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सृजनात्मकता का अर्थ : परिभाषा, तत्व, व्याख्या, मापन, विशेषता, बालकों की शिक्षा

सृजनात्मकता / सृजनशीलता का अर्थ एवं परिभाषा

सृजनात्मकता प्रायः सभी प्राणियों में पायी जाती है। किसी में अधिक पायी जाती है तो किसी में कम । यद्यपि सृजनात्मक कलाकारों, यथा-लेखक, चित्रकार, कवि, विद्वान्, अभिनेता आदि के जीवन में बहुत व्यापक रूप में होती है, किन्तु यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सभी व्यक्ति जीवन के किसी न किसी क्षेत्र में सृजनात्मकता प्रदर्शित करते हैं। यह मनुष्य की प्रकृति में विद्यमान सार्वभौम प्रवृत्ति है। यदि वातावरण इस गुण के विकास के अनुकूल हो तो व्यक्ति की क्षमता का मौलिक विकास होता है।

सृजनात्मकता का आधार चिन्तन है। व्यक्ति कैसा व कितना चिन्तन करता है, यह उसकी सृजनशीलता को निर्धारित करता है। यदि व्यक्ति अभिसारी चिन्तन अर्थात् सामान्य प्रकार का चिन्तन करता है तो उसे सृजनशील नहीं माना जा सकता। जब व्यक्ति चिन्तन की अपसारी प्रविधि अपनाता है अर्थात् किसी बात पर सामान्य से भिन्न तरीके द्वारा विचार करता है तो सृजनशील कहलाता है।

शिक्षा में सृजनात्मकता एक महत्त्वपूर्ण तत्व है। शिक्षा प्रक्रिया में ऐसे अवसर कक्षागत परिस्थितियों के विद्यार्थियों को दिए जाए जिनमें उन्हें कार्य करने की स्वतंत्रता मिले।

यद्यपि सृजनात्मकता अपसारी चिन्तन की योग्यता पर आधारित है किन्तु मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि बुद्धि, ज्ञान व अभिप्रेरणा जैसे घटक भी सृजनात्मकता से जुड़े हुए हैं।

1. सृजनात्मकता के लिए औसत बुद्धिलब्धि आवश्यक है।

2. सृजनशीलता के लिए गहन ज्ञान जरूरी है।

3. उच्च अभिप्रेरणा मौलिक अथवा सृजनात्मक कार्य के लिए आवश्यक शर्त है।

सृजनात्मकता को एस. आरिटी ने दो प्रक्रियाओं के संश्लेषण के रूप में स्पष्ट किया है। प्रथम प्रक्रिया अपरिपक्व मस्तिष्क से प्रारम्भ होती है। इसमें अहम् (Id) तथा अचेतना (Unconsiousness) का प्रभाव रहता है। द्वितीय प्रक्रिया परिपक्वन मस्तिष्क से शुरू होती है। इसमें चेतन स्तर तार्किक एवं क्रमबद्ध चिन्तन की भूमिका रहती है।

सृजनात्मकता की परिभाषाएँ (Definition of Creativity)

ड्रेवहल के अनुसार, “सृजनात्मकता वह मानवीय योग्यता है जिसके द्वारा वह किसी नवीन रचना या विचारों को प्रस्तुत करता है।”

कोल और ब्रूस के अनुसार, “सृजनात्मकता मौलिक उत्पाद के रूप में मानव मस्तिष्क को समझने, व्यक्त करने तथा सराहना करने की योग्यता व क्रिया है।”

डीहान तथा हेविंगहर्स्ट के अनुसार, “सृजनात्मकता वह विशेषता है जो किसी नवीन व वांछित वस्तु के उत्पादन की ओर प्रवृत्त करें। यह नवीन वस्तु सम्पूर्ण समाज के लिए नवीन हो सकती है अथवा उस व्यक्ति के लिए नवीन हो सकती है, जिसने उसे प्रस्तुत किया है।”

गिलफोर्ड के अनुसार, “सृजनात्मकता के अन्तर्गत पाँच मानसिक व्यापार-
(i). ग्रहणात्मक व्यापार, (Cognition)

(ii). केन्द्राभिमुख चिन्तन (Convergent thinking)

(iii). केन्द्राभिमुख चित्त (Divergent thinking)

(iv). स्मृति (Memory)

(v). मूल्यांकन (Evaluation) कहते हैं।

उनके अनुसार सृजनात्मकता को सृजनात्मक कार्यक्षमता, सृजनात्मक उत्पादन तथा सृजनात्मक उत्पादकता से सम्बन्धित किया जा सकता है तथा विभिन्न व्यावहारिक क्षेत्रों में सृजनात्मक चिन्तन का भिन्न अर्थ होता है।

थर्स्टन (Thurston, 1955) के अनुसार, “कोई भी क्रिया सृजनात्मक है जिसका तत्काल समाधान प्राप्त हो जाये, क्योंकि इस प्रकार का हल विचारक के लिए सदैव नवीनता लिए हुए होता है।”

ई.पी. टोरेन्स (Torrance, 1965) के अनुसार, “सृजनात्मक चिन्तन रिक्ताओं, त्रुटियों तथा अप्राप्त एवं अलभ्य तत्वों को समझने, उनके सम्बन्ध में धारणाएँ बनाने तथा अनुमान लगाने, धारणाओं का परीक्षण करने, परिणामों को अन्य तक पहुँचाने तथा धारणाओं का पुनः परीक्षण करके उनमें सुधार करने की प्रक्रिया है। ”

उपर्युक्त समस्त परिभाषाओं को समन्वित करते हुए डॉ. महेश भार्गव ने सृजनात्मकता के संदर्भ में अपने विचार इस प्रकार प्रस्तुत किए – “सृजनात्मकता एक ऐसी योग्यता है जो किसी समस्या का विद्वतापूर्ण समाधान करने के लिए नवीनतम विधियों एवं स्थितियों का सहारा लेती है तथा व्यक्ति के रचनात्मक उत्पादन में मौलिकता, प्रवाहता विस्तार कार्य, लचीलापन आदि कारक सन्निहित रहते हैं। सृजनात्मक कार्य में कोई नवीन खोज या पुरानी धारणाओं एवं प्रत्ययों का शोध द्वारा मूल्यांकन भी किया जाता है। यह समस्त प्राणियों में पाई जाती है, किन्तु प्रत्येक प्राणी में विभिन्न क्षेत्रों एवं मात्रा में पायी जाती है अर्थात् एक व्यक्ति किसी अमुख क्षेत्र में सृजनात्मक है तो अन्य किसी और में सृजनात्मकता में अनेक योग्यताओं या गुणों तथा समस्याओं के प्रति सजगता, विचारशीलता में गति, लचीलापन, मौलिकता, नवीनता के लिए परिवर्तन, जिज्ञासा का मिश्रण होता हैं जिससे व्यक्ति रचनात्मक उत्पादनों को करता है।”

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सृजनात्मकता के तत्व (Elements of Creativity)

सृजनात्मकता अपसारी चिन्तन की प्रक्रिया है। अपसारी चिन्तन अर्थात् सामान्य से अलग हटकर सोचना। इसलिए यह एक बहुआयामी प्रक्रिया है। सृजनात्मकता को मौलिकता, प्रवाह, लचीलापन, नवीनता, खोजपरकता आदि के संदर्भ में समझा जा सकता है।

सृजनात्मकता के सर्वमान्य चार महत्त्वपूर्ण आयाम निम्नांकित हैं-

1. विविधता (Flexibility) : विविधता से तात्पर्य किसी समस्या/ उद्दीपक पर दिए गए विकल्पों अथवा प्रत्युत्तरों के एक-दूसरे से विविध/अलग होने से है। अर्थात् कई विकल्पों पर सोच सकने की क्षमता या बातचीत के संदर्भ बदलने की योग्यता जैसे यदि आप किसी व्यवसाय को चुनते हैं तो उस समय आप किन-किन पहलुओं पर ध्यान देंगे, उन्हें सूचीबद्ध कीजिए। विविधता की तीन विभाएँ होती हैं। आकृति स्वतः स्फूर्त विविधता से तात्पर्य किसी वस्तु या आकृति से सुधार करने के उपायों में विविधता से है आकृति अनुकूल विविधता से तात्पर्य किसी वस्तु या आकृति के रूप में परिवर्तित करने की विधियों में विविधता से है। शाब्दिक स्वतः स्फूर्त विविधता में वस्तुओं या शब्दों के प्रयोग में विविधता को देखा जाता है।

2. प्रवाह (Fluency) : प्रवाह से तात्पर्य किसी उद्दीपक के प्रति अधिकाधिक विचारों या प्रत्युत्तरों को प्रस्तुत करने से है। जितनी अधिक प्रत्युत्तरों की संख्या होती है व्यक्ति उतना ही अधिक सृजनशील माना जाता है। उदाहरण के लिए किसी कहानी के अनेकानेक शीर्षक बताना, किसी वस्तु के अनेकानेक उपयोग बताना, शब्दों से वाक्य बनाना, दिए गए अपूर्ण वाक्य को पूरा करना आदि।

3. मौलिकता (Originality) : मौलिकता से तात्पर्य व्यक्ति के द्वारा प्रस्तुत किए गए विकल्पों या प्रत्युत्तरों का असामान्य, असाधारण उपयोगी, प्रासंगिक तथा अन्य व्यक्तियों के उत्तरों से भिन्न होने से है। मौलिकता, नवीनता से सम्बन्धित होती है। जो व्यक्ति विकल्प प्रस्तुत करने (अन्यों से) में भिन्नता प्रदर्शित करता है, वह मौलिक कहा जाता है। जैसे दिए गए शब्दों पर कविता लिखना, कहानी, कविता या लेख के शीर्षक बताना।

4. विस्तारण (Elaboration) : विस्तारण से अभिप्राय दिए गए भावों या विचारों की विस्तृत व्याख्या, व्यापक पूर्ति व गहन प्रस्तुतीकरण से है। शाब्दिक विस्तारण में किसी दी गई संक्षिप्त घटना, क्रिया, काय, परिस्थिति आदि को विस्तृत करके प्रस्तुत किया जाता है। जबकि आकृति विस्तारण में किसी दी गई आकृति, रेखा या अपूर्ण चित्र में कुछ जोड़कर एक पूर्ण तथा सार्थक चित्र बनाना होता है।

सृजनात्मकता की व्याख्या (Explanation of Creativity)

सृजनात्मकता : एक व्यक्ति के रूप में (Creativity as a Person) सृजनात्मक व्यक्ति, मौलिक विचार, अभिव्यक्ति, क्रिया तथा व्यवहार प्रस्तुत करता है।

(i). सृजनात्मक व्यक्ति का आत्मप्रत्यय (Self concept) ऊँचा होता है।

(i). सृजनात्मक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी व आत्मनिर्भर होते हैं।

(ii). सृजनात्मक व्यक्ति अस्पष्टता के प्रति अधिक सहनशील होते हैं।

(iv). सृजनात्मक व्यक्ति असुविधा उत्पन्न करने वाले प्रश्न पूछते हैं।

(v). हल निकालने के लिए आग्रह व वाद-विवाद करते हैं तथा विभिन्न विकल्प सुझाते हैं।

2. सृजनात्मकता : एक उत्पाद के रूप में (Creativity as a Product) सृजनात्मकता उत्पाद में निम्नांकित विशेषताएँ होती हैं-

(i). प्रवाह

(ii). विविधता

(iii). मौलिकता

(iv). विस्तार

इनकी व्याख्या पहले से की जा चुकी है।

3. सृजनात्मकता : एक प्रक्रिया के रूप में (Creativity as a Process) सृजनात्मक प्रक्रिया में निम्नांकित चार पदों का अनुसरण किया जाता है-

(i). तैयारी (Preparation) : तैयारी में व्यक्ति द्वारा किसी समस्या का अनुभव कर उसको परिभाषित किया जाता है।

(ii). विकास (Incubation) : समस्या की व्याख्या के पश्चात् समस्या का हल प्राप्त करने के लिए अर्द्धचेतन तथा चेतन मस्तिष्क में विभिन्न चिन्तन क्रियाएँ चलती हैं।

(iii). समाधान खोजना (Inspiration) : चिन्तन प्रक्रिया के फलस्वरूप मस्तिष्क द्वारा समस्या का समाधान एकाएक मिल जाना इस सोपान में आता है।

(iv). विस्तारण (Elaboration) : इस सोपान में प्राप्त परिणामों की सत्यता की जाँच की जाती है तथा परिणामों का नई परिस्थितियों में प्रयोग करने की जागरूकता विकसित की जाती है।

सृजनात्मकता का मापन (Measurement of Creativity)

सृजनात्मकता एक विशेष प्रकार की मानसिक प्रक्रिया है जिसमें बहुत से कारक विद्यमान होते हैं। अतः किसी एक परीक्षण के द्वारा व्यक्ति की सम्पूर्ण सृजनात्मकता को नहीं मापा जा सकता है। सृजनात्मकता के मापन के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले प्रमुख परीक्षण निम्नांकित है-

1. टोरेन्स का सृजनात्मक चिन्तन परीक्षण (Torrance’s Test of Creativity Thinking) : टोरेन्स के इस परीक्षण में दो उप-परीक्षण है जिसमें पहला, शाब्दिक परीक्षण (Verbal Test) जिसे शब्दों के साथ सृजनात्मक चिन्तन (Thinking Creativity with Words) कहते हैं तथा दूसरा, आकृति परीक्षण (Figural Test) जिसे चित्रों के साथ सृजनात्मक चिन्तन (Thinking Creativity with Figures) कहते हैं। टोरेन्स का यह परीक्षण सृजनात्मकता की चारों विमाओं, यथा- प्रवाह, विविधता, मौलिकता तथा विस्तारण पर अलग-अलग प्राप्तांक प्रदान करता है।

2. गिलफोर्ड का सृजनात्मक परीक्षण (Guilford Test of Creativity) : गिलफर्ड के अनुसार, सृजनात्मक चिन्तन में गैर परम्परागत उत्पादन (Divergent Production), रूपान्तरण (Transformation ) तथा पुन: परिभाषिकरण (Re-definition) की योग्यताएँ निहित होती हैं। उन्होंने विद्यार्थियों की सृजनात्मकता का मापन करने के लिए एक परीक्षण का निर्माण किया, जिसमें छह कारकों को शामिल किया –

(i). समस्या के प्रति संवेदनशील (Sensitivity)

(ii). विविधता (Flexibility)

(iii). प्रवाह (Fluency)

(iv). मौलिकता (Originality)

(v). विस्तारण (Elaboration)

(vi). पुनः परिभाषीकरण (Re-definition)

3. पासी का सृजनात्मक परीक्षण (Passi Tests of Creativity): वी.के. पासी द्वारा सन् 1972 में सृजनात्मकता के मापन के लिए सृजनात्मकता परीक्षण बनाया गया जिसमें छह उप-परीक्षण सम्मिलित हैं-

(i). समस्या जाँच परीक्षण (Seeing Problem Test)

(ii). असामान्य उपयोग परीक्षण (Unusual uses Test)

(iii). परिणाम परीक्षण (Consequence Test)

(iv). प्रश्नात्मक योग्यता परीक्षण (Test of Inquisitiveness)

(v). वर्ग पहेली परीक्षण (Square Puzzle Test)

(vi). ब्लॉक परीक्षण (Blocks Test)

स्पष्ट है कि इस परीक्षण में शाब्दिक व अशाब्दिक दोनों ही प्रकार के सृजनात्मक कार्य सम्मिलित किए गए हैं।

सृजनात्मक व्यक्ति की विशेषताएँ (Characteristics of Creative Person)

टोरेन्स ने सृजनशील व्यक्तियों की 84 विशेषताओं का उल्लेख किया है, उसमें से कुछ विशेषताएँ निम्न हैं-

1. निर्णय में स्वतंत्रता (Independence in Judgement)

2. चिन्तन में स्वतंत्रता (Independence in Thinking)

3. आत्मविश्वासी (Self Confident)

4. आत्मनिर्भर (Self Sufficient)

5. कठिन कार्यों का प्रयास (Attempts Difficult Jobs)

6. अव्यवस्था की ओर आकर्षित होना (Attracted to Disorder)

7. संवेगात्मकता (Emotional)

8. एकांतप्रिय (Like Solitude)

9. संकल्पी (Resolute)

10. आत्मसात् ( Reserved)

11. आत्मसचेत (Self-aware)

12. निश्छल (Sincere)

13. स्वचालित (Self- Starter)

14. विकृति को स्वीकारना (Accept Disorder)

15. जोखिम उठाना (Adventurous)

16. तीव्र भावना (Strong Affection)

17. दूसरों के प्रति जागरूकता (Awareness of others)

18. सदैव किसी बात से परेशान रहना (Always Baffled by Something)

19. लज्जालु या झेंपू (Bashful outwardly)

20. रचनात्मक आलोचना (Constructive in Criticism)

21. रहस्य की ओर आकर्षित होना (Attracted to Mysteries)

22. श्रेष्ठ होने की इच्छा (Desire of Excel)

23. साहसिक (Courageous)

24. परार्थोन्मुखता (Altruism)

25. असंतुष्ट (Discontented)

26. व्यवस्था को बिगाड़ने वाले (Disturbs Organization)

27. प्रबल (Dominant)

28. उद्योगी (Energetic)

29. दोष निकालने वाला (A Fault Finder)

30. व्यक्तिवादी (Individualistic )

31. मेहनती (Industrious)

32. अन्त:मुखी (Introversive)

33. त्रुटि करता है (Makes Mistakes)

34. कभी ऊबता नहीं है (Never Bored)

35. अलोकप्रिय (Not Popular)

36. विचित्र आदतें (Oddities of Habits)

37. सतत् (Persistent)

38. हठी या अड़ियल (Stabborm)

39. अनैष्ठिक (Non-Conforming)

40. सुन्दरता के प्रति संवेदनशील (Sensitive to Beauty)

41. हास्य की वेदना (Sense of Humour)

सृजनात्मक बालकों की शिक्षा (Education for Creative Student)

शिक्षा मानव को ऐसे अवसर प्रदान कर सकती है कि उसमें अन्तर्निहित सृजनशीलता प्रस्फुटित होकर जीवन की समस्याओं का समाधान करने व या कार्य करने में सहायक हो सके। अतः शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का निर्धारित करते समय सृजनात्मकता के महत्त्व को भी स्वीकार करना होगा । सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अनेक सुझाव दिए हैं, जिनमें से कुछ सुझाव निम्न हैं-

1. बालकों में सृजनात्मकता का विकास करने के लिए यह आवश्यक है कि उनके अध्यापक भी सृजनात्मक प्रवृत्ति के हों। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि शिक्षकगण साहित्य, कला आदि विभिन्न क्षेत्रों में तरह-तरह के सृजनात्मक कार्य प्रस्तुत करके अपने छात्रों को सृजनात्मक अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करने में समर्थ होने चाहिए।

2. सृजनात्मक शिक्षा के लिए समस्या समाधान के संदर्भ में तथ्यों का अधिगम कराया जाए। इसमें क्या किया गया, क्या किया जाना चाहिए आदि प्रश्नों के माध्यम से आगे बढ़ा जा सकता है।

3. शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों का सही मूल्यांकन करने की प्रवृत्ति विकसित करे। यह सृजन शक्ति को अधिक विकसित करता है।

4. छात्रों के नवीन विचारों को ग्रहण करने तथा उनका सम्मान करने के साथ- साथ प्रतिक्रिया करने की स्वतंत्रता तथा प्रवृत्ति कक्षा में विकसित की जानी चाहिए। मस्तिष्क उद्वेलिकरण (Brain Storming) को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

5. सृजनात्मकता के विकास के लिए यह आवश्यक है कि सृजनात्मक कार्यों में बालकों के उत्साह व रुचि को बनाए रखा जाए। अतः अध्यापकों को अपने छात्रों की रुचि तथा उत्साह बनाए रखने के लिए यथास्थान प्रयास करने चाहिए।

6. सृजनात्मकता के शिक्षण के लिए मौलिकता की उद्भावना विकसित करने के लिए शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। सृजन तथा मौलिकता से अभिप्राय ज्ञान के तथ्यों को नवीन रूप से ढालना है।

7. शिक्षक जो भी कुछ पढ़ाये उसमें समस्या के स्तरों की पहचान का शिक्षण अवश्य हो । छात्र यह अवश्य जान लें कि समस्या किस स्तर की है? जे. स्टेनली ग्रे ने इस सम्बन्ध में कहा है कि समस्या समाधान की योग्यता दो पदों पर है। एक व्यक्ति को सीखने की या अधिगम पाने की बुद्धिमानी क्षमता या बुद्धि और दूसरा यह है कि क्या उस व्यक्ति ने क्षमता के भीतर अधिगम पा लिया है।

8. छात्रों में चिन्तन की जाँच की विधि की कुशलता विकसित की जाए।

9. जीवन के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे- सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, तकनीकी अथवा शैक्षिक आदि की विभिन्न समस्याओं को समझने तथा उनका तर्कसंगत तथा व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

10. विभिन्न क्षेत्रों के महान् अन्वेषकों के जीवन परिचय के साथ-साथ उनके जीवन में घटी विशेष तथा सार्थक घटनाओं से बालकों को अवगत कराना चाहिए। जिससे वे उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं से प्रेरणा प्राप्त कर सके।

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