, पारस्परिक सहयोग, सहनशीलता तथा अनुशासन आदि गुणों का विकास होता है। उनमें ऐसी रुचियों, आदतो तथा क्षमताओं का भी विकास होता है, जो उन्हें आदर्श नागरिक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(4). अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन-
आधुनिक युग अन्तर्राष्ट्रीयता का युग है। वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीयता के बिना कोई भी देश विकास नहीं कर सकता। दूरसंचार, विश्व व्यापार तथा मानव कल्याण परियोजनाओं की सफलता भी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के बिना असम्भव है। अन्तर्राष्ट्रीयता क्या है ? इसकी सफलता हेतु आवश्यक तत्त्व कौन कौन से है तथा अन्तर्राष्ट्रीय की सीमाएँ व स्वरूप क्या है ? इन सबका ज्ञान सामाजिक अध्ययन से ही होता है।
(5). समाज से सम्बन्धित अध्ययन –
सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत समाज के हर पहलू का अध्ययन किया जाता है, परन्तु सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में सामाजिक वातावरण का ही मुख्य रूप से अध्ययन किया जाता है। व्यक्ति समाज में रहकर विभिन्न क्रियाएँ करता है और भौतिक वातावरण का उस पर समान प्रभाव होता है। इस प्रकार से समाज शास्त्र, अर्थशास्त्र, नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र तथा भूगोल आदि के अध्ययन विषय भी इसके क्षेत्र का एक भाग हैं।
(6). अतीत पर आधारित घटनाओं का अध्ययन-
अतीत (भूतकाल) में घटने वाली सामाजिक घटनाओं का आने वाले समय पर अवश्य प्रभाव पड़ता है। इन घटनाओं का अध्ययन मनुष्य को विश्लेषण के लिए प्रेरणा देता है, जिससे अतीत और वर्तमान के मध्य समन्वय तथा समायोजन बनाने में सहायता मिलती है। इस प्रकार अतीत की घटनाओं का अध्ययन सामाजिक अध्ययन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
(7). प्राकृतिक विज्ञान तथा विकास का अध्ययन –
प्रकृति मनुष्य के शिक्षक के रूप में भी देखते हैं, न कि केवल प्राकृतिक सम्पदा के रूप में ही। प्रकृति की संरचना, मानव समाज के विकास में इसकी भूमिका प्राकृतिक सम्पदा का महत्त्व, पर्यावरण व सन्तुलन आदि सामाजिक विषय के अन्तर्गत ही आते हैं।
सामाजिक अध्ययन का महत्त्व (Importance of Social Studies)
स्वतन्त्रता से पूर्व शिक्षा पूर्णतया पुस्तकीय तथा सूचनात्मक थी। शिक्षा मूल रूप से जीवकोपार्जन के उद्देश्यों से प्रभावित थी। परिणामस्वरूप केवल भाषा, गणित तथा भौतिक विज्ञान की शिक्षा को महत्त्व प्रदान किया जाता था। सामाजिक विषयों की उपेक्षा की जाती थी, क्योंकि उनका कोई व्यावसायिक महत्त्व नहीं था। आज के युग में सामाजिक अध्ययन के विषयों को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। सामाजिक अध्ययन की शिक्षा के महत्व को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(1). सामाजिक दृष्टि से सामाजिक अध्ययन का महत्त्व,
(2). वैयक्तिक दृष्टि से सामाजिक अध्ययन का महत्त्व।
(1) सामाजिक दृष्टि से सामाजिक अध्ययन का महत्त्व
सामाजिक दृष्टि से सामाजिक अध्ययन का महत्त्व निम्नलिखित कारणों से है –
(i). सामाजिक अध्ययन छात्रों में स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक है।
(ii). सामाजिक अध्ययन देश की विरासत तथा संस्कृति के लिए प्रेम तथा सम्मान एवं श्रद्धा जाग्रत करता है।
(iii). यह सहयोगी भावना विकसित करता है।
(iv). यह समाज की प्रगति के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
(v). सामाजिक अध्ययन समाज में एकरूपता तथा दृढ़ता लाने में सहायता प्रदान करता है।
(vi). सामाजिक अध्ययन सामाजिक जागरुकता तथा अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना के विकास में सहायक है।
(vii). यह सामाजिक जीवन को उन्नत सफल तथा समृद्ध बनाने में परम उपयोगी है।
(viii). यह साथियों के लिए सहिष्णुता, सहानुभूति तथा प्रेम को भावना विकसित करता है।
(ix). सामाजिक अध्ययन समीक्षात्मक चिन्तन की भावना विकसित करके पूर्ण जीवनयापन में सहायता देता है।
(x). सामाजिक अध्ययन पूर्वद्वेषों एवं पूर्वाग्रहों को दूर करके व्यापक दृष्टिकोण के विकास में सहायता प्रदान करता है।
(2) वैयक्तिक दृष्टि से सामाजिक अध्ययन का महत्त्व
वैयक्तिक दृष्टि से इस अध्ययन के निम्नलिखित महत्त्व प्रस्तुत किये जा सकते हैं-
(i). सामाजिक चरित्र का निर्माण- इसके अध्ययन द्वारा व्यक्ति में विभिन्न सामाजिक गुणों का विकास किया जाता है। सहयोग, सहकारिता, सहिष्णुता, निष्पक्षता आदि- ये गुण सामाजिक चरित्र के निर्माण में आधार का कार्य करते हैं।
(ii). विभिन्न सामाजिक आदतों तथा कुशलताओं का विकास किया जाता है।
(iii). व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का विकास किया जाता है।
(iv). व्यावहारिक समस्याओं के समाधान के लिए तैयार किया जाता है।
(v). व्यक्ति को अपने वातावरण में व्यवस्थित होने के लिए समर्थ बनाया जाता है।
इसके अतिरिक्त उसमें स्वयं को अपनी आवश्यकताओं के अनुकूल बनाने की क्षमता भी प्रदान की जाती है।