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हिन्‍दी भाषा का उद्भव और विकास

हिन्‍दी भाषा का उद्भव और विकास

हिन्‍दी भाषा का उद्भव और विकास
हिन्‍दी भाषा का उद्भव और विकास

हिन्दी भाषा का परिचय

हिन्दी भाषा, भारत की आधिकारिक भाषा और सभी 22 से ज्यादा भारतीय राज्यों में बोली जाने वाली सबसे आम भाषा है। यह भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है और इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। हिन्दी को देवनागरी से लेकर ब्रह्मी, कैटली, शारदा और खड़ी बोली जाती है।

हिन्दी का भौगोलिक वितरण

हिन्दी भाषा का प्रमुख केंद्र उत्तर भारत में है, लेकिन यह दक्षिण भारत में भी बड़े पैम्प्स, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में बोली जाती है।

हिन्दी भाषा की लिपि और लेखन

हिन्दी का लिपि देवनागरी है जिसमें 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं। इसमें आठ संयुक्त अक्षर भी होते हैं। हिन्दी का लेखन सुसंगत और सरल है जिससे यह सीखने और समझने में आसान होती है।

भाषा की विविधतायें

हिन्दी की बहुभाषिकता एक रमणीय और रंगीन पहलू है। इसमें विभिन्न भाषा-भाषियाँ शामिल हैं जैसे कि ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी, बाग़ेलखंडी, खड़ी बोली, बिहारी, बग़ड़ी, चन्दपुरी, खाड़ी बोली, मरठवाड़ी, मेवाड़ी, बंगारी, नगरी, रेवाड़ी, रोजड़ी, ब्रज बोली, कानपूरी, दिल्लीवाली, हरियाणवी, अजमेरी, मारवाड़ी, मलवाई, राजपूती, सिरधी, खड़ग बोली, नागोरी, नंदनखाड़ी, नईठी, पचीमड़ी, परचायारी, फ़ौलादपुरी, बग़हेलख़ण्डी, सैयदपुरी, बैरागढ़ी, बरारी, बुंदेलख़ण्डी, रेवाड़ी, रोजड़ी, गुजराती, काच्छी, कानपूरी, आदि।

हिन्दी भाषा का अर्थ एवं परिभाषा

भाषा’ शब्द संस्कृत के ‘भाष्’ धातु से उत्पन्न माना जाता है। इसका अर्थ है, व्यक्त करना अथवा कहना। भाषा का मुख्य अभिप्राय ध्वनि-भाषा से है। इसके माध्यम से ही विचारों अथवा भावनाओं की अभिव्यक्ति सम्भव है। भाषा की प्रथम इकाई हम ‘वर्ण’ अथवा ‘अक्षर’ को कहते हैं।

भाषाविद् डॉ॰ पृथ्वीनाथ पाण्डेय के अनुसार, “भाषा का अस्तित्व प्रतीकों में होता है। इसके समस्त प्रतीक व्यवस्थित, सार्थक तथा सप्रयत्न उच्चरित होते हैं। ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं :- नेत्रग्राह्य, श्रोतृग्राह्य तथा स्पर्शग्राह्य।”

कुछ विद्वानों ने हिन्दी भाषा की परिभाषा इस प्रकार की है।

डॉ॰ बाबूराम सक्सेना के अनुसार, “जिन ध्वनि-चिह्नों द्वारा मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है, उनकी समष्टि को भाषा कहते हैं।”

आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा के अनुसार, “उच्चारित ध्वनि संकेतों की सहयोग से भावनाओं अथवा विचारों की पूर्ण अभिव्यक्ति भाषा है।”

ब्लोख एवं ट्रेगर के अनुसार, भाषा यादृच्छिक वाक्-प्रतीकों की एक ऐसी पद्धति अथवा व्यवस्था है, जिसके माध्यम से सामाजिक प्राणी मनुष्य पारस्परिक भाव-विनिमय अथवा सहयोग करते हैं।”

भाषा वाक् यानि वाणी के सामाजीकरण का नाम है। यह मनुष्य की सूक्ष्म संवेदनशील अभिव्यक्ति का प्रकटीकरण है। इन सभी परिभाषाओं से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि भाषा एक पद्धति है।

हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास hindi bhasha ka udbhav aur vikas

हिन्दी का उत्पत्ति संस्कृत से हुआ है, जो भारतीय सभ्यता की एक प्रमुख भाषा थी। वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, और पुराणों में संस्कृत का उपयोग हुआ, जिसने हिन्दी को अपनी बुनियाद दी।

हिन्दी का विकास भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में हुआ, और इसे विभिन्न राजाओं और साम्राज्यों के अधीन किया गया। मुग़ल साम्राज्य के समय में, अरबी, फारसी, और तुर्की के साथ मिश्रित होने के कारण हिन्दी को भी उसका सांस्कृतिक साम्राज्य में प्रभाव दिखाई दिया। इसके पश्चात्ताप में, ब्रिटिश साम्राज्य ने इसपर अपना प्रभाव डाला, लेकिन इसे अपनी अद्वितीयता बनाए रखने में सफल रहा।

ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से भारतीय आर्य भाषा को तीन कालों में बांट सकते हैं-

1. प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल (ऋग्वेद काल)

प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल, जिसे ऋग्वेदीक काल भी कहा जाता है,यह काल हिन्दी भाषा के उद्भव का समय है। इस काल में वेदों और उपनिषदों की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद ने भाषा को आध्यात्मिक और धार्मिक विचारों के साथ अपना विशेष स्थान बनाया। इस युग में हिन्दी भाषा अपनी सरलता, शांति, और अद्वितीयता के साथ विकसित हुई और भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का उद्भव आरम्भ किया।

2. मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल (6वीं से 18वीं सदी)

मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल ने मुगल और सुल्तानी साम्राज्यों के चलते हिन्दी भाषा को नए-नए रूपों में विकसित किया। इस काल में हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं के मिलने का प्रयास हुआ, जिससे दोनों को हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच एक सांस्कृतिक संगम स्थापित हुआ। तुलसीदास, सूरदास, कबीर, और नामदेव जैसे साहित्यकारों ने भाषा को साहित्यिक दृष्टि से समृद्धि दिलाई और भक्ति साहित्य के माध्यम से जनजागरूकता में मदद की।

इस काल में सर्वप्रथम पाली भाषा अशोक की धर्मलिपियों में उत्तर भारत की भाषा में तीन विभिन्न रूप ,पूर्वी, पश्चिमी अवश्‍य थी लोंगो की बोली में बराबर परिवर्तन होता र‍हा । अशोक धर्मलिपियों की भाषा बाद में प्राकृत भाषा के नाम से जानी जाने लग गयी इस काल में संस्‍कृत के साथ-साथ साहित्य में इन प्राकृतों का व्यवहार होने लगा । पश्चिमी भाषा का मुख्य रूप शौरसैनी प्राकृत था, पूर्वी का माघधी प्राकृत, इन दोनो के बीच में अर्धमाघधी और चौथी दक्षिण रूप महाराष्‍ट्री प्राकृत थी प्राकृत भाषाओं का समय 500 ई. तक है इसके बाद प्राकृत की बिगडी बोली अपभ्रंश सामने आई अपभ्रंश का समय काल 500 से 1000 ई ० तक है

3. आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल (18वीं सदी के बाद)

आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल ने ब्रिटिश शासन, स्वतंत्रता संग्राम, और भारतीय समाज के उत्थान के साथ हिन्दी भाषा को नए माध्यमों में प्रगट किया। भाषा को साहित्य, सामाजिक चेतना, और राजनैतिक के क्षेत्र में नई पहचान मिलीं। प्रमुख साहित्यिक आंदोलनों, विद्वानों और समाजसेवी विचारकों ने हिंदी भाषा को राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बनाया। इस काल में हिन्दी भाषा ने अनेक लोकप्रिय साहित्यिक रचनाएं, कविताएं, और उपन्यासों की रचना की, जिनसे यह एक विश्वसनीय की और बढ़ती भाषा बनी है।

इस रूपरेखा में, हिन्दी भाषा ने अपने तीनों कालों में भारतीय सांस्कृतिक सार्थकता को प्रतिस्थापित करते हुए एक सशक्त और समृद्धिशील भाषा का विकास किया है।

हिन्दी भाषा का महत्व

हिन्दी भाषा, भारत की सबसे बड़ी और प्रमुख भाषा है जो देशवासियों के बीच सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भाषा देश की आत्मा और एकता का प्रतीक है जो अनेक भाषाओं, जातियों, और सांस्कृतिक परंपराओं को समृद्ध करती है। यहां हिन्दी भाषा के महत्व को विस्तार से समझाया जा रहा है:

1. सामाजिक एकता : हिन्दी भाषा ने देशवासियों को एक समान भाषिक साथी के रूप में जोड़ा है। इससे राष्ट्रीय एकता और सामूहिक समरसता में सहारा मिलता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ता है।

2. राजनीतिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान : हिन्दी भाषा ने भारतीय राजनीति और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह राजनीतिक और सांस्कृतिक अभिवृद्धि के प्रोत्साहक के रूप में कार्य करती है और लोगों को अपनी मूलभूत भूमिका को समझने में मदद करती है।

3. शिक्षा में उपयोग : हिन्दी भाषा विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा और अन्य शिक्षार्थी संस्थानों में अच्छे से समझने और व्यक्त करने में मदद करती है।

4. साहित्यिक धरोहर : हिन्दी साहित्य, विशेषकर काव्य और कहानी साहित्य, अत्यंत समृद्ध और सौंदर्यपूर्ण है। इसने भारतीय साहित्य को विश्व स्तर पर प्रमोट किया है और दुनिया भर में अपनी विशेषता को साबित किया है।

5. रोजगार के संभावनाएं : हिन्दी भाषा का ज्ञान भाषा अनुवाद, जनसंख्या सर्वेक्षण, जनसंख्या की सुरक्षा, और माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार के अवसरों को बढ़ाता है।

6. भाषा का सांस्कृतिक मूल्य : हिन्दी भाषा भारतीय सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है और इसका सबसे बड़ा महत्व भारतीय समृद्धि के साथ जुड़ा होता है। इसके माध्यम से लोग अपनी संस्कृति, परंपराएँ, और भूमि से जुड़े रहते हैं।

7. भाषा का राष्ट्रीय उत्तरदाता : हिन्दी भाषा भारत की राष्ट्रभाषा है, जिससे यह राष्ट्र की आत्मगौरव और एकता का प्रतीक बनती है। यह देशवासियों को एक सामान्य भाषा में समझौता करने का एक माध्यम प्रदान करती है।

8. सामरिक संबंध बढ़ावा : हिन्दी भाषा के जरिए लोग अपने समर्थन, आपसी सहयोग, और सामरिक संबंधों में मजबूती पैदा कर सकते हैं जो राष्ट्र को बनाए रखने में मदद करता है।

सारांशत: हिन्दी भाषा ने भारतीय समाज को अपनी एकता, सांस्कृतिक धरोहर, और अपनी भूमि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में मदद की है। इसने न केवल देश के भीतर संबंध बढ़ाए हैं, बल्कि यह विश्व भर में भी भारत की पहचान को मजबूत किया है।

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