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अनुसंधान का अर्थ (Meaning of Research) research in hindi

शोध / अनुसंधानः अर्थ, विशेषताएं एवं प्रकार (Research : Meaning, Characteristics and Types)

research in hindi – शोध अथवा अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसमें प्रदत्तों के विश्लेषण के आधार पर किसी समस्या की विश्वसनीयता को ज्ञात किया जाता है। अनुसंधान एक व्यवस्थित तथा सुनियोजित प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानवीय ज्ञान में वृद्धि की जाती है और मानव जीवन को सुखी समृद्ध बनाया जाता है। अनुसंधान में नवीन तथ्यों का सत्यापन किया जाता है। शोध कार्यों द्वारा प्राचीन प्रत्ययों तथा तथ्यों का नवीन निर्वाचन किया जाता है।

अनुसंधान’ का शाब्दिक अर्थ है ‘लक्ष्य का अनुगामी होना’ या उसके पीछे-पीछे चलना, जब तक कि अभीष्ट उत्तर न मिल सके।

अनुसंधान को अंग्रेजी में रिसर्च (research) कहा जाता है। रिसर्च में ‘रि’ शब्दांश आवर्ती और गहनता का घोतक है जबकि ‘सर्च’ शब्दांश खोज का समानार्थी है। इस प्रकार रिसर्च का अर्थ हुआ प्रदतों की आवृत्तयात्मक गहन खोज। दूसरे शब्दों में, प्रदतों की तह में बैठकर कुछ निष्कर्ष निकालना, नये सिद्धांतों की खोज करना और प्रदतों का स्पष्टीकरण करना रिसर्च की प्रक्रिया के अंतर्गत है।

अनुसंधान में किसी समस्या का वैज्ञानिक अन्वेषण सम्मिलित है। अन्वेषण की क्रिया इस बात का घोतक है कि समस्या को निकट से देखा जाए। उसकी जांच पड़ताल की जाए और उसका ज्ञान प्राप्त किया जाए।

अनुसंधान की प्रक्रिया में वैज्ञानिक निरीक्षण अन्य प्रमुख तत्व है। सामान्य रूप से निरीक्षण अनुसंधान की परिधि से बाहर है। वैज्ञानिक निरीक्षण सदा क्रम-बद्व, सुद्देश्य एवं सुनियोजित होता है। अनुसंधान की परिधि में ऐसा ही निरीक्षण आता है। केवल निरीक्षण तक ही अनुसंधान सीमित नहीं है। इसमें अगला मुख्य तत्व है समस्या का निदान खोजना। यह निदान अनुमान पर आधारित ना होकर अन्वेषण का परिणाम होगा। अनुसंधान की  प्रक्रिया एक तार्किक प्रक्रिया है। तार्किक प्रक्रिया होने के कारण अनुसंधान की प्रक्रिया में विशिष्टता और गहनता है। किंतु यह तार्किक प्रक्रिया कोरे शब्दों पर आधारित न होकर प्रदतों की ठोस भूमि पर आधारित है।

अनुसंधान की परिभाषा (Definition of Research):-

1.सामाजिक विज्ञान के ज्ञान-कोष के अनुसार:-

“अनुसंधान वस्तुओं, प्रत्यायों आदि को कुशलता से व्यवस्थित करता है, जिसका उद्देश्य सामान्य करण द्वारा विज्ञान का विकास, परिमार्जन अथवा सत्यापन होता है, चाहे वह ज्ञान व्यवहार में सहायक हो अथवा कला में।”

2.पी०एम०कुक अनुसार :-

“किसी भी समस्या के विषय में ईमानदारी, विस्तार तथा बुद्धिमत्ता से तथ्यों, उनके अर्थ तथा उपयोगिता की खोज करना ही अनुसंधान है”।

3.डब्ल्यू०एस०मनरो के अनुसार :-

 “अनुसंधान उन समस्याओं के अध्ययन की विधि है जिनका अपूर्ण व पूर्ण समाधान तथ्यों के पर आधारित होता है। अनुसंधान के लिए तथ्य, लोगों के मतों के कथन, ऐतिहासिक लेख अथवा अभिलेख, प्रश्नावली के उत्तर अथवा प्रयोग से प्राप्त सामग्री हो सकती है।”

4.डॉ०एम०वर्मा के अनुसार :-

 “अनुसंधान एक बौद्धिक प्रक्रिया है जो नये ज्ञान को प्रकाश लाती है। अथवा पुरानी कमियों एवं धारणाओं का परिमार्जन करती है तथा व्यवस्थित रूप में वर्तमान ज्ञान के कोष में वृद्धि करती है।”

5. फिशर के अनुसार :-

“अनुसंधान किसी समस्या को हल करने अथवा एक परिकल्पना की परीक्षा करने अथवा नवीन घटना या नवीन संबंधों को खोजने के उद्देश्य से सामाजिक परिस्थितियों में उपयुक्त कार्यविधि का प्रयोग करना ही सामाजिक अनुसंधान है।”

6. मोजर के अनुसार :-

“व्यवस्थित जानकारी, जो सामूहिक घटनाओं और समस्याओं के संबंध में दी जाती है, शोध कहलाती है।

7. क्राफोर्ड के अनुसार :-

शोध किसी समस्या के अच्छे समाधान के लिए क्रमबद्ध तथा विशुद्ध चिंतन एवं विशिष्ट उपकरणों के उपयोग की एक विधि है।

8. गुडे के अनुसार :-

“आदर्श रूप में अनुसंधान एक समस्या का सावधानी से और निष्पक्ष भाव से किया गया अध्ययन होता है, जो तथ्यों की विभिन्नता, उनके स्पष्टीकरण तथा सामान्यीकरण पर निर्भर करता है।”

9.जॉर्ज, जे. मुले के अनुसार :-

“समस्याओं के समाधान के लिए व सुसंगठित रूप में बौद्धिक ढंग से वैज्ञानिक विधि के प्रयोग तथा अर्थापन को शोध कहते हैं।”

10. जॉन डब्ल्यू बेस्ट के अनुसार :-

” अनुसंधान अधिक औपचारिक, व्यवस्थित तथा गहन प्रक्रिया है, जिसमें वैज्ञानिक विधि विश्लेषण को प्रयुक्त किया जाता है। अनुसंधान में व्यवस्थित स्वरूप को शामिल किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं और उनका औपचारिक आलेख तैयार किया जाता है।’

कुक महोदय की परिभाषा से अनुसंधान की निम्नलिखित विशेषताओं का परिचय होता है।

अनुसंधान की विशेषताएँ (Characteristics of Research)

अनुसंधान की उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन एवं अवलोकन करने से अनुसंधान की विशेषताएं स्पष्ट होती हैं-

1. अनुसंधान का संबंध वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग द्वारा प्रघटनाओं को सूक्ष्म रूप से अध्ययन से है।

2. अनुसंधान अपने को विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों, प्रविधियों एवं पद्धतियों के प्रयोग तक सीमित नहीं रखता। बल्कि नवीन प्रविधियों के विकास पर भी जोर देता है।

3. शोध में विभिन्न प्रकार की घटनाओं तथा समस्याओं का वैज्ञानिक या व्यवस्थित अध्ययन ही नहीं बल्कि नवीन ज्ञान का सृजन भी किया जाता है।

4. शोध विभिन्न तथ्यों या घटनाओं के बीच पाए जाने वाले कार्य करण संबंधों की खोज करता है। इसका कारण यह है कि घटनाएं एक-दूसरे से स्वतंत्र नहीं होकर एक दूसरे से संबंधित होती हैं।

5. शोध में जहां नये तथ्यों की खोज की जाती है, वहीं पुराने तथ्यों या पूर्व स्थापित सिद्धांतों की पुनर्परीक्षा एवं सत्यापन का कार्य भी संपन्न किया जाता है।

6. अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्षो को सिद्धांतों के रूप में प्रयुक्त करने का एक वैज्ञानिक तरीका है, अर्थात् इसके अंतर्गत नए सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है।

7. अनुसंधान एक ऐसी विधि है जिसमें परिकल्पना की उपयुक्तता की जाच अथवा परीक्षण किया जा सकता है।

8. अनुसंधान जहां विशुद्ध ज्ञान की खोज पर बल देता है, वहां साथ ही इसका प्रयोग व्यावहारिक समस्याओं को हल करने के लिए भी किया आ सकता है।

शोध की सामान्य विशेषताएं

1. नवीन ज्ञान की वृद्धि एवं विकास

2. सामान्य नियमों एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन

3. वैज्ञानिक, सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित प्रक्रिया

4. विश्वसनीयता

5. वैधता

6. तार्किकता

7. परिकल्पना की पुष्टि

8. गुणात्मक एवं परिमाणात्मक प्रदत्तों की व्यवस्था

9. धैर्य सम्पन्न की जाने वाली प्रक्रिया

10. सुनिश्चित विधियों एवं प्रविधियों का प्रयोग

11. वैज्ञानिक ( ढंग से) रिपोर्टिंग

12. सामान्यीकरण

अनुसंधान की सामान्य प्रकृति (General Nature of Research)

1. अनुसन्धान एक उद्देश्यपूर्ण सुव्यवस्थित बौद्धिक प्रक्रिया है। इसके द्वारा किसी सैद्धान्तिक अथवा व्यावहारिक समस्या के समाधान का प्रयास किया जाता है।

2. अनुसन्धान के द्वारा या तो किसी नये तथ्य, सिद्धान्त, विधि या वस्तु की खोज की जाती है अथवा प्राचीन तथ्य, सिद्धान्त विधि या वस्तु में परिवर्तन किया जाता है।

3. अनुसन्धान एक तर्कपूर्ण तथा वस्तुनिष्ठ प्रक्रिया है। इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष वास्तविक आँकड़ों पर आधारित एवं तर्कपूर्ण होते हैं तथा व्यक्तिगत पक्षपात से मुक्त होते हैं।

4. अनुसन्धान चिन्तन की एक सुव्यवस्थित एवं परिष्कृत विधि है जिसके अन्तर्गत किसी समस्या के समाधान के लिए विशिष्ट उपकरणों एवं प्रक्रियाओं का प्रयोग होता है।

5. अनुसन्धान की प्रक्रिया में प्राथमिक अथवा माध्यमिक स्रोत से प्राप्त आंकड़ों से नये ज्ञान को प्राप्त किया जाता है।

6. इसके अन्तर्गत जटिल घटनाक्रम को समझने के लिए विश्लेषण-विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विश्लेषण के लिए परिकल्पनाओं का निर्माण एवं परीक्षण किया जाता है।

7. जहाँ तक सम्भव हो, अनुसन्धान में आँकड़ों के विश्लेषण में परिमाणात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि जहाँ तक सम्भव हो, आँकड़ों के विश्लेषण में सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है।

8. अनुसन्धान द्वारा प्राप्त ज्ञान सत्यापित किया जा सकता है क्योंकि इसके अन्तर्गत किया गया निरीक्षण नियंत्रित एवं वस्तुनिष्ठ होता है।

9. अनुसन्धान एक अनोखी प्रक्रिया है जिसके द्वारा ज्ञान के प्रकाश एवं प्रसार के लिए सुव्यवस्थित प्रयास होता है।

10. अनुसन्धान कार्य के लिए वैज्ञानिक अभिकल्पनाओं का प्रयोग किया जाता है।

11. आँकड़ों को प्राप्त करने के लिए विश्वसनीय एवं वैध उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।

12. सभी अनुसन्धानों में अभिलेखन एवं प्रतिवेदन सावधानी से किया जाता है।

शोध / अनुसंधान के उद्देश्य 

अनुसंधान के विभिन्न उद्देश्यों को चार भागों में विभाजित कर सकते हैं।

1. सैद्धान्तिक उद्देश्य : किसी भी अनुसंधान का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान की वृद्धि करना होता है। ज्ञान की जिज्ञासा के कारण अनेक अनुसंधान ऐसी दशा में भी हुए हैं जबकि उनसे किसी प्रकार के भौतिक लाभ की कोई संभावना न थी। ये शोध कार्य व्याख्यात्मक प्रकृति के होते हैं।

2. तथ्यात्मक उद्देश्य : ऐतिहासिक अनुसंधानों के द्वारा नवीन तथ्यों की खोज की जाती है। इनके आधार पर वर्तमान घटनाओं को समझने में सुविधा मिलती है। इन उद्देश्यों की प्रकृति वर्णनात्मक होती है, क्योंकि तथ्यों की खोज करने के बाद उनका अथवा घटनाओं का वर्णन किया जाता है।

3. सत्यात्मक उद्देश्य : दार्शनिक प्रकृति के शाधों के द्वारा नवीन सत्यों की स्थापना की जाती है। इनकी प्राप्ति अंतिम प्रश्नों के उत्तरों से की जाती है।

4. व्यावहारिक उद्देश्य : अनुसंधान विश्लेषण एवं निष्कर्ष को निकालने की एक पद्धति है, जिससे किसी सिद्धांत के निर्माण अथवा कला के अभ्यास में योगदान देने हेतु ज्ञान का विकास, परीक्षण अथवा विकास किया जाता है। किसी भी अनुसंधान के निष्कर्षो का व्यावहारिक प्रयोग होना चाहिए, किन्तु अनेक ऐसे अनुसंधान भी होते हैं जहां पर कंवल उपयोगिता को ही महत्व प्रदान किया जाता है। ऐसे अनुसंधानों को विकासात्मक अनुसंधान कहते हैं।

उपरोक्त उद्देश्यों के अतिरिक्त अनुसंधान के कुछ उद्देश्य निम्नलिखित हैं :

1. नवीन तथ्यों को खोज करना।

2. पुराने तथ्य नियमों एवं सिद्धान्तों का पुनः परीक्षण कर उनका सत्यापन करना।

3. घटनाओं के कार्य कारण सबधं की खोज करना।

4. घटनाओं एवं तथ्यों का वैज्ञानिक अध्ययन कर उनके संबंध में सामान्यीकरण एवं वैज्ञानिक अवधारणाओं का निर्माण करना।

अनुसंधानों का वर्गीकरण

अनुसंधानों को उसकी विशेषताओं, उद्देश्य प्रकृति तथा उनके संगठनों को दृष्टिगत करते हुए निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है :

1. मौलिक शोध इस प्रकार का शोध सामान्यत : ज्ञान प्राप्ति के लिए होता है इसको प्रकृति सैद्धांतिक होती है मौलिक अनुसंधान का संपादन निम्नलिखित दो उद्देश्यों को मूर्ति के लिए किया जाता है।

1. पूर्व स्थापित नियमों की जांच या सत्यापन।

2. घटनाओं से संबंधित नवीन ज्ञान की खोज करना मौलिक शोध किसी विशेष समस्या से संबंधित मुख्य कारकों को जात करने में सहायक सिद्ध होते हैं। मौलिक अनुसंधान सामान्य सिद्धांतों को विकसित करके अनेक व्यावहारिक समस्याओं का समाधान कर देता है। इसका तात्पर्य यह है कि जब अनुसंधानकर्ता नए सिद्धांतों अथवा नियमों का प्रतिपादन करता है, तब इसकी सहायता से भविष्य में उत्पन्न होने वाली समस्याओं के बारे में सरलतापूर्वक भविष्यवाणी की जा सकती है।

गुडे तथा हॉट ने इसी संबंध में लिखा है कि वास्तव में यह कहा जा सकता है कि रोग निदान या रोग के उपचार के लिए और कोई प्रयत्न उतना व्यावहारिक नहीं है जितना कि एक सैद्धांतिक अनुसंधान कार्य मौलिक अनुसंधान किसी भी समस्या के समाधान के लिए एक साथ अनेक विकल्प प्रस्तुत करता है। ऐसा अनुसंधान कार्यान्वित करने में समय एवं धन अधिक तो लगता है, लेकिन इसके द्वारा अन्ततः कोई ऐसा विकल्प अवश्य ही मिल जाता है,

जिसके द्वारा संबंधित समस्या का समाधान किया जा सके। मौलिक, अनुसंधान के तीन प्रकार निम्नलिखित हैं :

(i). प्रयोगात्मक अनुसंधान : इस प्रकार के अनुसंधानों के द्वारा नवीन सिद्धांतों एवं नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। सर्वेक्षण प्रकार के अनुसंधान भी इसके अंतर्गत वर्गीकृत किए जाते हैं।

(ii). दार्शनिक अनुसंधान : इन अनुसंधानों के द्वारा नवीन मूल्यों एवं सिद्धांतों की स्थापना की जाती है। सभी सैद्धांतिक अनुसंधान दार्शनिक अनुसंधानों के द्वारा ही विकसित किए जाते हैं।

(iii). ऐतिहासिक अनुसंधान : इन अनुसंधानों के द्वारा नवीन तथ्यों की खोज की जाती है, जिनमें अतीत का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के अनुसंधान से अतीत के आधार पर वर्तमान समय में घटित होने वाली घटनाओं को समझने का प्रयास किया जाता है।

(iv). वर्णनात्मक अनुसंधान : इसके अंतर्गत स्पष्ट परिभाषित समस्या पर कार्य किया जाता है। यह विशेष सरल एवं अत्यंत कठिन दोनों प्रकार को हो सकता है। यह ‘क्या है’ को स्पष्ट करता है। इसके अंतर्गत समस्या समाधान हेतु उपयोगी सूचना प्राप्त करते हैं। इसके लिए कल्पतापूर्ण नियोजन आवश्यक है। यह अनुसंधान संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों हो सकता है।

2. व्यावहारिक अनुसंधान : व्यावहारिक अनुसंधान का संबंध समस्याओं के व्यावहारिक पक्ष से होता है। ऐसे अनुसंधान का उद्देश्य किसी समस्या का व्यावहारिक समाधान ढूंढना ही नहीं होता अपितु एक व्यावहारिक योजना प्रस्तुत कर समाज को व्यावहारिक लाभ प्रदान करना होता है। व्यावहारिक अनुसंधान को परिभाषित करते हुए पी.वी. यग ने कहा है कि. ” व्यावहारिक अनुसंधान का तात्पर्य ज्ञान के उस संचय से है, जिसे मानवता की भलाई के कार्य में लगाया जा सके।”

वैज्ञानिक गुड़े तथा हॉट ने व्यावहारिक अनुसंधान को अत्यधिक उपयोगी मानते हुए इसके अनेक महत्त्वपूर्ण पक्षों को स्पष्ट किया है:

1. व्यावहारिक अनुसंधान ज्ञान के निष्कर्ष पहले से स्थापित सिद्धांतों की सत्यता की परीक्षा करने में सहायक सिद्ध होते हैं।

2. व्यावहारिक अनुसंधान ज्ञान से संबंधित नवीन तथ्यों को प्रस्तुत करता है।

3. व्यावहारिक अनुसंधान अवधारणाओं को स्पष्ट करने में भी सहायता प्रदान करता है।

4. व्यावहारिक अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण कार्य पहले से ही विद्यमान सिद्धांतों को एकता के सूत्र में बांधना है।

मूल्यांकनात्मक अनुसंधान : मूल्यांकन शोध के संबंध में विलियमसन, डॉलफिन ने बताया है कि यह शोध वास्तविक जगत में सम्पादित की गई ऐसी खोज है जिसके माध्यम से यह मूल्यांकन किया जाता है कि व्यक्तियों के किसी समूह विशेष के जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से जो कार्यक्रम बनाया गया, वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में कहां तक सफल रहा है। सामाजिक नियोजन एवं परिवर्तन के लक्ष्य से प्रेरित क्रियात्मक कार्य कार्यक्रमों की सफलता असफलता को ज्ञात करने एवं उनकी प्रभावकता का पता लगाने हेतु जो खोज की जाती है, उसी को ‘मूल्यांकनात्मक शोध’ कहते हैं। इस प्रकार का शोध व्यावहारिकता शोध का ही एक प्रकार है।

3. क्रियात्मक अनुसंधान : क्रियात्मक अनुसंधान वह है जो किसी समस्या या घटना के क्रियात्मक पक्ष की ओर अपने ध्यान को केंद्रित करता है, साथ ही अनुसंधान में प्राप्त निष्कषों को सामाजिक परिवर्तन के संबंध में भविष्य की योजनाओं से संबंधित करता है। गुडे तथा हॉट ने लिखा है क्रियात्मक अनुसंधान उस कार्यक्रम का भाग होता है, जिसका उद्देश्य समाज में विद्यमान परिस्थितियों में परिवर्तन लाना है। चाहे वह गंदी बस्तियों की दशाएं हो या प्रजातीय तनाव तथा पक्षपात हो या एक संगठन की प्रभावशीलता हो।

स्टीफन एम. कोरी ने कहा है कि अध्ययनकर्ता अपने निर्णयों तथा क्रियाओं की दिशा निर्धारण करने उन्हें सही बनाने अथवा उनका मूल्यांकन करने के लिए जिस प्रक्रिया के द्वारा अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन करता है।

किसी सामाजिक दशा, स्थिति या समस्या को बदलने, उसमें सुधार करने या उसे हल करने हेतु साधन खोज निकालने के लिए क्रियात्मक शोध का सहारा लिया जाता है। इसमें तथ्यों को एकत्रित कर किसी समस्या के निवारण हेतु प्रयत्न किया जाता है। क्रियात्मक शोध का लक्ष्य परिवर्तन को नियोजित करना, व्याधिकीय या प्रामाणिक तथ्य एकत्रित किए तथा समाधान खोज निकाले जाते हैं।

4. अन्वेषणात्मक अनुसंधान : इस प्रकार के अनुसंधान नवीन तथ्यों की कार्य कारण सबधं की खोज से संबंधित होते हैं अर्थात् जिस विषय में हमारा ज्ञान सीमित है और हम उस विषय में कार्य कारण संबंध स्थापित करते हुए आगे की बात जानना चाहते हैं तो उस कार्य को अवेषणात्मक अनुसंधान कहते हैं। अन्वेषणात्मक अनुसंधान के अंतर्गत योग्य एवं अनुभवशील तथा अनुभवों को व्यक्त करने की क्षमता रखने वाले व्यक्तियों के विचारों को जानने का प्रयास किया जाना चाहिए।

अनुसंधान

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